Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

आलेख : आगम-साहित्य का महत्व

$
0
0
जैन आगम ग्रन्थ विश्व साहित्य की अनमोल निधि है। शताब्दियाँ बीत जाने पर भी आगम-साहित्य का महत्व न सिर्फ कायम है, अपितु वह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। आगमों का महत्व मुख्यतः तीन कारणों से बढ़ रहा है -

1. वैज्ञानिक अनुसंधान: ज्यों-ज्यों विज्ञान और तकनीक का विकास होता गया आगम-साहित्य का महत्व बढ़ता गया। कितने ही उपयोगी तथ्य, जिन्हें प्रायः नकार दिया जाता था, अब उन्हें बहुत आदर के साथ स्वीकार किया जा रहा है। ऐसे तथ्य दार्शनिक, तत्व-ज्ञान सम्बन्धी और जीवन शैली से जुड़े हुए हैं। अपने मौलिक दर्शन, व्यावहारिक सिद्धान्तों, स्व-पर हितकारी जीवन शैली और आडम्बर-मुक्त उपासना-पद्धतियों की वजह से जैन धर्म आज विश्व में एक सर्वाधिक वैज्ञानिक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित है। जो बातें विज्ञानियों द्वारा आज कही जा रही है, आगम-साहित्य में उनके स्पष्ट और गर्भित निर्देश मिलते हैं और जैन परम्परा में सदियों से उनका अनुपालन होता रहा है। वनस्पति में जीवत्व, शब्द का पुद्गलमय होना, काल की अवधारणा जैसे जैन दर्शन के अनेक तथ्य वैज्ञानिक जगत में सिद्ध होते रहे हैं। इस सम्बन्ध में एक उदाहरण देना चाहूँगा। ढाई-तीन दशक पूर्व राजस्थान में नारू-बाला रोग बहुत फैल गया था। एक विशेष कृमि से होने वाले इस रोग से मरीज को असह्य पीड़ा से गुजरना पड़ता था। इससे कितने ही रोगियों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। शासन की ओर से रोग और रोगियों के बारे में सांख्यिकीय आँकड़े जुटाये गये। एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि जैन समाज में नारू-बाला रोग के मरीज नगण्य संख्या में पाये गये। पता चला कि जैनी पानी छान कर पीते हैं और तप आदि की विशेष परिस्थितियों में छानने के अलावा उसे उबाल कर भी पीते हैं। यह रोग जिस कृमि से होता था, उसके सूक्ष्म अण्डे अनछने पानी के माध्यम से मानव शरीर में पहुँच जाते थे। शरीर में पहुँचकर अण्डे अपना विकास करके कृमि बन जाते थे और आदमी रोगग्रस्त हो जाता था। जब यह पता चला, तब जाकर सरकार की ओर से यह धुआँधार प्रचार किया गया
कि पानी छान कर पिया जाये। 

2. आगम-अनुसंधान: पिछली शताब्दी में आगम-साहित्य और जैनविद्या के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। आगमों के विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन, शोध और अनुसंधान से नित नये तथ्य प्रकाश में आये। इन अनुसंधानों के फलस्वरूप जैन धर्म की प्राचीनता, ऐतिहासिकता, मौलिकता आदि के बारे में अनेक भ्रम टूटे। अब यह तथ्य दिन के उजाले की तरह सुस्पष्ट है कि जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। इसका अपना स्वतन्त्र और मौलिक दर्शन है। साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ कि प्राकृत भी प्राचीनतम बोली और भाषा है। इन सबके अलावा प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विषय में भी आगम-साहित्य से ऐसी विपुल उपयोगी जानकारी मिलती हैं, जो अन्यत्र अनुपलब्ध या दुर्लभ है। भारतीय भाषा, साहित्य और संस्कृति के समग्र अध्ययन के लिए आगम साहित्य और प्राचीन जैन साहित्य महत्वपूर्ण व उपयोगी जानकारियाँ प्रदान करते हैं। यह भी एक तथ्य है कि कम्प्यूटर के आविष्कार में भी जैन आगम आधार बने थे। इस सन्दर्भ में मैं मेरी काव्य पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ - अज्ञात के महासमुद्र में बस एक बिन्दु ज्ञात है। सत्य के संधान की सबसे बड़ी यह बात है।

3. प्रासंगिकता: बढ़ते भौतिकवाद और बिगड़ते पर्यावरण के साथ-साथ संसार को एक के बाद एक अनेक नई समस्याओं से जूझता पड़ रहा है। एक तरफ विकास के आश्चर्यजनक प्रतिमान स्थापित किये गये और किये जा रहे हैं; दूसरी ओर युद्ध, आतंक, हिंसा, हत्या, भ्रष्टाचार, दुराचार, शोषण, भुखमरी जैसी समस्याएँ समाप्त होने का नाम नहीं ले रही हैं। यह स्थिति विकास की अवधारणा को एकपक्षीय सिद्ध करती है। आगम-ग्रन्थ समस्याविहीन सर्वांगीण विकास की राह सुझाते हैं। ऐसे अनेक कारणों से आगम-साहित्य की प्रासंगिकता और उपयोगिता बढ़ती जा रही है। निःसन्देह, आगे भी यह बढ़ती रहेगी। आगम-साहित्य हमें दीर्घ कालखण्ड, विशाल क्षेत्रफल, बहुधर्मी संस्कृति, भाषा की विकास-यात्रा आदि के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान
करता है। 




live aaryaavart dot com

- डॉ॰ दिलीप धींग
(निदेशक: अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र)

Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>