भारत सरकार ने देष के हर एक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य षिक्षा देने के लिए एक कानून बना रखा है ताकि सभी बच्चे षिक्षा हासिल कर सकें। मगर देष के ग्रामीण और सरहदी इलाकों में षिक्षा की व्यवस्था को देखकर ऐसा लगाता है कि सरकार जिस सपने को हकीकत में बदलने का सपना देख रही है उसकी कोई संभावना नज़र नहीं आती। जम्मू प्रांत के सीमावर्ती जि़ले पुंछ में सरकार की लाख कोषिषों के बावजूद भी यहां षिक्षा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। सरकार की ओर से षिक्षा की स्थिति में बदलाव लाने के लिए योजनाएं तो बहुत सारी चल रही हंै लेकिन पुंछ जैसे दूरदराज़ इलाके में पहुंचते पहुंचते यह योजनाएं दम तोड़ देती हैं। तहसील सुरनकोट के गोंथल गांव के वार्ड नंबर दो के मोहल्ला सरदारी के गल्र्स मीडिल स्कूल में प्रधानाध्यापक नईम अहमद, अध्यापक अज़हर खान और नवेज दीन के साथ स्कूल के बरामदे में बैठकर चरखा के ग्रामीण लेखकों ने स्कूल में षिक्षा की स्थिति के बारे में जानने की कोषिष की। चरखा ग्रामीण लेखकों ने जब स्कूल के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करनी चाही तो प्रधानाध्यापक और अध्यापकों ने कहा कि आप सबूत दिखाएं कि आप कौन हैं और कहां से आए हैं। इस पर हमने चरखा कार्यषाला के पेपर उन्हें दिखाए मगर उन्होंने हमें कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया और उल्टा हम से ही सवाल करने लगे कि आप स्कूल की जानकारी हासिल करने वाले कौन होते हैं?
12 बजे के बाद बच्चों के साथ साथ अध्यापकों को भी छुट्टी दे दी जाती है जबकि स्कूल की छुट्टी का समय दो बजे का है। आज के इस दौर में षिक्षा के बगैर मनुश्य एक अनाथ की तरह है। षिक्षा पाकर ही मनुश्य अच्छे बुरे और सही गलत की पहचान करना सीखता है। आखिर स्कूल की छुट्टी 12 बजे करके प्रधानाध्यापक बच्चों के भविश्य से खिलवाड़ करने पर क्यों लगे हुए हैं? अगर इन बच्चों का भविश्य बर्बाद होता है तो क्या इसकी जि़म्मेदारी स्कूल के प्रधानाध्यापक लेंगे? अगर हां तो इन्हें इन बच्चों की जिंदगी से खेलने का पूरा अधिकार है, अगर नही ंतो स्कूल को दो घंटे वक्त से पहले बंद करने का अधिकार इन्हें किसने दिया। इस बारे में पूछे जाने पर प्रधानाध्यापक नईम अहमद ने कहा कि मैं अपनी पावर का इस्तेमाल करके स्कूल को 12 बजे ही बंद कर देता हंू और इस पर आप जो मजऱ्ी चाहें अखबार में लिखें छपवाएं। स्कूल में 7 अध्यापक है जिसमें से चार ही मौजूद थे। बाकी दूसरे अध्यापकों का अता पता नहीं था। फिर अध्यापक हमसे वेतन का जि़क्र करने लगे कि हमें 10 महीने से वेतन नहीं मिला है। फिर वह आगे कहने लगे कि यदि आपको किसी विभाग से इतने दिन तक वेतन न मिले तो आप काम कर पाओगे। स्कूल में मीड डे मील के बारे में उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ चावल दिए जाते हैं बाकी मसाला, हल्दी और मिर्ची आदि सारी चीज़े हम अपनी जेब से लगाते हैं तब जाकर स्कूल में मीड डे मील दिया जाता है। इन सब हालातों के चलते स्कूल में षिक्षा का म्यार निम्म स्तर पर आ पहुंचा है।
अगर यह सब इसी तरह चलता है तो देष के पूर्व राश्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम का वह सपना पूरा नहीं हो पाएगा जो उन्होंने 2020 तक सबको षिक्षित देखने का सपना देखा था। बात करते करते स्कूल के प्रधानाध्यापक मुझसे सवाल करने लगे कि आपने कहां तक षिक्षा ग्रहण की है। इस पर मैने कहा कि मैंने मदरसे से फज़ीलत की डिग्री हासिल की है। मेरे जवाब देने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी फज़ीलत की पढ़ाई बर्बाद कर आप इस काम में क्यों लगे हुए हैं ? मैंने जवाब में कहा कि मैं मदरसे से पढ़ाई पूरी करने के बाद इस काम में लगा हंू। इस पर प्रधानाध्यापक ने जवाब दिया कि षिक्षा कभी पूरी नहीं होती। अफसोस की बात यह है कि प्रधानाध्यापक जी एक ओर मुझे षिक्षा का पाठ पढ़ाते हुए नज़र आए वहीं दूसरी ओर वह ही स्कूल की छुट्टी दो घंटे पहले कर बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ करने पर लगे हुए हैं। यह तो कुछ इसी तरह हुआ दूसरों को नेकी की दावत देकर खुद ही भूल जाना। हकीकत यह है कि हमारे स्कूलों में तैनात अध्यापक अपनी ड्यूटी निभाने से कतराने लगे हैं और इसका सीधा असर बच्चों के भविश्य पर पड़ रहा है जिसका अभी निर्माण ही नहीं हुआ है। हम सारे ग्रामीण लेखक चरखा को मुबारकबाद देते हैं जो षिक्षा या फिर दूसरी सामाजिक समस्याओं का हल निकालने के लिए लगातार प्रयासरत रहती है। मैं भी चरखा से जुड़ा हुआ हंू ताकि कलम के ज़रिए अपने समाज का थोड़ा सा भला कर सकंू। लोगों का दर्द महसूस कराने की आदत हमें चरखा ने ही महसूस करायी है।
अब्दुल कय्यूम
(चरखा फीचर्स)