Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

आलेख : नाबालिग की आड़ में यौन अपराधी को छूट नाइंसाफी होगी

$
0
0
हालांकि ऐेसे मामलों में सजा से पहलेे प्रकरण की गंभीरत व आरोपों को बिकाउ तंत्र की जगह न्यायालय के सुपरविजन में आएं जांच रिर्पोटों व तथ्यों की पड़ताल व बारीकियां जानने के बाद ही कोई फैसला लेनी होगी, वरना किसी निर्दोश को सजा मिल गयी तो उससे भी बड़ा पाप होगा 

अपराध कई श्रेणी के होते है। एक तो अनजाने  में घटित हो जाता है, दुसरा अपराध या कुकर्म करने के बाद टूकड़ों में बांटना या विभत्स रुप देना बिल्कुल सोची-समझी रणनीति का हिस्सा होता है। ऐसे में यौन अपराधों सहित जघन्य वारदातों में शामिल किसी भी अपराधी को इस आधार पर कत्तई छोड़ा नहीं जा सकता कि वह नाबालिग है। उसकी उम्र 18 वर्ष से कम है। समाज को शर्मसार करने वाले ऐसे अपराध में शामिल युवक चाहे वह नाबालिग ही क्यों न हो किसी भी तरह की सहानभूति का हकदार नहीं है। अगर भविष्य अंधकारमय होने की दलील पर आरोपी को छोड़ा जाता है तो पीड़ितों के साथ अन्याय होगा। सुधार गृह या स्पेशल होम भेजने का मुख्य मकसद ऐसे युवकों को सुधरने का मौका देना है। ध्यान देने योग्य बातें यह होनी चाहिए कि ऐेसे मामलों में सजा से पहलेे प्रकरण की गंभीरता व आरोपों को बिकाउ तंत्र की जगह न्यायालय के सुपरविजन में आएं जांच रिर्पोटों व तथ्यों की पड़ताल व बारीकियां जानने के बाद ही कोई ठोस फैसला लेना उचित होगा, वरना अगर गलती से किसी निर्दोश को सजा मिल गयी तोे उससे भी बड़ा पाप होगा। इन मामलों में यह भी समझना होगा कि क्या सिर्फ उम्र घटा देने से बलात्कारों पर अंकुश लग जाएगा? समाज के जिस विकृत माहौल के चलते बलात्कार की वारदातें बढ़ रही हैं, उसे भी सुधारने के लिए कारगर पहल होनी चाहिए। 

केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट संशोधन विधेयक के जरिए अब किशोर अपराधियों की वयस्क होने की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। मतलब साफ है जघन्य अपराधों के मामले में वयस्क अपराधियों की तरह आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज होगा। यह बात दिगर है कि मुकदमा चलाने का निर्णय किशोर न्याय मंडल ही (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) लेगा। किशोर अपराधियों को उम्रकैद या फांसी की सजा देने का प्रावधान प्रस्तावित संशोधन विधेयक के मसौदे में नहीं है। बता दें यह कानून बहुचर्चित निर्भया गैंगरेप कांड के मद्देनजर लाया गया है। निर्भया प्रकरण मेंएक ऐसा नाबालिग जघन्य अभियुक्त भी शामिल था, जिसकी उम्र 17 वर्ष थी। उम्र कम होेने के चलते ही उसे इस जघन्य अपराध में शामिल होने के बावजूद अन्य आरोपियों की तरह अदालत मौत की सजा नहीं दे सकी। महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के मुताबिक यौन उत्पीड़न के घटित 50 फीसदी मामलों के दोषी 16 वर्ष या इसी उम्र के आसपास के होते हैं। अधिकांश आरोपी किशोर न्याय कानून के प्रावधान के बारे में जानते हैं। लिहाजा उन्हें इसका रंचमात्र भी खौफ नहीं होता। ऐसे में उनके साथ ही वयस्क आरोपियों जेसी ही कार्रवाई होनी चाहिए। आंकड़ों के मुताबिक देशभर में अवयस्क अपराध के जो भी मुकदमें दर्ज होते हैं, उनमें से 64 फीसदी में आरोपी 16-18 वर्ष की उम्र के ही होते हैं। बीतें सालों में देश में किशोरों के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में तकरीबन 34000 में से 22000 आरोपी अवयस्क ही पाएं गए है। 

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन को मंजूरी देना एक सराहनीय कदम है। इससे निर्भया सहित अन्य पीड़िताओं की की आत्मा को भी शांति मिली होगी। हाल ही में दिल्ली में दिनदहाड़े 5 नाबालिग लड़कों ने अपने ही एक दोस्त की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी। क्या ऐसे अपराधी रहम के लायक हैं? बदलते सामाजिक परिवेश में इन दिनोंयह भी देखने को मिलता है कि जहां कहीं भी दुष्कर्म के मामले आए, बचाव पक्ष की ओर से आरोपी को नाबालिग साबित करने की दलीलें देनी शुरु हो जाती होती है। इसके पीछे मकसद यह होता है कि आरोपी को सजा से बचाया जा सके। 

जहां तक बच्चों द्वारा इस तरह के कुकृत्य करने की जिज्ञासा उभरने की बात है तो बेशक इसके लिए काफी हद तक समाज एवं परिवार की भूमिका मायने रखती है। वर्तमान में पोर्न वीडियों की सहज उपलब्धता, आधुनिकता, शहरी व बाजारीकरण भी बच्चों को अपराध की ओर ले जाने में महती भूमिका निभा रहा है। कर्नाटक विधानसभा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि छेड़खानी और दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं के लिए मोबाइल फोन व लैपटाप को जिम्मेदार है। इससे निजात पाने के लिए समिति ने स्कूल व कॉलेजों में इस डिवाइस पर पाबंदी लगाने की बात कहीं है। बात सरकारी आंकड़ों की जाएं तो कहा गया है कि तकरीबन 95 प्रतिशत बाल अपराधी गरीब व वंचित तबकों के होते हैं, परंतु यह गले नहीं उतरता। आर्थिक रूप से संपन्न या उच्च तबकों के ही बच्चे लेपटाप या मोबाइल आदि से लैस होते है। ऐसे में उच्च वर्ग के बाल अपराधी महज पांच फीसद ही होंगे, सही नहीं है। इस वर्ग में भी यौन अपराध बड़ी संख्या में कारित हो रहे हैं। आज का सामाजिक खुलापन और पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता अंधानुकरण इस वर्ग की किशोर पीढ़ी को भी दिग्भ्रमित कर रहा है। ये बच्चे छोटी उम्र में ही अश्लील साहित्य पढ़ने और फिल्में देखने लग जाते हैं, क्योंकि इनके पास उच्च गुणवत्ता के मोबाइल फोन सहजता से सुलभ होते हैं। इसके चलते वे कई बार सहमति से या जबरन भी कच्ची उम्र में ही शारीरिक संबंध बनाने जैसी भूल भी कर बैठते हैं। ऐसे मामले कई बार इसलिए भी सामने नहीं आ पाते क्योंकि लोकलाज या रसूख के नाम पर इन्हें दबा दिया जाता है। बहरहाल, सरकार के बाद अब संसद इस कानून में संशोधन प्रस्ताव पारित करने से पहले इसके तमाम पहलुओं पर विचार करे। पीड़ित को न्याय मिले, यह तो सभी चाहते हैं, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि किशोर अपराधियों को सुधरने का मौका देने के बजाय दंडित करने से कहीं वे अपनी आगे की जिंदगी में गंभीर अपराधों की ओर उन्मुख न हो जाएं। आईपीसी की धारा 309 को हटाने का मोदी सरकार का फैसला भी सराहनीय है। मोदी सरकार ने दो दिन में दो अहम फैसले लिए हैं। साफ है कि केंद्र की नई सरकार कानूनी विसंगतियों को दूर करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रही है। 

ताजा उदाहरण यह है कि एक मामले में अमृतसर के एक 16 वर्षीय युवक ने 29 जुलाई 2008 को पार्क में खेलते हुए छह साल के बच्चे के साथ कुकर्म किया था। मेडिकल जांच में सामने आया कि बच्चे के साथ निर्दयी ढंग से दुष्कर्म किया गया। फरवरी 2013 में अमृतसर के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने इस युवक को दोषी मानते हुए तीन साल की कैद व दो हजार रुपये जुर्माना के सजा सुनाई। इसी साल मई में युवक ने सजा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील में उसने कहा कि वह युवा अवस्था में प्रवेश कर रहा है अगर उसको सुधार गृह भेजा गया तो भविष्य अंधकारमय हो जाएगा और उसका परिवार इससे प्रभावित होगा। हालांकि हाईकोर्ट ने युवक की मांग को दरकिनार कर कहा है कि अगर भविष्य अंधकारमय होने की दलील पर आरोपी को रिहा किया जाता है तो अन्याय होगा। सुधार गृह या स्पेशल होम भेजने का मुख्य मकसद ऐसे युवकों को सुधरने का मौका देना है। परिस्थितिजन्य अपराध में तो सावधानी बरतनी ही होगी, लेकिन कोई कानपुर, गाजीपुर, बलिया, दिल्ली व लखनउ जैसे घिनौने व विभत्स रुप देने वाले को कठोर से कठोर सजा दी जानी चाहिए।





live aaryaavart dot com

(सुरेश गांधी)

Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>