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Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
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विशेष : किसी की मुस्कराहटों में हो निसार...जीना इसी का नाम है !

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geeta chandola
गीता चंदोला जैसी समाज सेविका ज़रा कम ही दिखने को मिलती हैं. आज दून हॉस्पिटल जाना हुआ ..वार्ड न. ८ के बेड नम्बर २८ पर एक लावारिश रहता है रिंकू. जिसकी यह नग्न फोटो है. पढ़ा लिखा तो है लेकिन दिमाग से पगला गया है. 

गीता चंदोला को जब पता चला कि इस लावारिश के साथ दून अस्पताल के स्वीपरों ने मार पिटाई की और उसे वहां से भगा दिया तो उन्होंने पूरा हॉस्पिटल में हो हल्ला काट कर उसकी ढूंढ के लिए सबको इधर उधर भेज एक घंटे की मसकत्त के बाद रिंकू नामक यह लावारिश मिला. गीता चंदोला का स्पर्श पाकर वह इतना खुश हुआ कि मोम माम चिल्लाता रहा. गीता चंदोला इन लावारिशों के लिए खुद घर से खाना बनाकर ले जाती है ..जिनका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों वाली बात है.

geeta chandola
वहीँ दूसरी फोटो में यह लड़की संवासिनी है जिसका इलाज दून हॉस्पिटल में चल रहा है. १६-१७ साल की इस लड़की के पेट में ६ माह का बच्चा है लेकिन इसे यह पता तक नहीं है कि उसके साथ कब किसने बलात्कार किया और कहाँ किया. ये संवासिनियाँ दिमाग से ठीक ठाक नहीं हैं,. दून हॉस्पिटल में भर्ती लगभग ५ संवासिनियाँ ऐसी हैं जिन्हें यह पता तक नहीं है कि वह कहाँ से लायी गयी हैं और कबसे केदारपुरम स्थित नारी निकेतन में रह रही हैं. यहाँ समझ यह नहीं आता कि ये संवासिनी ऐसी सुरक्षा के बीच भी कैसे गर्भवती हो जाती हैं, जहाँ मजिस्ट्रेट की परमिशन के बिना कोई पुरुष जा नहीं सकता. 

यहाँ भी गीता चंदोला को इनके सुख दुःख बांटते हुए देखा गया. 
गीता चंदोला से जब यह पूछा गया कि आपकी कौन सी संस्था है जो ऐसे सामाजिक काम करती है या जो ऐसे लावारिश लोगों का ध्यान रखने में अपना समय और पैंसा दोनों लगा रही है. तब गीता चंदोला ने बताया कि उनकी संस्था उनके पति हैं जो दुबई में रहकर मेरी समाज सेवा के कार्य को बढ़ावा देने के लिए हर महीने अपने वेतन से पैंसा भेजते हैं जिसका थोडा बहुत हिस्सा में समाज सेवा पर खर्च कर रही हूँ. गीता चंदोला ने कहा कि इन बेचारे या बेचारियों का क्या दोष... दोष तो हमारे समाज में जन्मे उन कीड़े मकोड़ों का है जो अपनी ऐयाशी के लिए ऐसे कृत्य कर इन लावारिशों को जन्म देते हैं. समाज सेवा करना मानवीय धर्म है न कि एक दिखावा. मैं अपना समय और पैंसा खर्च कर यह दिखाने या जताने के लिए समाज सेवा नहीं कर रही हूँ कि कोई मेरी प्रशंसा करे बल्कि इसलिए कर रही हूँ ताकि इन चेहरों पर भी अपने बच्चों की तरह रेंगती मुस्कराहट देख सकूँ.


---मनोज इष्टवाल ---

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