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लोकतंत्र का भरोसा तोड़ना राष्ट्र का अनादर : राष्ट्रपति

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pranab mukherjee
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र कोई उपहार नहीं है, बल्कि हर एक नागरिक का मौलिक अधिकार है; जो सत्ताधारी हैं उनके लिए लोकतंत्र एक पवित्र भरोसा है। जो इस भरोसे को तोड़ते हैं, वह राष्ट्र का अनादर करते हैं। मुखर्जी ने 65वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि हमारे संविधान के व्यापक प्रावधानों से भारत एक सुंदर, जीवंत तथा कभी-कभार शोरगुल युक्त लोकतंत्र के रूप में विकसित हो चुका है। उन्होंने कहा कि भले ही कुछ निराशावादियों द्वारा लोकतंत्र के लिए हमारी प्रतिबद्धता का मखौल उड़ाया जाता हो, परंतु जनता ने कभी भी हमारे लोकतंत्र से विश्वासघात नहीं किया है; यदि कहीं कोई खामियां नजर आती हैं तो यह उनके कारनामे हैं, जिन्होंने सत्ता को लालच की पूर्ति का मार्ग बना लिया है। 

मुखर्जी ने कहा, "जब हम देखते हैं कि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को आत्मतुष्टि तथा अयोग्यता द्वारा कमजोर किया जा रहा है, तब हमें गुस्सा आता है, और यह स्वाभाविक है। यदि हमें कभी सड़क से हताशा के स्वर सुनाई देते हैं तो इसका कारण है कि पवित्र भरोसे को तोड़ा जा रहा है।"उन्होंने कहा, "मैं निराशावादी नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है। यह ऐसा चिकित्सक है जो खुद के घावों को भर सकता है और पिछले कुछ वर्षो की खण्डित तथा विवादास्पद राजनीति के बाद 2014 को घावों के भरने का वर्ष होना चाहिए।" 

राष्ट्रपति ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश सदैव खुद से तर्क-वितर्क करता है। यह स्वागत योग्य है, क्योंकि हम विचार-विमर्श और सहमति से समस्याएं हल करते हैं, बल प्रयोग से नहीं। परंतु विचारों के ये स्वस्थ मतभेद, हमारी शासन व्यवस्था के अंदर अस्वस्थ टकराव में नहीं बदलने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात पर आक्रोश है कि क्या हमें राज्य के सभी हिस्सों तक समतापूर्ण विकास पहुंचाने के लिए छोटे-छोटे राज्य बनाने चाहिए। बहस वाजिब है, परंतु इसे लोकतांत्रिक मानदंडों के अनुरूप होना चाहिए। फूट डालो और राज करो की राजनीति हमारे उपमहाद्वीप से भारी कीमत वसूल चुकी है। यदि हम एकजुट होकर कार्य नहीं करेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा। 

उन्होंने कहा कि इस वर्ष, हम अपनी लोकसभा के 16वें आम चुनाव को देखेंगे। इसे देखते हुए हममें से हर एक मतदाता पर भारी जिम्मेदारी है; हम भारत को निराश नहीं कर सकते। यदि भारत को स्थिर सरकार नहीं मिलती तो यह मौका फिर नहीं आ पाएगा। ऐसी खंडित सरकार, जो मनमौजी अवसरवादियों पर निर्भर हो, सदैव एक अप्रिय घटना होती है। यदि 2014 में ऐसा हुआ तो यह अनर्थकारी हो सकता है। राष्ट्रपति ने कहा, "पैंसठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं भारत और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों को अपनी विशेष बधाई देता हूं।"

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