Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

आलेख : बबुआ से महंगा न हो जाए झुनझुना...!!

$
0
0
live aaryaavart dot com
तब हमारे लिए​'देश 'का मतलब अपने पैतृक गांव से होता था। हमारे पुऱखे जब - तब इस 'देश  ' के दौरे पर निकल जाते थे। उनके लौटने तक घर में आपात स्थिति लागू रहती । इस बीच  किसी आगंतुक के पूछने पर हम मासूमियत से जवाब देते... मां - पिताजी तो घर पर नहीं हैं...। वे देश गए हैं। बार - बार के इस देश - दौरे पर  व्यापक मंथन के बाद हम इस  निष्कर्ष पर पहुंचे कि पैतृक गांव में जो  अपनी कुछ पुश्तैनी जमीन है, उसी की देख - रेख और निगरानी के लिए हमारे पुरखे जब - तब दौरे पर  निकल पड़ते हैं। हालांकि उनके वैकुंठ गमन के बाद  हिसाब लगाने पर हमें माथा पीट लेना पड़ा। क्योंकि कड़वी सच्चाई सामने यह थी कि भारी प्रयास के बाद यदि वह कथित संपत्ति हाथ आ भी जाए, तो इसकी निगरानी के लिए दौरे पर जितना खर्च हुआ , उससे कहीं कम पर शायद नई जमीन खरीद ली जाती। कथित विदेशी पूंजी निवेश व उद्योग - धंधों की तलाश में राजनेताओं के बार - बार के विदेश दौरे को देख कर पता नहीं क्यों मेरे मन में बचपन की एेसी ही यादें उमड़ने - घुमड़ने लगते हैं। 

एक राज्य का मुख्यमंत्री विदेश से लौटा नहीं कि दूसरे प्रदेश का मुख्यमंत्री विदेश रवाना हो गया। सब की एक ही दलील कि अपने राज्य में निवेश की संभावनाएं तलाशने के लिए साहब फलां - फलां देश के दौरे पर जा रहे हैं। दौरे सिर्फ मुख्यमंत्री ही करते हैं , एेसी बात नहीं। उनके कैबिनेट के तमाम मंत्री व अधिकारी भी विदेश दौरे की संभावनाएं तलाशते रहते हैं। कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के दंगों में झुलसने के दौरान राज्य सरकार के कई मंत्रियों की यूरोप यात्रा के बारे में जान कर मैं हैरान रह गया था। यात्रा हुई तो पूरी ठसक से और तय कार्यक्रम के तहत ही मुसाफिर अपने सूबे को लौटे। हालांकि कई दूसरे अहम  सवालों की तरह यह प्रश्न भी अनुत्तरित ही रह जाता है कि इन दौरे से क्या सचमुच उन प्रदेशों को कुछ लाभ होता भी  है। दौरों पर होने वाले खर्च की तुलना में संबंधित राज्य को कितना लाभ हुआ , यह सवाल आखिर पूछे कौन, और पूछ भी लिया तो जवाब कौन देगा। दौरों  का आकर्षण सिर्फ उच्च स्तर पर यानी मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री स्तर पर ही है, एेसी बात नहीं। 

समाज के निचले स्तर के निकायों में भी इसके प्रति गजब का आकर्षण है। साफ - सफाई के प्रति जवाबदेह नगरपालिकाओं के पदाधिकारी भी इस आधार पर विदेशी दौरे पर निकल पड़ते हैं कि फलां - फलां देशों में जाकर वे देखना चाहते हैं कि वहां साफ - सफाई कैसे होती है। यही  नहीं ग्राम व पंचाय़त स्तर तक में दौरों का आकर्षण  दिनोंदिन बढ़ रहा है। ठेठ देहाती जनप्रतिनिधि भी पंचायत में कोई पद पाने के बाद दूर प्रांत के दौरे पर निकल पड़ते है। इस बीच उनके समर्थकों में भौंकाल रहती है कि ... भैया सेमिनार में भाग लेने हैदराबाद गए हैं, अब गए हैं तो तिरुपति बाबा के दर्शन करके ही लौटेंगे। बेशक बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए एेसे दौरे जरूरी हों , लेकिन हमारे नेताओं को इस बात का ख्याल भी जरूर रखना चाहिए कि उनके दौरे कहीं जनता के लिए बबुआ से महंगा झुनझुना ... वाली कहावत चरितार्थ न करे । 






तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
जिला पशिचम मेदिनीपुर 
संपर्कः 09434453934
​​लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>