प्रधानमंत्री मोदी की कोशिशों का मुरीद शेयर बाजार लगातार नई ऊँचाइयाँ छू रहा है । जहाँ घरेलू निवेशकों में विश्वास और उत्साह साफ़ झलक रहा है वहीँ विदेशी निवेशकों को भी लुभाने में सरकार पूरी तरह सफल दिख रही है। दुनियाभर के निवेशकों का एक कुनबा भारत में उठाये जा रहे आर्थिक तरक्की के कदमों की ओर नज़र गड़ाये हुए है। प्रधानमंत्री का जन-धन योजना हो या 'मेक इन इंडिया'का नारा दोनों ही सही मायने में क्रांतिकारी कदम है। रेटिंग एजेंसीज भी भारत की रेटिंग अपग्रेड करने लगी है जो साफ़ तौर पर सेंसेक्स में मजबूती का संकेत है।
सितम्बर में खाद्य कीमतों में गिरावट से थोक मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति यानि महंगाई दर में जबरदस्त गिरावट आई है जो पिछले पांच साल का न्यूनतम स्तर है। महंगाई कम होने से रिज़र्व बैंक के लिए भी ब्याज दरों में कटौती का रास्ता आसान हो गया है। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि औद्योगिक वृद्धि को रफ़्तार देने के लिए ब्याज दरों का कम होना बहुत जरूरी है। ब्याज दरों में कटौती से बाजार को एक नई ऊर्जा मिलेगी।
हालाँकि सितम्बर में व्यापर घाटे में हुई बढ़ोतरी ने सरकार के सामने चुनौती पेश कर दिया है। हाल के दिनों में सोने का आयत बढ़ने से व्यापर घाटा 14.2 अरब डॉलर पर पहुँच गया है जो पिछले 18 माह का उच्चतम स्तर है। ज्ञात हो कि आयत और निर्यात में अंतर को व्यापर घाटा कहा जाता है।
सेंसेक्स में पिछले तिमाही (जुलाई - सितम्बर ) में लगभग 4.80% वृद्धि दर्ज की गयी है। यह बताने की जरूरत नहीं है की यह तिमाही पूर्ण रूप से इसी सरकार का कार्यकाल है। अगर सेंसेक्स में इसी रफ़्तार से तिमाही दर तिमाही ग्रोथ जारी रहा तो मोदी सरकार में ही सेंसेक्स होगा 60000 के पार। हालाँकि यह जरूरी नहीं है की सेंसेक्स में हर तिमाही 4.80% की वृद्धि हो पर औसतन इसकी संभावना है।
बाजार को समझने और परखने वाले ज्यादातर लोगों का मानना है और उम्मीद भी है की आने वाला समय शेयर बाजार के लिए अच्छा रहने वाला है। तमाम शेयर ब्रोकिंग कम्पनीज में आयी नौकरी की बाढ़ से भी संकेत साफ़ है की मार्केट की मलाई खाने
के लिए तैयार रहिये।
बाजार में ऐसी तेजी देख हैरान होने की जरूरत नहीं है। पूर्व में अमेरिकी सूचकांक डाओ जोंस में भी ऐसी शानदार तेजी देखने को मिल चुकी है। डाओ जोंस अस्सी के दशक में ऐतिहासिक तेजी का गवाह रह चूका है। वर्ष 1982 में 769 के स्तर से वर्ष 1987 में 2742 का स्तर इस सूचकांक में देखने को मिला था जो पांच वर्ष की अवधि में 3.6 गुणा वृद्धि थी। वहीँ डाओ जोंस वर्ष 1990 में 2344 से वर्ष 2000 में 11750 हो गया था जो दस साल अवधि में 5 गुणा बढ़ोतरी है।
आखिर में मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि ये सिर्फ आंकड़ों पर आधारित अनुमान है हकीकत इससे अलग हो सकता है। हालाँकि भविष्य कोई देख नहीं सकता पर संभावनाओं को नाकारा भी नहीं जा सकता है।
(राजीव कुमार)