- चुनावी सियासत में आर्थिक सुधार का मुद्दा ना होना अर्थव्यवस्था में सुस्ती का एक और कारण बन सकता है
आम चुनाव में आर्थिक सुधार को मुद्दा ना होता देख शेयर बाज़ार लगातार गोते लगा रहा है। निवेशक परेशान है वहीं राजनीतिक सूरमा सियासी रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं। गरीबी की परिभाषा गढ़ने वाली दोनों प्रमुख पार्टियां जहरीले कीचड़ की होली खेल रही है। कभी दंगे की बात को हवा दी जा रही है तो कभी वंशवाद और भाई - भतीजाबाद को। आर्थिक सुधार की बात पर सब मौन हैं। शंखनाद रैली के सारथी ने गरीबी की जो परिभाषा गढ़ी है सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है। लगता है गरीब जनता आगे चलकर जीने का अधिकार भी खो देगी । सरकार की हर नाकामी पर गरजने वाले नमो आर्थिक सुधारों का कोई ठोस रोडमैप नहीं पेश कर पा रहे है। या उनके हिसाब से आर्थिक सुधार कोई मुद्दा ही नहीं है। विदेशी निवेशक भी अब नमो को लेकर दुविधा में नजर आ रहे है। नवनिर्वाचित राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने खुदरा में विदेशी निवेश के पुरानी सरकार के फैसले को पलट कर कोई अच्छा सन्देश नहीं दिया है। विकल्प के अभाव में हो सकता है जनता नमो को सत्ता के सिंहासन के करीब पहुंचा दे। लेकिन यह चायवाला (मोदी साहब) देश के खजाने की चौकीदारी ही करेगा या खजाने में वृद्धी भी, साफ़ तस्वीर सामने नही आ रही है।
हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की की बात करने वाला जोश से उर्जित युवा जब कहता है कि गरीबी वहम है तो गरीबों के लिए रोटी उसके लिए अहम् कैसे हो सकता है। जो अपनी ही सरकार के फैसलों को बकवास करार देता हो वो आर्थिक सुधार के लिए रोडमैप पेश करेगा बात बेमानी लगती है। इमेज को चमकाने के लिए और भी तमाम तरीके है जैसे की 500 करोड़ का जापानी पीआर कंपनी को ठेका। दूसरी पारी में इनके सरकार की एलपीजी सिलिंडर की लघुकथा अपने आप में हास्यरस से परिपूर्ण थी। आर्थिक सुधार के नाम पर एलपीजी सिलिंडर की राशनिंग कर संख्या 6 करना और फिर 9। चुनावी रंग चढ़ते ही एक बार फिर राहुल की इमेज को चमकाने के लिए एलपीजी सिलिंडर की संख्या 12 कर दी गई। आम जनता ने राहत की साँस ली इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन एलपीजी सिलिंडर की इस लघु कथा ने यह साबित कर दिया कि सरकार ने शायद पूरा होमवर्क नहीं किया था। साथ ही राहुल जी ने पहला टीवी इंटरव्यू जिस लहजे में दिया उसने उनके शासकीय अनिच्छा को सामने ला दिया और विरोधियों को नया मुद्दा दे दिया।
आंदोलन से निकला आम आदमी का काफिला तो सियासी चक्रव्यहू में फंसता जा रहा है। सियासत के पुराने महारथी केजरी को जल्द ही पटखनी दे देंगे ऐसा प्रतीत होता है। इस माहौल में इनसे आर्थिक सुधार के बात की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
राजीव सिंह
संपर्क : vittamantra@yahoo.com