पटना। इसे आप क्या कहेंगे? दुबली पतली काया और गहने के रूप में गंदे कपड़े पहनने वाली थीं। कहां से आयी और कहां पर चले जाना है? उसे खुद ही पता नहीं था। वह किसी तरह का जवाब देने में असमर्थ है। इसके कारण आज भी वह भटकी लड़की रहस्य ही बन कर रह गयी। उसे पहचान और पनाह देने वाले परलोक सिधार चुके।
उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत के एल.सी.टी.घाट मुसहरी के आसपास चहलकदमी कर रही थीं। उसे देखने से जाहिर हो रहा था कि उसके शरीर के सभी अंगों में गंदगी व्याप्त है। यह कयास लगाया जा सकता है कि पुरूष प्रधान देश के पुरूषों से बचने के लिए ही तरकीब अपना ली थीं। इस तरह के गंदे परिधानों में रहकर वह खुद को हमलावरों से सुरक्षित बचाने में कामयाब रहीं। जानकारी से ही जानलेवा एड्स बीमारी से बचा जा सकता है। उसी तर्ज पर वह गंदगी रहकर आबरू बचाने में सफल रहीं।
इस तरह की परिस्थिति को देखकर एल.सी.टी.घाट मुसहरी के जीतू मांझी को तरस आ गया। उस बदनसीब लड़की को पनाह दिया। बिना विवाह के ही साथ-साथ जीने और मरने का मन बना रहने लगे। जीतू मांझी की भाभी ने पहचान के रूप में लड़की का नाम पनपतिया रख दी। इसके बाद जीतू और पनपतिया मिलकर जीवन बिताने लगे। दोनों मिलकर रद्दी कागज चुनने और बेचने लगे। दोनों खुशी-खुशी जी रहे थे। एक दिन अचानक जीतू मांझी की मौत हो गयी।
इसके बाद जीतू की भाभी ने पनपतिया को पनाह दी। दोनों गोतनी साथ-साथ रहते थे। एल.सी.टी.घाट मुसहरी के लोगों के साथ पनपतिया भी दशहरा त्योहार के अवसर पर गांधी मैदान में रावण वध देखने गयी। अपने साथ आए लोगों से पनपतिया भटक गयीं। भटककर वह पालीगंज चली गयी। काफी खोजखबर करने के 9 माह के बाद पनपतिया को घर लाया जा सका। एक बार फिर पनाह देने वाले की मौत हो गयी। पहले जीतू ने पनाह दिया और उसके बाद जीतू की भाभी पनाह दी। दोनों पनाह देने वाले चले गए।
इसके बाद जीतू के भतीजा ने कथित चाची पनपतिया को पनाह देने लगा। कुछ माह तक चाची को दाना पानी देते रहा। इसमें भतीजा के साथ चाची भी देती थीं। वह भी रद्दी कागज आदि चुनकर लाकर, बेचने के बाद भतीजा को रकम दे देती थीं। इस बीच दो माह से घर में ताला लगाकर भतीजा देहात चला गया है।
इसके कारण अब चाची सड़क पर आ गयी है। एक बार फिर आबरू बचाने के लिए गंदगी को शरीर पर रखना शुरू कर दी है। इधर-उधर रहने को मजबूर हैं। कोई मुसहरी से कुछ खाना देता है तब वह खाना खाती हैं। इसके कारण पनपतिया काफी कमजोर हो गयी हैं। पनपतिया को जलवायु परिवर्तन की मार भी सहनी पड़ रही है। कमजोरी के कारण चलने में ढोलने लगती हैं। इस हालात पर अब वह रद्दी कागज भी चुनने नहीं जा पा रही है। ठीक तरह से आंख से देख नहीं पा रही है।
आलोक कुमार
बिहार