उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए आयोग गठित करने संबंधी विधेयक पर लोकसभा की मुहर लगने के बाद कानूनी बिरादरी ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है और इस बात का संदेह जताया है कि कहीं इसके जरिए सरकार न्यायिक स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने तो नहीं जा रही है। जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) 'सार्वजनिक हित'में नहीं है।
प्रशांत भूषण ने कहा, "यह सार्वजनिक हित में नहीं है क्योंकि यह सरकार को नियुक्ति रोकने का वीटो शक्ति प्रदान करता है जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौते का खतरा है।"इसी तरह की भावना पूर्व अतिरिक्त महान्यायवादी एवं वरिष्ठ वकील बिश्वजीत भट्टाचार्य ने भी व्यक्त की। उन्होंने इसे प्रतिगामी कदम करार दिया जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता होगा।
भट्टाचार्य ने कहा, "यह एक प्रतिगामी कदम है और इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ समझौता होगा। शक्ति के पृथककरण के सिद्धांत को बढ़ावा देगा और संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करेगा।"कॉलेजियम प्रणाली में कतिपय गड़बड़ी और उनको दुरुस्त किए जाने की दरकार को स्वीकार करते हुए भट्टाचार्य ने कहा, "न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए कालेजियम प्रणाली निश्चित रूप से बेहतर है और उसकी जगह एनजेएसी लाना कोई उपचार नहीं है।"
उन्होंने कहा, "सरकार को पर्याप्त कोष मुहैया कराना चाहिए था और बुनियादी ढांचा तैयार करना चाहिए था न कि एनजेएसी गठित करने के लिए विधेयक पारित करना चाहिए था।"