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अमरनाथ यात्रा: बाबा बर्फानी: दर्शन मात्र से होती है मोक्ष एवं स्वर्ग की प्राप्ति

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देशभर में शिवजी के कई तीर्थ स्थान हैं और उनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ है अमरनाथ गुफा। इस गुफा में बर्फ के रुप में प्रकट होने वाले भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए विभिन्न भागों से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को समुद्र तल से 3,888फुट की ऊंचाई पर कठिन पहाड़ी रास्तों से गुजरना पड़ता है। यहां तक कि बर्फ से ढकी पहाडियों के बीच कई स्थानों पर सांस लेने के लिए पर्याप्त आक्सीज न तक नहीं मिलती लेकिन महादेव के दर्शनों की अभिलाषा, आस्था और एक विशेष शक्ति लोगों के कदमों को गति देती है और वे हर-हर महादेव के जयघोषों के बीच बर्फीले रास्तों को पार कर अमरनाथ गुफा तक पहुंचते हैं और भगवान शिव के दर्शन कर असीम सुख और कृपा का अहसास करते हैं। कहते है बाबा अमरनाथ दर्शन काशी में लिंग दर्शन और पूजन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देनेवाले है। इस साल घाटी में हुई भारी बर्फबारी की वजह से गुफा मंदिर में पवित्र शिवलिंग ज्यादा ऊंचा है, जो तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा 

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तीनों लोकों का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर जितना प्राकृतिक कारणों से खूबसूरत है उतना ही धार्मिक स्थलों की वजह से भी। एक तरफ आदि शक्ति जगत जननी मां वैष्णवी देवी का जहां स्थायी निवास है तो दुसरी तरफ सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, जगत के पालनहार विष्णु व संपूर्ण जीवों के संरक्षक महादेव की भी तपोभूमि है। यही वजह है कि यहां की हसीन वादियों के पग-पग पर श्रद्धालुओं को पवित्र धामों के दर्शन तो होते ही है, प्रकृति की मनोहारी-अनुपम छटा भी नजर आती है। वहां बड़ी-बड़ी पहाडियां बर्फ से ढंकी रहती हैं, हिमालय की वनस्पतियों के नजारे और झीलें आंखों को सुखद अहसास देते हैं। भगवान भोलेनाथ यानी अमरनाथ की यात्रा को तो श्रद्धालु स्वर्ग के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति मानते हैं। शायद यही वजह भी है कि अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से सबसे प्रमुख है। इसे तीर्थो का तीर्थस्थल कहा जाता है, क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व के रहस्य की जानकारी दी थी। यहां की खासियत है कि पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण। इसे स्वयंभू हिमानी यानी बाबा बर्फानी शिवलिंग भी कहते हैं। दो जुलाई से शुरू होने वाली इस सालाना तीर्थयात्रा में इस बार पवित्र शिवलिंग की ऊंचाई पिछले कुछ सालों के औसतन 10-11 फुट की तुलना में इस बार 13 फुट है। जो तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा। ऐसा इस साल अधिक बर्फबारी होने के चलते होगा। गुफा में शिवलिंग के साथ ही श्रीगणेश, पार्वती और भैरव के हिमखंड भी निर्मित होते हैं। हर साल आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक सावन के पूरे माह पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो श्रद्धालु पहुंचते है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लम्बी दुर्गम पैदल यात्रा करने के बाद जब व्यक्ति इतनी ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में हिमलिंग के दर्शन करता है तो उसकी सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है। भक्तों को अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। इसीलिए अमरनाथ यात्रा को अमरत्व की यात्रा भी कहा जाता है। जून से अगस्त के बीच अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते हैं। सिर्फ इसी समय बाबा अमरनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं, शेष समय यहां का वातावरण हमारे लिए प्रतिकूल रहता है। यहां अक्सर बर्फ गिरती रहती है और इस क्षेत्र का तापमान माइनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है। रास्‍ते का सौंदर्य बयान करना शब्‍दों से परे है, हॉं इतना कह सकते हैं कि प्राकृतिक नजारा देखकर हृदय के अंदर आनन्‍द का संचार होता रहता है। पूरे रास्‍ते छोटे झरने, जलप्रपात का दृश्‍य नयनाभिराम लगते हैं। पूरे रास्‍ते नदी, पहाड़ एवं झरनों का अद्भुत नजारा है। 

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जो भी हो इतना तो तय है कि अमरनाथ यात्रा भले ही अमरत्व की आकांक्षा लिए हो, लेकिन यह देश को कन्याकुमारी से कश्मीर तक भी जोड़ती है। यात्रा के मार्ग पर हिमानी घाटियां, ऊंचे झरने, बर्फ से लबरेज सरोवर, कुदरत के रचे बर्फीले पुल श्रद्धालुओं की आस्था को रोमांचित कर देते हैं। इस कठिन यात्रा के समापन पर तन-मन एक अनूठी शांति से भर जाता है। तभी तो कुछ इसे स्वर्ग की प्राप्ति का रास्ता बताते हैं तो कुछ मोक्ष प्राप्ति का, लेकिन यह सच है कि अमरनाथ, अमरेश्वर आदि के नामों से विख्यात भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंगम् का दर्शन, जो हिम से प्रत्येक पूर्णमासी को अपने पूर्ण आकार में होता है, दिल को सुकून देने वाला होता है। इतनी लंबी यात्रा तथा अनेक बाधाओं को पार करके अमरनाथ गुफा तक पहुंचना कोई आसान कार्य नहीं है। प्रत्येक यात्री जो गुफा के भीतर हिमलिंगम के दर्शन करता है, अपने आप को धन्य पाता है और खुद को भाग्यशाली समझता है क्योंकि कई तो खड़ी चढ़ाइयों को देख आधे रास्ते से ही वापस मुड़ जाते हैं। वैसे भी जम्मू-कश्मीर को यूं ही देवलोक नहीं कहा जाता है। इसे धरती का देवलोक कहे जाने के पीछे बड़ी वजह यह है कि यहां 45 से अधिक शिवधाम, 60 से अधिक विष्णुधाम, 3 ब्रह्मधाम, 22 शक्तिधाम तथा 700 नागधाम हैं। इन्हीं तीर्थ स्थलों में परम् आस्था का प्रतीक है अमरनाथ की यात्रा, जहां हर श्रद्धालु जीवन में एक बार अवश्य ही जाने को लालायित रहता है। यह पवित्र धाम जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 किमी दूर समुद्रतल से 13800 फुट की ऊंचाई पर है। 

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अमरनाथ गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर, चैड़ाई 16 मीटर व गुफा 11 मीटर ऊंची है। तकरीबन 150 फुट की परिधि में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग 10-22 फुट तक लंबा शिवलिंग बनता है। यह शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक रूप से निश्चित समय के लिए ही बनता है। इस गुफा में एक आश्चर्य की बात यह है कि यहां की बर्फ एकदम कच्ची होती है और हाथ में लेते ही भुर-भुरा जाती है। जबकि, शिवलिंग की बर्फ एकदम ठोस होती है। यहां चारों ओर बर्फीली पहाडि़यां दिखाई देती हैं। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाएं। यही अद्भूत नजारा भक्तों को बाबा भोलेनाथ की मौजूदगी का एहसास कराती है। लाखों-करोड़ों भक्तों की आस्था को ही ध्यान में रख अमरनाथ की गुफा तक की यह यात्रा हर साल आयोजित की जाती है। कहते है मानसरोवर यात्रा के समान ही इसका भी विशेष महत्व है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं। यात्रा कितना जोखिमह ै इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1996 में 250 श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा के दौरान खराब मौसम के चलते मारे गए, जो अमरनाथ यात्रा के इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक त्रासदी मानी जाती है। फिरहाल यह चमत्कार नहीं तो और क्या है। प्रतिवर्ष एक खास समय पर बर्फ का शिवलिंग तैयार होना और तय समय पर पिघल जाना। यह प्रकृति का चमत्कार ही तो है। 

पौराणिक मान्यता 
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पौराणिक मान्यताओं है कि इस गुफा में भगवान शंकर ने माता पार्वती को अमरत्व और सृष्टि के सृजन या यूं कहे जीवन और मृत्यु के रहस्य के बारे में बताया था। दरअसल, पार्वती लगातार अपने पति से अमरत्व और सृष्टि के निर्माण का राज जानना चाहती थीं। वह जानना चाहती थी कि संसार के हर प्राणी तथा पार्वती स्वयं भी जन्म मृत्यु से बंधे हैं तो भगवान शंकर क्यों नहीं। उन्होंने देवाधिदेव माहदेव से प्रश्न किया की ऐसा क्यूं होता है की आप अजर अमर है और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरुप में आकर फिर से वर्षो की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है। जब मुझे आपको ही प्राप्त करना है तो फिर मेरी यह तपस्या क्यूं? मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यूं? और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का कारण व रहस्य क्या है? महाकाल ने पहले तो माता को यह गूढ़ रहस्य बताना उचित नहीं समझा परन्तु माता की स्त्री हठ के आगे उनकी एक न चली। अन्त्त्वोगत्व्या महादेव शिव को मां पार्वती को अपनी साधना की अमर कथा जिसे हम अमरत्व की कथा के रूप में जानते है, सुनाने के लिए हामी करनी पड़ी। फिर पार्वती के साथ तांडव नृत्य कर इस गुफा में मृगछाल बिछाकर बैठ गए। कथा सुनाने से पूर्व उन्होंने कालाग्नि को आदेशित किया कि वह गुफा के आसपास समस्त प्राणियों को भस्म कर दे जिससे कोई भी अमरकथा सुनकर अमर न हो जाय। भगवान ने कहा कि यह सब अमरकथा के कारण है। पार्वती ने इस अमरकथा को सुनने की जिज्ञासा प्रकट की। लेकिन भगवान शंकर उस स्थान की तलाश में थे, जहां कोई तीसरा व्यक्ति सुन न सके। इसलिए उन्होंने इस गुफा को चुना। इसके बाद मां पार्वती संग एक गुप्त गुफा में प्रवेश कर गये। कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर प्रवेश कर अमर कथा को न सुन सके इसलिए शिव जी ने अपने चमत्कार से गुफा के चारों ओर आग प्रज्जवलित कर दी। फिर शिव जी ने जीवन की अमर कथा मां पार्वती को सुनाना शुरू किया। कथा सुनते-सुनते मां  पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं जिसका शिव जी को पता नहीं चला। भगवन शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। इस समय दो सफेद कबूतर श्री शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। शिव जी को लग रहा था कि मां पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया जो सो रही थी। शिव जी ने सोचा कि पार्वती सो रही हैं तब इसे सुन कौन रहा था। तब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी, महादेव शिव कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए तत्पर हुए। इस पर कबूतरों ने शिव जी कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगो। यह शुक बाद में सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए। गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। कहते है जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है भगवान शिव जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अपना नंदी बैल को पहलगाम (बैलग्राम) में, चंदनवाड़ी में चांद, शेषनाग में गले का सर्प, महागुनाश में अपने बेटे गणेश को और पंचतत्‍व (पृथ्‍वी, आकाश, पानी, हवा और अग्‍नी) जिससे मानव बना है को पंचतरणी में छोड़ा और पवित्र गुफा में विराजकर कालाग्‍नी के द्वारा सभी जीवित जीव को नष्‍ट कर मां पार्वती को अमरकथा सुनायी जो सौभाग्‍य से अंडे से बना कबूतर ने सुना और अमर हो गया। ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में दिखाई देते हैं। संगम में अमरावती एवं पंचतरणी नदी का संगम है, पंचतरणी में भैरव पहाड़ी के तलहटी में पांच नदियॉं बहती हैं जो भगवान शिव के जटाओं से निकलती है, ऐसी मान्‍यता है। इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया। 

अमरनाथ की अमरकथा
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इस कथा का नाम अमरकथा इसलिए है क्योंकि इसको सुनने से शिवधाम की प्राप्ति होती है। जैसा कि कहा जाता है कि शुकदेव जब नैमिषारण्य गए तो वहां ऋषियों ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और उनसे अमर कथा सुनाने का आग्रह किया। शुक ने अपनी तारीफ से खुश होकर अमर कथा सुनानी आरंभ कर दी। कहा जाता है कि जैसे ही कथा आरंभ हुई तो कैलाश पर्वत, क्षीर सागर और ब्रह्मलोक भी हिलने लगे। ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा समस्त देवता उस स्थल पर पहुंचे जहां पर अमर कथा चल रही थी। तब भगवान शंकर को स्मरण हुआ कि यदि इस कथा को सुनने वाले अमर हो गए तो पृथ्वी का संचालन बंद हो जाएगा और फिर देवताओं की प्रतिष्ठा में अंतर आ जाएगा। इसीलिए भगवान शंकर क्रोध में आ गए और उन्होंने शाप दिया कि जो इस कथा को सुनेगा वह अमर नहीं होगा परंतु वह शिव लोक अवश्य प्राप्त करेगा। 

5000 साल पुराना है अमरनाथ यात्रा 
कहते है अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता 5000 साल पहले यानी सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए बूटा मलिक को चला था। आज भी चैथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। कहते है इस गड़रिए को कोई संत दिखाई दिए थे। संत ने गड़रिए को कोयले से भरी हुई एक पोटली दी थी। जब गड़रिया अपने घर पहुंचा तब पोटली के अंदर का कोयला सोना बन गया था। यह चमत्कार देखकर गडेरिया आश्चर्यचकित हो गया और संत को खोजने के लिए पुनः उसी स्थान पर पहुंच गया। संत को खोजते-खोजते उस गड़ेरिए को अमरनाथ की गुफा दिखाई दी। जब वहां के लोगों ने इस चमत्कार के विषय में सुना तो अमरनाथ गुफा को दैवीय स्थान माना जाने लगा और यहां पूजन शुरू हो गया। हालांकि एक अन्य किंवदंती के अनुसार भृगु ऋषि ने सबसे पहले वहां शिवलिंगम के दर्शन किए थे। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं। बृंगेश सहिंता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में इस का बराबर उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है जहां तीर्थयात्रियों को श्री अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनन्तनया (अनन्तनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग) 3454 मीटर, पंचतरंगिनी (पंचतरणी) 3845 मीटर और अमरावती शामिल हैं। कल्हण की राजतरंगिनी तरंग द्वितीय में कश्मीर के शासक सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वी) का एक आख्यान है। वह शिव का एक बड़ा भक्त था जो वनों में बर्फ के शिवलिंग की पूजा किया करता था। बर्फ का शिवलिंग कश्मीर को छोड़कर विश्व में कहीं भी नहीं मिलता। कल्हन ने यह भी उल्लेख किया है कि अरेश्वरा (अमरनाथ) आने वाले तीर्थयात्रियों को सुषराम नाग (शेषनाग) आज तक दिखाई देता है। नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गए उल्लेख से पता चलता है कि इस तीर्थ के बारे में छठी-सातवीं शताब्दी में भी जानकारी थी। कश्मीर के महान शासकों में से एक था जैनुलबुद्दीन (1420-70 ईस्वी) जिसे कश्मीरी लोग प्यार से बादशाह कहते थे। उसने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। इस बारे में उसके इतिहासकर जोनरजा ने उल्लेख किया है। अकबर के इतिहासकर अबुल पएजल (16वीं शताब्दी) ने आइन-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा कर के 15 दिन तक रोजाना बढता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने सोचा कि बर्फ का लिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनन्द लिया है। अमरनाथ तीर्थयात्रियों की ऐतिहासिकता का समर्थन करने वाले इतिहासकारों का कहना है कि कश्मीर घाटी पर विदेशी आक्रमणों और हिन्दुओं के वहां से चले जाने से उत्पन्न अशांति के कारण 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग तीन सौ वर्ष की अवधि के लिए यात्रा बाधित रही। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 1869 के ग्रीष्म काल में गुफा की फिर से खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थ यात्रा तीन साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी। इस तीर्थयात्रा में मलिक भी साथ थे। कश्मीर घाटी में पिछले दो दशकों के दौरान आतंकवाद के बावजूद अमरनाथ यात्रा निर्बाध जारी है। 

अमरनाथ जाने के लिए हैं दो रास्ते
जम्मू-काश्मीर में प्रकृति की देन है अमरनाथ गुफा। भगवान शिव को समर्पित यह गुफा 12,756 फीट की उंचाई पर सिथत है। यह श्रीनगर से 141 किमी दूर है। बाबा अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बलटाल पहुंचना होता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है। पहलगाम से अमरनाथ जाने का रास्ता सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है, लेकिन यह मार्ग पार करना मुश्किलभरा होता है। इसी वजह से अधिकतर यात्री पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाते हैं। हालांकि पवित्र गुफा सिंध घाटी में सिंध नदी की एक सहायक नदी अमरनाथ (अमरावती) के पास स्थित है तथापि इस तक परम्परागत रूप से बरास्ता लिदर घाटी पहुंचा जाता है। श्रध्दालु इस मार्ग पर दक्षिण कश्मीर में पहलगांव से होकर पवित्र गुफा पहुंचते हैं और चंदनवाड़ी, पिस्सू घाटी, शेषनाग और पंचतरनी से गुजरते हुए लगभग 46 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। एक और छोटा रास्ता श्रीनगर -लेह राजमार्ग पर स्थित बालताल से है। यह मात्र लगभग 15 किलोमीटर है और इसमें कुछ क्षेत्र सीधी चढाई और गहरी ढलान वाले हैं। अतीत में यह मार्ग ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत में प्रयोग में आता था लेकिन कभी-कभी बर्फ के पिघलने के कारण इस मार्ग का प्रयोग असंभव हो जाता था। लेकिन समय के बीतने के साथ परिस्थितियों में सुधार हुआ है और दोनों ही मार्गों पर यात्रा काफी आसान हो गई है। बालटाल के रास्ते में पड़ने वाले बराड़ीतक का 14 किमी का मार्ग सुरक्षित नहीं है। नीचे उन्माद से परिपूर्ण विकराल रूप धारण किये सिन्धु नदी और ऊपर कच्ची पहाडि़यां। इस पहाड़ी से पत्थर गिर कर (विशेष कर बारिस में) कब इहलीला समाप्त कर दे या पांव फिसल कर नीचे नदी अपने आगोश में ले ले, सब भगवान भरोसे है। 

कुछ जरुरी सुझाव 
यात्रा से पहले श्राइन बोर्ड के तरफ से कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती है, जिसमें श्राइन बोर्ड के तरफ से दो फार्म भर कर जे.एंड.के बैंक या अन्‍य बैंकों में जमा करना होता है। पहला फार्म-ए एक आवेदन के रूप में होता है, जिस पर एक पासपोर्ट आकार का रंगीन फोटो लगाना होता है और दूसरा फार्म यात्रा परमिट का होता है जिसमें तीन भाग होते हैं। उन तीनों पर भी पासपोर्ट आकार के फोटो लगाने होते हैं। इसका एक भाग चंदनवारी प्रवेश द्वार पर, दूसरा पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर तथा तीसरा भाग पूरी यात्रा के दौरान अपने पास पहचान पत्र के रूप में रखना होता है। आजकल इंटरनेट की सुविधा होने के कारण ये औपचारिकताएं भी ऑन-लाइन संभव है। औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सफर की शुरुवात होती है। यात्रा के वक्त साथ में एक जोड़ी जूता, 4 से 5 किलोमीटर चलने का अभ्‍यास, टार्च, चश्‍मा, बरसाती, गर्म ट्रैकशूट, पैजामी, बनियान, एक जोड़ी कपड़ा दर्शन हेतु, दस्‍ताना, सनस्‍क्रीन लोशन, वैसलिन, कोल्‍ड क्रीम, ग्‍लूकोज, काली मिर्च पाउडर, काला नमक, भूने चने, ड्राई फ्रुट, चाकलेट, नींबू कुछ जरूरी दवाएं जैसे बुखार, उल्‍टी, दस्‍त, चक्‍कर, घबराहट, आदि के उपचार हेतु रखना चाहिए। हालांकि रास्‍ते के मनोरम प्राकृतिक दृश्‍यों, झरनों, झील व पहाड़ आदि यात्रियों की थकान मिटाने में सहायक होते हैं। बर्फ के बने रास्‍तों पर डंडे के सहारे चलना एक अलग ही आनंद का एहसास कराता है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरा एवं सड़क के किनारे लिद्दर नदी बलखाती हुई पहलगाम के सुंदरता में चार चांद लगाती है। 

कई तीर्थ स्थलों को नष्ट किया जा चुका है
कहते है कश्मीर में असंख्य तीर्थ थे, जिनमें से अधिकतर का मुगल काल में अस्तित्व मिटा दिया गया। फिर भारत पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान द्वारा अधिकृत किए गए कश्मीर के सभी तीर्थों को नष्ट कर दिया गया, ‍जो सभी शिव से जुड़े थे। इन सभी में अमरनाथ का अधिक महत्व है। उदाहर के तौर पर जम्मू में एक नगर है अवंतीपुर। किसी समय यह नगर कश्मीर की राजधानी था, राजा अवंती वर्मन के नाम पर बसाया गया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहां के प्रसिद्ध मंदिर को जमीन से खोदकर निकाला है, जिसकी छटा ध्वस्त हो चुकी है। परंतु 700-900 वर्ष पुराना यह मंदिर अपने काल की समृद्धि, उत्कृष्ट कला कौशल तथा स्थापत्य को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त है।

पहलगाम 
प्रकृति की गोद में बसे पहलगाम से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होती है। कहा जाता है कि पहलगाम से पवित्र गुफा तक का मार्ग संसार की सुंदरतम पर्वत मालाओं का मार्ग है जो अक्षरशः सत्य है। इसमें हिमानी घाटियां, ऊंचाई से गिरते जलप्रपात,बर्फ से ढके सरोवर, उनसे निकलती सरिताएं, फिर उन्हें पार करने के लिए प्रकृति द्वारा निर्मित बर्फ के पुल। यात्री इन सब को मंत्रमुगध होकर देखते हैं और वातावरण में अजीब सी शांति महसूस करते हंै। अठखेलियां करती लिद्दर नदी के किनारे बसा एक छोटा सा कस्बा पहलगाम के नाम से जाना जाता है। यहीं से यात्रा के लिए आवश्यक उचित सामान मूल्य या किराए पर मिल जाता है। टैंटों, खच्चर, पालकी तथा पिट्ठू का इंतजाम भी यहीं से हो जाता है जिनका सरकारी तौर पर दाम होता है। वैसे तो रास्ते में स्वयंसेवी संगठनों द्वारा लंगर लगाए गए होते हैं, फिर भी यात्रियों को अपने साथ कुछ जलपान का सामान ले जाना चाहिए। पहलगाम से श्रावण पूर्णिमा से तीन दिन पहले, शिव की प्रतीक पवित्र छड़ी के नेतृत्व में ढोल-ढमाकों, दुदुंभियों और ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष के बीच साधु-संतों की टोलियों के साथ यात्री अगले पड़ाव चंदनवाड़ी की ओर बढ़ते हैं। यह पहलगाम से 16 कि.मी. दूर है। चंदनवाड़ी 9500 फुट की ऊंचाई पर पहाड़ी नदियों के संगम पर एक सुरम्य घाटी है और लिद्दर नदी पर बना बर्फ का पुल आकर्षण का मुख्य केंद्र होता था लेकिन अब अधिक तापमान के कारण उसके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। यहीं पर जलपान करके तथा थोड़ा विश्राम करके आगे की कठिन चढ़ाई ‘पिस्सू घाटी’ की ओर बढ़ा जाता है। पहलगाम से चंदनवाड़ी कार या टैक्सी में एक घंटे के भीतर पहुंचा जा सकता है। चंदनवाड़ी से 13 कि.मी. दूर है शेषनाग। पिस्सू टाप की कठिन चढ़ाई पार कर जोजापाल नामक चरागाह से गुजरते हुए लिद्दर के किनारे चलते हुए शेषनाग पहुंचा जा सकता है। यहां पर झील का सौंदर्य अद्भुत है। 12200 फुट की ऊंचाई पर हिमशिखरों के बीच घिरी यह हिम से आच्छादित झील, लिद्दर नदी का उद्गम स्थल है। यहां रात्रि को लोग विश्राम करके आगे की यात्रा आरंभ करते हैं। 

13 कि.मी. दूर पंजतरणी की ओर से यात्रा का दूसरा व दुर्गम चरण आंरभ होता है। फिर से शुरू होती है एक और कठिन चढ़ाई महागुनस शिखर की जो 14800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस शिखर पर आक्सीजन की कमी है क्योंकि अमरनाथ यात्रा के दौरान यही शिखर सबसे ऊंचा है। आक्सीजन की कमी के कारण सांस फूलता है। हालांकि स्थान-स्थान पर चिकित्सा सहायता भी उपलब्ध रहती है। शिखर पर चढने के उपरांत पोशपथरी को पार करके 12500 फुट की ऊंचाई पर भैरव पर्वत के दामन में है पांच नदियां अर्थात पंजतरणी। यहां पर यात्री रात को विश्राम करते हैं और प्रातःकाल गुफा की ओर बढ़ते हैं जो पंजतरणी से मात्र 6 कि.मी. की दूरी पर है। पंजतरणी से गुफा तक के मार्ग में पुनरू दुर्गम चढ़ाई का सामना करना पड़ता है। रास्ता भयानक भी है और सुंदर भी। पगडंडी से नीचे नजर जाते ही खाइयों में बहती हिम नदी को देख कर डर लगता है। फिर एक मोड़ पर गुफा का दूर से दर्शन होने पर लोग उत्साहित हो जय-जयकार करते बर्फ के पुल को पार करके पहुंचते हैं पवित्र गुफा के नीचे बहती अमर गंगा के तट पर। यहीं से स्नान करके लोग उस पवित्र गुफा में जाते हैं। लगभग 100 फुट चैड़ी तथा 150 फुट लंबी गुफा में प्राकृतिक पीठ पर हिम निर्मित शिवलिंग के दर्शन पाकर लोग अपने आप को धन्य समझते हैं। यही हिमलिंग तथा लिंगपीठ ठोस बर्फ का होता है जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही मिलती है।

पंजतरणी से पवित्र अमरनाथ गुफा 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गुफा दिखते ही यात्रियों में इतना जोश भर जाता है कि वे ‘जय भोलेनाथ’ के जयकारे लगाते हुए बर्फ के पुल को पार करते हैं व गंगा के तट पर पहुंचते हैं। यहां तीर्थयात्री गंगा में स्नान कर लगभग 100 फुट चैड़ी तथा 150 फुट लंबी पवित्र गुफा में प्राकृतिक हिम निर्मित शिवलिंग के दर्शन करने जाते हैं। हालांकि गुफा से बाहर चारों तरफ सफेद कच्ची बर्फ ही नजर आती है लेकिन शिवलिंग ठोस बर्फ से बना दिखायी देता है। इस तरह भाग्यशाली तीर्थयात्री भगवान अमरनाथ के पावन दर्शन कर अलौकिक आनंद का अनुभव कर अपने को धन्य समझते हैं। लौटते समय यात्रीगण गुफा में से पवित्र सफेद भस्म अपने शरीर पर मलकर हर-हर-महादेव उच्चारते हुए पुनः अपने-अपने स्थान पर लौटने लगते हैं। यात्रा समाप्ति से पूर्व गुफा में रहने वाले कबूतरों को देख यात्री ‘जय’ शब्द अवश्य उच्चारित करते हैं, जो शिव स्वरूप हो जाते हैं। ये शिवगण कबूतर यात्रियों के ‘विघ्रहरण’ माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर गुफा स्थित होकर इन कबूतरों को बिना देखे जो नीचे उतरता है, उन्हें ‘तीर्थद्रोह’ का पाप लगता है व उनकी यात्रा अधूरी समझी जाती है। अमरनाथ की पवित्र यात्रा जुलाई से अगस्त के अंतिम सप्ताह तक जारी रहती है लेकिन श्रावण मास की यात्रा को ही सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। अमरनाथ की यात्रा के दौरान प्रशासन व कई सेवा मंडल यात्रियों के लिए लंगर व ऊनी कपड़ों की भी व्यवस्था करते हैं।

डल झील का सौन्दर्य 
डल झील, कश्‍मीर में दूसरी सबसे बड़ी झील है। इसे श्रीनगर का गहना या कश्मीर के मुकुट के नाम से जाना जाता है। या यूं कहे डल झील चलती-फिरती एक शाॅपिंग मार्केट है। यह सुरम्‍य झील 26 वर्ग किमी. के बड़े क्षेत्र में फैली हुई है जो श्रीनगर आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्‍य केंद्र है। हिमालय की तलहटी में स्थित इस झील को यहां पर शिकारा यानि लकड़ी की नाव और हाउसबोट के लिए काफी जाना जाता है। हाउसबोट से डल झील की प्‍यारी सी सैर की जाती है जबकि शिकारा से डल झील और हाउसबोट तक आने जाने की सवारी की जाती है। डल झील, कॉजवे के कारण 4 प्रमुख बेसिन में बंट जाता है जिन्‍हे लोकुट डाल, गागरीवाल, बोद डाल और नागिन के नाम से जाना जाता है। डल झील की असमान प्राकृतिक सुंदरता और प्राकृतिक परिवेश ही इसे पर्यटकों की पहली पसंद और आर्दश गंतव्‍य स्‍थल बना देता है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। शिकारे के माध्यम से सैलानी नेहरू पार्क, कानुटुर खाना, चारचीनारी, कुछ द्वीप जो यहां पर स्थित हैं, उन्हें देख सकते हैं। 

छड़ी मुबारक
अमरनाथ यात्रा ‘छड़ी मुबारक’ के साथ चलती है, जिसमें यात्री एक बहुत बड़े जुलूस के रूप में अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। इसमें अनगिनत साधु भी होते हैं, जो अपने हाथों में त्रिशूल और डमरू उठाए, ’बम-बम भोले तथा जयकारा वीर बजरंगी-हर हर महादेव’ के नारे लगाते हुए बड़ी श्रद्धा तथा भक्ति के साथ आगे-आगे चलते हैं। ‘छड़ी मुबारक’ हमेशा श्रीनगर के दशनामी अखाड़ा से कई सौ साधुओं के एक जुलूस के रूप में 140 कि.मी. की विपथ यात्रा पर रवाना होती थी, जिसका प्रथम पड़ाव पम्पोर में, दूसरा पड़ाव बिजबिहारा में और अनंतनाग में दिन को विश्राम करने के बाद सायं को मटन की ओर रवाना होकर रात का विश्राम करके दूसरे दिन प्रातः एशमुकाम की ओर चल पड़ती थी। जब से आतंकवाद की छाया कश्मीर पर पड़ी है तभी से ‘छड़ी मुबारक’ की शुरुआत जम्मू से की जाती रही है और दशनामी अखाड़ा तथा अन्य पड़ावों पर इसके विश्राम मात्र औपचारिकता बन गए थे लेकिन गत वर्ष से यह पुनः अपनी पुरानी परंपरा के मुताबिक चल रही है। पहले यह छड़ी पहलगाम पहुंच कर दो दिन विश्राम करती थी, जहां से हजारों की संख्या में यात्री इसके साथ गुफा की यात्रा के लिए आगे बढ़ते थे लेकिन अब यह पहलगाम में इतनी देर नहीं रुकती। बल्कि आज जब तक कि यह छड़ी गुफा तक पहुंचती है, यात्री छड़ी से पहले ही अपनी यात्रा आरंभ करके वापस भी लौट आते हैं।

हेलिकॉप्टर सेवा 
हेलिकॉप्टर सेवा सस्ती की गई है। बालटाल-पंचतरनी-बालटाल के लिए एक साइड के 1445 रुपए और पहलगाम-पंचतरनी-पहलगाम 2355 रुपए में बुकिंग करवा सकते हैं। 2 से 12 वर्ष के बच्चों को आधा किराया लगेगा। 


सुरेश गांधी 
लेखक आज तक टीवी न्यूज चैनल से संबंद्ध है 


'समानता'की पक्षधर हैं विद्याबालन

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vidya balan
मनोरंजन जगत में कुछ ऐसे चुनिंदा कलाकार है जो किरदारों को परिभाषित नहीं, बल्कि चरित्र को पूरी संजीदगी से जीते हुए उनको एक नयी परिभाषा दे देतें हैं और विद्या बालन उनमे से एक हैं।वह चमत्कारिक रूप से एक लंबे समय से निरंतर यही विधा अपनाई हुई है।उन्होंने जो भी किरदार निभाया है वो सदा के लिए अमर हो गया है और शायद इसीलिये विद्या के व्यक्तित्व में एक जादुई अनूठी छाप देखते ही बनती है। चाहे उनका फ़िल्म 'कहानी'का मार्मिक किरदार हो या फ़िल्म 'डर्टी पिक्चर'में सफलता के पीछे दीवानी सिल्क स्मिता का चरित्र, प्रतिभावान विद्या ने हमेशा से ही सामाजिक अतिक्रमण के खिलाफ आवाज़ उठायी है। एक अत्यंत प्रभावशाली आभावान् इस अभिनेत्री ने न केवल फिल्मों में वरन् वास्तविक ज़िन्दगी में भी समानता ले लिए बहुत कार्य किये हैं।

वर्ष 2015 उनके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष वह फ़िल्म जगत में अपने सफल कैरियर के 10 साल पूरे कर रहीं हैं। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वो निरंतर भारतीय सिनेमा को पूरी दुनिया में फ़ैलाने के लिए खुद को सदैव् लगाये रखेंगी।  2012 में शुरू हुए इंडियन फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ़ मेलबोर्न के मुख्य चेहरे के रूप में देखे जाने वाली विद्या बालन लगातार चौथे वर्ष भी इस आयोजन का  मुख्य आकर्षण होंगी। 14 से 27 अगस्त 2015 तक ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न शहर में होने वाले इस फेस्टिवल में भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा रहा है। इस वर्ष इस फेस्टिवल की थीम 'समानता'है जिसे खुद विद्या बालन ने ही सुझाया है।यह फेस्टिवल भावी फिल्मकारों के लिए एक ऐसा अवसर है जहाँ वो अपनी प्रतिभा का खुलकर प्रदर्शन कर सकते है।

इस बारे में विद्या का कहना है कि आज के समय में स्वतंत्र और समान दुनिया की परिकल्पना से ज़्यादा ज़रूरी शायद ही कुछ और हो सकता है और समानता एक ऐसा विषय है जिसे लेकर वह हमेशा से ही अत्यधिक उत्साही रहीं हैं। उन्हें यह विश्वास है कि कला और फिल्में, परिस्थितियों, द्रष्टिकोणों और मानसिकताओं को बदलने का वजूद रखती हैं और वह बेहद खुश हैं कि इस तरह की शानदार फिल्में और कार्यक्रम इस आयोजन में प्रदर्शित होने जा रहे हैं जिसके माध्यम से उन सभी विभिन्नताओं का खुले दिल से स्वागत किया जा सकता है, जो कहीं न कहीं हम सभी को परिभाषित करती है।

आलेख : सांसदों के वेतन की तटस्थ समीक्षा जरूरी

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सांसदों के वेतन और भत्तों के लिये बनी संसदीय समिति ने जो सिफारिशें की हैं, उन्हें सरकार ने पूरी तरह मानने से इन्कार कर दिया। इन सिफारिशों के अनुसार सांसदों का वेतन एवं भत्तों की राशि लगभग डबल होने जा रही थी। भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने लम्बी सिफारिशें की हैं, जिनमें से सांसदों का दैनिक भत्ता 2000 से 5000 रुपये करने, उनकी हवाई यात्रा 34 से बढ़ाकर 48 करने, पूर्व सांसदों को मुफ्त हवाई यात्रा, विवाहित बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा देने जैसी सिफारिशों पर सरकार ने विचार करने से ही मना कर दिया है। सरकार कुछ और भी सिफारिशें स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। इनमें सभी राज्यों की राजधानी में सांसदों की यात्रा के दौरान सरकारी वाहन और गेस्ट हाउस की सुविधा, सांसदों के सहचर को ट्रेन में प्रथम श्रेणी एसी की सुविधा, सांसदों को विदेश यात्रा के दौरान स्थानीय टेलीफोन की सुविधा, टोल केंद्रों पर छूट और रोजमर्रा के सामान की खरीद के लिए कैंटीन सुविधा उपलब्ध कराने जैसी सिफारिशें शामिल हैं। यहां प्रश्न सांसदों को मिलने वाली सुविधा, वेतन एवं भत्तों के सन्दर्भ में मीडिया में नकारात्मक वातावरण का है तो समिति की अतिरंजित सिफारिशों का भी है। समिति इन अतिश्योक्तिपूर्ण सिफारिशों से बच सकती थी और उसे बचना भी चाहिए था। देश में ज्यादा लोकतांत्रिक और समानतामूलक तंत्र बनाने की कोशिश होनी चाहिए। वैसे भी, इंगलैण्ड एवं ब्रिटेन जैसे समर्थ एवं विकसित राष्ट्र में सांसदों को मिलने वाले वेतन एवं भत्तों या अन्य सुविधाओं की तुलना से बचना चाहिए। क्योंकि वहां प्रति व्यक्ति आय और हमारे यहां की प्रति व्यक्ति आय में बहुत अन्तर है। आज जबकि हमारा राष्ट्र विकास की ओर डग भरने की कोशिश करने की मुद्रा में दिखाई दे रहा है, तब देश को एक सशक्त वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता है। खर्च पर प्रतिबन्ध हो। फिजूलखर्ची एवं सुविधा के खर्च रोक दिए जायें।

राजनीति भ्रष्टाचार एवं घोटालों की लम्बी काली रात से बाहर निकलने का जब हम प्रयास कर रहे हैं, तब हमें इस बात पर गंभीरता से चिन्तन करना चाहिए कि हमारे जन-प्रतिनिधि किस तरह से लोकतंत्र को मजबूती दें, राजनीति में व्याप्त अनगिनत समस्याएं राष्ट्रीय भय का रूप ले चुकी हैं। आज व्यक्ति बौना हो रहा है। परछाइयां बड़ी हो रही हैं। अन्धेरों से तो हम अवश्य निकल जाएंगे क्योंकि अंधेरों के बाद प्रकाश आता है। पर व्यवस्थाओं का और राष्ट्र संचालन में जो अन्धापन है वह निश्चित ही गढ्ढे मंे गिराने की ओर अग्रसर है। अब हमें गढ्ढे में नहीं गिरना है, एक सशक्त लोकतंत्र का निर्माण करना है। 

आज देश के आम आदमी को सांसदों के वेतन बढ़ने, उनको मिलने वाली सुविधाओं के विस्तार से कोई मतलब नहीं है और ऐतराज भी नहीं है। उसकी अपनी मुश्किलें कम हों, इसमें दिलचस्पी है। उसकी छोटी-छोटी आवश्यकतायंे पूरी हों। विलम्ब न हो। विलम्ब के कारण आज वह थक चुका है, लम्बी योजनाओं से, आंकड़ों से वह तत्काल सुधार, सुविधा चाहता है, जिसके कारण हताश होकर बार-बार सरकारें बदल देता है। चुनाव के समय उससे जो वायदें किये जाते हैं, जो सपने उसे दिखाएं जाते हैं, जो आश्वासन उसे दिये जाते हैं, वे पूरे होना उसके लिये प्राथमिकता है। 

कभी-कभी ऊंचा उठने और भौतिक उपलब्धियों की महत्वाकांक्षा राष्ट्र को यह सोचने-समझने का मौका ही नहीं देती कि कुछ पाने के लिए उसने कितना खो दिया? और जब यह सोचने का मौका मिलता है तब पता चलता है कि वक्त बहुत आगे निकल गया और तब राष्ट्र अनिर्णय के ऊहापोह में दिग्भ्रमित हो जाता है। सांसदों को मिलने वाले वेतन पर गंभीरता से चिन्तन होना चाहिए। क्योंकि सांसदों को संसद सत्र के दौरान जो भत्ता मिलता है, वह भी तभी जायज माना जा सकता है, जब सांसद संसदीय काम को गंभीरता से लें और संसद में बहस व चर्चा करें। हमने देखा है कि संसद के कई सत्रों में पूरे-पूरे सत्र में कोई कामकाज नहीं होता, सिर्फ हंगामा होता रहा। सांसद अपना वेतन जरूर बढवाएं, लेकिन जवाबदेही भी बढाएं। सांसद अपने क्षेत्रों में जो काम करते हैं, उसके लिये भी सुविधाओं की मांग करें, लेकिन वे वहां काम करते दिखने भी चाहिए। 

सांसदों के वेतन के प्रश्न पर अक्सर सुना जाता है कि भारत में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों का वेतन यूरोप ही नहीं, एशिया के ही कई देशों की तुलना में काफी कम है। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में ही सांसदों का वेतन ज्यादा है। ब्रिटेन में सांसदों का वेतन हर साल बढता है और कभी-कभी तो साल में दो बार भी बढ जाता है। वर्तमान में उनका वेतन सालाना करीब 74 लाख रुपए, यूएस में करीब 45 लाख, कनाडा में करीब 36 लाख रुपए के बराबर वेतन और अधिक सुविधाएं उपलब्ध है। फ्रांस और जापान ने तय किया है कि सांसदों का वेतन किसी भी कीमत पर सर्वाधिक वेतन पाने वाले नौकरशाहों से अधिक ही होगा। जर्मनी में वहां का कानून कहता है कि सांसदों को इतना वेतन दिया जाए कि वे अपने तमाम कार्य आसानी से पूरे कर सके और उन्हें कभी भी पैसे की किल्लत न हो। स्विटरलैंड में सांसदों को वेतन या भत्ते नहीं दिए जाते। जो सांसद किन्हीं कंपनियों में नौकरी करते हंै, उन्हें वहां से सवैतनिक अवकाश देने का चलन है। मैक्सिको में संसद सदस्य शानदार वेतन पाते है, लेकिन वे और कोई भी नौकरी, धंधा नहीं कर सकते। इन स्थितियों के बीच भारतीय सांसदों का वेतन बढ़ना ही चाहिए, लेकिन उसकी कुछ सीमाएं निश्चित होनी चाहिए। सबसे जरूरी बात यह है कि राजनीति सेवा का उपक्रम है, अतः सेवा की भावना जरूरी है। जो सांसद बड़े व्यवसायी है, अन्यत्र से उनके आर्थिक स्रोत हैं, उन्हें कैसे बढ़-चढ़कर वेतन एवं सुविधा देने की बात की जा सकती है? हमारे राजनीतिक जीवन में भ्रष्टाचार बहुत है, इसलिए लोग यह भी मानते हैं कि सांसदों की भ्रष्टाचार की कमाई इतनी होती है कि उन्हें ज्यादा वेतन की जरूरत नहीं है। लेकिन इसके साथ यह भी सही है कि बहुत सारे जन-प्रतिनिधि भ्रष्ट नहीं हैं। भारत में जन-प्रतिनिधियों से जिन-जिन कार्यों की अपेक्षा की जाती है और उनसे जुडे़ जो संभावित खर्चे हैं वे अपर्याप्त वेतन एवं सरकार से मिलने वाले लाभों से संभव है। अगर सांसद अपना पैसा बढ़ाने के साथ पारदर्शिता और जवाबदेही का भी ख्याल रखें, तो लोगों को यह वेतन-वृद्धि भी जायज लग सकती है।

यह भी दलील दी जाती है कि भारत में प्रशासनिक सेवाओं से जुडे़ अधिकारियों का वेतन और भत्ते हमारे सांसदों से ज्यादा है। कुछ प्रमुख पदों पर बैठे इन अधिकारियों की सुविधाएं बेहिसाब है। लेकिन इन अधिकारियों के लिये यह भी नियम है कि अन्यत्र से किसी भी रूप में कोई आय का साधन नहीं रखेंगे। सांसदों के लिये भी यह नियम बनना जरूरी है कि वे सरकार से मिलने वाले वेतन एवं सुविधाओं के अलावा अन्यत्र व्यवसाय या दूसरे माध्यमों से कोई आर्थिक लाभ नहीं लेंगे। ऐसी स्थिति में ही सांसदों के वेतन, भत्ता एवं सुविधाओं को यथार्थपरक बनाना उचित होगा। हमारे सांसद ईमानदार बने रहें, इसके लिए जरूरी है कि उनका वेतन इतना तो हो कि वे अपने दैनंदिन खर्चों एवं परिवार के खर्चों की चिन्ता से मुक्त होकर देश सेवा को तत्पर रहे। सांसदों को बेहतर वेतन मिले, तो ही हम उनसे उम्मीद कर सकते है कि वे बेईमानी का दामन न पकड़े।

संासदों को मिलने वाले वेतन एवं भत्तों से जुड़ा यह सवाल चिन्तनीय हैं कि सांसदों के वेतन तय करने का अधिकार सांसदों को ही क्यों हो? जो लोकतांत्रिक व्यवस्था का सिद्धांत है, उसके मुताबिक गणतंत्र के किसी संस्थान के बारे में इस तरह के फैसलों में निष्पक्ष और जानकार लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। सामान्य बात यह है कि किसी को भी जब अपनी तनख्वाह खुद तय करने का अधिकार नहीं है, तो सांसदों को क्यों हो? क्यों न ऐसी समिति में सांसदों के अलावा आर्थिक मसलों के विशेषज्ञ लोगों, प्रतिष्ठित न्यायविदों, कार्यपालिका के सेवानिवृत्त अधिकारियों और नागरिकों को भी जगह दी जाए? इससे यह पूरा कामकाज पारदर्शी हो जाएगा और यह भी आरोप नहीं लगेगा कि सांसद खुद ही वेतन की पैरवी कर रहे हैं। 

राजनीतिक सुधार तब तक प्रभावी नहीं हांेगे, जब तक उपदेश देने वाले स्वयं व्यवहार में नहीं लायंेगे। सुधार के नाम पर जब तक लोग अपनी नेतागिरी, अपना वर्चस्व व जनाधार बनाने में लगे रहेंगे तब तक लक्ष्य की सफलता संदिग्ध है। भाषण और कलम घिसने से सुधार नहीं होता। सुधार भी दान की भांति घर से शुरू होता है, यह स्वीकृत सत्य है। स्थितियां अत्यंत शोचनीय है। खतरे की स्थिति तक शोचनीय है कि आज तथाकथित नेतृत्व दोहरे चरित्र वाला, दोहरे मापदण्ड वाला होता जा रहा है। उसने कई मुखौटे एकत्रित कर रखे हैं और अपनी सुविधा के मुताबिक बदल लेता है। यह भयानक है। राजनीतिक सुधार के नाम पर जब भी प्रस्ताव पारित किए जाते हैं तो स्याही सूखने भी नहीं पाती कि खरोंच दी जाती है। आवश्यकता है एक सशक्त मंच की। हम सबको एक बड़े संदर्भ में सोचने का प्रयास करना होगा। तभी लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।

जिस प्रकार युद्ध में सबसे पहले घायल होने वाला सैनिक नहीं, सत्य होता है, ठीक उसी प्रकार प्रदर्शन और नेतृत्व के दोहरे किरदार से जो सबसे ज्यादा घायल होता है, वह है राजनीति की व्यवस्था और राजनीतिक चरित्र। सांसदों के वेतन के निर्णय पर हमें तटस्थ समीक्षा करनी होगी और उसे यथार्थपरक बनाना होगा।



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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

विशेष आलेख : व्यापम घोटाले में अब एक पत्रकार की भी बलि

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akshay singh
मध्य प्रदेश के व्यवसायिक परीक्षा मंडल से जुड़े लोगों की एक के बाद एक मौत से यह मामला बेहद सनसनीखेज हो गया है और पुराने जमाने की गुमनाम जैसी किसी मिस्ट्री फिल्म की याद जगा रहा है। कहा जाता है कि कई बार वास्तविक घटनाएं किसी भी उपन्यास और फिल्म से ज्यादा रहस्यपूर्ण होती हैं और इस मामले में तो यह बात पूरे दावे के साथ कही जा सकती है।

मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से जुड़े पच्चीस लोगों की मौत अब तक हो चुकी है। इनमें से किसी की मौत स्वाभाविक या सामान्य नहीं है। शनिवार को झाबुआ जिले में आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत इस मामले में सर्वाधिक सनसनीखेज है। वे मीडिया के बेहद ताकतवर मंच से जुड़े थे। इससे यह मामला अनदेखा नहीं होगा। इसमें अभी मध्य प्रदेश सरकार और भारतीय जनता पार्टी को बहुत कुछ झेलना पड़ेगा। मध्य प्रदेश का व्यवसायिक परीक्षा मंडल प्रीमेडिकल टेस्ट और प्रीइंजीनियरिंग टेस्ट के अलावा तमाम सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाएं संचालित करता है। इसमें कैसी जालसाजी चल रही थी इसका पर्दाफाश शायद आसानी से नहीं होता लेकिन यह घोटाला उस समय सतह पर आ गया जब प्रीमेडिकल टेस्ट की परीक्षा में वास्तविक परीक्षार्थी की जगह पेपर दे रहे दूसरे लोग संयोग से पकड़ लिए गए। इसकी जांच आगे बढ़ी तो न जाने कितनी पर्तें खुलने लगी। बड़े-बड़े कोचिंग संचालक और डाक्टर इसमें जेल जा चुके हैं। मध्य प्रदेश के एक मंत्री को भी जेल की हवा देखनी पड़ी है। हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह इसके तार कहां तक जुड़े हैं यह छोर बावजूद इसके अभी तक हाथ नहीं लग पाया है।

इसे लेकर राजभवन पर तो उंगलियां उठ ही चुकी हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी संदेह के घेरे में लाए जा रहे हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया था कि जांच में आए तथ्यों में हेराफेरी कराके शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जगह उमा भारती का नाम जुड़वा दिया है। शिवराज सिंह इसका पुरजोर खंडन कर चुके हैं। उमा भारती के इस्तीफा देने के बाद अचानक उनकी जगह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने निश्चित रूप से प्रशासनिक कुशलता को साबित किया है और इसी वजह से उमा भारती का अस्तित्व मध्य प्रदेश में समाप्त हो गया। कांग्रेस भी जोर लगाने के बावजूद सत्ता में वापसी नहीं कर पा रही है। उन्होंने बिजली सड़क आदि के क्षेत्र में ढांचागत सुधार में जो उपलब्धियां हासिल की उसकी तारीफ अन्य जगह भी होती है। इसी कारण लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट होने के बावजूद शिवराज सिंह ने यह जताने की कोशिश की थी कि मध्य प्रदेश में भाजपा को वोट नरेंद्र मोदी के नाम पर नहीं उन्हीं के नाम पर मिलेंगे। लोकसभा चुनाव के पहले सदन का आगामी स्वरूप जिस तरह होने का अनुमान किया जा रहा था उसे देखते हुए भाजपा में भी कई लोग सत्ता हथियाने की घात अपने-अपने तरीके से लगाए बैठे थे जिनमें शिवराज सिंह भी थे। यह दूसरी बात है कि भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल गया और नरेंद्र मोदी इसकी वजह से पार्टी के एक छत्र नेता के रूप में स्थापित हो गए। नतीजतन शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी चादर समेट लेने में ही गनीमत समझी।

पर शिवराज सिंह के व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष यह भी है कि कुछ वर्षों से उनका नाम कई कलंक कथाओं से भी जुडऩे लगा है। मुरैना में बालू माफियाओं द्वारा एक आईपीएस अफसर की कुचलकर हत्या के मामले से उजागर हुआ कि शिवराज सिंह के राज में किस तरह से अवैध खनन हो रहा है और इसे कराने वाली लाबी कितनी ताकतवर हो चुकी है। अगर यह मामला उत्तर प्रदेश में होता तो अखिलेश सरकार की खाट खड़ी हो गई होती। इससे छोटे मामलों में राज्य की मीडिया ने अखिलेश सरकार की बखिया उधेडऩे में कसर नहीं छोड़ी। उत्तर प्रदेश में मीडिया ज्यादा जागरूक है और साहसी भी जबकि मध्य प्रदेश में मीडिया का अधिकांश हिस्सा शिवराज सिंह और भाजपा के प्रति भक्तिभाव में डूबा हुआ है इसलिए वहां बड़े-बड़े मामले भी मीडिया में ज्यादा तूल नहीं पकड़ पाते। नियुक्तियों तबादलों में शिवराज सिंह की मैडम का दखल भी मध्य प्रदेश में पर्याप्त चर्चा का विषय हो चुका है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के आरोपों को विपक्ष का प्रलाप कहकर शिवराज सिंह को एकदम क्लीन चिट देना संभव नहीं है।

फिर भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि क्या व्यापम घोटाले के तार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से जुड़े हुए हैं लेकिन इतना जरूर है कि जिस तरह से इस मामले के सबूतों को नष्ट करने और इसका पूरा राजफाश होने से रोकने के लिए कई लोगों को ठिकाने लगाया जा चुका है उससे यह तो साबित हो ही जाता है कि इसमें पर्दे के पीछे कोई बहुत बड़ा मास्टर माइंड है। उसके पास सत्ता भी है और आपराधिक क्षेत्र के धुरंधर भी। जिन लोगों की मौतें हो रही हैं उन्हें हत्या भी साबित नहीं किया जा सकता लेकिन वे मौतें सामान्य भी नहीं हैं इसलिए अगर इसकी सीबीआई जांच की मांग की जा रही है तो कोई अनुचित नहीं है। इस मामले की जांच से जुड़े एसटीएफ के दो अफसर तक शिकायत कर चुके हैं कि उन्हें फोन पर धमकियां मिली हैं। इसका मतलब यह बेहद संगीन मामला है। इस कारण सीबीआई भी नहीं इससे जुड़े लोगों की संदिग्ध मौत के लिए न्यायिक आयोग गठित होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में भी एनआरएचएम घोटाले से जुड़े कई सीएमओ रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मारे गए थे। यह हत्याएं किसने कराई थी यहां भी पता नहीं चला। लोग विश्वास करते हैं कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं लेकिन यह मामले इस धारणा को खंडित कर देते हैं और जनता का इस मामले में विश्वास खंडित होना किसी राज्य के स्थायित्व के लिए अच्छी बात नहीं है।

पत्रकार अक्षय सिंह की मौत व्यापम घोटाले में नया ज्वार पैदा करेगी। धर्म का कीर्तन करने से कोई धार्मिक यानी ईमानदार नहीं हो जाता। पिछले कुछ महीनों से भाजपा जैसी घटनाओं का सामना कर रही है उससे यही बात साबित हो रही है। भाजपा संघ और साधु सन्यासियों से निर्देशित होकर चलने वाली पार्टी मानी जाती है इसलिए यह मिथक कायम हो गया कि यह बड़ी धर्मराज पार्टी है लेकिन जिस तरह से महाभारत की पूरा कहानी को पढऩे के बाद इसके लिए मुख्य रूप से पत्नी को जुए में दांव पर लगाने के कारण जिम्मेदार स्वयंभू धर्मराज युधिष्ठिर का मूर्तभंजन हुआ था वैसा ही मूर्तभंजन पिछले कुछ महीनों से भाजपा का हो रहा है। न खाऊंगा न खाने दूंगा की बात कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयललिता को तकनीकी आधार पर भ्रष्टाचार के मामले में अदालत से क्लीन चिट मिलने के बाद सबसे पहले बधाई देकर यह साबित किया कि उन जैसे फर्जी तीस मार खां केवल न खाने देने की डींगें हांक सकते हैं। यथास्थितिवादी वर्गसत्ता के मोहरे होने की वजह से उनकी यह कुव्वत तो है ही नहीं कि वे किसी को खाने से रोक सकेें। लोग न खा सकेें इसके लिए तो व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत पड़ती है और मोदी के लिए यह कैसे संभव है। बहरहाल पहले बात केवल भ्रष्टाचार की जीतीजागती देवी जयललिता को बधाई देने तक की थी लेकिन अब तो सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे तक के मामले में उन्होंने अपनी जुबान पर ताला लगाकर प्रभावशाली भ्रष्ट लोगों के साथ समझौता करने के अपने वर्ग चरित्र को स्पष्ट कर दिया है। उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा में मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में उनकी निष्क्रियता का अध्याय जुड़ गया है। उनसे तो भली इंदिरा गांधी थी जिन्होंने महाराष्ट्र में इससे हल्के सीमेंट घोटाला कांड में अपने प्रिय मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले को प्रारंभ में बचाते रहने के बाद जब देखा कि जनता में उनकी साख ही बिल्कुल खत्म हो जाएगी तो उनका इस्तीफा लेने में गुरेज नहीं किया लेकिन मोदी न तो जयललिता और वसुंधरा का इस्तीफा ले पाएंगे और न ही शिवराज सिंह का इस्तीफा लेकर व्यापम घोटाले से जुड़े लोगों की मौत की बेबाक जांच कराने का साहस दिखा पाएंगे। दुख का विषय यह है कि सत्ता के हमाम में सभी नंगे हैं। लोग करें तो क्या करें। पहले कांग्रेस को भ्रष्ट समझते थे और उसने अपने आचरण से बहुत कुछ इस बात को साबित भी किया था। इसके बाद उसने मोदी और अरविंद केजरीवाल पर भरोसा किया लेकिन इन दोनों ने तो उसे बहुत गहरे मोहभंग की खाई में ले जा पटका है। कांग्रेस की तो कभी बहुत पवित्र छवि नहीं रही। उसके नेता व्यवहारिक माने जाते रहे इसलिए कांग्रेस का भ्रष्टाचार उजागर होता था तो जनता को कोई आघात सा नहीं लगताा था लेकिन मोदी और केजरीवाल तो अभी कुछ महीने पहले तक ही जनमानस के बीच दिव्य आत्माओं के रूप में छाए हुए थे। इन्होंने उसका जो विश्वास तोड़ा है उसकी भरपाई करना जनमानस के लिए आसान नहीं है। नास्तिकता को चरम नकारात्मक भावना माना जाता है लेकिन नास्तिकता का मतलब ईश्वर को नकारना नहीं यह विश्वास हो जाना है कि कहीं कभी कोई नैतिक सत्ता नहीं होती और इस समय ऐसी ही नास्तिकता के प्रसार का दौर है। जो इस कुफ्र के जिम्मेदार हैं इतिहास उन्हें बहुत कड़ी सजा देगा।




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के  पी  सिंह 
ओरई 

कोपा अमेरिका : अर्जेटीना को हराकर पहली बार चैम्पियन बना चिली

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चिली ने अर्जेटीना को 4-1 से हराते हुए पहली बार कोपा अमेरिका खिताब पर कब्जा किया। मैच का फैसला पेनाल्टी शूटआउट के आधार पर हुआ। एलेक्सिस सांचेज ने चिली के लिए विजयी गोल किया और विश्व के सबसे पुराने फुटबाल टूर्नामेंट में चिली के लिए 100 साल का सूखा खत्म किया।

दूसरी ओर, इससे पहले 14 बार कोपा अमेरिका खिताब जीत चुका अर्जेटीना लियोनेल मेसी के नेतृत्व में अपने स्टार खिलाड़ियों के दम पर 15वीं बार खिताब नहीं जीत सका। चिली की टीम इससे पहले चार बार फाइनल में पहुंची थी लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ रही थी। 

व्यापमं घोटाला : अक्षय की मौत मामले की एसआईटी जांच

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मध्य प्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाला मामले पर दिल्ली से कवरेज करने के लिए आए 'आज तक'न्यूज चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत की जांच की जिम्मेदारी विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपी जाएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को अपने आवास पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। अक्षय सिंह की शनिवार को झाबुआ के मेघनगर में उस समय तबीयत बिगड़ी गई थी, जब वे व्यापमं घोटाले की संदिग्ध आरोपी नम्रता के परिजनों का साक्षात्कार ले रहे थे। नम्रता का शव संदिग्ध हालत में मिला था। अक्षय को मेघनगर के सरकारी व निजी अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें गुजरात के दाहोद स्थित अस्पताल स्थांतरित कर दिया गया। अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। 

मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह और उनकी सरकार दुख की इस घड़ी में अक्षय के परिजनों के साथ है। अक्षय का गुजरात के दाहोद जिला चिकित्सालय में पोस्टमार्टम हुआ। उसकी वीडियोग्राफी भी कराई गई। मौत की वजह अंतिम रिपोर्ट आने पर ही स्पष्ट हो सकेगी।

इधर, शिवराज ने कहा कि व्यापमं मामले की उच्च न्यायालय के पर्यवेक्षण (मॉनीटिरिंग) में एसआईटी की देखरेख में विशेष कार्य बल (एसटीएफ ) जांच कर रहा है, इस जांच से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। मौत किसी की भी हो, दुखद होती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह अक्षय की मौत की जांच के लिए एसआईटी को पत्र लिख रहे हैं तथा उनसे आग्रह करेंगे कि मौत के कारणों की जांच करे।

व्यापमं घोटाला की जांच में मदद कर रहे कॉलेज डीन का शव मिला

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मध्य प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज के डीन अरुण मिश्रा रविवार को दिल्ली के एक होटल में मृत मिले। उनसे व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में पूछताछ चल रही थी। उनका शव इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (आईजीआई) के नजदीक उप्पल होटल के एक कमरे में मिला। वह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की निरीक्षण टीम के सदस्य के नाते अगरतला जाने वाले थे। पुलिस ने बताया कि अरुण (64) जबलपुर स्थित एमएस मेडिकल कॉलेज के डीन थे। वह मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले के संबंध में विशेष कार्य बल ( एसटीएफ) की जांच में सहयोग कर रहे थे तथा उन्होंने इस क्रम में मेडिकल कॉलेज में हुए फर्जी मेडिकल प्रवेश परीक्षा के दस्तावेज उपलब्ध कराए थे।

जांच कर रहे पुलिस अधिकारी आर.एस.पांडे ने बताया, "उन्होंने (डीन)होटल कर्मचारी को उन्हें रविवार सुबह उठा देने के लिए कहा था। सुबह जब कर्मचारी की आवाज देने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, तब कर्मचारी ने दरवाजा तोड़ा, जहां कमरे में उन्हें मृत पाया।"एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "उनके बिस्तर के नजदीक व्हिस्की और कुछ दवाइयां मिली हैं। उनके शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं्र है। उनके बेटे के दिल्ली पहुंचने के बाद आज (रविवार) उनका पोस्टमार्टम कराया जाएगा।"

बिहार : धार्मिक बुलाहट पर आधारित टेली फिल्म ‘अनंत जीवन’ निर्माण कर

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  • हिन्दी भाषी प्रदेशों में बिहार को अव्वल स्थान पर पहुँचा

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गया। पटना महाधर्मप्रांत का कार्यक्षेत्र संपूर्ण बिहार है। कार्य सुगमता के लिए पटना धर्मप्रांत,बक्सर धर्मप्रांत,मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत,बेतिया धर्मप्रांत,भागलपुर धर्मप्रांत आदि बना दिया गया। पटना धर्मप्रांत की कुर्जी पल्ली में रहने वाले विक्टर फ्रांसिस ने धार्मिक बुलाहट पर आधारित टेली फिल्म ‘अनंत जीवन’निर्माण कर हिन्दी भाषी प्रदेशों में बिहार को अव्वल स्थान पर पहुँचा दिया है। 

जीजस प्रोडक्शन्स एवं अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म सिनेमा एवं टेलीविजन की संस्था सिगनीस इंडिया की प्रस्तुति है ‘अनंत जीवन’। फिल्म के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस है। कहानीकार मोनिका जेम्स, संपादन सईद जीया,संगीतकार आलोक झा,गीतकार कृष्णा कुमार प्रसाद, पाशर््व गायन मधु रत्ना,आलोक झा एवं मनोज कुमार,कैमरा लाला और स्थिर चित्र विकास साहू हैं। मुख्य भूमिका में हैं सुषमा राज। यह इनकी पहली फिल्म है। पटना के पेशेवर कलाकारों ने अहम भूमिका निभाकर फिल्म को काफी दिलचस्प बना दी है। इन कलाकारों का नाम है अजीत कुमार, डाक्टर ओस्वाल्ड अंथोनी, नीभा श्रीवास्तव, आशा चैधरी, सोनी पटेल, सिमरन ओस्ता, ओसीन सिंह, नवीन चन्द्र और डाॅ. पी.के.सिन्हा हैं। राजधानी पटना में स्थित कई मिशनरी संस्थाओं की सिस्टरगण भी भूमिका अदा की हैं। पवित्र शुक्रवार के दिन क्रूस रास्ता के दौरान ईसा मसीह की भूमिका अदा करने वाले विक्टर फ्रांसिस आर्च बिशप की भूमिका निभा रहे हैं।

फिल्म की लेखिका मोनिका जेम्स ने कहाः फिल्म की लेखिका हैं मोनिका जेम्स। मोनिका कहती हैं कि बुलाहट पर आधारित फिल्म का निर्माण कर जीजस प्रोडक्शन्स ने एक वातावरण निर्माण करने की कोशिश की है, जिसका प्रभाव निश्चित तौर पर पटना महाधर्माप्रांत की कलीसिया पर अवश्य ही पड़ेगा। आज की युवा पीढ़ी धार्मिक बुलाहट के लिए प्रेरित होंगे। अभी तक जीजस प्रोडक्शन्स ने 21 फिल्मों का निर्माण किया है। इनमें देखो सान्ता आया, नदी मिलेगी सागर से, फैशन, हैप्पी क्रिसमस,फर्ज, रिश्ते,सलीब और हम, विकलांगता अभिशाप नहीं,शक आदि फिल्मे हैं। 22 वां अनंत जीवन है। इनमें कई फिल्मों का प्रसारण पटना दूरदर्शन केन्द्र एवं स्थानीय चैनलों पर किया जा चुका है। जीजस प्रोडक्शन्स से पहली बार जुड़ी हूँ। फिल्म के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस ने मेरी लेखनी के साथ पूरा न्याय किया है। कहानी को कलाकारों ने आत्मसाथ करते हुए अपनी भूमिका को पूरी ईमानदारी से निभाया है। 

क्या कहते हैं फिल्म के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिसः इनका कहना है कि ‘अनंत जीवन’ फिल्म धार्मिक बुलाहट पर आधारित है।इस विषय पर भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में बिहार राज्य अव्वल है। जो फिल्म निर्माण कर कामयाबी का पताका लहरा दिया है। इस पर बिहार के पटना धर्मप्रांत का गर्व है। पटना महाधर्मप्रांत के युवक-युवतियों को धार्मिक बुलाहट के लिए प्रेरित करने एवं वातावरण निर्माण करने में कामयाब होगा। आजकल युवक-युवतियाँ फादर/सिस्टर बनने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इन लोगों का मोहभंग हो जाने से फादर/सिस्टरों की संख्या घटती जा रही है। जो पटना महाधर्मप्रांत के लिए चिंता का विषय बन गया है। उनका मानना है कि अब परिस्थितियों में बदलाव होगा। मिशनरी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चे टेली फिल्म ‘अनंत जीवन’ देखकर बुलाहट पहचान करके फादर/सिस्टर बनने आएंगे। भौतिकवादी युग में संयासी जीवन जीना चुनौतीपूर्ण कार्य भी है। हमलोगों का प्रयास है कि उचित वातावरण तैयार हो सके। 



आलोक कुमार
पटना 

बिहार : भले ही गरीबी के दलदल में फंसे हैं सामाजिक कार्य करते रहेंगेः दयाल

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  • सिविल डिफेंस कोप्स, पटना के स्वयंसेवक चाहते हैं कि 365 दिन कार्य मिले
  • माँ-बाप की सेवा में लगे 42 साल के दयाल विवाह भी नहीं

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पटना। सामाजिक कार्यकर्ता हैं दयाल शरण। वह द्वितीय श्रेणी से वर्ष 1986 में मैट्रिक उत्र्तीण हुआ। मात्र 10 की उम्र में 1983 में दिल्ली में आयोजित काँग्रेस सेवा दल की नेशनल रैली में भाग लिया।बिहार प्रदेश काँग्रेस सेवा दल में रहे।यहाँ पर बैंड टुकड़ी के प्रशिक्षण 1987 में ग्रहण किए।इसका फायदा नहीं मिला। ऐसा करने से परिवार की आर्थिक हालात खराब होती चली गयी। आज भी जर्जर आर्थिक स्थिति से उबर नहीं पाए हैं। 

राजधानी के बगल में है उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत। इस पंचायत के मुखिया सुधीर कुमार सिंह हैं। फिलवक्त कुर्जी गाँव (मुंगेरी ग्राम) के गंगा किनारे में रामानंद शर्मा रहते हैं। रामानंद शर्मा और तारा देवी के सहयोग से 5 संतान हैं। 3 लड़के और 2 लड़कियां हैं। 2 लड़के और 2 लड़कियों को विवाह करने में सफल हो गए। इस बीच औघोगिक परिसर में स्थित ट्रेडिशनल फर्नीचर मेकिंग सेंटर में डाक्टर कम फीटर के पद पर कार्य करने वाले रामानंद शर्मा रिटायर हो गए। रिटायर करने के बाद पेंशन नहीं मिलने से रामानंद परेशान हैं। कई बार आवेदन दिए परन्तु सुनवाई नगणय है। इस बीच दुर्भाग्य से रामानंद शर्मा की धर्मपत्नी तारा देवी को लकवा मार दिया। आर्थिक विपन्नता से तार-तार हो गए परिवार को लकवाग्रस्त तारा देवी का इलाज करवाने में दिक्कत होने लगी है। रामानंद शर्मा के परिवार को सरकारी और गैर सरकारी सहयोग नहीं मिलने दयाल शरण भी परेशान हो गया है। माँ-बाप की सेवा में लगे 42 साल के दयाल शरण विवाह भी नहीं कर रहे हैं। 
दयाल शरण कहते हैं कि किसी तरह के आर्थिक लाभ नहीं मिलते देख वर्ष 1991-1992 में पाटलिपुत्र औघोगिक प्रतिष्ठान में स्थित लघु उघोग विकास संगठन से विघुत कार्यशाला में भाग लेकर बिजली मिस्त्री बन गए। अन्य लोगों के घर में प्रकाश फैंलाने वाले दयाल शरण के घर में अंधेरा पसरा हुआ है। कुर्जी मोड़ के करीब सुपर मार्केट में फोटो फ्रेमिंग का धंधा खोल रखा है। प्रचार और लोगों की जानकारी से दूर रहने के कारण फोटा फ्रेमिंग का धंधा मंदा पर गया है। 

इसके बावजूद भी दयाल शरण घबराते नहीं हैं। सामाजिक कार्य करने का कार्य करते रहते हैं। इसके आलोक में बिहार राज्य निर्वाचन प्राधिकार के तहत पैक्स निर्वाचन -2009 के  प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए। इसके बाद 2012 में सिविल डिफेंस कोप्स, पटना के बेसिक फाउंडेशन कोर्स में भाग लिए। वर्तमान समय में बिहार राज्य निर्वाचन प्राधिकार के तहत पैक्स निर्वाचन -2015 में प्रबंध समिति के सदस्य हैं।

सिविल डिफेंस कोप्स, पटना के स्वयंसेवक दयाल शरण कहते हैं कि साल में 5 दिन ही स्वयंसेवक का कार्य दिया जाता है। दुर्गा पूजा के समय में 2 दिन, महाछठ पर्व के अवसर पर 2 दिन और गंगा दशहरा के समय 1 दिन का दायित्व सौंपा जाता है। दायित्व सौंपने के दिन का मात्र 100 रूपए की राशि मजदूरी के रूप में दी जाती है। वर्ष 2014 में 5 दिनों की मजदूरी 500 रू.नहीं दी गयी है। दयाल शरण चाहते हैं कि हमलोगों को 365 दिनों का कार्य मिले। मजदूरी में 200 रू. मिले। यातायात को व्यवस्थित करने में सहयोग कर सकते हैं। आगे कहते हैं कि भले ही गरीबी के दलदल में फंसे हैं। सामाजिक कार्य करते रहेंगे।


आलोक कुमार
पटना 

जौनपुर जेल में पुलिस की पिटाई से कैदी की मौत, हंगामा

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  • कैदी की मौत के बाद आक्रोशित बंदियों एवं पुलिस के बीच खूनी संघर्ष, पथराव, आगजनी, पुलिस ने दागे आंसू गैस  के गोले 
  • हालात काबू न होने पर पुलिस ने की अंधाधुंध फायरिंग, थानाध्यक्ष समेत 12 पुलिसकर्मी व 25 से अधिक कैदी जख्मी 

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जौनपुर। शनिवार की शाम ढलते ही जौनपुर जिला कारगार गोलियों की तड़तडाहट से गूंज उठा। गोलियों की गूंज व चीख-पुकार से जेल परिसर से लेकर बाहरी पास-पड़ोस के मुहल्लेवासी खौफजदा हो गए। देर रात कैदियों व बंदी रक्षकों के बीच कभी आगजनी तो कभी पथराव तो कभी मार-मार-पकड़-पकड़, मर गया रे, पुलिस के गोलियों की आवाज, सायरन की चीख ही सुनाई दे रहे थे। काफी देर तक हुए संघर्ष के बाद पता चला कि पुलिस की ब़ड़े ही बेरहमी से पिटाई के चलते बंदी श्याम कुमार यादव की मौत के बाद इस तरह के हालात पैदा हुए। जिलेभर की पुलिस बल सहित सीनियर अधिकारियों की मौजूदगी में कैदियों से बातचीत के बाद स्थिति पर काबू पाया। इस बीच उपद्रव में थानाध्यक्ष जफराबाद समेत 12 पुलिसकर्मी व कुछ जख्मी कैदियों को अस्पताल पहुंचाया गया। मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों ने बताया कि हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस को जेल के अंदर हवाई फायरिंग व आंसू गैस के गोले दागने पड़े। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भरसक कोशिश की गयी, लेकिन हालात बिगड़ते ही पुलिस को भी जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। 

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सायंकाल करीब चार बजे चोरी के आरोप में बंद बक्शा थाना क्षेत्र के लखौंवा गांव का निवासी श्याम कुमार यादव पानी पीने मुलाकाती घर के पास आया था। वहां उसकी कथित तौर पर किसी बंदी रक्षक के साथ अभद्रता हो गयी। यह देख बंदी रक्षक दौड़ पड़े और श्याम को बड़े ही बेरहमी से लाठी से पीट-पीट कर अधमरा करने के बाद बैरक में ले गए, जहां उसकी मौत हो गयी। हालांकि बंदी रक्षकों ने दिखावे के तौर पर उसे जिला अस्पताल ले गए, जहां चिकित्सक ने मृत घोषित कर दिया गया। कैदी की मौत की खबर लगते ही अन्य कैदी आग बबूला हो गए। फिर दोनों ओर से जमकर ईंट-पत्थर भी चले। इससे जेल के अंदर भगदड़ मच गई। तब तक पुलिस भी जेल के अंदर पहुंच चुकी थी। पुलिस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लगातार हवाई फायरिंग करती रही तथा आंसू गैस के गोले छोड़ती रही। फायर ब्रिगेड को बुलाकर पानी की बौछार भी मारी गई, किंतु उपद्रव पर अमादा बंदियों ने पीछे हटने के बजाए जेल परिसर में ही आग लगा दी। सूचना मिलने पर पुलिस अधीक्षक भारत सिंह यादव सहित कई पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी दर्जन भर थानों की फोर्स व पीएसी लेकर स्थिति को नियंत्रित करने में लगे रहे। देर रात तक स्थिति जस की तस बनी हुई थी। स्थिति नियंत्रण न होने पर उग्र कैदियों पर काबू पाने के लिए पुलिस ने करीब दो घंटे तक रुक-रुक कर हवा में फायरिंग की। इस दौरान लेल की बिजली भी काट दी गयी थी। कैदियों की चीखने चिलाने की आवाजें जेल के बाहर तक सुनाई दी। कहा जा रहा है कि जिला कारागार में मृत बंदी श्याम कुमार सिकरारा क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय फिरोजपुर प्रथम में शिक्षिका प्रियंका सिंह संग की गई चेन लूट के मामले में गिरफ्तार था। 27 मई को उसे तत्कालीन थानाध्यक्ष योगेंद्र बहादुर सिंह ने तमंचे व पांच हजार रुपये के साथ गिरफ्तार किया था। उसने विद्यालय में घुसकर ही इस घटना को अंजाम दिया था। 

जिला अस्पताल पहुंचे मृतक के परिजन 
श्याम कुमार की मौत के बाद घटना की जानकारी लखौंवा स्थित उसके परिवार वालों को दी गई। करीब दो घंटे बाद परिवार के लोग अस्पताल पहुंच गए। वे यहां काफी देर तक रोते-बिलखते रहे तथा पिता लुट्टुर यादव अन्य लोग मामले की जांच की मांग करते रहे। पुलिस पोस्टमार्टम की प्रक्रिया में लगी रही। 

पूर्व में भी हो चुका है उपद्रव 
जिला कारागार में उपद्रव, मारपीट, गोली चलना आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसा आए दिन होता रहता है। चैदह साल पूर्व खान-पान में अनियमितता, उत्पीड़न से आक्रोशित बंदियों ने आठ घंटे तक जेल पर कब्जा जमा लिया था। घटना में बंदी रक्षक की मौत भी हो गई थी। सुविधा देने के नाम पर वसूली, खान-पान में अनियमितता, उत्पीड़न और वर्चस्व को लेकर जिला कारागार में आए दिन कोई न कोई छोटी-बड़ी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन शनिवार की घटना ने सितंबर 2001 की याद ताजा कर दिया है। बंदी रक्षकों द्वारा वसूली, प्रताड़ना और कारागार में निरुद्ध एक शिक्षक के उत्पीड़न से बंदी उग्र हो गए थे। कारागार परिसर स्थित पेड़ों, चहारदीवारी व बैरक की छतों पर चढ़कर जमकर पथराव किया था। उनके गुस्से का कोपभाजन बने थे बंदी रक्षक सुनील कुमार। उन्हें आरोपियों ने पीट-पीट कर मार डाला। आंसू गैस के गोले, फायरिंग के जरिए स्थिति पर काबू का प्रयास किया गया। उपद्रवियों पर नियंत्रण के सारे प्रयास बेकार साबित हुए। गुरिल्ला युद्ध से असहाय पुलिस-प्रशासन मनुहार में जुट गया था। जनपद के कुछ मानिंद लोगों की पहल पर बंदी वार्ता के लिए तैयार हुए। प्रतिनिधि मंडल से एक घंटे तक चली बातचीत के बाद किसी तरह स्थिति नियंत्रण में आई थी। वर्ष 2000 में शातिर अपराधी जेपी सिंह की हत्या की नीयत से आए बदमाश छद्म नाम से मिलने के बहाने से गेट तक पहुंचा और अत्याधुनिक हथियार से फायरिंग झोंक दिया। इस घटना में जेपी तो बच गया लेकिन उसके साथ मिलने आए धीरेंद्र सिंह निवासी कैथी जनपद वाराणसी की मौत हो गई। 




(सुरेश गांधी)

विशेष : अक्षय, अभिव्यक्ति और अलविदा !

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अक्षय की लाश से महज कुछ कदम की दूरी पर एक प्रतिबिम्ब खड़ा है। जो ताक रहा है अपनी बहन की आँखों में, माँ की सूनी गोद में कि कल तक वो पुचकारा जाने वाला तन कितना बेबस पड़ा है। अब अभिव्यक्ति को चार  कंधों पर लाद कर राख के सुपुर्द की जायेगी। व्यापमं घोटाले की असलियत 44 लाशों के साथ लोगों के जहन में डर पैदा कर रही है। कहीं कुछ कफ़न फिर तो व्यापमं के नाम से नहीं खरीदे जाएंगे। सच कहूँ याद आ रही है अक्षय जी वो मुलाक़ात जब हम वैशाली के पास मिले। सच क्या ज़िंदादिली थी बंदे में। कुछ देर की मुलाक़ात आज मौत की खबर सुनते ही अश्क बहा बैठी। पर अब आज तक जैसा बड़ा मीडिया संस्थान अक्षय के परिवार वालों को किस तरह न्याय दिलाता है, ये देखने वाली बात होगी।

प्रभु ये कुछ अजीब हुआ। पर हमको क्या ? हम तो शब्दों से ढकोसले तैयार करते हुए बेवजूद के हिमायती बन रहे हैं। लेखों पर लेख पटकते हुए इंसाफ की बेबुनियादी सिफारिश कर रहे हैं। डर है कि कहीं मोमबत्तियाँ न जलकर पिघलने लगें। तख्तियों के बीच में इन्साफ को न तलाशा जाने लगे। क्योंकि आज आंदोलन वृहद् रूप में होकर भी बेहद बौना ही रहता है। बहरहाल अक्षय तो चला गया। सोशल मीडिया पर इनफार्मेशन का पोस्टमार्टम किया जा रहा है। अंत में सब के कलम बेनींद सो जायेंगे। अति होगी तो ये होना वाजिब है। कलम से क्रांति के ख्वाब को पता नहीं किसके मत्थे पटक रहे हैं। आज तक पर। हालाँकि व्यापमं पर पटकना सही होगा। एक डर भी साथ चल रहा है। जगेंद्र की तर्ज पर परिवार को आश्वासन न थमा दिए जाएँ। कहीं सोशल मीडिया किसी नए पोस्टर को लेकर न खड़ी हो जाए। जो कि अक्षय की तस्वीरों के साथ लांछन चिपकाने लगे।

शायद दर्द महज परिवार का है, सोशल मीडिया का है और हाँ कुछ साथी संगातियों का भी। दरअसल माध्यम स्पेस तलाश रहे हैं। सिंगल कॉलम या केवल दो तीन लाइन। विज्ञापन की स्याही में कीमत जो है। दर्द को बेफिक्र ढंग से सिर्फ कुछेक माध्यम ही जगह दे पा रहे हैं। मानिए न मानिए अन्याय है। सिर्फ पत्रकारों के साथ ही नहीं इंसानियत के लिए भी। अब सवाल उठता है कि अक्षय की मौत का राज क्या है ? कहीं मौत के तार व्यापमं से तो नहीं जुड़े ? पत्रकारों की मौतें पत्रकारिता में किस तरह के बदलाव की निशानी है ? क्या संस्थान भी महज आश्वासनों तक ही सीमित है ?

इन तमाम सवालों के साथ अक्षय का परिवार उम्मीदों, अपेक्षाओं के लिहाज से बिखर चुका है। कोई भी कीमत अब न तो उनके लाडले को ही लौटा सकती है। न ही उबार सकती है एक अपार दर्द से। कलम का एक और सिपाही कहीं खो गया है। न उसके मिलने का कोई अवसर है। साथ ही न कोई तरीका। ज़रा गौर से देखिये देश रो रहा है। क्योंकि कुछ नहीं बहुत कुछ अलविदा कह गया।

कमोबेश सारी ध्वनियों को वास्ता है अपनों का। आइये श्रद्धांजलि अर्पित करें।



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'आत्मीय'
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लोकायुक्त को हटाने का फैसला विधानसभा अध्यक्ष करेंगे : सिद्धारमैया

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कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने रविवार को कहा कि उन्हें लोकायुक्त को पद से हटाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के फैसले का इंतजार है। विपक्षी विधायक, लोकायुक्त के बेटे पर रिश्वतखोरी का आरोप लगने के बाद उन्हे लोकायुक्त पद से हटाने की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने रविवार को संवाददाताओं को बताया, "लोकायुक्त न्यायमूर्ति वाई.भास्कर राव को हटाने की विपक्ष की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष कोगाडू थिम्मपा को फैसला करना है। हालांकि हमने संस्थान में कुछ अधिकारियों और लोकायुक्त के बेटे अश्विन राव के खिलाफ एक करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए विशेष टीम गठित की है।"

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्युलर) के लगभग 60 विधायकों ने कर्नाटक लोकायुक्त अधिनियम 1984 के तहत राव को हटाने के लिए तीन जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष को एक ज्ञापन सौंपा था। विपक्ष के नेता और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने कहा कि रिश्वतखोरी की जांच करने के लिए गठित संस्था के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लोकंतत्र पर सवाल उठाते हैं। राज्य विधानसभा का 10 दिनों का मानसून सत्र 29 जून से शुरू हो चुका है।

विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय के मुताबिक, मंत्रणा समिति सोमवार को विपक्ष की मांग पर चर्चा करेगी और किसी फैसले पर विचार करेगी। विपक्षी पार्टियों के सदस्यों ने राव को हटाने के लिए दो जून को विधान परिषद के अध्यक्ष डी.एच.शंकरमूर्ति को ऐसा ही ज्ञापन सौंपा था।

व्यापमं घोटाले की जांच की निगरानी करे सर्वोच्च न्यायालय : आप

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आम आदमी पार्टी (आप) ने रविवार को कहा कि एक टेलीविजन रिपोर्टर की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय को मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही जांच पर नजर बनाए रखनी चाहिए। आप प्रवक्ता दिलीप पांडे ने मीडिया से कहा, "यह दुखद है कि हमारे एक पत्रकार मित्र की व्यापमं घोटाले की रिपोर्टिग करने के दौरान मौत हो गई। व्यापमं अब घोटाला नहीं रहा, यह नरसंहार बन गया है।" उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को एसआईटी की जांच की निगरानी करनी चाहिए।

पांडे ने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल राम नरेश यादव को उनके पद से हटाया जाना चाहिए। आप नेता ने पूछा, "हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि राज्यपाल (वह एसआईटी जांच की निगरानी कर रहे हैं) निष्पक्ष जांच करेंगे, जब उनका नाम खुद व्यापमं घोटाले के प्राथमिकी में दर्ज है।"इधर, मध्य प्रदेश में आप के संयोजक आलोक अग्रवाल ने कहा कि जब एसआईटी मौतों की जांच कर रही है, तब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को तत्काल जांच शुरू कर देनी चाहिए।

आप की तरफ से प्रतिक्रिया दिल्ली के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में व्यापमं मामले को कवर करने के दौरान हो जाने के बाद आई है। अक्षय का अंतिम संस्कार यहां रविवार को किया गया। इस दौरान परिजन, कई पत्रकार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे। मध्य प्रदेश में राजनीतिज्ञों, अधिकारियों तथा व्यवसायियों पर व्यापमं के प्रवेश तथा नियुक्ति गिरोह से जुड़े होने के आरोप लग रहे हैं। 2013 से लेकर अब तक इस मामले में 40 लोगों की मौत हो चुकी है। 

फेसबुक ने मां-बेटे को मिलाया

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नए और पुराने दोस्तों से मिलवाने वाला फेसबुक अब बिछड़ों को उनके परिवार वालों से मिलवाने में भी काफी मददगार साबित हो रहा है। केलिफोर्निया में 15 साल पहले अपने बेटे से बिछड़ी मां एक फेसबुक फोटो के माध्यम से उससे मिलने में कामयाब रही। 15 साल पहले तीन साल के जोनाथन का उसके पिता ने कथित रूप से अपहरण कर लिया था और वह उसे मैक्सिको लेकर चले गए थे। टाइम्स की रपट के मुताबिक, जोनाथन अब 18 साल का हो गया है। पिछले साल फेसबुक पर उसने अपने भाई के साथ अपनी बचपन की तस्वीर पोस्ट की थी। तस्वीर पोस्ट करते हुए उसने सोचा था कि शायद इसकी मदद से उसकी मां होप हॉलैंड और उसका भाई सोशल नेटवर्किं ग साइट पर उसे खोज ले। 

पिछले सप्ताह इस परिवार का पुनर्मिलन हुआ। हॉलैंड अपने बेटे से मिलने की घटना को चमत्कार मानती हैं और फेसबुक का धन्यवाद अदा करने से नहीं थक रही हैं। जोनाथन से दोबारा मिलने की उम्मीद खो चुकीं हॉलैंड ने कहा, "मैं खुश हूं। इसमें लंबा समय लगा।"इस साल जनवरी में फेसबुक पर हॉलैंड को दो छोटे-छोटे बच्चों की एक फोटो दिखी, जिसमें वे नहाते हुए नजर आ रहे थे। इसके बाद जोनाथन के एक दोस्त ने उन दोनों की बात कराई। अपनी हाईस्कूल की परीक्षा पूरी करने के बाद जोनाथन केलिफोर्निया वापस लौटने की योजना बना रहे हैं।

केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेगा राजद : लालू

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राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी भारतीय जनता दल (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को जाति आधारित जनगणना के पूरे आंकड़े सार्वजनिक करने के लिए बाध्य करेगी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के लोगों को जाति आधारित जनगणना का विवरण जानने का हक है, और नरेंद्र मोदी सरकार को इन आकंड़ों को सार्वजनिक करना चाहिए। राजद की 19वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एकत्रित हुए पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए लालू प्रसाद ने कहा, "केंद्र सरकार को अलग-अलग जातियों के आंकड़ों को रोकने के बजाय को जाति आधारित जनगणना के आकंड़े सार्वजनिक करना चाहिए।"


उन्होंने कहा, "लोगों को इसके बारे में जानने का अधिकार है और हर जाति को आबादी और अन्य मामलों में अपनी मजबूती और कमजोरी की जानकारी होनी चाहिए।"उन्होंने मोदी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार गरीबों, वंचित तबकों और दलितों की संख्या पर जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी करने में देरी करती है तो राजद चुप नहीं बैठेगी। 



उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को क्यों रोका गया है।"लालू प्रसाद ने कहा कि राजद और उसके गठबंधन दल जनता दल (यूनाइटेड), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठाएंगे। उन्होंने कहा कि 13 जुलाई को वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मार्च निकालेंगे। लालू ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से भारी संख्या में इस मार्च में शामिल होकर जाति आधारित जनगणना के आंकड़े रोकने के फैसले पर विरोध जताने का आग्रह किया।

व्यापमं घोटाला में आईएमए जबलपुर प्रमुख को जान का खतरा

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मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) द्वारा आयोजित परीक्षाओं में हुई गड़बड़ियों का खुलासा होने के बाद से जबलपुर मेडिकल कॉलेज के दो डीन की मौत हो चुकी है। एक की जहां जलकर मौत हुई थी तो वहीं दूसरे डीन को दिल्ली के एक होटल में मृत पाया गया। बीते वर्ष चार जुलाई को सुबह के समय जबलपुर मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन डीन डी. के. साकल्ले का शव उनके घर के एक कमरे में जली हुई हालत में मिला था। तब साकल्ले की मौत को खुदकुशी माना जा रहा था, लेकिन आईएमए की जबलपुर इकाई के अध्यक्ष सुधीर तिवारी ने डॉक्टर्स डे पर कहा था कि साकल्ले ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उनकी लेजर गन से हत्या की गई थी।

साकल्ले चार जुलाई 2014 को अपने घर पर जली हुई अवस्था में मिले थे। उनकी मौत के ठीक एक वर्ष एक दिन बाद (आज) जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन अरुण शर्मा दिल्ली के एक होटल में मृत अवस्था में मिले हैं।  एक साल के अतंराल में दो डीन की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस की राज्य इकाई के प्रवक्ता के. के. मिश्रा ने इसके पीछे साजिश की आशंका जताई। इसके अलावा जबलपुर आईएमए के अध्यक्ष सुधीर तिवारी ने भी शर्मा की मौत पर सवाल उठाए हैं। 

राज्य में व्यापमं चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराता है, पिछले कुछ वर्षो के दौरान प्रवेश में गड़बड़ियों का मामला सामने आया है। इनमें जबलपुर चिकित्सा महाविद्यालय में भी ऐसे छात्रों को दाखिला मिला है, जो फर्जी तरीके से परीक्षा उत्तीर्ण कर आए हैं। हालांकि कॉलेज इनकी जांच कर रहा है। इतना ही नहीं वह समय-समय पर प्रतिवेदन एसआईटी (विशेष जांच दल) को सौंपता है। एसआईटी की निगरानी में एसटीएफ व्यापमं घोटाले की जांच कर रही है। राज्य में 500 से ज्यादा छात्रों ने गलत तरीके से विभिन्न चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला पाया है। 

विशेष : सामान्य वर्ग के हाथ में क्या ?

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हमे नही रहना सामान्य वर्ग में. आखिर इस सामान्य वर्ग में रखा क्या है ? बस सिर्फ बाधांए होती हैं . स्कूल मे हो तो पूरी फीस जमा करो. चाहे आर्थिक स्थिति कितनी भी खराब हो. पढ़ लिखकर किसी तरह स्कूल मे कॉलेज पहुंचो तो दाखिले के लिए मेरिट अच्छी होनी चाहिए. जब पढ़ाई खत्म करो तो जॉब के लिए .हर तरह से जिंदगी की जंग लडते रहो. इस आरक्षण ने इस वर्ग को यहां लाकर खड़ा कर दिया है कि सामान्य वर्ग हमेशा इन फंदो में फसकर झूलता रहे. आरक्षण देना ठीक है. जरूर दो आरक्षण. जिसे जरूरी हो उसे दो. देश में जाने कितने ऐसे सामान्य वर्ग के लोग है.

 जिनके पास भी खाने के लिए रोटी और रहने के लिए घर नही है. एस-सी एस-टी और ओवीसी के बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति इनकी अपेक्षा काफी मजबूत होती है. लेकिन उनको आरक्षण मिलता है. और सामान्य जाति से तालुक रखने वालों का हाल बेहाल रहता है.  पढ़ने में फर्स्ट क्सास पास होना ने के साथ जरूरी है कि अंकों के प्रतिशत काफी अच्छे हो. मतलब 75 %  तक हो जरूर हो. अनुसूचित जन जाति में 40% से काम चल जाता है दाखिले में. वहां काबिलियत क्यों नही देखी जाती  ? क्यों नही कम्पटीशन कराया जाता ?

उसके आधार पर क्यों नही दाखिला देते. कहने को तो एक अच्छा जुमला है, सबका साथ, सबका विकास. विकास करो तो सबका करो. नौकरी के लिए जो जगह निकलती है उसमें आरक्षण क्यों दिया जाता है ? अगर उस वर्ग के पढ़ने वाले उस बच्चे में काबिलियत है तो प्रतियोगिता निकालें.  जैसा कि सामान्य वर्ग के छात्र करते हैं. 40 %  नम्बर पढ़ाई से लेकर नौकरी तक मान्य है. और यही नम्बर किसी के जिंदगी के लिए आसामान्य है. हर तरह से बाध्य कर दिया गया है. ये मापदंड तो कुछ सालों में ऐसे हावी होगें. तब सामान्य वर्ग का तबका कहा जाएगा. मेरे इस लेख का मकशद किसी जाति की भावनाओं ठेस पहुंचाना नही है. अगर पहुंचती है तो मुझे माफ करना .

हां इतना जरूर कि अपनी बातों को सबके सामने रखना चाहता हूं. एक तरफ कहा जाता है कि जाति-पाति भेद-भाव खत्म होना चाहिए. जो भेद-भाव सामान्य वर्ग के लोगों के साथ हो रहा है उस पर कौन ध्यान देता है. हमने तो ऊपर वाले से ये नही कहा था कि हमें उच्च जाति में पैदा करो. जब जन्म भी हुआ था तो पता भी नही था कि किस धर्म और किस जाति में हैं. आज जब बड़े हुए तो एहसाह हुआ कि क्या फायदा मिला इस जाति में तमाम बंधिसों के अलावा. कानून भी इनकी सुरक्षा के लिए बना दिया गया. एससी एसटी एक्ट. चलो अच्छा किया. सुरक्षा होनी भी चाहिए. किसी को पताड़ित करना गलत है. लेकिन अगर ये लोग किसी सामान्य को पताड़ित करे तो . इस कानून का न जाने कितना दुर्प्रयोग किया जाता. 

कितने लोगों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है. सिर्फ उनकी इक बात को लेकर की जातिसूचक शब्दों के साथ गलत बोला गया है. बस इतने में तो बंदा अंदर. अब अपने बचाव में मुकदमा लड़ो. अगर दो लोग लड़ोगे तो कुछ अशब्द हमारे मुंह से तो कुछ दूसरे के मुंह से निकलेगे. ये मैं इसलिए नही कह रहा हूं.  एक सच्ची घटना का जिक्र करना चाहता हूं. जनवरी 2015 रायबरेली के नया पुरवा मोहल्ले की घटना है. जहां पर कुछ लोगों ने मिलकर एक उच्च वर्ग के लड़के को डण्डो से मारा. वो बेचारा सड़को पर पड़ा रहा. कोई मद्द नही की गई. पुलिस थाना हुआ तो जमानत पर छूटकर ताने मारना शुरू कर दिया. क्या कर लिया मेरा ?  छूट तो गए. इस केस को जब कोर्ट से किया गया तो, सामने एक बात आ रही थी. ये झूठा एससी एसटी एक्ट के तहत ये मुकदमा पीड़ित परिवार पर कर सकते है. ये बात उनके दिमाग में भी चल रही थी. जिसकी चर्चा होने लगी थी. उनके जिद्दी और नंगेपन की वजह से पूरे मोहल्ले में पीडित परिवार के पक्ष में कोई गवाही देने को तैयार नही. 

ऐसे में आखिर क्या करे कोई ?  आजकल का समाज धीरे-धीरे बदल रहा है . जब हम बाहर पढ़ने जाते है, या नौकरी करते हैं. तो जाति-पाति का भेदभाव ज्यादा नही रह जाता है. खाने भी शेयर कर के खा लेते है. साथ मे कमरा भी शेयर कर लेते है. जब हम धीरे-धीरे जाति-पाति भेदभाव से मुक्त हो रहे हैं तो क्यों एक वर्ग को भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है.  इन सब चीजों को देखते हुए मन मे ख्याल आता है काश हमें सामान्य वर्ग में पैदा नही किया होता. समानता की ओर हो रहे प्रयास से कहीं देश एक बार फिर से असामानता की ओर न चला जाए. 


इन सब बातों को देखकर हमें सिर्फ एक बात कपिल शर्मा की याद आती है, सामान्य वर्ग के हाथ में क्या  ? बाबा जी का ठुल्लू.



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रवि श्रीवास्तव

कमल हासन ज़रूर देखेंगे फ़िल्म 'गौर हरी दास्ताँ-द फ्रीडम फ़ाइल'

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ऐसा माना जाता है कि दिल, मन और निःस्वार्थ नीयत से बनायीं गयी फ़िल्में दिग्गजों की पारखी नज़रों द्वारा पहचान ही ली जाती है और ऐसा उस समय हुआ भी जब दिग्गज कमल हासन ने 'गौर हरी दास्ताँ-द फ्रीडम फ़ाइल'देखने की इच्छा जतायी।

साउथ के महानायक ने जब यह सुना क़ि फीचर फ़िल्म गौर हरी दास्ताँ की कहानी का ताना-बाना ऐसे व्यक्ति के  इर्द-गिर्द बुना गया है, जिसके संघर्ष की कहानी जन-जन तक पहुँचनी ही चाहिए तो उन्होंने तुरंत ही इस फ़िल्म को 70 ऍम ऍम के परदे पर देखने की इच्छा जाहिर कर दी।कमल ने अपनी यह इच्छा अपनी आने वाली फ़िल्म 'पापनासम'की हाल ही में हुई मीडिया कॉफ्रेंस में पत्रकारों के बीच खुल कर रखी।

गौर हरी दास्ताँ के निर्देशक अनन्त महादेवन, जो फ़िल्म 'पापनासम'में एक आई. जी. के पति की भूमिका निभा रहे हैं जिनका बच्चा लापता हो जाता है, से जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब वह फ़िल्म 'पापनासन'में काम रहे थे जो की मलयालम हिट फ़िल्म 'दृश्यम'का तमिल रूप है, तभी उन्हें खबर मिली की उनकी बायोपिक फ़िल्म जो कि आज़ादी के नायक 'गौर हरी दास'पर आधारित है, उसको आधिकारिक रूप से पेरिस में चयनित कर लिया गया है।

कमल हासन इस बात को लेकर बेहद उत्सुक्ता से भरे दिखे कि अनंत ने 'गौर हरी दास्ताँ -द फ्रीडम फ़ाइल'जैसी एक फ़िल्म बनायीं है जो कि दास की दूसरी आज़ादी की लड़ाई-भारतीय सरकार के साथ ..जैसे विषय पर आधारित है।अनंत ने आगे बताया कि विद्धान अभिनेता कमल ने इससे पहले भी उनकी फ़िल्म 'मी सिंधुताई सपकाल'देखी थी और उसे बहुत पसंद किया था। इसलिये जब उन्होंने हमारे अंतिम स्वतंत्रता सैनानियों को अपनी पहचान के लिए दर दर भटकने की विडम्बना के बारे में सुना तो उनके अंदर का इतिहासकार उस दौर के अंदर चला गया जब स्वतंत्रता सैनानियों ने अपनी जान देश के खातिर न्योंछावर कर दी थी।उन्होंने ने तुरन्त ही 'गौर हरी दास्ताँ -द फ्रीडम फ़ाइल'देखने की इच्छा जाहिर की, यहाँ तक की उन्होंने उसे अपने खुद के होम थिएटर में अपलोड करने ले लिए भी आग्रह किया जो कि क्यूब सर्वर से सुसज्जित है। अनंत अगले हफ्ते 'पापनासम'के रिलीज़ होते ही, लिंकअप उपलब्ध करा देंगे और जब तक कमल हासन भी अपनी व्यस्तताओं से फ्री हो जायेंगे।

कमल इस बात को लेकर भी बेहद अचम्भित थे कि अनंत ने इतने साधारण बजट में और 30 शूटिंग शिफ्ट में कैसे यह फीचर फ़िल्म बना दी।

हास्य - व्यंग्य : गरीबी का 'नशा ' ....!!

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अल्टीमेटली आप कह सकते हो कि वह दौर ही गरीब ओरिएटेंड था।गरीबी हटाओ का नारा तो अपनी जगह था ही हर तरफ गरीबी की ही बातें हुआ करती थी। राजनीति हो या कोई दूसरा क्षेत्र । गरीबी के महिमामंडन से कोई जगह अछूता नहीं था। लिटरेचर उठाइए तो उसमें भी एक से बढ़ कर एक गरीब पात्रों का चित्रण। वह जमाना शेर - बकरी के एक घाट पर पानी की तर्ज पर अमीर - गरीब से लेकर अर्दली - अधिकारी तक के एक हॉल में बैठ कर सिनेमा देखने का था। क्योंकि वह दौर  ही फर्स्ट डे - फर्स्ट शो का था। कोई नई फिल्म देख कर आने वाले के दो चार - दिन तो यार - दोस्तों को उसकी कहानी सुनाते ही बीत जाती थी। तब की फिल्मों में गरीबी का कुछ यूं  महिमामंडन होता था कि कोई भी इस पर फिदा हो जाए। फिल्म का हीरो खुद गरीब तो होता ही था, फिल्म के तीन घंटे उसके गरीब के लिए लड़ने - भिड़ने में ही बीत जाते थे।बीच - बीच में गरीबी के पक्ष में लंबे - चौड़े भाषण भी हो जाया करते थे।  

हालांकि समझ बढ़ने के साथ मुझे अहसास हुआ कि दरअसल ये फिल्मी हीरो गरीबी की बात करते हुए खुद अपनी गरीबी दूर करने में लगे थे। राजनीति में गरीबी की धमक तब भी थी। आखिर गरीबी हटाओ का नारा तो उसी दौर में बुलंद हुआ था। नेता लोग माइक संभालते ही गरीब और गरीबी पर शुरू हो जाया करते थे। उस जमाने के बाबा लोग भी गरीबी का खास तरीके से महिमामंडन करते थे।मानो गरीबी कोई वरदान हो जो ईश्वर की कृपा से पाप्त होता हो। यहां तक कहा जाता था कि गरीबी तो ईश्वर का प्रसाद है।क्योंकि भगवान गरीबों को ही मिलते हैं। अमीरी तो भोग - विलास करते हुए मर जाने के लिए है।  लिहाजा मुझे भी अपनी गरीबी पर फक्र होने लगा।मेरे चारो तरफ गरीब ही गरीब रहते थे। इनमें कोई इस बात पर इतराता रहता था कि उसके चार बेटे हैं तो कोई गांव में पुश्तैनी जमीन का इल्म पाले रहता । किसी को बेटे के पुलिस में होने का तो किसी को अपने दामाद पर गुरुर रहता । अब गरीब आदमी हो या समाज उसके साथ कई विशेषताएं जुड़ी ही रहती है। मसलन अपनी घोर गरीबी के लिए पहचाने जाने वाले किसी प्रदेश को इस बात का घमंड लंबे समय तक रहा है कि उसने सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देश को दिए। 

वहीं एक दूसरे राज्य को इस बात का अहंकार कि वह जो आज सोचता है पूरी दुनिया उसे कल समझ पाती है। याद कीजिए 1983। जब भारत ने क्रिकेट का विश्व कप जीता था। तब देश में कितने लोग क्रिकेट के बारे में जानते थे। लेकिन आज देश में एेसे लोगों की तादाद असंख्य है जो ग र्व से खुद के क्रिकेट खाने से लेकर क्रिकेट में सोने तक का दंभपूर्ण दावा करते हैं। आखिर इसी एक सफलता का तो परिणाम है कि गुमनाम से रहने वाले क्रिकेट खिलाड़ी अपने देश में पहले सितारे बने और फिर भगवान। क्रिकेट पहले खेल था, लेकिन अब ध र्म बन चुका है। कुछ एेसा ही हाल घोर गरीबी की गिरफ्त में कैद अपने पड़ोसी देशोंं का भी है। जिनके पास और कुछ नही्ं तो क्रिकेट में मिली चुनिंदा सफलताओं और अंगुलियों पर गिने जाने लायक खिलाड़ियों पर ग र्व करने का बहाना है। लेकिन दूसरे की खुशियों से जलने वाले उनसे यह भी छिन लेना चाहते हैं। अब अपने एक और पड़ोसी देश बांग्लादेश की बात करें तो यह सफलता कम है कि पहले जिस बांग्लादेश का जिक्र केवल आंधी - तूफान या बाढ़ आदि के लिए होता था आज उसकी च र्चा क्रिकेट के लिए हो रही है। यह देश अब न सिर्फ क्रिकेट खेलने लगा है बल्कि आश्चर्यजनक रूप से भारत जैसी टीम को हरा भी दिया है। उसके पास मुस्तफगीर जैसा गेंदबाज है। यानी उसके पास घमंड करने या खुश होने लायक कुछ तो है। लेकिन आलोचकों से अपने पड़ोसी का यह सुख भी नहीं देखा जा रहा । ... यह तो वाकई गलत बात है...। 





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तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर (पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

विशेष आलेख : शिखर नेतृत्व तक हुआ बेचैन

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मध्य प्रदेश के व्यवसायिक परीक्षा मंडल घोटाले के संदर्भ में संदिग्ध मौतों का जारी सिलसिला अभी भी नहीं थमा है। पत्रकार अक्षय सिंह के बाद अगले ही दिन जबलपुर मेडिकल कालेज के डीन डा. अरुण शर्मा की अबूझ परिस्थितियों में हुई मौत से रहस्य और गहरा गया है। अब यह इतना गंभीर मुद्दा बन चुका है कि अभी तक इसके प्रति उदासीनता अपनाए हुए केेंद्र सरकार भी अब विचलित होती नजर आ रही है। केेंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का जवाब तलब की मुद्रा में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फोन करना भाजपा में शीर्ष तक मची हड़बड़ाहट को उजागर करता है।

भाजपा के आलोचकों और विपक्ष को उसके खिलाफ एक के बाद एक तगड़ा मुद्दा मिलता जा रहा है। इससे लोक सभा चुनाव के बाद स्वयं को अपराजेय समझ रहे भाजपा नेतृत्व का विश्वास अब हिलने लगा है। हालांकि हम यह पहले भी कहते आए हैं कि भारतीय इतिहास में अतीत में भी ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जब प्रचंड बहुमत से आई सत्ता को ही सबसे मुश्किल राजनीतिक हालातों का सामना करना पड़ा। जैसे कि बंगला देश के युद्ध के बाद जब इंदिरा गांधी ने मध्यावधि चुनाव कराया तो उन्हें लोक सभा में साढ़े तीन सौ सीटें मिलीं। उनके सामने विपक्ष बहुत बौना हो गया था। उम्मीद यह थी कि लोक सभा के इस कार्यकाल में इंदिरा गांधी को कोई हिला नहीं पाएगा लेकिन महाविजय के इसी कार्यकाल में इंदिरा गांधी को अपने राजनीतिक दौर में सबसे ज्यादा नीचा देखना पड़ा। इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला विपक्ष की किसी भी मुहिम से ज्यादा विस्फोटक साबित हुआ जिसकी वजह से सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें इमरजेंसी लगाने जैसे कदम के लिए विवश होना पड़ा और उनके इस फैसले को लेकर इतिहास में एक पक्ष हमेशा उनकी आलोचना करता रहेगा। हाल के वर्षों में आपातकाल विरोधी दिवस मनाने जैसी सरगर्मियां तेजी से बढ़ी हैं। जाहिर है कि इनमें इंदिरा गांधी को देश का सबसे बड़ा खलनायक साबित करने की चेष्टा रहती है। यह काम उस भाजपा के नेताओं द्वारा किया जा रहा है जिसकी मातृ संस्था आरएसएस इमरजेंसी के दौर के बाद भी कांग्रेस की इतनी ज्यादा मुरीद हो गई थी कि 1984 के चुनाव में तत्कालीन सरसंघ चालक बाला साहब देवरस ने भाजपा उसकी बजाय कांग्रेस को आशीर्वाद दिया था। आरएसएस के स्वयं सेवकों की मेहनत का ही फल था कि जहां कांग्रेस को भूतो न भविष्यतो बहुमत मिला वहीं भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था और पार्टी केवल दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी। 

पांच सौ बयालीस में से चार सौ दस सीटों के अभूतपूर्व बहुमत के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उसी लोक सभा के दौर में सारी लोकप्रियता गंवाने की नौबत आ गई। उन्होंने अपनी समझ में पूरे विपक्ष का सफाया कर दिया था लेकिन वीपी सिंह के रूप में उनके लिए बेहद मारक विपक्ष अपने घर के अंदर ही तैयार हो गया। भाजपा के नेताओं को इतिहास की इन करवटों से सबक लेना चाहिए था कि पहली बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के मद में चूर होने की गलती वह न करे वरना नियति पूर्ववर्तियों की तरह उसका मानमर्दन भी कर सकती है।

भाजपा भाग्यवादी पार्टी है। इस कारण जिन अयाचित राजनीतिक संकटों का सामना अचानक करने की नौबत उसके सामने पैदा हुई है उसे लेकर इतिहास की प्रकृति पर विश्वास करने की बजाय वह ग्रह नक्षत्रों की चाल बदल जाने का कारण समझ रही होगी। इस कारण मोदी और उनके शुभचिंतक अगर कोई संकट मोचक महाजाप या यज्ञ कराने की सोच रहे हों तो कोई आश्चर्य नहीं है। हालांकि विपत्ति कर्मकांडों से नहीं पुरुषार्थ से ही टलती है। ललित मोदी गेट में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिप्त पाए जाने से उसकी नैतिक साख के सूचकांक में जो गिरावट पैदा हुई थी उसके सिलसिले में व्यापम घोटाला में एक प्रमुख और साहसी पत्रकार की हत्या प्रतीत होने वाली मौत ने भीषण इजाफा किया है और यह अच्छा है कि भाजपा के नेताओं ने भी कल्पना लोक में रहने की बजाय इसे सूूंघ लेने की होशियारी दिखाई है। राजनाथ सिंह के साथ-साथ केेंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का ट्वीट भी इस मामले में गौरतलब है। अक्षय सिंह के अंतिम संस्कार में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया आदि का जुटना भाजपा के लिए तूफान पूर्व का संकेत है। वैसे तो होना तो यह चाहिए था कि इस मौके पर वामपंथी और स्वयं को धर्मनिरपेक्षता का चैंपियन कहने वाले दल भी एकजुटता दिखाते। बहरहाल तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद विपक्ष के बढ़ते जोश ने सत्ता खेमे को पस्त कर दिया है। अक्षय के विसरा का परीक्षण एम्स में कराने की मांग मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मांग लिए जाने से यही साबित होता है।

इन हलचलों में तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि संकट के दलदल में इन दिनों जो लोग धंस रहे हैं वे सभी मोदी विरोधी खेमे के हैं। शिवराज सिंह चौहान को तो राजनाथ सिंह का ही आदमी माना जाता है। जब राजनाथ सिंह भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे उस समय शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के अध्यक्ष थे। उनके मुख्यमंत्री बनने से राजनाथ सिंह ने स्वयं के लिए काफी बल अनुभव किया था। विडंबना देखिए कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने में प्रकारांतर से रुकावट पैदा करने की मंशा रखने वाले शिवराज सिंह चौहान से इतना हो जाने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने अभी तक कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी है जबकि राजनाथ सिंह को लगा कि गृह मंत्री के रूप में स्वयं को लौहपुरुष साबित करने का उनका सपना टूट जाएगा अगर उन्होंने शिवराज के साथ मुरव्वत कर दी। भाजपा की अंदरूनी राजनीति इस समय बेहद गूढ़ दौर में है इसलिए जो उथल पुथल हो रही है वह चंद्रकांता संतति के अयारी और तिलस्मी प्रसंगों से ज्यादा रोमांचक है इसलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले प्रतीक्षा की जरूरत भी महसूस हो उठती है।



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के  पी  सिंह  
ओरई 
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