Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 79216

आचार्य महाश्रमण की अहिंसा यात्रा इंसानियत की लहलहाती हरीतिमा का आगाज : ललित गर्ग

$
0
0
live aaryaavart dot com
समय-समय पर रह-रहकर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ ऐसा वीभत्स एवं तांडव नृत्य करती रही हैं, जिससे संपूर्ण मानवता प्रकंपित हो जाती है। हाल ही में पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाके हो या इससे पूर्व उत्तर प्रदेश का मुजफरनगर -सांप्रदायिक विद्वेष, नफरत एवं घृणा ने ऐसा माहौल बना दिया है कि इंसानियत एवं मानवता बेमानी से लगने लगे हैं। अहिंसा की एक बड़ी प्रयोग भूमि भारत में आज साम्प्रदायिक की यह आग-खून, आगजनी एवं लाशों की ऐसी कहानी गढ़ रही है, जिससे घना अंधकार छा रहा है। चहूँ ओर भय, अस्थिरता एवं अराजकता का माहौल बना हुआ है। जब-जब इस तरह मानवता ह्रास की ओर बढ़ती चली जाती है, नैतिक मूल्य अपनी पहचान खोने लगते हैं, समाज में पारस्परिक संघर्ष की स्थितियां बनती हैं, तब-तब कोई न कोई महापुरुष अपने दिव्य कर्तव्य, चिन्मयी पुरुषार्थ और तेजोमय शौर्य से मानव-मानव की चेतना को झंुकृत कर जन-जागरण का कार्य करता है। भगवान महावीर हो या गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद हो या महात्मा गांधी, गुरुदेव तुलसी हो या आचार्य महाप्रज्ञ। समय-समय पर ऐसे अनेक महापुरुषों ने अपने क्रांत चिंतन के द्वारा समाज का समुचित पथदर्शन किया। अब इस जटिल दौर में सबकी निगाहें उन प्रयत्नों की ओर लगी हुई हैं, जिनसे इंसानी जिस्मों पर सवार हिंसा का ज्वर उतारा जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य श्री महाश्रमण की अहिंसा यात्रा इन घने अंधेरों में इंसान से इंसान को जोड़ने का उपक्रम बनकर प्रेम, भाईचारा, नैतिकता, सांप्रदायिक सौहार्द एवं अहिंसक समाज का आधार प्रस्तुत करने को तत्पर है। महाभारत में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैैं-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

अर्थात हे अर्जुन जब-जब धर्म की शिथिलता और अधर्म की प्रबलता होती है, तब-तब ही मैं (यानी ईश्वर) जन्म लेता हूँ। वेदव्यास महाभारत के भीष्म पर्व में आगे कहते हैैं-

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

अर्थात साधुओं की रक्षा, दुष्टों के नाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं (यानी ईश्वर) युग-युग में जन्म लेता हूँ।
आज देश में गहरे हुए घावों को सहलाने के लिए, निस्तेज हुई मानवता को पुनर्जीवित करने एवं इंसानियत की ब्यार को प्रवहमान करने के लिए ऐसे महापुरुष/अवतार की अपेक्षा है जो मनुष्य जीवन के बेमानी होते अर्थों में नए जीवन का संचार कर सकें। आचार्य श्री महाश्रमण ऐसे ही एक महापुरुष हैं, जिनके प्रयत्नों से सांप्रदायिकता की आग को शांत किया जा सकता है। आचार्य महाश्रमणजी के प्रति जनमानस का विशेष रूप से आशान्वित होने का एक बड़ा कारण यह है कि उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए विशेष प्रयत्न किए हैं, उनके जीवन का सार अहिंसा है। वे एक संतपुरुष हैं, एक संवेदनशील महामानव हैं। धर्म जगत के वे ऐसे आविष्कारक हैं जो स्वयं अहिंसा का जीवन जीते हुए मानव मात्र में अहिंसा को प्रतिष्ठित कर सकते हैं।

अब जबकि आचार्य श्री महाश्रमण राजधानी दिल्ली के लालकिले से अहिंसा यात्रा पर यात्रायित हुए हैं और उनकी यह पदयात्रा राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय होकर सम्पूर्ण मानवता को अहिंसा से अभिप्रेरित करने वाली है तब देश ही नहीं, दुनिया की नजरें घटित होने वाली एक अभिवन क्रांति की ओर टकटकी लगाये है। यह पहला अवसर है जब कोई जैन आचार्य पदयात्रा करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रों का स्पर्श करेगा। आचार्य महाश्रमण स्वकल्याण और परकल्याण के संकल्प के साथ 30,000 से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा से जनमानस को उत्प्रेरित कर मानवता के समुत्थान का पथ प्रशस्त करेंगे। अहिंसा यात्रा हृदय परिवर्तन के द्वारा अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर हिंसा से अहिंसा की ओर प्रस्थान का अभियान है। यह यात्रा कुरूढि़यों में जकड़ी ग्रामीण जनता और तनावग्रस्त शहरी लोगों के लिए भी वरदान है। जाति, सम्प्रदाय, वर्ग और राष्ट्र की सीमाओं से परे यह यात्रा बच्चों, युवाओं और वृद्धों के जीवन में सद्गुणों की सुवास भरने के लिये तत्पर है। आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य निर्धारित किये हैं-सद्भावना का संप्रसार, नैतिकता का प्रचार-प्रसार एवं नशामुक्ति का अभियान। यह यात्रा भारत के विभिन्न प्रांतों और अन्य देशों में इंसानियत की ज्योति प्रज्ज्वलित करेगी। अहिंसा यात्रा के लिए निर्धारित पथ में आने वाले देश और भारत के विभिन्न प्रांत इस प्रकार हैं- नेपाल, भूटान, मध्यप्रदेश, बिहार, आसाम, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश आदि।

इससे पूर्व अपने गुरु आचार्य श्री महाप्रज्ञ के साथ सात वर्षों तक करीब दस हजार कि.मी. की अहिंसा यात्रा करने वाले आचार्य श्री महाश्रमण ने उनके महाप्रयाण के बाद लगभग दो वर्षों में तीन हजार से अधिक कि.मी. अहिंसा यात्रा की। इस दौरान हजारों ढाणियों, गांवों, कस्बों, नगरों और महानगरों के लाखों-लाखों लोग न केवल आपके दर्शन और पावन पथदर्शन से लाभान्वित हुए, अपितु आपसे विविध संकल्पों को स्वीकार कर वे अमन-चैन की राह पर प्रस्थित भी हुए।

 इस बार वे सुदूर प्रान्तों एवं विदेश की धरती पर अपने कदम रखने वाले हैं, तब उनके भक्तों एवं अनुयायियों में यह आशंका बढ़ रही है कि उनके स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के चलते वे कैसे निर्विध्न यह यात्रा कर पायेंगे? इन हालात में आचार्य श्री महाश्रमण को अपनी अहिंसा यात्रा के इस कार्यक्रम को स्थगित कर देने का भी श्रद्धालुओं ने अनुरोध किया। भक्तों की इस भावना का महत्त्व हो सकता है, लेकिन आचार्य श्री महाश्रमण ने इस भावना को नकारते हुए अपने अहिंसा यात्रा के संकल्प को दृढ़ता से दोहराया है। आचार्य महाश्रमण के दृढ़ संकल्प, मानवीय उत्थान के लिए अहिंसक प्रयत्न एवं निडरता को नमन! महात्मा गांधी ने लिखा है-मेरी अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है, इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। एक हिंसक व्यक्ति के लिए यह आशा की जा सकती है कि वह किसी दिन अहिंसक बन सकता है, किंतु कायर व्यक्ति के लिए ऐसी आशा कभी नहीं की जा सकती।“ गांधीजी ने अहिंसा को एक महाशक्ति के रूप में देखा और उसके बल पर उन्होंने भारत को आजादी भी दिलवाई। वे कहते हैं कि अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर-मिटने वाले लड़ाके होंगे तो वे करोड़ों की लाज रखेंगे और उनमें प्राण फूँकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी मेरे लिए मधुर है।“ आचार्य श्री महाश्रमण भी अहिंसा यात्रा के माध्यम से देश और दुनिया में शांति, सद्भावना, नैतिकता एवं अमन-चैन को लौटाना चाहते हैं। निश्चित ही यह शुभ संकल्प है और आचार्य महाश्रमण जैसे महापुरुष ही ऐसे संकल्प लेने की सामथ्र्य रखते हैं। जिन प्रान्तों एवं देशों में अहिंसा यात्रा का विचरण होगा वहां की जनता को आचार्य श्री महाश्रमण का आध्यात्मिक संबल एवं मानवीयता का सिंचन चाहिए। यहां के लोग इसके लिए आतुर हैं और उन्हें विश्वास भी है कि आचार्य महाश्रमण के प्रयत्नों से उनकी धरती पुनः अहिंसा, नैतिकता, सांप्रदायिक सौहार्द एवं इंसानियत की लहलहाती हरीतिमा के रूप में अपनी आभा को प्राप्त करेगी। 

अहिंसा यात्रा का मुख्य उद्देश्य है साम्प्रदायिक सौहार्द एवं सद्भावना। किसी भी राष्ट्र, समाज और परिवार की उन्नति और शांति के लिए पारस्परिक सद्भाव अपेक्षित होता है। सद्भाव के अभाव में अहिंसा जीवन व्यवहार में प्रतिष्ठित नहीं हो सकती। पारस्परिक टकराव आपसी दूरियां ही नहीं बढ़ाता, अपितु वह कितनों-कितनों के लिए घातक बन जाता है। जाति, भाषा, वर्ण व क्षेत्र का दुराग्रह, साम्प्रदायिक उन्माद, तुच्छ स्वार्थवृत्ति और विकृत मानसिकता पारस्परिक असद्भाव के कारण बनते हैं। अहिंसा यात्रा के दौरान आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा दिया जाने वाला सद्भाव का संदेश जनता के दिलों को छूता रहा है और मैत्री के दीप जलाता रहा है। अग्रिम यात्रा एक अवसर है जब अहिंसा का व्यवस्थित प्रयोग देश में किया जाए। अहिंसा में विश्वास करने वाले सभी लोग निडरता के साथ अहिंसा का संदेश घर-घर पहुँचाएँ। इसके लिए उन्हें अपने घरों से निकलना होगा, भय से मुक्ति पानी होगी और जो हिंसा का तांडव खेल खेल रहे हैं, उनके हृदय को बदलना होगा। आचार्य महाश्रमण की आध्यात्मिक शक्ति इसमें एक सार्थक भूमिका का निर्वाह करेंगी।

अहिंसा यात्रा का दूसरा उद्देश्य है- नैतिकता। बेईमानी सामाजिक स्वस्थता का बाधक तत्व है। जब तक परस्पर धोखाधड़ी का क्रम जारी रहेगा, व्यक्ति सुख और शांति की श्वास नहीं ले सकता। आज के युग में अनैतिकता एक प्रमुख समस्या के रूप में उभर रही है। चोरी न करना, बेमेल मिलावट न करना, अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि न पहुंचाना, रिश्वत न लेना, चुनाव और परीक्षा के संदर्भ में अवैध उपायों का सहारा न लेना आदि ऐसे संकल्प हो सकते हैं, जिनका पालन आसान ही नहीं, तनावमुक्त शांतिपूर्ण समाज के लिए अनिवार्य भी है। आचार्य श्री महाश्रमण अहिंसा यात्रा के द्वारा जनजीवन में नैतिकता को प्रतिष्ठित करने का भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं। आप बहुधा लोगों से आह्वान करते हुए कहते हैं- आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान अथवा कार्यक्षेत्र में अन्य देवी-देवताओं के चित्र हों अथवा नहीं, किन्तु ईमानदारी की देवी अवश्य प्रतिष्ठित होनी चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री का संकल्प की- ना मैं खाऊंगा और न खाने दूंगा- अवश्य ही अहिंसा यात्रा से सफल होगा।

लाखों लोगों को हृदय परिवर्तन के द्वारा नशामुक्त बनाने वाले आचार्य श्री महाश्रमण की अहिंसा यात्रा के दौरान नशामुक्ति का अभियान निरंतर गतिमान रहेगा। आचार्यश्री मानना है- ‘नशा पतन के मुख्य कारणों में एक है। शारीरिक, मानसिक, व्यावसायिक, पारिवारिक, सामाजिक, चैतसिक आदि अनेक नुकसान नशे से हो सकते हैं।’ आचार्यश्री का पवित्र आभामंडल और स्नेह सिंचित आत्मीयतापूर्ण पथदर्शन आगंतुकों के भीतर नई प्रेरणा भरता है, फलस्वरूप वे लोग वर्षों से स्वयं की चेतना को जकड़ने वाले नशे की बेडि़यों को तोड़ गिराते हैं और नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प स्वीकार करते हैं।

साम्प्रदायिक सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के लिए मानवता तरस रही है। यह प्यास कौन बुझाएगा? अभयी आचार्य श्री महाश्रमणजी! आप अहिंसा के प्रति वचनबद्ध हैं। इसलिए प्रेम का जल देने, नैतिकता की स्थापना करने एवं स्वस्थ जीवनशैली को जन-जीवनशैली बनाने के लिये आपको इन सुदूर प्रान्तों एवं विदेश की भूमि पर जाना ही होगा और इतिहास के आह्वान को स्वीकार कर आपको नया पृष्ठ लिखना ही होगा, यही वर्तमान की जरूरत है। आचार्य श्री महाश्रमण जैसे महान आध्यात्मिक संतपुरुष का उस धरती को स्पर्श मिलना निश्चित ही शुभ और श्रेयस्कर है। आज देश और दुनिया को अहिंसा की जरूरत है, शांति की जरूरत है, नैतिकता की जरूरत है, अमन-चैन की जरूरत है, सांप्रदायिक सौहार्द की जरूरत है-ये स्थितियाँ किसी राजनीतिक नेतृत्व से संभव नहीं हैं। इसके लिए आचार्य श्री महाश्रमण जैसे संतपुरुषों का नेतृत्व ही कारगर हो सकता है। ऐसे ही नेतृत्व की जरूरत है जो आपसी मतभेदों से देशहित को ऊपर मानते हैं, जिनकी निगाहें बिते हुए कल पर नहीं, बल्कि आने वाले कल पर हों। आचार्य श्री महाश्रमण ही ऐसी आवाज उठा सकते हैं कि यह मौका तोड़ने का नहीं जोड़ने का है, टूटने का नहीं जुड़ने का है और इसका मतलब अपने अहं के अंधेरों से उभरने का है।

मेरा अभिमत है कि आचार्य श्री महाश्रमण के आह्वान पर भ्रष्टाचार एवं आपराधिक राजनीति से आकंठ पस्त एवं सांप्रदायिकता की विनाशलीला से थके-हारे, डरे-सहमे लोग अहिंसा और नैतिकता की शरण स्वीकार करेंगे, सांप्रदायिक सौहार्द एवं सद्भावना की घोषणा करेंगे। हिंसा से हिंसा, नफरत से नफरत एवं घृणा से घृणा बढ़ती है। इस दृष्टि से व्यापक अहिंसक प्रयत्नों की जरूरत है। अहिंसा यात्रा एक सशक्त माध्यम है, जिससे पुनः अमन एवं शांति कायम हो सकती है। इतिहास साक्षी है कि समाज की धरती पर जितने घृणा के बीज बोए गए, उतने प्रेम के बीज नहीं बोए गए। अहिंसा यात्रा इस ऐतिहासिक यथार्थ को बदलने की दिशा में प्रयत्नशील बनती है तो निश्चित ही यह एक नई दिशा में प्रस्थान होगा। इसके माध्यम से हम मनुष्य मनुष्य के बीच इतना सशक्त वातावरण बनाएँ कि उसमें भ्रष्टाचार, नशाखोरी, घृणा, नफरत एवं सांप्रदायिक विद्वेष को पनपने का मौका ही न मिले। मेरा मानना है कि अहिंसा और नैतिकता को एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। यह अस्त्र संहारक नहीं होगा, मानवजाति के लिए बहुत कल्याणकारी होगा। इस कल्याणकारी उपक्रम यानी अहिंसा यात्रा की सफलता के लिए जरूरी है कि अहिंसा की दिशा में सोचने वाले लोग इस यात्रा के साथ जुड़ें, वे संगठित हो और आचार्य महाश्रमण के स्वरों में स्वर मिलाकर बोलें। 

मेरा विश्वास है कि आचार्य श्री महाश्रमणजी की अहिंसा में इतनी शक्ति है कि सांप्रदायिक हिंसा में जकड़े हिंसक लोग भी उनकी अहिंसक आभा के पास पहुँच जाएँ तो उनका हृदय परिवर्तन निश्चित रूप से हो जाएगा, पर इस शक्ति का प्रयोग करने हेतु बलिदान की भावना एवं अभय की साधना जरूरी है। अहिंसा में सांप्रदायिकता नहीं, ईष्र्या नहीं, द्वेष नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक व्यापकता है, जो संकुचितता और संकीर्णता को दूर कर एक विशाल सार्वजनिन भावना को लिए हुए है।

अहिंसा और नैतिकता की शक्ति असीमित है, पर अब तक उस शक्ति के लिए सही प्रयोक्ता नहीं मिले। आज जब आचार्य श्री महाश्रमणजी जैसे प्रयोक्ता हैं तो हमें भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यों तो अहिंसा और नैतिकता सभी महापुरुषों के जीवन का आभूषण है, किंतु आचार्य महाश्रमण जैसे कालजयी व्यक्तित्व न केवल अहिंसक जीवन जीते हैं वरन समाज को भी उसका सक्रिय एवं प्रयोगात्मक प्रशिक्षण देते हैं। आज ऐसे ही सक्रिय एवं प्रयोगात्मक प्रशिक्षण की जरूरत है। 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 79216

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>