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अधिकारियों को अनजानी गलतियों के लिए प्रताड़ित न करें : प्रधानमंत्री

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सार्थक निर्णय करते समय अनजाने में की गई गलतियों के लिए ईमानदार अधिकारियों को प्रताड़ित नहीं किये जाने पर जोर देते हुए आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चेताया कि अगर ऐसा नहीं किया गया तब निर्णय करने की प्रक्रिया और शासन व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के विषय पर संयम से सार्वजनिक चर्चा करने का आह्वान किया क्योंकि फैसलों की गैर जरूरी निंदा और निर्णय करने वालों का द्वेषपूर्ण ढंग से लगाये गये आरोपों के चलन को बदले जाने की जरूरत है।

केंद्रीय सतर्कता आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र का मुख्य उद्देश्य शासन एवं सेवा प्रदान की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में योगदान देना है और यह तभी हो सकता है जब साहसिक एवं नवोन्मेषी निर्णय लेने को प्रोत्साहित किया जाए।

मनमोहन ने कहा, ‘इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सार्थक निर्णय करते समय अनजाने में की गई गलतियों के लिए ईमानदार अधिकारी प्रताड़ित नहीं किये जाए। ’ उन्होंने कहा कि सीवीसी को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के शब्दों का पालन करना चाहिए जिन्होंने कहा था कि आयोग को ईमानदारी पर निर्भिकता से अमल करना चाहिए और भ्रष्ट अधिकारियों के लिए भय का माध्यम बनना चाहिए।’ 

मनमोहन ने कहा, ‘ हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे तमाम संस्थाओं में ईमानदार लोग आगे बढ़े। ऐसे किसी परिदृश्य में अगर ऐसा नहीं होता है, तब निर्णय करने की प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित होगी और शासन व्यवस्था बेहतर बनने की बजाए उनके लिए दमघोटूं बन जायेगा।’ उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल के संप्रग के शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का स्वरूप समय के साथ परिवर्तित हुआ है।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ बदलाव की प्रक्रिया ने संप्रग सरकार के पिछले 10 साल के शासनकाल में रफ्तार पकड़ी है । प्रशासन में सुचिता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नये कानून बनाये गए हैं।’ प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में सूचना का अधिकार तथा लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि देश में भ्रष्टाचार के विषय पर व्यापक चर्चा हो रही है जिसमें समाज के लोग और मीडिया की सक्रिय हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा, ‘ मैं मानता हूं कि यह चर्चा अच्छे के लिए है। इससे न केवल लोगों में अपने अधिकारों और लोक प्राधिकार की जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ी है बल्कि लोक प्राधिकार भी लोगों की बढ़ती उम्मीदों से रूबरू हुए हैं।’ 

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