2005 में जब बिहार में मौजूदा राज्य सरकार ने सत्ता संभाली थी तो उस समय 12.5 प्रतिषत बच्चे विद्यालय से बाहर थे, अब यह अनुपात घटकर 2 प्रतिषत से भी कम हो गया है। बिहार में षिक्षा पर विषेश ध्यान दिया गया है। षिक्षकों को नियुक्त किया गया, स्कूल ईमारतों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई, पोषाक और साईकिल योजना चलाई गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में बच्चे विद्यालय आए और अब दो प्रतिषत से कम बच्चे विद्यालय से बाहर हैं। सत्ता की कमान संभालने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री नीतिष कुमार ने माना कि भविश्य में बिहार को गौरान्वित करनेे के लिए नई नस्लों को षिक्षा के हथियार से लैस करना होगा। उन्होंने विभिन्न योजनाएं बनाकर बिहार में षिक्षा के क्षेत्र में इंकलाब ला दिया। बिहार के छात्र-छात्राएं योजनाओं का लाभ उठाकर देष ही नहीं बल्कि विदेष में भी अपने विवेक का लोहा मनवा रहे हैं।
इस सब से इतर बिहार में उर्दू भाशी छात्र-छात्राओं की हालात में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। राज्य की 20 प्रतिषत उर्दू भाशी जनता की समस्याओं के हल के लिए तत्कालीन सरकार ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। विभिन्न योजनाएं बनाकर उर्दू भाशी छात्राओं को विद्यालय से जोड़ने की कोषिष की गई। इन कोषिषों के नतीजे षून्य ही रहे। इसके बाद राज्य सरकार की नज़र उर्दू भाशी बच्चों की बुनियादी षिक्षा पर पड़ी। उर्दू पाठषाला व उर्दू विद्यालयों में उर्दू षिक्षकों की बहाली वर्शों से रूकी हुई है। विद्यालय में उर्दू पढ़ाने वाले अध्यापकों की कमी के चलते उर्दू भाशी छात्र-छात्राएं विद्यालय से नहीं जुड़ पा रहे हैं। सरकार ने इस समस्या के हल के निदान के लिए विषेश उर्दू/बांग्ला टीईटी परीक्षा का आयोजन किया। 27,000 सीट वाली इस परीक्षा में 2,40,000 छात्र-छात्राएं सम्मिलित हुए जिसमें से 15,310 छात्र-छात्राओं को कामयाबी मिल सकी। सरकारी विज्ञप्ति में इन सफल उम्मीदवारों को जल्द नियुक्त किए जाने की उम्मीद दिलाई गई जिससे उर्दू भाशी जनता में खुषी की लहर दौड़ गई। उन्हें उम्मीद जगी कि दषकांे से षिक्षा की मुख्य धारा से दूर रहने वाला हमारा समाज तेज़ी से षिक्षा से जुड़ेगा। अब इस भाशा के पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं भी गुणवत्ता पूर्ण षिक्षा हासिल कर समाज व देष की सेवा करेंगे। षायद उर्दू भाशी जनता की खुषी सरकार को गवारा न हुई तभी तो परिणाम आने के नौ महीने बाद भी उर्दू/बांग्ला टीईटी पास टीईटी उम्मीदवारों की अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है।
बहाली प्रक्रिया के संबंध में अब तो सरकार वादा करने से भी बच रही है। ऐसी स्थिति में कमज़ोर तबके से संबंध रखने वाले इन उम्मीदवारों की हालत दयनीय हो चुकी है। उर्दू भाशा के नाम पर सियासत करने वाले राजनेता भी अब इनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। नाउम्मीदी के षिकार उर्दू/बांग्ला पास उम्मीदवारों ने अपना अधिकार पाने के लिए आल बिहार विषेश उर्दू/बांग्ला टीईटी नाम का संगठन बनाया है। संगठन के अध्यक्ष अब्दुल बाकी के अनुसार ज़्यादातर उम्मीदवार बीपीएल परिवार से संबंध रखते हैं। उर्दू/बांग्ला टीईटी पास नौजवानों को उम्मीद की थोड़ी सी किरण जागी थी मगर सरकार के टालमटोल रवैये व उर्दू भाशा के नाम पर सियासत करने वाले राजनेताओं के कारण इन उम्मीदवारों की समस्याएं और गहराती जा रही हैं। इस सिलसिले में उम्मीदवार षिक्षा पदाधिकारियों से लेकर षिक्षामंत्री तक का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं परन्तु कहीं से उम्मीद की कोई किरन नज़र नहीं आती। इस वर्श दो नियोजन प्रक्रिया पूरी होने जा रही है। परंतु इन उम्मीदवारों पर सरकार की कोई नज़र नहीं ह इस बारे में टीईटी पास उम्मीदवार ओवैस अंसारी का कहना है कि 95 प्रतिषत उम्मीदवार गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। ऐसे हालात में अगर अगस्त माह में बहाली नहीं होती है तो बेरोज़गारी और भूखमरी से तंग आकर मैं विधान मंडल के सामने आत्मदाह करूंगा। वहीं औरंगाबाद के राषिद और आफाक आलम , ़ सहरसा के असरारूल हक, किषनगंज के षहनवाज आलम ने कहा कि यदी अगस्त तक हमारी बहाली नहीं होती है तो हम लोग लोकतांत्रिक तरीके से सरकार से लड़ेंगे। बहाली प्रक्रिया को लेकर सरकार का टालमटोल रवैया या उर्दू भाशा के नाम पर सियासत कारण कुछ भी हो लेकिन क्या राज्य की 20 प्रतिषत जनता को षिक्षा की मुख्य धारा से दूर रखकर एक विकसित बिहार का सपना देखा जा सकता है? ऐसा करके क्या सरकार भविश्य में गौरान्वित बिहार की कल्पना कर सकती है? पूर्व मुख्यमंत्री नीतिष कुमार के समावेषी विकास के हसीन सपनों को पूरा किया जा सकता है। यह सवाल बिहार की जनता को परेषान कर रहा है और साथ ही साथ बिहार सरकार को भी मुंह चिढ़ा रहा है।
कमाल अज़हर
(चरखा फीचर्स)