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भेदविज्ञान की परीक्षा है केशलोच, प्रवचन सभा में किया मुनिश्री ने लोच

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jain news
केशलोच क्रिया से संत आत्मा और देह के बीच प्रयोगात्मक परीक्षा देता है। केशलोच क्रिया भेदविज्ञान की परीक्षा है। इस परीक्षा से मैं महसूस करता हूं कि मेरे संन्यासकाल में देह से आसक्ति बढ़ी है या घटी है। यह विचार श्रमण संघीय उपाध्याय रमेष मुनि ने रविवार 17 अगस्त जन्माष्टमी के पावन दिवस पर बैंगलोर शहर के चिकपेट स्थित जैन स्थानक के ‘गुरु ज्येष्ठ तारक पुष्कर देवेन्द्र दरबाद’ में केशलोच क्रिया के बाद धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। प्रवचन के पश्चात उपाध्यायश्री ने दाढ़ी के केशलोच की क्रिया शुरू की। केषलोच की क्रिया के दौरान श्रद्वालुजन नवकार महामंत्र स्तुति व प्रभु महावीर रमेष मुनि जी की जय हो के जयकारे लगा रहे थे। इस अवसर पर संघरत्न उपप्रवर्तक डाॅ. श्री राजेन्द्र मुनि जी म. सा. श्रमण संघीय सलाहकार श्री दिनेष मुनि जी म., साहित्य दिवाकर श्री सुरेन्द्र मुनि जी म. सा., डाॅ. द्वीपेन्द्र मुनि जी म., डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि जी म., सेवाभावी श्री दीपेष मुनि जी म एवं शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। 

अश्रुधाराऐं बहनें लगी -
पुष्करवाणी गु्रप ने बताया कि जैसे ही उपाध्याय श्री जी ने अपनी केष लोच क्रिया प्रारम्भ की ओर उपस्थित श्रद्धालु श्रावक - श्राविकाऐं इस कठिनतन साधना के आगे नतमस्तक हेा गए और अपने आप को रोने से रोक न पाए। धन्य धन्य के स्वर गूंजने लगे। उल्लेखनीय है कि केशलोच क्रिया शास्त्रीय विधान है और इससे संतजन कष्ट सहिष्णु बनता है परिषहों को सहन करने की आत्मषक्ति प्राप्त करता है। जैन संतों द्वारा केशलोच क्रिया वर्ष में दो बार की जाती है।  

श्रद्धालुओं ने लिए संकल्प -
केषलोच के अवसर पर श्रद्धालुजनों ने सामायिक, एकासना, उपवास, पौषध, प्रतिक्रमण, नवकारसी इत्यादि करने का संकल्प लिया।

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