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न्यायाधीशों की नियुक्ति आयोग के लिए विधेयक लोस में पारित

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लोकसभा ने बुधवार को दो विधेयकों पर मुहर लगा दी जिससे सर्वोच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को भंग कर नई व्यवस्था शुरू की जा सकेगी। संविधान (99वां संशोधन) विधेयक और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 को निचले सदन ने पारित कर दिया। विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि सरकार का न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप का कोई इरादा नहीं है। कानून मंत्री ने संविधान संशोधन विधेयक की संख्या में बदलाव के लिए एक संशोधन प्रस्ताव भी पेश किया जिसे सदन ने पारित कर दिया। संविधान संशोधन की संख्या 121 से 99 की गई।

जहां न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया, वहीं संविधान संशोधन विधेयक को मत विभाजन के जरिए पारित किया गया। इस विधेयक के पक्ष में 376 सदस्यों ने मतदान किया। संविधान संशोधन विधेयक को पारित होने के लिए सदन के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन होना अनिवार्य है। अब विधेयक को राज्यसभा से पारित कराया जाएगा और उसके बाद मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा।

दोनों विधेयक न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को खत्म कर देगा और इस काम के लिए आयोग का गठन किया जाएगा। विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश छह सदस्यीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के अध्यक्ष होंगे। इसके सदस्यों में कानून मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश और दो प्रमुख व्यक्ति होंगे।

कॉलेजियम में प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता दो प्रमुख व्यक्ति का चुनाव करेंगे। एक प्रमुख व्यक्ति अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला से मनोनीत किया जाएगा। विधेयक कहता है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति अथवा स्थानांतरण के पहले आयोग संबंधित राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से राय लेगा।

विधेयक का एक प्रावधान यह भी है कि यदि आयोग के दो सदस्यों ने किसी प्रत्याशी पर असहमति जाहिर कर दी तो उस स्थिति में उस प्रत्याशी को नियुक्ति नहीं दी जाएगी। इस प्रावधान का कुछ सदस्यों ने यह कहते हुए विरोध जताया कि यह वीटो प्रणाली की तरह हो जाएगा। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने हालांकि यह कह कर डर को निर्मूल किया कि 'दो आवाजें असहमति के मामलो में विचारणीय होंगी।'

प्रसाद ने कहा, "विमर्श की प्रक्रिया को और ज्यादा सार्थक बनाया गया है। लोगों की एक बहुत बड़ी आबादी का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व नहीं है।"उन्होंने आगे कहा कि आरक्षित श्रेणी के वकीलों का एक डाटाबेस होना चाहिए। उन्होंने कहा, "नए कानून की जरूरत केवल हमारी सरकार की सोच नहीं है। यह पिछले 20 वर्षो के दौरान सामूहिक प्रयास का नतीजा है।"इससे पहले कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से न्यायिक आयोग में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अनिवार्य करने का प्रावधान करने के लिए कहा था।

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