प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हमेषा से ही नुकसान का कारण बनी है। लेकिन विकास के नाम पर कुदरत के साथ छेड़छाड़ होती रही है और यह आज भी जारी है। जम्मू एवं कष्मीर में सितंबर माह में आई बाढ़ की वजह भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ही है। इस बारे में विषेशज्ञों ने कई साल पहले इसकी ओर इषारा किया था। लेकिन इसको संजीदगी से लेने के बजाय कुछ लोग ने चंद मुनाफे के लिए पेड़ों की कटाई को लगातार जारी रखा जिसकी वजह से न सिर्फ मौसम का मिजाज़ बदला बल्कि इन पेड़ों से मिलने वाली हवा की भरपाई आइंदा दस सालों में भी नहीं की जा सकती। प्रकृति के साथ भविश्य में होने वाली छेड़छाड़ को रोकना होगा वरना इस तरह की प्राकृतिक आपदाएं हमारे सामने किसी न किसी रूप में आती रहेंगी। इस सृश्ट्रि का निर्माण करने वाला एक ही है, जिसने कुछ चीज़ों को अपने वष में रखा है, जो इंसान के काबू में नहीं हैं जैसे जन्म और मृत्यू, दिन और रात, गर्मी, सर्दी और बरसात आदि। यह प्रकृति का ही कमाल है कि कहीं पर पानी की कमी से सूखे जैसे स्थिति पैदा हो जाती है तो कहीं पर इसकी ज़्यादती बाढ़ के रूप में लोगांे पर कहर बरपाती है। जब बाढ़ का पानी बस्तियों, षहरों, मैदानों, खेतों और वादियों में घुसता है तो सब चीज़े खत्म होती चली जाती है।
इस बार मानसून ने जाते जाते सितंबर माह के पहले सप्ताह में जम्मू-कष्मीर राज्य में ऐसी तबाही मचाई जिसकी दहषत कई दषकों तक लोगों के दिलो दिमाग पर छाई रहेगी। बाढ़ के समय धरती के स्वर्ग पर कयामत का सा मंजर था। जो घर से निकला वह वापस न लौटा, जो घर में कैद हो गया वह घर ही न रहा, मां को बेटे की खबर नहीं, बेटे को मां की खबर नहीं। सैकड़ों लोग मौत का षिकार हुए और हज़ारों लोग बेघर। कुछ बच्चों से उनके स्कूल छीन गए तो कुछ की किताबें और यूनिफार्म बाढ़ के पानी में बह गयीं। ऐसे में कौन किसकी मदद कर सकता था। सरकार खुद बेबस और अपाहिज होकर रह गयी थी। मगर यह आपदा कोई ऐजी चीज़ नहीं जो आई और चली गई, पानी के षुश्क होने से समस्या खत्म नही हुई बल्कि सबसे बड़ी चुनौती तो अब है कि बाढ़ प्रभावित लोगों की जिंदगी को दोबारा पटरी पर किस तरह लाया लाए और उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाएं? बाढ़ में लोगों के घर-बार और आजीविका के सारे साधन यानी माल-मवेषी और खेती-बाड़ी पूरी तरह से बर्बाद हो गए। ऐसे में जिनके माल-मवेषियों को नुकसान हुआ और घर-बार बाढ़ में बर्बाद हो गए, वह कब तक सरकार की ओर से दिए गए टैंटों में रहते रहेंगे। जम्मू एवं कष्मीर के सीमावर्ती जि़ले पुंछ में सीज़फायर उल्लंघन की वजह से लोगों को काफी परेषानियों का सामना करना होता है ऐसे में बाढ़ ने लोगों की परेषानियों को और ज़्यादा बढ़ा दिया है। जि़ले की तहसील मंडी का गांव गली पिंडी जो पहाडी की ऊंचाई पर स्थित है और अंतरराश्ट्रीय सीमा के बिल्कुल करीब है। यहां बाढ़ प्रभावित लोग अभी टैंटों में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं।
इस इलाके में एक बहुत बड़ी पस्सी (पहाड़ी पत्थरों को रोकने वाली दीवार) गिरने की वजह से सात घर पूरी तरह बर्बाद हो गए और माल-मवेषियों को नुकसान होने के अलावा देा इंसानी जानें भी गईं। बाढ़ की वजह से अपना घर बर्बाद होने के बाद टैंट में रह रहीं ताजि़म अख्तर से जब पूछा गया कि वह स्कूल जाती हैं तो उन्होंने मायूस होते हुए जबाब दिया कि मेरी किताबें और यूनिफार्म घर के साथ बह गयीं। एक टैंट में खाना पक रहा था। खाना पकाने वाले नूर हसन ने बताया कि इसका इंतेज़ाम एक कल्याणकारी संगठन की ओर से सिर्फ पांच दिनों के लिए किया गया है। हनीफा बी ज़ोजा मोहम्मद हफीज़ से जब पूछा गया कि बाढ़ के बाद वह अपनी जिंदगी को कैसे जिएंगी तो उन्होंने बताया कि मेरी चार बेटियां हैं और बेटा कोई नहीं हैं। पहले तो हम खेती-बाड़ी करके अपना जीवन-यापन कर लेते थे मगर अब तो हमारा न घर रहा है न खेती-बाड़ी के लिए जगह। इनसे जब पूछा गया कि अगर आपको सरकार की ओर से कुछ कल्याणकारी योजनाओं से कुछ काम दिला दिया जाए जैसे कि मुर्गी-पालन, पषु-पालन, मधुमक्खी-पालन आदि तो क्या आप यह सब कर सकते हैं, तो उनका जबाब था- ‘‘हम तो कुछ भी करने को तैयार हैं और मुर्गी-पालन और पषु-पालन तो हमारा खानदानी पेषा है।
इस गांव के साथ दूसरा गांव जो आधा तार के उस पार और आधा इस पार यानी षाहपुर है। यहां के सरपंच मोहम्मद अय्यूब के मुताबिक इस गांव में 12 घर पूरी तरह जबकि 15 घर आंषिक रूप से बर्बाद हुए हैं। पंचायत के चेयरमैन मीर अहमद अपने घर तबाह होने की कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि हम सारे लोग घर के अंदर ही थे और जब हमारा मकान गिरने लगा तो बड़ी कठिनाई के साथ आर्मी ने हमें निकाला। उन्होंने आगे बताया कि षाहपुर का मोहल्ला बरोड़ जिसमें 2 सौ घर थे, सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ हैै। इसी गांव के एक और स्थानीय निवासी मोहम्मद षब्बीर से आने वाली जिंदगी को गुज़ारने के लिए सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बात की गई तो इस पर उनका कहना था कि उनके नौजवानों के बाद कौषल की कोई कमी नहीं है, वह सब पढ़े-लिखे हैं, इसलिए अगर उन्हें सरकार की ऐसी योजनाओं से जोड़ा जाए तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा। बाढ़ के बाद पैदा हुए हालात से निपटने के लिए ज़रूरी है कि प्रभावित लोगों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सरकार ज़रूरी कदम उठाए। टैंट बांटने और चंद माह के लिए राषन मुहैया कराने से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार को बाढ़ के बाद लोगों के लिए आजीविका के ऐसे साधन जुटाए जिससे बाड़ प्रभावित लोगों को सतत रोज़गार मिल सके। इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि बाढ़ प्रभावितों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी पहुचंाई जाए जिससे वह आजीविका के साधन जुटा सकें और आने वाली जिंदगी को बेहतर बना सकें।
सिद्दीक अहमद सिद्दीकी
(चरखा फीचर्स)