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आलेख : कूए सँवार रहे हैं आदिवासियों की किस्मत

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जनजाति क्षेत्रों में कृषि और पशुपालन ग्राम्य आजीविका के मुख्य स्रोत हैं। खेती-बाड़ी और इससे जुड़ी परंपरागत ग्राम्य गतिविधियों का सीधा रिश्ता पानी से है। जिन इलाकों में नदी-नाले और नहरे हैं वहाँ साल में अनेक फसलें ली जाने लगी हैं लेकिन कई क्षेत्र ऎसे हैं जहाँ पीने के पानी से लेकर सिंचाई तक के लिए कूओं और बावड़ियों का ही सहारा लेना पड़ता है।

आदिवासी बहुत प्रतापगढ़ जिले में कई स्थान ऎसे हैं जहाँ काश्तकारों के लिए सिंचाई की माकूल सुविधा का अभाव महसूस किया जाता रहा है। इन इलाकों में सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जलसंरचनाओं के निर्माण, कूओं और एनिकटों को गहरा कराने सहित विभिन्न उपायों को अपनाया जा रहा है। 

जिले की पीपलखूंट पंचायत समिति के कुछ क्षेत्रों में खेती-बाड़ी के लिए पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पंचायत समिति की ओर से ग्रामीणों के अपने खेत पर कूओं की योजना को आकार दिया गया। इसके अन्तर्गत विभिन्न ग्राम पंचायतों में आदिवासियों के खेतों पर कूप निर्माण कराया गया।

स्वयं के खेतों में सिंचाई एवं पेयजल की दीर्घकालीन उपयोग भरी इस योजना को ग्रामीणों ने आत्मीयता से अपनाया और कूए खोदे। आज इन ग्रामीणों के खेत में हरियाली भी है, और पानी का भण्डार भी। इस वर्ष बने कई सारे कूए हाल ही हुई बारिश के उपरान्त लबालब हो चले हैं।

अपने खेत में कूओं के होने की वजह से आदिवासी किसानों की ढेरों समस्याओं का अपने आप समाधान हो गया है। पीने के लिए पानी अब दूर से नहीं लाना पड़ता और न ही पशुओं को पानी पिलाने के लिए दूर ले जाने की विवशता।

पहले पूरी खेती बरसात पर निर्भर हुआ करती थी लेकिन अब साल भर ये किसान कोई न कोई फसल लेने लगे हैं। इनमें फल-फूल और सब्जियों के साथ ही नगदी फसलों का चलन भी शुरू हो चुका है।  मवेशियों के लिए साल भर हरे चारे की उपलब्धता के चलते दुग्ध व्यवसाय भी फलने-फूलने लगा है।

कचोटिया ग्राम पंचायत अन्तर्गत पाड़लिया गांव में दो आदिवासी परिवारों के लिए अपने-अपने खेत में डेढ़-डेढ़ लाख रुपए की सरकारी मदद से बने कूए वरदान ही बन गए हैं।  गांव में रामचन्द्र एवं रावजी के खेत में बने हुए कूप हरियाली बनाए रखने और जीवन को हरा-भरा करने का सशक्त माध्यम बने हुए हैं।

पीपलखूंट पंचायत समिति क्षेत्र में ऎसे कई गांव हैं जिनमें आदिवासियों के खेतों में कूआ का निर्माण हुआ है और अब इन कूओं की वजह से ग्रामीणों की हैसियत सुधरी है। ग्रामीणों का मानना है कि कूओं के निर्माण से खेती-बाड़ी से खुशहाली लाने के स्वप्नों को अच्छी तरह साकार किया जा सकता है।





---डॉ. दीपक आचार्य---
जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी
प्रतापगढ़

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