आज-कल समाचार चैनल¨ं से लेकर अखबार¨ं तक हर जगह जम्मु कश्मीर में आई बाढ़ सुर्खिय¨ं में फैली हुई है। इस बाढ़ की वजह से पूरे राज्य में लगभग 150 ल¨ग मारे जा चुके हैं। सभी महत्वपूर्ण राजमार्ग बंद हैं। जगह भू-स्खलन की वजह से भारी तबाही मची हुई है। 7 सिंतबर क¨ प्रधानमंत्री नरेंद्र म¨दी जी ने भी राज्य का द©रा किया। उन्ह¨ंने राज्य क¨ 1000 कर¨ड़ रुपए की मदद देने की भी घ¨षणा की। बाढ़ में मारे गए ल¨ग¨ं के परिजन¨ं क¨ प्रधानमंत्री क¨ष से 2 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि सभी प्रभावित क्षेत्र¨ं में युद्ध स्तर पर राहत पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। आज जम्मु कश्मीर के दूर-दराज के गांव¨ं तक मीडिया पहुंचकर तबाही की खबरें पूरे देश तक पहुंचा रहा है। मीडिया का यह प्रयास काबिले तारीफ है। लेकिन बहुत दुख की बात यह है कि सामान्य परिस्थितिय¨ं में जम्मू कश्मीर के दूर-दराज गांव¨ं के हालात कभी भी मुख्यधारा की मीडिया में जगह नहीं बना पाए हैं। जम्मू के सीमावर्ती गांव तमाम बुनियादी सुविधाअ¨ं की किल्लत से जूझ रहे हैं। इन इलाक¨ं में रहने वाले ल¨ग¨ं के बुनियादी सुविधाअ¨ं के अभाव का दंश सीमा पार से ह¨ने वाली ग¨ली-बारी के साथ मिलकर उनके जीवन क¨ नर्क बना देता है। हम अपने इस लेख में एक ऐसे ही समस्या के बारे में बात कर रहे हैं ज¨ न कि इस इलाके के वर्तमान क¨ प्रभावित कर रहा है बल्कि इसके भविष्य क¨ भी प्रभावित कर रहा है।
पुंछ हेडक्र्वाटर से तकरीबन 18 किलोमीटर की दूरी पर तहसील सुरनकोट केषिंदरा नामक गांव का प्राथमिक विद्यालय ऐसे ही एक मुद्दे शिक्षा के हालात की वास्तविकता क¨ बयां करता है। स्कूल तो हैं मगर स्कूल मंे बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते गांव में बच्चे आज भी षिक्षा से वंचित हैं। स्कूल में सिर्फ 20 बच्चे पढ़ते हैं और स्कूल की इमारत भी नहीं है। स्कूल में दो अध्यापक हैं और एक स्थान अभी भी रिक्त पड़ा हुआ है। इस बारे में जब स्कूल के अध्यापक षौकत अली से बात की गई तो उन्होंने बताया कि स्कूल का उद्घाटन साल 2000 में हुआ था और मैंने सन् 2003 में स्कूल में कार्यभार संभाला था। उन्होंने बताया कि स्कूल की इमारत न होने की वजह से स्कूल एक दुकान में चलता है। उनसे जब पूछा गया कि बरसात के दिनों में आप बच्चों को कहां पढ़ाते हैं तो इस पर उन्होंने कहा कि बरसात के दिनों में हमें बहुत कठिनाईयांे का सामना करना पड़ता है। जिस दुकान में स्कूल चलता है उस दुकान में बरसात के दिनों में सिर्फ 8-10 बच्चे आराम से बैठ सकते हैं। उन्होंने आगे बताया कि स्कूल की खस्ताहाली को लेकर वह कई बार अखबारों मंे विज्ञापन देने के अलावा जैडईओ और सीईओ के पास कई बार जा चुके हैं मगर अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है। हां इतना ज़रूर हुआ था कि 28 सितंबर 2013 को सीईओ अब्दुल हामिद फानी साहब यहां पर आए ज़रूर थे मगर उनके आने का भी कोई फायदा न हो सका। स्कूल के छात्र-छात्राओं का कहना है कि अध्यापक अपनी ड्यूटी ठीक से निभाते हैं लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते षिक्षण का कार्य ठीक से नहीं हो पाता है। इस स्कूल केे पास से एक नदी गुज़रती है। बरसात के दिनों में नदी में पानी बहुत अधिक हो जाता है जिसकी वजह से बच्चों को खतरा पैदा हो सकता है क्योंकि बच्चे इसी नदी को पार करके स्कूल को जाते हैं।
षिंदरा के हायर सेकेंडरी स्कूल की भी स्थिति इससे क¨ई बहुत ज्यादा अच्छी नहीं हैं। । इस स्कूल में आठ अध्यापक हैं और तकरीबन 2 सौ बच्चे हैं। स्कूल में आठवीं तक के छात्र-छात्राओं के बैठने के लिए सीटों का इंतेज़ाम नहीं है। आठवीं तक के सभी बच्चे ज़मीन में बैठकर षिक्षा ग्रहण करते हैं। खास बात यह है कि स्कूल में सफाई कर्मचारी का पद रिक्त पड़ा हुआ है जिसकी वजह से छात्र-छात्राओं को रोज़ाना कक्षाओं की साफ सफाई करनी पड़ती है। इस बारे में स्कूल की आठवीं कक्षा की छात्रा यासमीन कौसर का कहना है कि हमें रोज़ सुबह आकर कक्षाओं की सफाई करनी पड़ती है जिससे रोज़ कपड़े गंदे हो जाते हैं। स्कूल में कमरे की दीवार पर जो मैन्यू लिस्ट लिखी हुई है उस लिस्ट के आधार पर बच्चों को मीड डे मील का खाना नहीं दिया जा रहा है। मीड डे मील का खाना जिस कमरे में बनता है सर्मचारी कर्मचारी न होने की वजह से वह कमरा भी गंदा पड़ा रहता है। ऐसे में अगर बच्चे बीमार पड़ते हैं तो इसकी जि़म्मेदारी कौन लेगा।
जम्मू कष्मीर इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1950 -1951 में जहां राज्य में 1,115 प्राईमरी स्कूल और 139 मीडिल स्कूल थेे, वहीं 2005-2006 में यह तादाद बढ़कर 19,178 और 5,788 हो गयी। यह वह आंकड़े हैं जो राज्य सरकार की षिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों को दरषा रहे हैं। लेकिन अगर जम्मू प्रांत के पुंछ जि़ले की बात की जाए तो यहां षिक्षा की व्यवस्था दम तोड़ती हुई नज़र आती है। यहां षिक्षा की स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार की सारी योजनाएं सिर्फ कागज़ांे तक ही सीमित रह गयीं हैं। 2005 में षिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद यहां के बच्चों के लिए गुणवŸाापूर्ण बुनियादी षिक्षा हासिल करना किसी सपने के हकीकत में बदलने की तरह ही है।
हरीश कुमार
(चरखा फीचर्स)