- रिद्धि-सिद्धि व शुभ-लाभ सहित 56 रुपों में पूजे जाते है सिद्धिविनायक
- हर शुभ काम शुरु करने से पहले भगवान श्रीगणेश को पूजते है काशीवासी
- दर्शनमात्र से पूरी होती है हर मनोकामनाएं
तीनों लोकों में न्यारी धर्म एवं आध्यात्म की नगरी काशी में सिर्फ बाबा विश्वनाथ ही नहीं, बल्कि उनका पूरा परिवार भक्तों को दर्शन देते है। बाबा भोलेनाथ के ज्येष्ठ पुत्र भगवान श्रीगणेश स्वयं रिद्धि-सिद्धि व शुभ-लाभ सहित एक-दो नहीं बल्कि पूरे 56 रुपों में काशी में विराजमान है। इन रुपों के दर्शन मात्र से ही विघ्नहर्ता भक्तों की बिगड़ी बना देते हैं। स्वयं रिद्धि-सिद्धि के दाता व शुभ-लाभ के प्रदाता भगवान श्रीगणेश भक्तों की बाधा, संकट, रोग-दोष तथा दारिद्र को दूर करने के साथ ही हर मनोकामना पूरी होने का देते हैं वरदान। मूर्ति स्वयंभू और वृहदाकार है। जिसकी गणना छप्पन विनायकों में होती है। मूर्ति के दायें बायें ऋद्धि-सिद्धि की मनोरम प्रतिमाएं हाथों में चंवर लिए शोभित हंै। यह स्थान गणपति का सिद्ध पीठ है। मूर्ति के सामने मूषक और मयूर वाहन विराजमान हैं, जिसे देखकर लगता है गणेश जी को ले जाने व ले आने के लिए बिल्कुल तैयार है। मंदिर बहुत ही भव्य एवं सुंदर है। यह गणेश मंदिर जनाकर्षण का केंद्र है। ‘जेहि सुमिरत सिधि होय, गणनायक करि वर वदन। करहु अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।। यहां प्रतिवर्ष भाद्र शुक्ल चैथ को गणेश जी की जयंती धूमधाम से मनायी जाती है।
मंदिर के पुजारी पं रमेश व अजय तिवारी के मुताबिक काशी में हजारों साल पहले राजा देवोदास के राजा थे। उन्होंने साधना से भगवान विष्णु को प्रसंन कर लिया था। भगवान विष्ण से वरदान प्राप्त करने के बाद उन्हें घमंड आ गया। एक दिन देवोदास ने काशी में विराजमान सारे देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को काशी छोड़ने का फरमान सुना दिया। इस फरमान से आक्रोशित भगवान भालेनाथ ने बारी-बारी से कई देवताओं को राजा देवोदास के अहंकार को तोड़ने के लिए भेजा, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। सबके सब देवोदास के शरण में जाकर काशी में ही निवास करने लगे। बाद में भगवान भोलेनाथ ने भगवान गणेश जी को भेजा। भगवान गणेश जी ने अपने ताकत व प्रताप से देवोदास की शक्ति क्षीण कर दी और भागे हुए देवताओं के रक्षार्थ पूरे काशी में विभिन्न रुपों में निवास करने लगे। भगवान भोलेनाथ की आज्ञा से भगवान अपनी पत्नी रिद्धि-सिद्धि व पुत्र शुभ-लाभ के साथ काशी के लोहटिया-कबीरचैरा के पास में रहने लगे, जहां स्वयंभू श्रीगणेश मूर्ति के रुप में आज भी कायम है। यहां रोजाना श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर पूरे दस दिन कार्यक्रम आयोजित होते है। कहते है काशीवासी कोई भी शुभ काम भगवान बड़े गणेश की आराधना व पूजन के बाद ही करते है।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक लेकर आता है। अतः इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। इस चतुर्थी को कलंक चैथ के नाम से भी जाना जाता है। मानव ही नहीं पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे। तुलसीदास ने भी चैथ के चाँद को कुछ इस तरह वर्णित किया है- सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चैथि के चंद की नाईं।। गणेश भक्त बडी श्रद्धा के साथ चतुर्थी के दिन व्रत रखते हैं। चतुर्थी की रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर, गणेश-पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण किया जाता है। इसके व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं। चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है। चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं। चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है। किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की स्मरण किया जाता है जिस कारण इन्हें विघ्नेश्वर, विघ्न हर्ता कहा जाता है। भगवान गणेश समस्त देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है तथा सुख-समृद्ध व ज्ञान की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जब ब्रम्हाजी के सृष्टि निर्माण के समय निरंतर बाधाएं आ रही थीं। तब वे विघ्न विनाशक श्री गणेश जी के पास प्रार्थना लेकर पहुंचे। ब्रम्हाजी की स्तुति से प्रसन्न भगवान गणेश ने उनसे वर माँगने को कहा। ब्रम्हाजी ने सृष्टि के निर्माण के निर्विघ्न पूर्ण होने का वर माँगा। गणेश जी ने तथास्तु कहा और आकाश मार्ग से पृथ्वी पर आने लगे। मार्ग में चंद्रलोक आया, जहाँ चंद्रमा ने श्री गणेश जी का उपहास उडाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य के मद में चूर देखकर श्री गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि आज के दिन तुम्हें कोई नहीं देखेगा और यदि देखेगा तो वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। चंद्रमा लज्जित होकर छिप गए। ब्रम्हाजी के कहने पर देवताओं ने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा की और चंद्रमा को क्षमा करने की प्रार्थना की। इस स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के चंद्र के दर्शन करेगा और चतुर्थी को विधिवत गणेश पूजन करेगा उसे चतुर्थी के चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए इस तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है।
शिवपुराण अनुसार एक रोज देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण की। बालक को उन्होंने अपना द्वारपाल नियुक्त करते हुए कहा, ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना। इसी दौरान भगवान शिवजी आ गए, तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। उन्हें भितर नहीं जाने दिया। इससे आक्रोशित शिवजी बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे पार्वती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं। मां पार्वती के दुख व क्रोध को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर ले आएं। भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती जी खुश होकर पुत्र गणेश को हृदय से लगा ली और उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दे दी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दे दिया। इसीलिए चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते है। स्कन्द पुराण के अनुसार श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की बड़ी महिमा बताई गई है। इस चतुर्थी तिथि को श्री गणेश जी का जन्म बताया गया है। इस दिन की उपासना से गणपति भगवान अपने उपासकों के संपूर्ण कार्यों को पूर्ण करते हैं। श्री गणेश के विशेष व्रत वट गणेश व्रत इस व्रत में वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है। यह उŸाम व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से माघ शुक्ल चतुर्थी तक किया जाता है। तिल चतुथी यह उŸाम व्रत माघ शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत में मात्र तिल के मोदकों (लड्डुओं) का भोग लगता है।
”गणेश चतुर्थी” को ही विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि व सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है। यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है। गणेश चतुर्थी के मौके पर यहां भव्य श्रृंगार तो होता ही है, मंदिर में परिसर में श्रद्धालुओं का पूरे दिन-रात 10 दिनों तक जमघट रहता है। वर्षो बाद आए हस्त नक्षत्र और बुद्धआदित्य योग में इस साल गणेशजी विराजेंगे। इस योग में गणेश स्थापना होने से परिवार में मानसिक शांति मिलेगी रहेगी, वहीं शक्ति का संचार भी होगा। गणेश स्थापना के दिन भद्रा का साया रहेगा लेकिन गणेश स्थापना भद्रा के प्रभाव से मुक्त रहेगी। पंचदेवों मे से एक, पार्वती-शिव के आत्मज, समस्त देवी-देवताओं में सर्वाग्रपूज्य और सनातन हिंदू धर्म-शास्त्रों एवं हिंदुओं के जन-जीवन में अत्यधिक परिव्याप्त भगवान श्री गणेश के सभी तीर्थ-स्थलों, मूर्तियों और क्षेत्रों आदि का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करना असंभव है। प्रायः समस्त श्री शक्ति-शिव मंदिरों में श्री गणेश के मंगल विग्रह प्रतिष्ठित है। अन्य देव स्थलों में भी भगवान श्री गणेश रक्षणार्थ विद्यमान हैं। काशी मे लोहटिया के अलावा दुर्गा विनायक दुर्गाकुंड, चिंतामणि गणेश सोनारपुरा व ईश्वरगंगी, अक्षय विनायक दशाश्वमेघ घाट, आशन विनायक, मीरघाट, अविमुक्त विनायक ज्ञानवापी, चित्रघंट विनायक घंटा देवी, दंत हस्त विनायक बड़ा लोहटिया, त्रिमुख निायक चैक, द्वार विनायक मणकर्णिका घाट,, ज्ञान विनायक खोजवा सहित कुल 56 स्थानों पर भगवान गणेश विराजमान है, जो काशीवासियों के कष्ट दूर करते है। , ं
पूजन विधि
गणपति की पूजा बहुत ही आसान है। श्री गणेश पत्र-पुष्प एवं हरी दूब से प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी का जन्म दोपहर को हुआ। अतः मध्याह्न में ही गणेश पूजन करना चाहिए। इस दिन रविवार या मंगलवार होने पर यह तिथि विशेष फलदायी हो जाती है। गणेश पूजा के दौरान गणेशजी की प्रतिमा पर चंदन मिश्रण, केसरिया मिश्रण, इत्र, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, फूलों की माला खासकर गेंदे के फूलों की माला और बेल पत्र को चढ़ाया जाता है। धूपबत्ती जलाये जाते है और नारियल, फल और तांबूल भी अर्पित किया जाता है। पूजा के अंत में भक्त भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान की आरती की जाती है और प्रसाद को भगवान सभी लोगों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए। गणाधिपतये नमः, विघ्ननाशाय नमः, ईशपुत्राय नमः, सर्वासिद्धिप्रदाय नमः, एकदंताय नमः, कुमार गुरवे नमः, मूषक वाहनाय नमः, उमा पुत्राय नमः, विनायकाय नमः, ईशवक्त्राय नमः का जप करने व अंत में सभी नामों का एक साथ क्रम में उच्चारण करके बची हुई दूर्वा चढ़ाना विशेष फलदायी है। इसी तरह 21 लड्डू भी चढ़ाएं। इनमें से पांच प्रतिमा के पास छोड़ दें,पांच ब्राह्मणों को और शेष प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित कर दें। श्री गणेश पूजा श्री गणेश पांच उदाŸा तत्वों के मिश्रित स्वरूप हैं। ये पांच तत्व इस प्रकार हैं- आनंद मंगल, सौर्य साहस, कृषि, वाणिज्य व्यवसाय, बुद्धि। गणेश जी की गणना पंचदेवों में भी होती है। हमारे समस्त कार्यों में शास्त्रीय प्रमाणों के अनुसार पंचदेवों की आराधना विश्व विख्यात है। ज्योतिष के अनुसार जल तत्व राशि वाले लोग अगर श्री गणेश की उपासना करें तो सिद्धि शीघ्र प्राप्त होगी।
21 संख्या प्रिय है गणेश जी का
श्री गणेश को, लाल रंग के वस्त्र लाल रंग के पुष्प और चंदन विशेष प्रिय हैं। श्री गणेश को 21 की संख्या प्रिय है इसलिए उनके 21 नामों से विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यहां उनके ये 21 नाम और हर नाम के साथ अर्पित की जाने वाली वस्तु का विवरण प्रस्तुत है। नाम वस्तु सुमुखाय नमः शमी पत्र, गणाधीशाय नमः भंृगराज, उमापुत्राय नमः विल्वपत्र, गजमुखाय नमः दूर्वादल, लम्बोदराय नमः बेर का पत्र, हर पुत्राय नमः धतूरे का पत्र, शूर्पकर्णाय नमः तुलसी का पत्र, वक्रतुण्डाय नमः सेम का पत्र, गुहाग्रजाय नमः अपामार्ग, एकदन्ताय नमः भटकटैया, हेरम्बाय नमः सिंदूर वृक्ष अथवा सिंदूर चूर्ण, चतुर्होत्रे नमः तेज पत्र, सर्वेश्वराय नमः अगस्त का पत्र, विकटाय नमः कनेर का पत्र, हेमतुण्डाय नमः कदली (केला) का पत्र, विनायकाय नमः अर्क (आक) पत्र, कपिलाय नमः अर्जुन पत्र, वटवे नमः देवरारु का पत्र, भालचंद्राय नमः महुए का पत्र, सुराग्रजाय नमः गान्धारी वृक्ष का पत्र, सिद्धि विनायकाय नमः केतकी का पत्र विशेष है।
उत्सव के रुप में होता है गणेश विसर्जन
‘गणेश ‘ गज के सिर वाले शिव पार्वती के पुत्र, सुख, समृद्धि व मंगल के प्रतीक भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति विशेष तौर से पंडालों में सजाई जाती है। कई लोग अपने घरों में भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते है। रोज सुबह-शाम भगवान श्रीगणेशजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद अनंत चैदस वाले दिन प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सामथ्र्य न होने पर मूर्ति को डेढ़ अथवा तीन दिन के बाद भी विसर्जित किया जा सकता है।
60 साल बाद चंद्रमा, तुला, शनि व गुरु होंगे साथ
इस बार गणेश चैथ का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी यानी शुक्रवार 29 अगस्त,2014 को है। 60 साल बाद यह विशेष संयोग बना है। इस दिन हस्त नक्षत्र होने के साथ-साथ चन्द्रमा तुला राशि में रहेगा एवं इसी दिन बुध गृह कन्या राशि में पवेश करेंगे। गुरु व शनि भी उच्च राशि में है। यह तिथि भक्तों के लिए काफी लाभकारी है। खरीददारी के लिए विशेष उपयुक्त है। इस दिन चतुर्थी तिथि सूर्योदय से लेकर रात 3.42 बजे तक रहेगी। दोपहर 1.30 बजे तक हस्त नक्षत्र और शाम 4.30 बजे तक शुभ योग रहेगा।
शुक्रवार के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग होने से अमृत योग भी बन रहा है। घर-घर में गणेश जी की स्थापना 29 अगस्त को ही होगी। महाकाल पंचाग के अनुसार, इस दिन दोपहर 12.05 से रात 12 बजे तक भद्रा का साया रहेगी। भद्रा में कोई भी शुभ कार्य वर्जित माना जाता है लेकिन गणेशजी स्वयंभू और प्रथम पूजनीय है, इसलिए उनकी स्थापना में भद्रा का कोई प्रभाव नहीं रहेगा। शुक्रवार होने से भी इस दिन की महत्ता बढ़ गई है। इस दिन स्थापना होने से मातृ कृपा रहेंगी। रिद्धी-सिद्धी-बुद्धि का योग भी बन रहा है। प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन से कलंक का दोष लगता है। परंपरानुसार रात में चंद्र दर्शन से रोकने के लिए एक-दूसरे के घर पर पथराव किया जाता है। पथराव के कारण लोग बाहर नहीं निकलते है और चंद्र दर्शन से बच जाते है। ज्योतिष राजेश मिश्र ने बताया कि हस्त नक्षत्र में ही गणेशजी का जन्म हुआ था। गणेशजी को प्रथम पूजनीय होने के कारण किसी भी दिन पूजा जा सकता है। गौरी के दिन गणेशजी की स्थापना होने से गणेश चतुर्थी जनहित कारक रहेगी। भद्रा होने के बावजूद स्थापना पर असर नहीं है।
(सुरेश गांधी)