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लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं : राष्ट्रपति

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गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर भारत के राष्ट्रपति
प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि लोकलुभावन अराजकता
शासन का विकल्प नहीं हो सकती. नेताओं को जनता से वही वादे करने चाहिए जो वो पूरे कर सकें. मुखर्जी ने अपने भाषण में कहा, "सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है. लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती. झूठे वादों की परिणीति मोहभंग में होती हैं. जिससे गुस्सा पैदा होता है और गुस्से का एक ही लक्ष्य होता है, वो जो सत्ता में हैं."उन्होंने कहा, "जनता का गुस्सा तभी कम होगा जब सरकारें वो करेंगी जो करने के लिए उन्हें चुना गया है: सामाजिक और आर्थिक तरक्की, घोंघे की रफ़्तार से नहीं बल्कि रेस के घोड़े की तरह."

मुखर्जी ने आगे कहा, "अगले चुनाव कौन जीतता है, यह कम महत्वपूर्ण है. लेकिन भारत की एकता और अखंडता के प्रति ज़्यादा जवाबदेह कौन है यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है."मुखर्जी ने समाज में फैले भ्रष्टाचार पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, "भ्रष्टाचार एक कैंसर है जो लोकतंत्र को धीरे-धीरे नष्ट करता है और देश की बुनियाद कमज़ोर करता है. लोग गुस्से में हैं क्योंकि वे भ्रष्टाचार देख रहे हैं. अगर सरकारें ये कमियां दूर नहीं करतीं तो मतदाता सरकारों को हटा देंगे."उन्होंने कहा, "ऐसे बड़बोले लोग जो हमारी रक्षा सेनाओं पर शक करते हों गैरज़िम्मेदार हैं और उनका सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं है."

माना जा रहा है कि राष्ट्रपति की यह टिप्पणी नई दिल्ली में हाल ही में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को लेकर थी. दिल्ली पुलिस का अधिकार प्रदेश सरकार को देने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दो दिन तक सड़क पर धरना दिया था. हालांकि राष्ट्रपति के भाषण के बाद 'आप'के प्रमुख प्रवक्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि राष्ट्रपति के भाषण का ग़लत अर्थ लगाया जा रहा है, वो शायद उत्तर प्रदेश या गुजरात के बारे में बात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति संकीर्ण सोच और दलगत राजनीति से ऊपर हैं. उन्होंने लिखा है, ''राष्ट्रपति की चेतावनी सही है. मंत्रियों को चुनाव में झूठे वादे नहीं करने चाहिए.''उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति देश में हो रहे भ्रष्टाचार और हिंसा जैसी हर चीज पर नज़र रखते होंगे.


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