सरकार ने आज स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करके न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप का उसका कोई इरादा नहीं है और उसके अधिकार तथा गरिमा को अक्षुण्ण रखा जाएगा। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 और इससे संबंधित 121वें संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के जवाब में कहा, सरकार न्यायपालिका का पूरी तरह सम्मान करती है और इसकी संस्थागत गरिमा कम नहीं होने दी जाएगी। यह विधेयक लाकर न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है।
श्री प्रसाद ने कहा कि यह इसलिए नहीं किया जा रहा है कि बरसों के बाद बहुमत की सरकार आई है, बल्कि पहले भी इस तरह के बदलाव के पांच बार प्रयास हुए हैं और छह रिपोर्ट आ चुकी हैं। उन्होंने कहा, भाजपा अपनी ऐतिहासिक जीत से आनंदित है, लेकिन उसे अपने दायित्व का भी बोध है। आयोग में दो प्रमुख हस्तियों के चयन के बारे में कांग्रेस केएम वीरप्पा मोइली की आशंकाओं का निवारण करते हुए उन्होंने कहा, इस बारे में प्रधानमंत्री, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के सामूहिक विवेक पर भरोसा किया जाना चाहिए, क्योंकि वही इनका चयन करेंगे। इसके अलावा न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी योग्यता के मानदंड तय हैं। बुधवार को इस विधेयकों पर मतदान कराया जाएगा।
विधेयक में ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिसके तहत राष्ट्रपति उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों के तबादले उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह के बजाय आयोग की सलाह पर करेंगे। कानून मंत्री के अनुसार इस विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि आयोग ऐसी सिफारिश नहीं करेगा जिस पर उसके दो सदस्यों ने असहमति जताई हो। इसके साथ ही राष्ट्रपति जरुरत पडऩे पर आयोग को उसकी सिफारिश पर पुनर्विचार करने के लिए भी कह सकते हैं, लेकिन यदि आयोग पुनर्विचार के बाद सर्वसम्मति से फिर सिफारिश करता है तो राष्ट्रपति को उसके अनुरूप नियुक्ति करनी होगी। इसके अतिरिक्त विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि आयोग उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति के संबंध में नियुक्ति के मानदंड, न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया तथा शर्तें, एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के स्थानांतरण की प्रक्रिया भी तय कर सकता है। इसके साथ ही वह अपने कामकाज की प्रक्रिया भी निर्धारित करेगा।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए छह सदस्यीय आयोग नाम सुझाएगा। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में इस आयोग गठित करने का प्रावधान किया गया है। सदस्यों में न्यायपालिका की ओर से मुख्य न्यायाधीश के अलावा उनके बाद के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे, जबकि कार्यपालिका की ओर से कानून मंत्री होंगे। इनके अलावा दो प्रख्यात व्यक्ति भी इसके सदस्य होंगे, जिनका चयन प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश लोकसभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को मिलाकर बनाई गई समिति करेगी।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया जाएगा। जिसमें प्रधानमंत्री के अलावा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व लोकसभा में विपक्षी दल अथवा सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को सदस्य बनाया जाएगा। जो बहुमत के आधार पर न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करेगा। एक से ज्यादा सदस्यों के विरोध पर सिफारिश मान्य नहीं होगी।