मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर व नयी टेक्नेलाॅजी कभी राजीव गांधी की सोच रही। बहुत हद तक राजीव गांधी ने कम्युनिष्टों के भारी-भरकम विरोध के बावजूद नयी टेक्नोलाॅजी को विकसित कर इक्सहवीं सदी के भारत का जो सपना दिखाया था, उसे आज आज मोदी बढ़ाते नजर आ रहे है। क्योंकि मोदी कहीं न कहीं से प्रभावित है। वह जानते है मैन्युफैक्चरिंग व टेक्नोलाॅजी के बिना हम महाशक्ति नहीं बन सकते। जबतक इतनी बड़ी जनसंख्या के हाथ में काम नहीं होगा, हम विकसित देशों से टक्कर नहीं ले सकते। मूलभूत सुविधाओं में सुधार कर बेहतर माहौल बनाना उनकी प्राथमिकताओं में झलक रहा है। मोदी द्वारा नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों तक की जो जिम्मेदारियां तय की है, वह देशहित में जरुरी है। सांसद आर्दश ग्राम योजना के साथ-साथ गांव-गांव में शौचालय निर्माण योजना, विदेशी निवेश, मैन्यूफैक्चरिंग, केमिकल से फार्मास्यूटिकल तक, सांसद मॉडल ग्राम योजना, डिजिटल इंडिया, आदर्श ग्राम, जीरो-डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट, प्रधानमंत्री जनधन योजना, बेटियों पर इतने बंधन, बेटों पर कोई नहीं, हर गरीब परिवार को एक लाख का बीमा जैसे कार्य युवाओं को रोजगार देने में कारगर तो होंगे ही उनकी सोच बदलने से इनकार नहीं किया जा सकता। मोदी की यह योजना दूरगामी और क्रांतिकारी परिणाम दे सकती है। आने वालेे समय में हमें कई परिवर्तन देखने को मिलने वाले है। यह बात दिगर है कि धारा 370 और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे मोदी की सूची से नदारद रहे, जो 1980 से गठन के समय से ही भाजपा व जनसंघ की विचारधारा का आधार हुआ करता था। योजना आयोग की समाप्ति की बात तो कही, लेकिन नई बनने वाली संस्था कैसी होगी जिक्र नहीं किया।
अपने को जनता का प्रधान सेेवक बतलाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्रचार से देश की दिशा व दशा बदलने की जो हिमायत की है, वह आने दिने वाले में कितना कारगर होगा यह तो वक्त बतायेंगा, लेकिन समाज से लेकर नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों तक की जो जिम्मेदारियां तय कर दी, उसकी हर कोई सराहना करता नजर आ रहा है। भविष्य को लेकर उन्होंने कई संदेश दिए है। आने वाले वक्त में वह वह देश की दशा व दिशा बदलने के लिए काफी गंभीर नजर आएं। हालांकि जनता के उम्मीदों का पहाड़ काफी उंचा है, लेकिन उन्होंने उम्मीद की किरण जगाई है। संदेश दिया है कि आने वाला वक्त भारत का है। सांसद आर्दश ग्राम योजना के साथ-साथ गांव-गांव में शौचालय निर्माण योजना, विदेशी निवेश, मैन्यूफैक्चरिंग, केमिकल से फार्मास्यूटिकल तक, सांसद मॉडल ग्राम योजना, डिजिटल इंडिया, आदर्श ग्राम, जीरो-डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट, प्रधानमंत्री जनधन योजना, बेटियों पर इतने बंधन, बेटों पर कोई नहीं, हर गरीब परिवार को एक लाख का बीमा सहित योजना आयोग में बदलाव जैसे कार्य युवाओं को रोजगार देने में कारगर तो होंगे ही उनकी सोच बदलने से इनकार नहीं किया जा सकता। मोदी की यह योजना दूरगामी और क्रांतिकारी परिणाम दे सकती है। युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर ही मोदी भी टेक्नोलाफजी के क्षेत्र में काफी गंभीर है, तभी तो वह डिजीटल इंडिया के तरफ लगातार अग्रसारित नजर आ रहे है। आईटी क्षेत्र को उन्होंने कुछ ज्यादा ही प्रोत्साहित करने की कोशिश की है, जिसे राजीव गांधी करना चाहते थे।
युवाओं को लेकर मोदी का फंडा साफ है। वह जानते है जब युवा खुशहाल होगा तो देश तरक्की करेगा, क्योंकि काम करने की असीम क्षमता युवा में है। शायद यही वजह है कि उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग में युवाओं से बढ़चढ़कर हिस्सेदारी करनी गुजारिश की। युवाओं का आह्वान किया वह चाहते है कि आप दुनिया में कहीं भी सामान बेचिए, लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग यहां कीजिए। क्योंकि मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियां बढ़ेंगी तो युवाओं को रोजगार मिलने के साथ ही व्यापार घाटा भी घटेगा। इलेक्टिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स, फार्मास्यूटीकल्स, ऑटोमोबाइल्स, कृषि, कागज और प्लास्टिक कारोबार एक ऐसा क्षेत्र है जहां कम पूंजी में व्यापार व मैन्यूफैक्चरिंग संभव है। जब देश से निर्यात वृद्धि होगा तो कमाई का बढ़ना तय होगा और जब आमदनी बढ़ेगी तो घर-घर में खुशहाली आयेगी।
मेदी ने सोशल सिक्योरिटी का कवच देकर गरीबों को भी भविष्य की चिंता के दंश से मुक्त की बात कहीं। क्योंकि समाज के अंतिम व्यक्ति की आंसू पोछे बिना हम स्वतंत्र भारत की कल्पना कदापि नहीं कर सकते। आंकड़ों के अनुसार तकरीबन सात करोड़ गरीब परिवार भारत में हैं। ये गरीब अपने परिवार के मुखिया के निधन पर बाकी सदस्य यतीम हो जाते हैं, शिक्षा न मिलने से बच्चे लंपटता या अपराध की ओर उन्मुख होते हैं और अभाव में ऐसे परिवार गरीबी की उस गर्त में चले जाते हैं जहां से निकलना असंभव होता है। इतना ही नहीं देश की सीमाओं से बाहर निकलते हुए मोदी ने पूरे सार्क देशों की गरीबी पर आघात किया और आह्वान किया कि हम सब मिलकर इससे लड़ें। यह अपील चीन द्वारा पाकिस्तान या नेपाल को दी जाने वाली कुटिल मदद से काफी अलग थी।
डिजिटल इंडिया’ का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने शासन में सुधार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की जरूरत पर बल दिया। उद्योग संगठनों से भी उन्होंने निर्यात वृद्धि के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में शामिल होने के लिए आगे आने की दुहाई दी। उन्होंने यह कहने में रंचमात्र भी संकोच नहीं किया कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं और बहुत से काम ऐसे हैं जिन्हें जनता की भागीदारी से ही पूरा किया जा सकता है और उसमें हाथ बंटाना उसकी जिम्मेदारी भी है। यह तभी संभव है जब शासन-प्रशासन के मौजूद तौर-तरीकों से मुक्ति पाई जाए। बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर कानूनी त्रंतों से हटकर मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर परिजनों को यहकर कुरेदा जाना कि मां-बाप अगर अपने बेटे से पूछे कि तुम कहां जा रहे हो, किसलिए जा रहे हो तो आज यह दुष्कर्म की घटनाएं ना होंगी? यह लाजिमी है। खासकर ऐसे दौर में जब परिवारीजनों का अपने बेटों पर नियंत्रण कम हो रहा है और नतीजतन लंपटता चरम पर जा पहुंची है। मोदी की इस अपील में न तो कोई वोट पाने की चाहत थी, न ही कोई अपने को उचित ठहराने की जद्दोजेहद।
मोदी ने जिस तरह मीडिया यह कहकर झकझोरा कि नई सरकार के आने का बाद अफसर समय से आने लगे जैसे खबर किसी भी प्रधानमंत्री को खुश कर सकती है, पर उन्हें अफसोस है कि हम कितने गिरते जा रहे है। फिरहाल सच तो यही है कि पिछले 67 सालों में हम अफसरों के गैर जिम्मेदाराना रवैये के इतने आदी हो चुके हैं कि अब उनका समय से आना भी खबर बन ही जाता है। साम्प्रदायिक दंगों के चलते उपजे हालात पर मोदी का यह कहा जाना कि हमें मरने-मारने की दुनिया को छोड़ कर जीवन देने वाला समाज बनाएं, की जरुरत है, काफी हद तक दिल को छू लेने वाला था, क्योंकि दंगों की मिस्टी वह जानते है कि कहां से शुरु होती है। मोदी जिस तरीके से प्राचीर किले से अपनी बात बिल्कुल सटीक शब्दों में कह रहे थे, लगा कि कोई प्रधानमंत्री नहीं बल्कि अभिभावक उन्हें नसीहत दे रहा है। शासन का मुखिया भी है और सेवक भाव भी रखता है। मोदी के लिए यह क्षण विशेष था, क्योंकि चाय बेचने से लेकर प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना उनके लिए और साथ ही भारतीय लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है। तमाम पश्चिमी राजनीतिक पंडितों ने भारत को आजादी मिलने के तत्काल बाद ही यह घोषणा कर दी थी कि एक देश जिसकी आबादी अतिविशाल हो, जहां बड़े पैमाने पर गरीबी और निरक्षरता हो वह अपने लोकतंत्र को बचा पाने में समर्थ नहीं हो सकता। हालांकि भारतीय मतदाताओं ने इसे सदैव गलत साबित किया और आज पूरी दुनिया यह स्वीकार कर रही है कि भारत में सही मायने में एक स्थिर और वास्तविक लोकतंत्र है। मोदी ने भूटान व नेपाल संबंध को हरभरा कर यह साबित कर दिया कि कोई भी देश भारत का वास्तविक मित्र नहीं है। लोगों को यह बात अच्छे से समझने की आवश्यकता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध मित्रता नहीं, बल्कि हितों के आधार पर चलते हैं।
सार्क देशों पर ध्यान देकर मोदी ने भारत की विकास यात्र के संदर्भ में सही दिशा में कदम उठाया है। अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को दिया गया उनका निमंत्रण और भूटान तथा नेपाल की सफल यात्र अच्छे कदम साबित हुए। मोदी सरकार की वास्तविक परीक्षा पाकिस्तान को संभालने अथवा उससे निपटने और अफगानिस्तान में भारतीय हितों की रक्षा होगी। उन्हें पाकिस्तान के प्रति एक सतत और वास्तविकता पर आधारित नीति को अपनाना होगा, जिसे संप्रग सरकार कभी नहीं कर सकी। वर्तमान में इराक में इस्लामिक कट्टरपंथ का तेजी से प्रसार हुआ है। समूचा पश्चिम एशियाई क्षेत्र उथल-पुथल के दौर में है, जिससे भारत का बड़ा आर्थिक हित दांव पर है। यहां पर तकरीबन 60 लाख भारतीय काम करते हैं। इसके लिए जरूरी होगा कि सरकार खतरनाक क्षेत्रों से भारतीय कामगारों को हटाने के साथ-साथ अन्य बातों पर भी ध्यान दे। ब्रिक्स देशों के नेताओं के साथ मोदी की मुलाकात एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन सभी की आंखें अगले माह उनकी अमेरिका यात्र पर टिकी हैं।
मोदी सरकार के शुरुआती 80 दिनों के कार्यकाल पर अगर एक नजर दौड़ाएं तो लगता है कि उनके दावे हवा हवाई नहीं थे। पहले 80 दिनों में ऐसी बहुत सी पहल हुईं, जिनका देश को लंबे समय से इंतजार था। रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई हो या फिर गंगा को स्वच्छ करने के लिए विशेष योजना। कई मोर्चों पर मोदी सरकार ने देशवासियों को उम्मीद की एक किरण दिखाई है। उन्होंने राज्य सरकारों को साथ लेकर चलने और विकास में उनकी भागीदारी की बात एकाधिक बार कही जो एक सकारात्मक संकेत देती है। जातिवाद और सांप्रदायिकता की लड़ाई से निकलकर आगे बढ़ने की बात भी करते हैं। मां-बाप के लिए बेटों को संभालकर रखने की और डाक्टरों के लिए पैसों की खातिर कोख में बेटियों को न मारने की हिदायतें काबिले तारिफ हैं। महंगाई से जूझ रही देश की जनता के लिए राहत व काले धन जैसे सवालों पर कोई जिक्र न करना खटकाने वाला है। भारत सरकार के प्रस्ताव के तहत 15 मार्च 1950 को गठित आयोग ने 1951 से पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की थी। योजना आयोग पर हमला व गड़बड़ी के साथ इसे देश के विकास में उनके द्वारा बाधक बताया जाना कहा तक सही है यह तो उनकी योजना ही जानें कि उसे किस रुप में लाना चाहते है, लेकिन यह सच है कि खुद योजना आयोग द्वारा संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सहायक महासचिव और स्टैनफोर्ड शिक्षित अजय छिबर की अध्यक्षता में गठित स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय ने आयोग को गैर जरूरी बताया है। इस कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार यह साफ है कि अपने मौजूदा रूप और कार्यप्रणाली में योजना आयोग देश के विकास में बाधक है।
जहां तक पाकिस्तान के संबंधों का मसला है तो राजीव गांधी ने भी उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था और धमकाया भी था कि अगर सीमा पर अशांति फैलाई तो हम मुहतोड़ जवाब देने में पीछे भी नहीं रहेंगे। बोफोर्स तोपों की खरीदारी शायद उसी का एक हिस्सा रहा, जो कारगिल में खूब गरजे और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये। सेटेलाइट से लेकर सबमरीन तक के भारत में निर्माण का जो नारा दिया वह आज एक सपने की तरह लग सकता है, लेकिन भारत में ऐसी सामथ्र्य है कि इस सपने का साकार किया जा सके। मोदी सरकार निर्माण के क्षेत्र में बड़े और तकनीक पर आधारित उद्योगों के साथ-साथ छोटे और मझोले उद्योगों को भी भरपूर प्रोत्साहन देना चाहती है। इससे निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन होगा और अर्थव्यवस्था को अपेक्षित रफ्तार भी मिलेगी। वह भारत के साथ-साथ पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए आस-पास के देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। दक्षेस देशों के प्रति उनका झुकाव एक सुविचारित नीति का हिस्सा है। वैसे तो मोदी ने इस अवसर पर पाकिस्तान को कोई सीधी चेतावनी देने से परहेज किया, लेकिन संकेतों में इस्लामाबाद को यह नसीहत अवश्य दे दी कि जिस तरह आजादी की लड़ाई मिलकर लड़ी गई थी उसी तरह अपनी समस्याओं के हल के लिए आगे क्यों नहीं बढ़ा जा सकता? भारत और पाकिस्तान कई मामलों में एक जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि वे इन समस्याओं का सामना मिलकर करें? मोदी के इस कथन में विदेश नीति के कई महत्वपूर्ण संकेत छिपे हैं। इन संकेतों को दक्षिण एशियाई देशों, विशेषकर पाकिस्तान को सही रूप में समझना होगा।
(सुरेश गांधी)