भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी यानी शुक्रवार 29 अगस्त,2014 को गणेश चतुर्थी। यह संयोग भक्तों के लिए काफी लाभकारी है। खरीददारी के लिए है विशेष मुहूर्त दोपहर 12.05 से रात 12 बजे तक रहेगा भद्रा का साया लेकिन नहीं होगा कोई प्रभाव। रिद्धी-सिद्धी-बुद्धि का भी बन रहा योग।
इस बार गणेश चैथ का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी यानी शुक्रवार 29 अगस्त,2014 को है। 60 साल बाद यह विशेष संयोग बना है। इस दिन हस्त नक्षत्र होने के साथ-साथ चन्द्रमा तुला राशि में रहेगा एवं इसी दिन बुध गृह कन्या राशि में पवेश करेंगे। गुरु व शनि भी उच्च राशि में है। यह तिथि भक्तों के लिए काफी लाभकारी है। खरीददारी के लिए विशेष उपयुक्त है। इस दिन चतुर्थी तिथि सूर्योदय से लेकर रात 3.42 बजे तक रहेगी। दोपहर 1.30 बजे तक हस्त नक्षत्र और शाम 4.30 बजे तक शुभ योग रहेगा।
शुक्रवार के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग होने से अमृत योग भी बन रहा है। घर-घर में गणेश जी की स्थापना 29 अगस्त को ही होगी। महाकाल पंचाग के अनुसार, इस दिन दोपहर 12.05 से रात 12 बजे तक भद्रा का साया रहेगी। भद्रा में कोई भी शुभ कार्य वर्जित माना जाता है लेकिन गणेशजी स्वयंभू और प्रथम पूजनीय है, इसलिए उनकी स्थापना में भद्रा का कोई प्रभाव नहीं रहेगा। शुक्रवार होने से भी इस दिन की महत्ता बढ़ गई है। इस दिन स्थापना होने से मातृ कृपा रहेंगी। रिद्धी-सिद्धी-बुद्धि का योग भी बन रहा है।
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन से कलंक का दोष लगता है।
परंपरानुसार रात में चंद्र दर्शन से रोकने के लिए एक-दूसरे के घर पर पथराव किया जाता है। पथराव के कारण लोग बाहर नहीं निकलते है और चंद्र दर्शन से बच जाते है। ज्योतिष राजेश मिश्र ने बताया कि हस्त नक्षत्र में ही गणेशजी का जन्म हुआ था। गणेशजी को प्रथम पूजनीय होने के कारण किसी भी दिन पूजा जा सकता है। गौरी के दिन गणेशजी की स्थापना होने से गणेश चतुर्थी जनहित कारक रहेगी। भद्रा होने के बावजूद स्थापना पर असर नहीं है। ”गणेश चतुर्थी” को ही विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि व सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है। यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है। गणेश चतुर्थी के मौके पर यहां भव्य श्रृंगार तो होता ही है, मंदिर में परिसर में श्रद्धालुओं का पूरे दिन-रात 10 दिनों तक जमघट रहता है। वर्षो बाद आए हस्त नक्षत्र और बुद्धआदित्य योग में इस साल गणेशजी विराजेंगे। इस योग में गणेश स्थापना होने से परिवार में मानसिक शांति मिलेगी रहेगी, वहीं शक्ति का संचार भी होगा। गणेश स्थापना के दिन भद्रा का साया रहेगा लेकिन गणेश स्थापना भद्रा के प्रभाव से मुक्त रहेगी। पंचदेवों मे से एक, पार्वती-शिव के आत्मज, समस्त देवी-देवताओं में सर्वाग्रपूज्य और सनातन हिंदू धर्म-शास्त्रों एवं हिंदुओं के जन-जीवन में अत्यधिक परिव्याप्त भगवान श्री गणेश के सभी तीर्थ-स्थलों, मूर्तियों और क्षेत्रों आदि का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करना असंभव है। प्रायः समस्त श्री शक्ति-शिव मंदिरों में श्री गणेश के मंगल विग्रह प्रतिष्ठित है। अन्य देव स्थलों में भी भगवान श्री गणेश रक्षणार्थ विद्यमान हैं।
शिवपुराण अनुसार एक रोज देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण की। बालक को उन्होंने अपना द्वारपाल नियुक्त करते हुए कहा, ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना। इसी दौरान भगवान शिवजी आ गए, तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। उन्हें भितर नहीं जाने दिया। इससे आक्रोशित शिवजी बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे पार्वती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं। मां पार्वती के दुख व क्रोध को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर ले आएं। भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती जी खुश होकर पुत्र गणेश को हृदय से लगा ली और उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दे दी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दे दिया। इसीलिए चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते है। स्कन्द पुराण के अनुसार श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की बड़ी महिमा बताई गई है। इस चतुर्थी तिथि को श्री गणेश जी का जन्म बताया गया है। इस दिन की उपासना से गणपति भगवान अपने उपासकों के संपूर्ण कार्यों को पूर्ण करते हैं। श्री गणेश के विशेष व्रत वट गणेश व्रत इस व्रत में वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है। यह उŸाम व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से माघ शुक्ल चतुर्थी तक किया जाता है। तिल चतुथी यह उŸाम व्रत माघ शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत में मात्र तिल के मोदकों (लड्डुओं) का भोग लगता है।
इस बार गणेश चैथ का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी यानी शुक्रवार 29 अगस्त,2014 को है। 60 साल बाद यह विशेष संयोग बना है। इस दिन हस्त नक्षत्र होने के साथ-साथ चन्द्रमा तुला राशि में रहेगा एवं इसी दिन बुध गृह कन्या राशि में पवेश करेंगे। गुरु व शनि भी उच्च राशि में है। यह तिथि भक्तों के लिए काफी लाभकारी है। खरीददारी के लिए विशेष उपयुक्त है। इस दिन चतुर्थी तिथि सूर्योदय से लेकर रात 3.42 बजे तक रहेगी। दोपहर 1.30 बजे तक हस्त नक्षत्र और शाम 4.30 बजे तक शुभ योग रहेगा।
शुक्रवार के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग होने से अमृत योग भी बन रहा है। घर-घर में गणेश जी की स्थापना 29 अगस्त को ही होगी। महाकाल पंचाग के अनुसार, इस दिन दोपहर 12.05 से रात 12 बजे तक भद्रा का साया रहेगी। भद्रा में कोई भी शुभ कार्य वर्जित माना जाता है लेकिन गणेशजी स्वयंभू और प्रथम पूजनीय है, इसलिए उनकी स्थापना में भद्रा का कोई प्रभाव नहीं रहेगा। शुक्रवार होने से भी इस दिन की महत्ता बढ़ गई है। इस दिन स्थापना होने से मातृ कृपा रहेंगी। रिद्धी-सिद्धी-बुद्धि का योग भी बन रहा है।
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन से कलंक का दोष लगता है।
परंपरानुसार रात में चंद्र दर्शन से रोकने के लिए एक-दूसरे के घर पर पथराव किया जाता है। पथराव के कारण लोग बाहर नहीं निकलते है और चंद्र दर्शन से बच जाते है। ज्योतिष राजेश मिश्र ने बताया कि हस्त नक्षत्र में ही गणेशजी का जन्म हुआ था। गणेशजी को प्रथम पूजनीय होने के कारण किसी भी दिन पूजा जा सकता है। गौरी के दिन गणेशजी की स्थापना होने से गणेश चतुर्थी जनहित कारक रहेगी। भद्रा होने के बावजूद स्थापना पर असर नहीं है। ”गणेश चतुर्थी” को ही विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि व सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है। यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है। गणेश चतुर्थी के मौके पर यहां भव्य श्रृंगार तो होता ही है, मंदिर में परिसर में श्रद्धालुओं का पूरे दिन-रात 10 दिनों तक जमघट रहता है। वर्षो बाद आए हस्त नक्षत्र और बुद्धआदित्य योग में इस साल गणेशजी विराजेंगे। इस योग में गणेश स्थापना होने से परिवार में मानसिक शांति मिलेगी रहेगी, वहीं शक्ति का संचार भी होगा। गणेश स्थापना के दिन भद्रा का साया रहेगा लेकिन गणेश स्थापना भद्रा के प्रभाव से मुक्त रहेगी। पंचदेवों मे से एक, पार्वती-शिव के आत्मज, समस्त देवी-देवताओं में सर्वाग्रपूज्य और सनातन हिंदू धर्म-शास्त्रों एवं हिंदुओं के जन-जीवन में अत्यधिक परिव्याप्त भगवान श्री गणेश के सभी तीर्थ-स्थलों, मूर्तियों और क्षेत्रों आदि का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करना असंभव है। प्रायः समस्त श्री शक्ति-शिव मंदिरों में श्री गणेश के मंगल विग्रह प्रतिष्ठित है। अन्य देव स्थलों में भी भगवान श्री गणेश रक्षणार्थ विद्यमान हैं।
शिवपुराण अनुसार एक रोज देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण की। बालक को उन्होंने अपना द्वारपाल नियुक्त करते हुए कहा, ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना। इसी दौरान भगवान शिवजी आ गए, तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। उन्हें भितर नहीं जाने दिया। इससे आक्रोशित शिवजी बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे पार्वती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं। मां पार्वती के दुख व क्रोध को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर ले आएं। भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती जी खुश होकर पुत्र गणेश को हृदय से लगा ली और उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दे दी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दे दिया। इसीलिए चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते है। स्कन्द पुराण के अनुसार श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की बड़ी महिमा बताई गई है। इस चतुर्थी तिथि को श्री गणेश जी का जन्म बताया गया है। इस दिन की उपासना से गणपति भगवान अपने उपासकों के संपूर्ण कार्यों को पूर्ण करते हैं। श्री गणेश के विशेष व्रत वट गणेश व्रत इस व्रत में वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है। यह उŸाम व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से माघ शुक्ल चतुर्थी तक किया जाता है। तिल चतुथी यह उŸाम व्रत माघ शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत में मात्र तिल के मोदकों (लड्डुओं) का भोग लगता है।
(सुरेश गांधी)