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जो जनता को परेशान करेगा, दादागिरी करेगा उसे नहीं छोड़ा जायेगा : चौहान

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भोपाल, 07 फरवरी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि जो भी जनता को परेशान करेगा, दादागिरी करेगा, विकास के काम में अडंगा डालेगा उसे नहीं छोड़ा जायेगा। श्री चौहान ने आज अपने निवास में धार जिले से आये पीडित जनजातीय लोगों से चर्चा करते हुए कहा कि उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। उन्होने गुंडों, बदमाशों और माफिया चलाने वालों से कहा कि वे मध्यप्रदेश छोडकर चले जायें नहीं तो पुलिस उन्हें छोड़ेगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के सम्मान पर कभी आंच नहीं आने दी जायेगी। धार जिले के गंधवानी विधानसभा क्षेत्र के गांवों से बडी संख्या में जनजातीय समुदाय के लोगों ने मुख्यमंत्री को बताया कि वे लोग स्थानीय कांग्रेस नेता की गुण्डागर्दी से परेशान हैं। पुलिस जब आदतन अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करती है तो पुलिस पर आरोप लगवाते हैं। कुछ आदिवासी समुदाय के ही परिवार आदतन अपराधों में लिप्त हैं। गांव के विकास की गतिविधियों में बाधा डालते हैं। मुख्यमंत्री को यह भी बताया कि तथाकथित बलात्कार पीडित महिलाओं के पति और परिवार के लोग स्वयं अपराधी प्रवृत्ति के हैं। उन्होने बताया कि ऐसा कोई कृत्य नहीं हुआ है। कांग्रेसी नेता सिर्फ घिनौना आरोप लगा रहे हैं। श्री चौहान ने इस पर कहा कि संबंधित घटना की निष्पक्ष जांच होगी और जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। उन्होने कहा कि पुलिस को निर्देश दिये गये हैं कि जनता के लिये फूल से ज्यादा कोमल और बदमाशों के लिये वज्र से ज्यादा कठोर बन जायें। चोरी, डकैती, गुंडागर्दी को संरक्षण देने वाले और उन्हें प्रोत्साहित करने वालों को नहीं छोडा जायेगा। पुलिस से साफ कहा गया है कि बदमाशों को मत छोडो, उन्हें कुचल डालो। उन्होंने कहा कि बदमाशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जारी रहेगी। उन्होने कहा कि मध्यप्रदेश में कानून का राज स्थापित है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पूरी गति से विकास कार्य करें। युवाओं को रोजगार देंगे। सडकें, नहरें, बिजली पानी सब उपलब्ध रहेगा। जनता के ऊपर दादागिरी करने वालों को नहीं छोडा जायेगा। इस अवसर पर लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह, सहकारिता राज्य मंत्री विश्वास सारंग, जनजातीय समाज के नेता मलसिंह भाई धार भाजपा अध्यक्ष श्री बर्फा और पांच सौ से ज्यादा आदिवासी भाई उपस्थित थे।


करुणा एवं संवेदना के बिना शिक्षा अधूरी है : राज्यपाल कोहली

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उज्जैन, 07 फरवरी, मध्यप्रदेश के राज्यपाल ओ पी कोहली ने आज कहा कि करुणा एवं संवेदना के बिना शिक्षा अधूरी है और पूरी शिक्षा वह है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए। श्री कोहली ने यहां विक्रम विश्वविद्यालय के 22वें दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा मनुष्य के अन्दर दया, प्रेम, करुणा के भाव जगाए, जिससे वह देश, समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह करे। उन्होने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य में व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक दक्षता के साथ भावनात्मक दक्षता लाना भी है। जो पीछे हैं, दु:खी हैं, पीड़ित हैं, निर्बल हैं, असहाय हैं, उनके दु:ख दूर करना तथा उनके जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना शिक्षा का मूल उद्देश्य है। राज्यपाल ने अपनी विद्या पूर्ण कर चुके विद्यार्थियों से कहा कि वे दीक्षान्त समारोह के पावन अवसर पर यह संकल्प लें कि वे अपने जीवन में केवल आचरणीय कार्य ही करेंगे। अनाचरणीय कार्य कदापि नहीं करेंगे। वे अपने विवेक के आधार पर निर्णय लेंगे कि क्या आचरणीय और क्या अनाचरणीय है। श्रीमद्भगवदगीता के 16वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को देवीय एवं आसुरी गुणों के बारे में स्पष्ट रूप से बताया है। विद्यार्थी गीता के 16वें अध्याय का अध्ययन अवश्य करें तथा हमेशा देवीय गुणों का आचरण करें। श्री कोहली ने भारत में शिक्षा की गौरवशाली परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीनकाल में नालन्दा एवं तक्षशिला जैसे भारत के विश्वविद्यालय पूरी दुनिया को आकर्षित करते थे तथा यहां सारी दुनिया से विद्यार्थी एवं विद्यान अध्ययन के लिए आते थे। आज हमें अपने विश्वविद्यालयों के उस प्राचीन गौरव को लौटाना है। हमें भारत से प्रतिभा के पलायन को रोकना है। इस अवसर पर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया एवं विधायक डॉ. मोहन यादव, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शीलसिंधु पाण्डेय आदि उपस्थित थे। 


दीक्षान्त के बारे में राज्यापाल ने बताया कि पुरातन परंपरा में स्नातकों के अध्ययन की पूर्णता के बाद गुरुकुल से घर की वापसी के अवसर पर ‘समावर्तन संस्कार’ आयोजित किया जाता था, वही ‘दीक्षान्त समारोह’ है। इस अवसर पर आचार्य उनके विद्यार्थियों के जीवन की परिपूर्णता के लिए उन्हें अन्तिम उपदेश ‘दीक्षान्त उपदेश’ देते थे। इसका प्रमुख मंत्र था “सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमद:। मातृ देवो भव, पुत्र देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव।” अर्थात सत्य बोलना, धर्म का आचरण करना तथा स्वाध्याय में कभी प्रमाद नहीं करना। माता, पिता, आचार्य तथा अतिथि को देवतुल्य मानकर इन सबके प्रति पूज्य भाव रखना। यह उपदेश सर्वदा प्रासंगिक है। विद्यार्थी इसका आचरण करें तो जीवन में सफलता मिलना सुनिश्चित है। श्री कोहली ने कहा कि उज्जैन की भूमि का शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि सान्दीपनि से शिक्षा प्राप्त की। उज्जैन भारत के प्राचीनतम विद्या केन्द्रों में प्रमुख रहा है। इस भूमि ने विश्व को साहित्य, कला, संस्कृति तथा अन्य विधाओं के विद्वान दिए हैं। आप लोग भाग्यशाली हैं कि आपने इस भूमि में विद्याध्ययन किया है। राज्यपाल श्री कोहली ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय की गौरवशाली परम्परा हम सभी के लिए गर्व का कारण है। डॉ.शिवमंगलसिंह सुमन, डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर, डॉ.भगवतशरण उपाध्याय, डॉ.राममूर्ति त्रिपाठी, श्री गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे अमूल्य रत्न इस विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शीलसिंधु पाण्डेय ने स्वागत उद्बोधन देते हुए बताया कि नेक द्वारा विश्वविद्यालय को ‘ए’ ग्रेड प्रदान किया गया है। अब वर्ष 2014-15 से ही हरेक विषय में टॉपर विद्यार्थी को गोल्ड मेडल दिया जाएगा। विश्वविद्यालय परीक्षा परिणामों में भी अग्रणी है। दीक्षान्त समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा कुल 261 विद्यार्थियों को विभिन्न उपाधियां प्रदान की गई। इनमें 193 विद्यार्थियों को पीएचडी, दो विद्यार्थियों को डीलिट् तथा 66 विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर उपाधि प्रदान की गई। इसके अलावा राज्यपाल के हाथों विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक भी प्रदान किए गए। समारोह के दौरान ही राज्यपाल के हाथों विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित गणित अध्ययनशाला का लोकार्पण हुआ। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषणों के संचयन तथा डाक विभाग द्वारा विश्वविद्यालय पर जारी विशेष कवर भी राज्यपाल एवं अतिथियों के हाथों लोकार्पित किए गए। 

मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मुझ पर दबाव डाला गया: पनीरसेल्वम

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चेन्नई 07 फरवरी, तमिलनाडु के कार्यवाहक मुख्यमंत्री पनीरसेल्व ने आज कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि अगर अन्नाद्रविड मुनेत्र कषगम(अन्नाद्रमुक) पार्टी के कार्यकर्ता और जनता उनके साथ है तो वह इस्तीफा वापस ले सकते हैं। श्री सेल्वम ने मरीना बीच पर पूर्व मुख्यमंत्री जे जय ललिता की समाधि पर कुछ देर बैठन के बाद पत्रकारों से कहा “ रविवार की विधायकों की बैठक के बारे में मुझे पहले से जानकारी नहीं थी। मुझे पोएज गार्डन बुलाकर इस्तीफा पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला गया था। पार्टी और जनता मेरे साथ है तो मैं अपना इस्तीफ वापस ले सकता हूंं।काडर चिंतित हैं, मैं पार्टी को एकजुट रखना चाहता हूं अगर मैं अकेला भी रहा तो पार्टी के सम्मान की रक्षा के लिए काम करूंगा।” उल्लेखनीय है कि रविवार को अन्नाद्रमुक महासचिव वीके शशिकला को विधायक दल का नेता चुना गया था और उसी दिन श्री सेल्वम ने निजी कारण का हवाला देते हुए राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया था। राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया लेकिन श्रीमती शशिकला के शपथ लेने तक उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने के लिए कहा है। 

भाजपा सांसदों को सलाह, प्रधानमंत्री को ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में पेश करो

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नयी दिल्ली, 7 फरवरी, गरीब समर्थक अपनी छवि को मजबूती प्रदान करने के लिए भाजपा ने आज कहा कि सरकार की सभी नीतियां गरीबों के कल्याण से संचालित हैं। साथ ही पार्टी ने अपने सांसदों से कहा है कि वे जनता के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में पेश करें। केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने संसदीय दल की बैठक में पार्टी के सांसदों से कहा कि वे सरकार की उपलब्धियों और राष्ट्रपति द्वारा संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए पेश किए गए सरकार के नजरिए को आम आदमी तक लेकर जाएं। बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि बजट और सरकार की सभी नीतियां गरीबों और समाज के कमजोर तबके की चिंताओं से प्रेरित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गरीबों के मसीहा हैं। आप इस संदेश को हर घर तक लेकर जाएं।’’ बैठक के बाद संवाददाताओं को इसकी जानकारी देते हुए संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार ने संसद के कामकाज पर संतोष जाहिर किया जहां कल दोनों में से लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में 9 घंटे से अधिक का समय चर्चा में लगाया गया। उन्होंने विश्वास जताया कि मजदूरी के भुगतान, शत्रु संपत्ति और नोटबंदी से संबंधित तीन विधेयक संसद में पास होंगे। उन्होंने कहा कि ये विधेयक सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेशों के स्थान पर लाए गए हैं। इस बैठक में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने डिजिटल भुगतान को आगे बढ़ाने के लिए पिछले 45 दिनों से जारी सरकार के प्रयासों के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि शिलोंग में आज ‘डिजिधन ’ मेले का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि डिजिटल रूप में भुगतान करने वालों के लिए निकाले गए लकी ड्रा में सरकार द्वारा कारोबारियों समेत साढ़े छह लाख लोगों को पुरस्कार दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि इन डिजिधन मेलों में दस लाख से अधिक लोग आए हैं।

शहीद-ए-आज़म अल्ताफ़ डार कश्मीरी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ मौत का परवाना थे

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मैं दर्द में डूबी हुई इस सच्ची तहरीर की शुरुवात ग़ालिब के उस मशहूर शैर से करना चाहता हूँ जिसमें उन्होंने कहा है कि "याद कर के मिन जुमला ओ खासाना मुझे बरसो रोया करेंगे जाम ओ पैमाना मुझे "




        
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आज जब कश्मीर धधक रहा है, इंसानियत कराहा रही है,बर्फीली वादियों से ठन्डे बादलों की जगह सुर्ख़ अंगारों की बारिश हो रही है,बीमार दवा से महरूम हैं,बच्चे दूध के लिए तड़प रहे हैं और बर्फ़ की चादर बारूदी ओढ़नी में तब्दील हो रही है | इन हालात में अपनी ज़िम्मेदारी को कम करने के लिए "पड़ोसी मुल्क का हाथ है.."सिर्फ़ इस एक जुमले को बोलकर कश्मीरी अवाम की तकलीफों से सियासतदां बच कर निकल जाते हैं | लेकिन कश्मीर की ज़मीनीसच्चाई तारीख़ी तौर पर मुल्क की नई नस्लों को जानना ज़रूरी है | वह कश्मीर जहां तहज़ीब के नाम पर ऐसा तारीख़ी भाईचारा था कि कश्मीरी राजघराने के मुखिया स्वर्गीय हरी सिंह जी और कश्मीरी अवाम के अंग्रेज़ विरोधी आंदोलन के खूबसूरत किरदार मरहूम शेख अब्दुल्लहा साहब ने मिलकर कश्मीरी संस्कृति की हिफाज़त के मतालबे के साथ 1947 में जिन्ना की टू नेशन थ्योरी को ठुकरा कर तिरंगे के साये में रहें का ऐलान किया था |आज कश्मीर समस्या के बुनियादी हल के लिए सियासी मफ़ादात को एक तरफ रखकर दुनियां की जन्नत में यानी सर ज़मीन ए कश्मीर में उसी हिन्दोस्तानी मोहब्बत को तलाशना होगा | आज जब दुश्मन मुल्क यह ऐलान कर रहा है कि "कश्मीर हिन्दोस्तान से अलग होना चाहता है ..."तब शहीद ए आज़म सब इन्स्पेक्टर अल्ताफ़ डार की आतंकियों की गोलियों से हुयी मौत "कश्मीर हमारा है ,हमारा ही रहेगा "इस विचार के साथ दुश्मन मुल्क को तारीख़ी जवाब है |
         
कश्मीरी पुलिस का यह नौजवान जो कांस्टेबल के रूप में कश्मीरी पुलिस में भर्ती होता है और अपने बहादुरी से लबरेज़ कारनामों के कारण बहुत कम वक़्त में ही 5 प्रमोशन हासिल कर लेता है | अपनी मुख़्तसर ज़िंदगी में हिन्दोस्तान की मुख़ालफ़त और कश्मीर में तशद्दुद फैलाने वाले लगभग 200 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार देता है अल्ताफ अहमद डार उर्फ अल्ताफ़ लैपटॉप को जम्मू एवं कश्मीर में उनके बेहतरीन खुफिया कार्यों के लिए जाना जाता था। घाटी में वर्ष 1989 से पनपे हिजबुल मुजाहिदीन के नेटवर्क को अल्ताफ़ लैपटॉप ने 2006-2007 के बीच में लगभग ध्वस्त कर दिया था। यही नहीं, उनके विशिष्ट काउंटर -इंटेलिजेंस की मदद से सेना ने 200 आतंकवादियों को मारने में सफल रही थी।और एक दिन इन्हीं हिन्दोस्तानी दुश्मन अनासिर की गोली भारत माता के इस महान सपूत के सीने को छलनी कर देती है और शहीद ए आज़म अल्ताफ़ डार अपने पीछे जवान विधवा के साथ दो मासूम बच्चों को जिनकी उम्र मात्र दो साल और चार साल होती है उन्हें हिन्दोस्तान का हुस्न कहे जाने वाले कश्मीर में छोड़कर भारत माँ के आगोश में कभी न लौटने के लिए समां जाता है | इस बहादुर सैनानी के जनाज़े में दिनांक 7 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के साथ पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राज्य के पुलिस प्रमुख के साथ पूर्व डीजीपी सहित कश्मीरी अवाम अपनी भीगी हुयी पलकों से अलविदा कहने के लिए मौजूद रहते हैं |
            
सर ज़मीन ए कश्मीर में "वादी का चीता"कहे जाने वाले शहीद फ़ौजी बिर्गेडियर उस्मान सहित सैकड़ों किरदारों के बाद एक और किरदार अल्ताफ़ डार की शक्ल में नुमायां तौर पर सामने है जिसने अपने खून से कश्मीरी अलगाववाद के खात्मे का विचार देश को दिया है | दुश्मन मुल्क के ज़रिये मज़हब की झूठी ओढ़नी के साये में चलाये जाने वाले इस खूंरेज़ आंदोलन का हल हमारी हुकूमतों को भी मज़हबी तस्वीर में तलाशना चाहिए | इसका ज्वलंत और स्वयं सिद्ध उदहारण पंजाब के अलगाववादी आंदोलन के ख़िलाफ़ पंजाबी रेजिमेंट और पंजाबी राष्ट्रभक्त फौजियों ने पेश किया था |  आज वक़्त की ज़रूरत है जब कारगिल की फतह के लिए तजुर्बे के तौर पर बनाई गयी मुस्लिम चार्ली कंपनी की तरह ही कश्मीरी सरहदों की हिफाज़त की ज़िम्मेदारी हमें स्वर्गीय शहीद बिर्गेडियर उस्मान और अमर शहीद अल्ताफ़ डार की तरह ही मुस्लिम फौजियों के कांधों पर डाल देनी चाहिए | पत्थर पर अंकित शिलालेख की तरह मौजूद यह एक तारीखी सच है कि कश्मीर सहित पूरे हिन्दोस्तान का मुसलमान किसी भी क़ीमत पर दुनियाँ में हिन्दोस्तान का ताज कहे जाने वाले कश्मीर को नापाक हाथों में नहीं जाने देगा | शायद हुकूमतें भारतीय मुस्लिम के इस अहसास को जानबूझकर नज़र अंदाज़ करती रही हैं या फिर इस सच तक पहुँचने में नाकाम रही हैं लेकिन आज बिलखते,सिसकते और करहाते हुए कश्मीर में खुशियां वापिस लाने के लिए सरकार को हिन्दोस्तानी मुसलमानों के उस अहसास को जानना होगा और उस परिक्षा को सम्मान देना होगा जो उन्होंने 14 अगस्त 1947 को जिन्ना के धर्मसापेक्ष देश को ठोकर मारकर धर्मनिरपेक्ष हिन्दोस्तान को "मेरी जान हिन्दोस्तान"कह कर समर्थन दिया था |
            
इस आलेख का अंत इस सच्चाई पर करना चाहता हूँ कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसने वाला मुसलमान हिन्दोस्तान की सरहदों की हिफाज़त के लिए जान देना चाहता है ! काश सरकार इसे क़बूल करे | चूँकि कश्मीर के तहफ़्फ़ुज़ के लिए आज भी हज़ारों अल्ताफ़ डार तिरंगा हाथ में लिए मादरे वतन की हिफाज़त के लिए शहीद होने को तैयार हैं ,यहीं से कश्मीरी समस्या का बुनियादी समाधान निकलेगा |




---मो आमिर अंसारी---

आलेख : ब्लूचिस्तान को लेकर पाक में बबाल

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पाकिस्तान और उसमें रह रहे आतंकी आकाओं ने कश्मीर का बार-बार नाम लिया, भारत ने हमेशा सहन किया, लेकिन भारत ने एक बार ब्लूचिस्तान का नाम क्या लिया, पूरे पाकिस्तान में कोहराम जैसी हालत हो गई है। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान की आजादी के बारे में बोला तो उसको दर्द हुआ, लेकिन क्या पाकिस्तान के आकाओं ने यह भी सोचा है कि जब वह कश्मीर के बारे में बोलते हैं, तब भारत पर क्या बीतती होगी। वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए बलूचिस्तान में हालात ठीक वैसे ही कहे जा सकते हैं, जैसे पाकिस्तान ने कश्मीर में पैदा किए हैं। हालांकि इसमें भारत का कोई हाथ नहीं है, स्वयं बलूचिस्तान के लोग ही पाकिस्तान के विरोध में आवाज उठा रहे हैं और शुरु से ही उठा रहे हैं। इससे यह साफ कहा जा रहा है कि पाकिस्तान, जब अपना ही देश नहीं संभाल पा रहा है, तब वह दूसरे के लिए उम्मीद कैसे हो सकता है।  


भारत के कश्मीर में पिछले लगभग पचास दिनों से पाकिस्तान के नापाक इशारे पर अशांति का वातावरण बना हुआ है। भारत की कठोर चेतावनी के बाद भी पाकिस्तान कश्मीर में उपद्रव को बढ़ावा देने का क्रम जारी रखा हुआ है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कड़े शब्दों में पाकिस्तान से कहा है कि वह भारत की सहनशीलता की परीक्षा नहीं ले, वरना गंभीर अंजाम भुगतने को तैयार रहे। पाकिस्तान को भारत के दो टूक संदेश का मतलब साफ समझना चाहिए। उसे यह भी समझना चाहिए कि उसने जितनी बार कश्मीर मसले का अंतराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की है, उसे मुंह की ही खानी पड़ी है। चाहे संयुक्त राष्ट्र हो या अन्य मंच। हर जगह कश्मीर पर पाक की कोशिश विफल हुई है। उल्टे पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को पनाह देने वाले देश के रूप में कुख्यात हो चुका है।

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस सत्य को पूरी दुनिया जान चुकी है और पाकिस्तान को भी यह स्वीकार करना चाहिए। हालांकि एक सत्य यह भी है कि पाकिस्तान के आका स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि कश्मीर को भारत से किसी भी हालत में पाकिस्तान नहीं ले सकता। लेकिन पाकिस्तान इस सत्य से परिचित होने के बाद भी कश्मीर में तनावपूर्ण वातावरण बनाने को शह प्रदान कर रहा है। इतना ही नहीं पाक सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रयोग कर रही हैं। कश्मीर में उपद्रव भड़काने के पीछे भी पाक सरकार की प्रायोजित नीति है। इस बार भी हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से जिस तरह पाकिस्तान सरकार कश्मीर में उपद्रव को उकसा रही है और वहां के भटके युवाओं का इस्तेमाल हिंसा भड़काने में कर रही है, उससे साफ है कि उसने अपनी पिछली हारों से सबक नहीं लिया है। भारत की ओर से शांति की पुरजोर पहल के बाद भी पाकिस्तान केवल आतंकवाद का समर्थन करता हुआ दिखाई देता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा कश्मीर में मारे गए आतंकी बुरहान वानी को शहीद बताकर यह साफ कर दिया है कि उसकी नजर में कश्मीर में आतंकी घटनाएं पूरी तरह से सही हैं।

पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए बलूचिस्तान में जिस प्रकार से पाकिस्तान के विरोध में वातावरण बन रहा है, उसमें वहां के नागरिकों द्वारा पाकिस्तान से पीछा छुड़ाने के लिए कवायद की जा रही है। आतंक को पूरी तरह बढ़ावा देने वाला देश प्रमाणित हो चुका पाकिस्तान भले ही अपने बचाव में कुछ भी बयान दे, लेकिन यह बात पाकिस्तान को पूरी तरह से आतंकी देश घोषित करने के लिए काफी है कि पाकिस्तान की भूमि से लगभग तीन दर्जन आतंकी संगठन संचालित हो रहे हैं। पाकिस्तान ने इन आतंकी समूहों के माध्यम से दूसरे देशों को दहलाने का सपना देखा है, लेकिन आज यह आतंकी समूह स्वयं पाकिस्तान के लिए भी भस्मासुर जैसी मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं। सिया आतंकी समूह सुन्नियों को मार रहे हैं तो सुन्नी आतंकी समूह सिया समुदाय को निशाना बना रहे हैं। इसके बाद भी पाकिस्तान सबक लेने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं आतंकवाद को सरकारी नीति बनाने के चलते ही आज पाक विश्व में अलग-थलग पड़ा है। भारत विरोधी चीन को छोड़कर कोई भी देश उसके साथ नहीं है। लेकिन कई मामलों में चीन भी पाकिस्तान का विरोध करता है। चीन आतंकवाद के पूरी तरह खिलाफ है और वह इस मसले पर उसके साथ नहीं है। 

ब्लूचिस्तान के बारे में इस सच को शायद आज के नागरिक कम ही जानते होंगे कि ब्लूचिस्तान प्रारंभ से पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था। ब्लूचिस्तान को अंगे्रजों ने अलग देश के रुप में आजादी पहले ही प्रदान कर दी थी। बाद में पाकिस्तान ने हमला करके ब्लूचिस्तान पर कब्जा कर लिया। इसके बाद ब्लूचिस्तान में पाकिस्तान के विरोध में प्रदर्शन होने लगे, जो आज भी जारी हैं। इससे सवाल यह आता है कि जब ब्लूचिस्तान के अपने आपको पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते हैं, तब भारत द्वारा कही गई बात पर उसको मरोड़ क्यों हो रही है? ब्लूचिस्तान के नागरिक स्वयं पाकिस्तान के साथ रहना नहीं चहते, ऐसा कई अवसरों पर प्रकट हो चुका है। भारत ने तो केवल ब्लूचिस्तान के लोगों की भावनाओं को प्रकट किया है। ब्लूचिस्तान में पाकिस्तान से अलग होने के लिए जितने भी आंदोलन चलाए गए हैं, उन सभी आंदोलनों को पाकिस्तान के शासकों ने बुरी तरह से कुचलने का प्रयास किया है। सवाल यह भी आता है कि जब पाकिस्तान, ब्लूचिस्तान को अपना हिस्सा मानता है, तब वहां के नागरिकों को मौत के घाट उतारने के लिए बमबारी करने जैसे कृत्य क्यों किए जा रहे हैं। आज ब्लूचिस्तान में जो कुछ हो रहा है, वह स्वाभाविक है। वहां किस तरह से बलूचों का दमन किया जा रहा है। पाकिस्तान को मालूम होना चाहिए कि सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, मलेशिया समेत अधिकांश मुस्लिम देशों का भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि भारत में पाकिस्तान से अधिक मुसलमान रहते हैं।

आतंकवाद के मामले पर पाकिस्तान को कतई खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कोई भी मुस्लिम देश आतंकवाद का सर्मथन नहीं करता है। आतंकवाद के बल पर पाकिस्तान कभी भी भारत के खिलाफ कोई भी जंग नहीं जीत सकता है। उसे हर बार शिकस्त ही खानी पड़ेगी। भारत हमेशा आतंकवाद का विरोध करता रहा है। अब भारत सरकार को चाहिए कि वह एक तरफ सभी पक्षों से बातचीत कर कश्मीर में शांति बहाली की कोशिश करे और दूसरी तरफ पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कूटनीति का इस्तेमाल करे।






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सुरेश हिन्दुस्थानी
झांसी (उत्तरप्रदेश)
मोबाइल 09455099388

विशेष : सफल जीवन के लिये विश्वास से भरा मन जरूरी

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हम जीवन खुशनुमा तभी बना सकते हैं जब हमारा जिन्दगी के प्रति सकारात्मक नजरिया होता है। हर व्यक्ति की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अपने जीवन में सफलता की उच्चतम ऊंचाइयों को छूना चाहता है। उसकी यह नैसर्गिक आकांक्षा होती है कि उसे मनचाही वस्तु मिले, मनचाहा पद मिले, मनचाहा जीवन साथी मिले, मनचाहा मान-सम्मान प्राप्त हो, मनचाही गाड़ी, बंगला कोठी, कार का सुख मिले इत्यादि। किन्तु ऐसा सौभाग्यशाली व्यक्ति कोई बिरला ही होता है जिसकी अधिकांश कामनाओं की पूर्ति संभव हो जाए। पर मेरी दृष्टि में वह व्यक्ति ज्यादा सौभाग्यशाली है जो इन सब चीजों के न होने पर भी जीवन के प्रति धन्यता का भाव लिये होता है। हमारी दृष्टि ‘लेने’ या ‘भोगने’ से ज्यादा देने या त्यागने में होनी चाहिए। ‘देने का सुख’ सचमुच अद्भुत होता है। किसी के लिये कुछ करके जो संतोष मिलता है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। फिर वह कड़कती ठंड में किसी गरीब को एक प्याली चाय देना ही क्यों न हो और इसके साथ मन में ‘जो मिला बहुत मिला- शुक्रिया’ के भाव हों तो जिन्दगी बड़े सुकून तरीके से सफल और सार्थक की जा सकती है। लेकिन ऐसा होता नहीं है, किसी-न-किसी वजह से हमें नकारात्मकता घेरे रहती है।


अगर सोचा जाए तो महत्वपूर्ण यह नहीं होता कि हमारे पास पीड़ाएं, असफलताएं, दर्द और निराशाएं कितनी हैं, जरूरी यह होता है कि आप उस दर्द, पीड़ा, असफलता के साथ किस तरह खुश रह पाते हैं। इसलिये जो कुछ मिला है या जो कुछ बचा है, उसे गले लगाएं बजाय असफलता या दर्द का गम मनाने के। जीवन में कई ऐसी घटनाएं होती हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। हालांकि हमारे पास विकल्प जरूर होता है- हम समय और घटनाओं को सहते हुए आगे बढ़ते रहें या फिर हार मान जाये। परिवेश बदलने से सब कुछ बदल जाएगा-यह सोच का अधूरापन है। जड़ की बात पर भी हमें जाना होगा, मूल तक जाना होगा। बाधक तत्त्वों का भी विचार करना होगा कि जीवन में बाधक तत्त्व कौन से हैं? 

जहां भी विश्वास बूझता है, संपूर्ण रचनात्मक शक्तियां धुंधली-सी हो जाती हैं। विश्वास से भरा मन परिस्थिति के अनुकूल स्वयं ढलता नहीं बल्कि उन्हें अपने अनुसार ढाल लेता है। एक युवा इंटरव्यू देने के लिए जाते वक्त यदि पूरे निश्चय और विश्वास भरा होता है तो नौकरी निश्चित है, क्योंकि निरीक्षक को यूं भी लगता है जैसे यही वह व्यक्ति है जिसकी हमें प्रतीक्षा है। विश्वास के अभाव में सफलताएं संभव नहीं, क्योंकि लड़ाई में युद्ध होने से पहले ही हथियार डाल देने वाला सिपाही कभी विजयी नहीं बनता। कार्य प्रारंभ होने से पहले ही यदि मन संदेह, भय, आशंका से भर जाए तो यह बुजदिली है। जरूरत सिर्फ अहसास की है। एक बार पूरे आत्मविश्वास के साथ स्विच दबा दें, पूरा जीवन रोशनी से भर जाएगा।

सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है साहसी मन का होना। मन यदि बुझा-बुझा-सा है तो शरीर कभी सक्रिय नहीं बन सकता। मन में स्वयं के प्रति विश्वास होना जरूरी है कि मुझे अनंत शक्ति का संचय है। मैं भी वो सब कुछ कर सकता हूं जो दूसरे लोग करते हैं। अपने कदमों पर खड़े होने का साहस भी जिनमें न हो तो भला ऐसे लोग क्या कर पायेंगे अपनी जिंदगी में? इसलिए महावीर ने उपदेश दिया-पराक्रमी बनो।

अपने लिए आप खुद जिम्मेदार हैं। सफल हैं या असफल, खुश हैं या नाखुश। जो करना है, आपको ही करना है। अपने हालात के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने का कोई मतलब नहीं होता। हर कोई अपने सुख-दुख, अपने ढंग से जी रहा है। ओशो के अनुसार, ‘यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर बनाने में लगा है।

अक्सर हमारे अन्दर अनजाने ही यह धारणा बन जाती है कि यदि हमें इच्छित नहीं मिला तो हम सुखी नहीं रह पायेंगे। यह धारणा निराधार है। कई बार वर्तमान में हमें जो असफलता अथवा विपत्ति दिखलाई पड़ती है, वही हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होती है, जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सफलता और संघर्ष साथ-साथ चलते हैं। चुनौतियां केवल बुलंदियों को छूने की नहीं होती, खुद को वहां बनाए रखने की भी होती है। ठीक है कि एक काम करते-करते हम उसमें कुशल हो जाते हैं। उसे करना आसान हो जाता है। पर वही करते रह जाना, हमें अपने ही बनाए सुविधा के घेरे में कैद कर लेता है। रोम के महान दार्शनिक सेनेका कहते हैं, ‘कठिन रास्ते भी हमें ऊंचाइयों तक ले जाते हंै।’ इसलिये कठिन रास्ता से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें आगे होकर स्वीकारना चाहिए।

कुछ भी हो सकता है और कुछ गलत ही होगा। इन दोनों में अंतर है। एक में उम्मीद है, तो दूसरे में आशंका। जबकि कुछ भी निश्चित न होना बताता है कि कुछ भी हो सकता है। प्रश्न उठता है कि जब कुछ तय नहीं है तो फिर सपने देखने और योजना बनाने का क्या अर्थ है? फिलेडेल्फिया की टैंपल यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर जाॅन एलेन पाउलोज कहते हैं, ‘अनिश्चितता ही एकमात्र निश्चितता है और यह जानना कि संकट का सामना कैसे करना है, एकमात्र सुरक्षा है।’ एक बार अपने ही जीवन को पीछे मुड़कर देखें। पायेंगे कि भविष्य के लिए आपकी उम्मीद ने ही आपको हर रुकावट का सामना करने में मदद की है। कई ऐसे मौके दिखाई देंगे, जो यह विश्वास देंगे कि हर समस्या सुलझाई जा सकती है। हर मतभेद दूर किया जा सकता है। यही आत्मविश्वास है।

आज यह तय करना जरूरी है कि जीवन धन्य है। हम जब स्वयं के प्रति धन्य होंगे तभी हम वास्तविक सफलताओं को सृजित कर सकेंगे। हम जो उद्देश्य लेकर घर से बाहर कदम रखते हैं उससे कभी विचलित नहीं होना चाहिए। डाॅ. अब्दुल कलाम की जिसने जीवनी पढ़ी है तो उसमें उन्होंने लिखा है कि जो हम सोचते है वह अवश्य पूर्ण होता है।’ जिंदगी को भरपूर जीना है तो पहले जानिए कि आप क्या हैं? आपकी क्षमताएं क्या हैं? भीतर का विज्ञान यही है कि जितना हम खुद को समझते हैं, खुद के साथ प्रयोग करते हैं, उतनी ही बाहरी निर्भरता कम हो जाती है। फिर आप अकेले भी पड़ जाएं तो डरते नहीं हैं। उलझते नहीं हैं। उद्यमी मैल्काॅम एस. फाॅब्र्स कहते हैं, ‘अधिकतर लोग, जो वे नहीं हैं उसे ज्यादा भाव देते हैं और जो हैं उसको कम।’ यही हमारी नकारात्मकता का कारण है। 

बुद्धिमान लोग छोटी से छोटी मदद के लिए भी आभार प्रकट करने में कंजूसी नहीं दिखाते। वे विनम्र होते हैं। किसी के कार्य के लिए दिल से प्रशंसा करना आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा भरता है। जितना संभव हो सके खुद को घृणा, गुस्सा और घबराहट से दूर रखें। नकारात्मक भाव न आपका भला करते हैं और न ही आपको आगे बढ़ने देते हैं।

जो हो गया, उसे हम स्वीकार नहीं कर पाते। और जो नहीं मिला, उसे छोड़ नहीं पाते। अधूरी ख्वाहिशों का दुख हमें उस सुख से भी दूर कर देता है, जो हमारा हो सकता था। शारीरिक परेशानियों से हार नहीं मानने वाली हेलन केलर ने कहा है, ‘खुशी का एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। हम बंद दरवाजे को ही देखते रह जाते हैं। उसे नहीं देख पाते, जिसे हमारे लिए खोला गया था।’

हर सफल एवं महान व्यक्ति में यह खास बात होती है कि वह अपने भीतर से आ रही आवाज को जरूर सुनता है। आप भी किसी बड़े निर्णय के वक्त अपनी आत्मा की आवाज को सुनना न भूलें। यह मायने नहीं रखता है कि यह आवाज छोटी है या बड़ी। लेकिन गौर करने पर आप पायेंगे कि आपके इरादों से उनका कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई रिश्ता जरूर है। भीतर से आ रहे ये सिग्नल आपके प्रतिभावान होने के संकेत भी हैं। आपका खुद पर विश्वास करना, कुछ ऐसा करने की प्रेरणा है, जो कुछ बिरले ही कर पाते हैं। 




(ललित गर्ग)
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स्वामी दयानन्द सरस्वती : धर्मक्रांति के साथ राष्ट्रक्रांति के प्रेरक

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महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोकहितकारी चिन्तन त्रैकालिक, सार्वभैमिक एवं सार्वदेशिक होता है और युग-युगों तक समाज का पथदर्शन करता है। स्वामी दयानंद सरस्वती हमारे ऐसे ही एक प्रकाश स्तंभ है। जिस युग में उन्होंने जन्म लिया उस समय देशी-विदेशी प्रभाव से भारतीय संस्कृति संक्रमण के दौर से गुजर रही थी और उसका पतन आरंभ हो गया था। उन्होंने भयाक्रांत, आडम्बरों में जकड़ी और धर्म से विमुख जनता को अपनी आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक एकता से संबल प्रदान किया। वे उन महान संतों-महापुरुषों में अग्रणी हैं जिन्होंने देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, विभिन्न प्रकार के आडंबरों व सभी अमानवीय आचरणों का विरोध किया। वे आधुनिक भारत के महान् चिन्तक, समाज सुधारक, क्रांतिकारी धर्मगुरु व देशभक्त थे। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने तथा हिंदू धर्म के उत्थान व इसके स्वाभिमान को जगाने हेतु स्वामीजी के महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारतीय जनमानस सदैव उनका ऋणी रहेगा।


स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म १२ फरवरी सन् १८२४ में काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में टंकरा नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्णजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।   महर्षि दयानन्द के हृदय में आदर्शवाद की उच्च भावना, यथार्थवादी मार्ग अपनाने की सहज प्रवृत्ति, मातृभूमि को नई दिशा देने का अदम्य उत्साह, धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक दृष्टि से युगानुकूल चिन्तन करने की तीव्र इच्छा तथा भारतीय जनता में गौरवमय अतीत के प्रति निष्ठा जगाने की भावना थी। उन्होंने किसी के विरोध तथा निन्दा की परवाह किये बिना हिन्दू समाज का कायाकल्प करना अपना ध्येय बना लिया था।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए है, संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। मैं मानता हूँ कि गीता में कुछ भी गलत नहीं है। इसके अलावा गीता वेदों के खिलाफ नहीं है। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा संन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में ‘स्वराज्य’ का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। सत्यार्थ प्रकाश के लेखन में उन्होंने भक्ति-ज्ञान के अतिरिक्त समाज के नैतिक उत्थान एवं समाज-सुधार पर भी जोर दिया उन्होंने समाज की कपट वृत्ति, दंभ, क्रूरता, अनाचार, आडम्बर, एवं महिला अत्याचार की भत्र्सना करने में संकोच नहीं किया। उन्होंने धर्म के क्षेत्र में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियों एवं ढकोसलों का विरोध किया और धर्म के वास्तविक स्वरूप को स्थापित किया। उनके जीवन में ऐसी बहुत सी घटनाएं हुईं, जिन्होंने उन्हें हिन्दू धर्म की पारम्परिक मान्यताओं और ईश्वर से जुड़ी भ्रान्त धारणाओं को बदलने के लिये विवश किया। एक बार शिवरात्रि को उन्होंने देखा कि शिवजी के लिए रखे भोग को चूहे खा रहे हैं। यह देख कर वे बहुत आश्चर्यचकित हुए और सोचने लगे कि जो ईश्वर स्वयं को चढ़ाये गये प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता वह मानवता की रक्षा क्या करेगा? इस बात पर उन्होंने अपने पिता से बहस की और तर्क दिया कि हमें ऐसे असहाय ईश्वर की उपासना नहीं करनी चाहिए। अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और वे १८४६ मे सत्य की खोज मे निकल पड़े। गुरु विरजानन्द के पास पहुंचे। गुरुवर ने उन्हें पाणिनी व्याकरण, पातंजलि-योगसूत्र तथा वेद-वेदांग का अध्ययन कराया। गुरु दक्षिणा में उन्होंने मांगा- विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत-मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो, वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो। यही तुम्हारी गुरुदक्षिणा है। महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए। वे कलकत्ता में बाबू केशवचन्द्र सेन तथा देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। केशवचन्द्र सेन ने स्वामीजी को यह सलाह दे डाली कि यदि आप संस्कृत छोड़ कर हिन्दी में बोलना आरम्भ करें, तो देश का असीम उपकार हो सकता है। तभी से स्वामीजी ने हिन्दी में उपदेश देना प्रारंभ किया, इससे विभिन्न प्रान्तों में उन्हंे असंख्य अनुयायी मिलने लगे। 

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन-मन्थन किया था। उन्होंने ईसाइयत और इस्लाम के विरूद्ध मोर्चा खोला, सनातनधर्मी हिंदुओं के खिलाफ संघर्ष किया। इस कारण स्वामीजी को तरह-तरह की परेशानियां झेलनी पड़ी, अपमान, कलंक और कष्ट झेलने पड़े। संघर्ष उनके लिये अभिशाप नहीं, वरदान साबित हुआ। आंतरिक आवाज वही प्रकट कर सकता है जो दृढ़ मनोबली और आत्म-विजेता हो। दयानन्द ने बुद्धिवाद की जो मशाल जलायी थी, उसका कोई जवाब नहीं था। वे जो कुछ कह रहे थे, उसका उत्तर न तो मुसलमान दे सकते थे, न ईसाई, न पुराणों पर पलने वाले हिन्दू पण्डित और विद्वान। हिन्दू नवोत्थान अब पूरे प्रकाश में आ गया था। और अनेक समझदार लोग मन ही मन अनुभव करने लगे थे कि वास्तव में पौराणिक धर्म की पोंगापंथी में कोई सार नहीं है। इस तरह धर्म के वास्तविक स्वरूप से जन-जन को प्रेरित करके उन्होंने एक महान् क्रांति घटित की। उनकी इस धर्मक्रांति का सार था कि न तो धर्मग्रंथों में उलझे और न ही धर्म स्थानों में। उनके धर्म में न स्वर्ग का प्रलोभन था और न नरक का भय, बल्कि जीवन की सहजता और मानवीय आचार संहिता का ध्रुवीकरण था। 

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने न केवल धर्मक्रांति की बल्कि परतंत्रता में जकड़े देश को आजादी दिलाने के लिये राष्ट्रक्रांति का बिगुल भी बजा दिया। इसके लिये उन्होंने हरिद्वार पहुँच कर वहां एक पहाड़ी के एकान्त स्थान पर अपना डेरा जमाया। वहीं पर उन्होंने पाँच ऐसे व्यक्तियों से मुलाकात की, जो आगे चलकर सन् १८५७ की क्रान्ति के कर्णधार बने। ये पांच व्यक्ति थे नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तात्या टोपे तथा बाबू कुंवर सिंह। बातचीत काफी लम्बी चली और यहीं पर यह तय किया गया कि फिरंगी सरकार के विरुद्ध सम्पूर्ण देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधारभूमि तैयार की जाए और उसके बाद एक निश्चित दिन सम्पूर्ण देश में एक साथ क्रान्ति का बिगुल बजा दिया जाए। सन् १८५७ की क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामीजी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी और वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे। वे अपने प्रवचनों में श्रोताओं को प्रायः राष्ट्रवाद का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे। उन्होंने यह अनुभव किया कि लोग अब अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से तंग आ चुके हैं और देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने को आतुर हो उठे हैं।

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से समाज-सुधार के अनेक कार्य किए। छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह, नर बलि, धार्मिक संकीर्णता तथा अन्धविश्वासों के विरुद्ध उन्होंने जमकर प्रचार किया और विधवा विवाह, धार्मिक उदारता तथा आपसी भाईचारे का उन्होंने समर्थन किया। इन सबके साथ स्वामीजी लोगों में देशभक्ति की भावना भरने से भी कभी नहीं चूकते थे। प्रारम्भ में अनेक व्यक्तियों ने स्वामीजी के समाज सुधार के कार्यों में विभिन्न प्रकार के विघ्न डाले और उनका विरोध किया। धीरे-धीरे उनके तर्क लोगों की समझ में आने लगे और विरोध कम हुआ। उनकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ने लगी। उनके विराट व्यक्तित्व को किसी उपमा से उपमित करना उनके व्यक्तित्व को ससीम बनाना होगा। उनकी जन्म जयन्ती मनाने की सार्थकता तभी है जब हम उनके बताये मार्ग पर चलते हुए गुणवत्ता एवं जीवनमूल्यों को जीवनशैली बनाये। 


(ललित गर्ग)
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आलेख : यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है,राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही है।

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उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी हैं तो कोई मां बाप,कोई रिश्ता नाता सुरक्षित नहीं है। दरअसल असल अपराधी तो हम भारत के नागरिक हैं जो पिछले 26 सालों से लगातार परिवार,समाज,संस्कृति ,लोक , जनपद, उत्पादन, अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर ऐसा नरसंहारी मुक्तबाजार बनाते रहे हैं। अखंड क्रयशक्ति की कैसलैस डिजिटल अमेरिकी जीवनशैली यही है।जो अब मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र है,जहां श्रम और उत्पादन सिरे से खत्म है और सामाजिक सांस्कृतिक उत्पादन संबंधों का तानाबाना खत्म है और उसकी सहिष्णुता , उदारता, विविधता और बहुलता की जगह एक भयंकर उपभोक्तावादी उन्माद है जिसका न श्रम से कोई संबंध है और न उत्पादन प्रणाली से और जिसके लिए परिवार या समाज या राष्ट्र जस्ट लिव इन डिजिटल कैशलैस इंडिया मेकिंग इन है।यही हुिंदुत्व है। नकदी के तकनीक जरिये हस्तांतरण से अर्थ तंत्र का भयंकर अपराधीकरण हो रहा है और बेहतर तकनीक वाले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार होंगे।मां बाप के कत्लेआम का सारा सामान,मुकम्मल माहौल बना रहा है हिंदुत्व का यह कारपोरेट डिजिटल अर्थतंत्र।





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भोपाल में बंगाल की 28 साल की बेटी आकांक्षा अपने प्रेमी उदयन दास के साथ लिव इन कर रही थी।वह महीनों पहले अमेरिका में युनेस्को की नौकरी की बात कहकर बांकुड़ा में बैंक के चीफ मैनेजर पिता के घर से निकली थी।इस प्रेमकथा का अंत त्रासद साबित हुआ जब भोपाल में उदयन दास के घर में पूजा बेदी के नीचे दफनायी हुई सीमेंट की ममी बना दी गयी आकांक्षा का नरकंकाल निकला। किसी प्रेमकथा की ऐसी भयानक अंत आजकल कही न कहीं किसी न किसी रुप में दीखता रहता है।आनर किलिंग,भ्रूण हत्या और दहेज हत्या और स्त्री उत्पीड़न के तमाम मुक्तबाजारी वारदातों के साथ बिन ब्याह लिव इन संबंधों की ऐसी परिणति अमेरिकी संस्कृति की तरह हमारी नींद में खलल नहीं डालती। जैसे हम नरसंहारों क अभ्यस्त हैं,जैसे हम बलात्कार सुनामियों के अभ्यस्त है,जैसे हम दलितों और स्त्रियों पर उतक्पीड़न के अभ्यस्त हैं,वैसे ही मुक्तबाजारी वारदातें अब रोजमर्रे की जिंदगी है। अब बारी किसकी है,कहीं हमारी तो नहीं,इसकी कोई परवाह किसी को नहीं है।

मुक्तबाजार में पागल दौड़ अब हमारा लोकतंत्र है।
मुक्तबाजार में पागल दौड़ मजहबी सियासत है तो अखंड कारपोरेट राज भी यही।इसी  पागल दौड़ में हमारा रीढ़विहीन कंबंध वजूद है। सदमा तब गहराता है जब प्रेमिका को ठंडे दिमाग से मारने वाला शराब पीकर जीने वाला कार फ्लैटवाला रईस प्रेमी बिना किसी हिचक के अपने मां बाप का कत्ल करके रायपुर में अपने ही घर के आंगन में उनकी लाशें दफना देने का जुर्म पुलिस पूछताछ में कबूल करता है और 24 घंटे के भीतर उसी घर के आंगन में मां बाप की लाशें मिल जाती हैं। किसी भी मां बाप के लिए किसी बच्चे की यह क्रूरता भयंकर असुरक्षाबोध का सबब है क्योंकि उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी हैं तो कोई मां बाप,कोई रिश्ता नाता सुरक्षित नहीं है। दरअसल असल अपराधी तो हम भारत के नागरिक हैं जो पिछले 26 सालों से लगातार परिवार,समाज,संस्कृति ,लोक , जनपद, उत्पादन, अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर ऐसा नरसंहारी मुक्तबाजार बनाते रहे हैं।

यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है,राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही है।
अखंड क्रयशक्ति की कैसलैस डिजिटल अमेरिकी जीवनशैली यही है।जो अब मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र है,जहां श्रम और उत्पादन सिरे से खत्म है और सामाजिक सांस्कृतिक उत्पादन संबंधों का तानाबाना खत्म है और उसकी सहिष्णुता, उदारता, विविधता और बहुलता की जगह एक भयंकर उपभोक्तावादी उन्माद है जिसका न श्रम से कोई संबंध है और न उत्पादन प्रणाली से और जिसके लिए परिवार या समाज या राष्ट्र जस्ट लिव इन डिजिटल कैशलैस इंडिया मेकिंग इन है।यही हुिंदुत्व है। उदयन दास हत्यारा है जिसने प्रेमिका की हत्या से पहले अपने मां बाप की हत्या की है।अपने अपराधों को उसने डिजिटल तकनीक की तरह सर्जिकल स्ट्राइक की तरह बिना सुराग अंजाम दिया है,परिवार और समाज से उसका कोई संपर्क सूत्र नहीं है और उपभोक्ता जीवन के लिए उसके लिए सारे संबंध बेमायने हैं,जिनकी कोई बुनियाद नहीं है। जाहिर है कि वह एक मानसिक अपराधी है और क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है।यह बीमारी मुक्तबाजार का उपभोक्तावाद है। सबसे खतरनाक बात यह है कि मुक्तबाजार के इसी उपभोक्तावाद के लिए सारा का सारा अर्थतंत्र बदला जा रहा है।यही बजट का सार है।आर्थिक सुधार,पारदर्शिता है।

यह आर्थिक क्रांति भी रामराज्य और राममंदिर के नाम हो रहा है।
भारतीय जनसंघ के जमाने में कोई बलराज मधोक इसके अध्यक्ष भी बने थे शायद,ठीक से याद नहीं पड़ता क्योंकि साठ के दशक में तब हम निहायत बच्चे थे। अब चूंकि संघ परिवार को श्यामाप्रसाद मुखर्जी,वीर सावरकर और गांधी हत्यारा के अलावा अपने जीवित मृत सिपाहसालारों की याद नहीं आती,इसलिए दशकों से बलराज मधोक चर्चा में नहीं हैं। बलराज मधोक साठ के दशक में भारतीयकरण की बात करते थे। जनसंघ तब भारतीयकरण के एजंडे पर था।यानी भारत में रहना है तो भारतीय बनना होगा और जाहिर है कि संघ परिवार की भारतीयता से तात्पर्य हिंदुत्व से है। अब भी संघ परिवार के झोलाछाप विशेषज्ञ, सिद्धांतकार हिंदुत्व को धर्म के बदले संस्कृति बताते हुए सभी भारतवासियों के हिंदुत्वकरण पर आमादा हैं। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि समूचा लोकतंत्र,सारी की सारी राष्ट्र व्यवस्था,राजकाज, नीति निर्माण,संसदीय प्रणाली,लोकतांत्रिक संस्थाएं,मीडिया और माध्यम,अर्थव्यवस्था और समूचा सांस्कृतिक परिदृश्य,शिक्षा और आधारभूत संरचना ऐसे झोलाछाप विशेषज्ञों और सिद्धांतकारों के शिकंजे में हैं। नोटबंदी से लेकर बजट,रिजर्व बैंक से लेकर विश्वविद्यालय हर स्तर पर अंतिम फैसला इन्हीं मुक्तबाजारी भूखे प्यासे बगुला भगतों का है।उन्ही का राज,राजकाज है।  मुक्तबाजार के कारपोरेट हिंदुत्व का अब सिरे से अमेरिकी करण हो गया है।मसलन डिजिटल कैशलैस लेनदेन भारतीय संस्कृति और परंपरा में किसी भी स्तर पर नहीं है।संघ परिवार की महिमा से रामराज्य में यही स्वदेशी नवजागरण है। नकदी के तकनीक जरिये हस्तांतरण से अर्थ तंत्र का भयंकर अपराधीकरण हो रहा है और बेहतर तकनीक वाले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार होंगे।मां बाप के कत्लेआम का सारा समान बना रहा है हिंदुत्व का यह कारपोरेट डिजिटल अर्थतंत्र। कयामती फिजां की इंतहा है यह।अब इस अर्थतंत्र के डिजिटल धमाके में परिवार,समाज,राष्ट्र ,सारे के सारे पारिवारिक सामाजिक उत्पादन संबंध खत्म हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बाजार की गतिविधियां भी सामाजिक कार्य कलाप है।यहां जनदों में हाट बाजार ब भी कमोबेश चौपाल की तरह काम करते हैं,जहां लेनदेन के तहत समाजिक और उत्पादन संबंध की अनिवार्यता है।
अब तीन लाख रुपये से ज्यादा कैश रखने पर सौ फीसद जुर्माना के साथ नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट से उबरने के साथ नोटबंदी को जायज ठहराने के लिए कर सुधारों के साथ जो बजट पेश किया गया है,वहां बाजार की भारतीयता को सबसे पहले खत्म कर दिया गया है।

बाजार अब मुक्तबाजार है जो किसानों,मजदूरों ,कारोबारियों,बहुजनों,स्त्रियों और बच्चों के साथ साथ युवा पीढ़ियों का अबाध वधस्थल वैदिकी है।इस  बाजार का उत्पादन प्रणाली ,मनुष्यों,समाज,सभ्यता और संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है। डिजिटल कैशलैस क्रयशक्ति का उपभोक्ता वाद हिंदुत्व का नया अंध राष्ट्रवाद है।बेतहाशा बढ़ते विज्ञापनी उपभोक्ता बाजार के निशाने पर बच्चे हैं। तकनीकी क्रांति में ज्ञान की खोज सिरे से खत्म है तो शिक्षा अब नालेज इकोनामी है यानी हर हाल में संबूक हत्या अनिवार्य है। अंधाधुंध उपभोक्तावाद अब कारपोरेट हिंदुत्व है और इस कारपोरेट हिंदुत्व के लिए परिवार,विवाह,समाज,लोकतंत्र,संविधान,कानून का राज वैसे ही फालतू हैं जैसे समता,सामाजिक न्याय,विविधता और बहुलता,उदारता और सहिष्णुता। इस अमेरिकी हिंदुत्व के नये प्रतीक के बतौर उदयन दास का चेहरा है और सबसे खतरनाक बात तो यह है कि हर गली मोहल्ले में,गांव शहर में,हर परिवार में एलसीडी, कंप्यूटर, मोटरसाईकिल, फ्लैट ,गाड़ी लिव इन पार्टनर के लिए बच्चे क्रमशः अपराधी और हत्यारे में तब्दील हो रहे हैं। पूरी मुक्तबाजारी नई धर्मोनेमादी पीढ़ी अब क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है।बाहैसियत वारिस विरासत के हस्तांतरण तक रुकर उपभोग को विलंबित करने के मूड में नहीं है नई पीढ़ी।

उसे बाजार की हर तमकीली भड़कीली चीजे तुंरत चाहिए।
दूधमुंहा बच्चे तक स्मार्टफोन के रोज नये अवतार के लिए हंगामा बरपा देते हैं। जोखिम भरे डिजिटल कैशलैस लेनदेनके साथ तकनीक बेहतर जानने वाले बच्चों का गृहयुद्ध अब नया महाभारत की पटकथा है। उदयन दास अकेला अपराधी नहीं है। मुक्तबाजार बड़े पैमाने पर बच्चों को अपराधी बना रहा है। बंगाल में दुर्गापूजा के बाजार फेस्टिवल में महंगी खरीददारी के लिए क्रयशक्ति न होने की वजह से गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों में बच्चों की आत्महत्या आम है। कोलकाता में ही मां,बाप,दादा दादी और भाई बहन की मुक्तबाजारी उन्माद की वजह से हत्या अऱकबारी सुर्खियां और टीवी की सनसनी है। आकांक्षा की प्रेमकथा के प्रसंग में वे सारी कथाएं उपकथाएं सनसनीखेज तरीके से फिर अखबारी पन्नों पर हैं और टीवी के परदे पर हैं। यह क्राइम सस्पेंस और हारर मुक्तबाजार की संस्कृति है और इस उपभोक्ता युद्धोन्माद में कोई परिवार या कोई मां बाप सुरक्षित नहीं है। गौरतलब है कि भोपाल और रायपुर की मूलतः देशज कस्बाई संस्कृति से जुड़े नये महानगरों का किस्सा आकांक्षा उदयन है।यह अबाध केसरिया अमेरिकीकरण का सिलसिलेवार विस्फोट है।भूकंप के निरंतर झटके हैं जो कभी भी तबाही में तब्दील हैं। कोलकाता,दिल्ली,मुंबई,बंगलूर से सलेकर अत्याधुनिक असंख्य उपनगरों और स्मार्ट शहरों में इसका अंजाम कितना भयानक होगा,यह देखना बाकी है। विडंबना है कि रामराज्य का वैचारिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं और इसके विपरीत भारतीय संविधान और भारतीय लोकगणराज्य का प्रतीक धम्मचक्र है। संविधान और लोकगणराज्य और इनके प्रतीक धम्मचक्र जाहिर है कि बजरंगवाहिनी के रामवाण के निशाने पर हैं।  रामराज्य के भव्य राममंदिर के निरमाण के लिए सबसे पहले संविधान, लोकगणराज्य और उसके प्रतीक धम्मचक्र का सफाया जरुरी है और उनमें निहित मौलिक सिद्धांत,विचारधारा,आदर्श,कायदा कानून, समता,सहिष्णुता,उदारता, लोकतंत्र,न्याय,नागरिकता,नागरिक और मौलिक अधिकारों के खात्मे के साथ साथ मुकम्मलमनुस्मृति राज अनिवार्य है और संयोग से  राम उसके भी प्रतीक हैं जो मनुस्मृति की वर्ण व्यवस्था को लागू करनेके लिए शंबूक की हत्या करते हैं और मनुस्मृति साम्राज्य के लिए अश्वमेध यज्ञ का वैदिकी आयोजन करके जनपदों को रौंद डालते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम पितृसत्ता का निर्मम प्रतीक भी हैं जो सतीत्व की अवधारणा का जनक है और उनका न्याय सीता की अग्निपरीक्षा और सीता का ही गर्भावस्था में वनवास है।रामराज्य में सामाजिक न्याय और समता का यही रसायन शास्त्र है जो अब मुक्तबाजार का भौतिकीशास्त्र और अर्थशास्त्र भी है।

सत्ता पर वर्गीय,नस्ली कब्जा और संसाधनों,अवसरों से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में सत्ता वर्ग का जन्मजात जमींदारी वर्चस्व बनाये रखकर समता और सामाजिक न्याय को सिरे से खत्म करने के लिए मजहबी सियासत जिस तरह कारपोरेट और नरसंहारी हो गयी है,उसमें कानून का राज जैसे हवाई किला है,लोकतंत्र उसी तरह ख्वाबी पुलाव है और विचारधारा विशुध वैदिकी कर्मकांड का पाखंड है। इसका कुल नतीजा दस दिगंत सर्वनाश है। अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली का विध्वंस है और राष्ट्र का,समाज का परिवार का,संस्थानों का खंड खंड विभाजन है।सारा तंत्र मंत्र यंत्र समरसता के नाम संपन्नता क्रयशक्ति के हितों में वर्गीय समझौता है और विचारधारा पाखंड है। मजहबी सियासत का कुल नतीजा मुक्त बाजार है और मुक्तबाजार मजहबी सियासत में तब्दील है।सभ्यता और संस्कृति का अंत है तो विचारधारा और इतिहास का अंत है। विडंबना है कि भारतीय धर्म कर्म राष्ट्रीयता के साथ साथ भारतीय संस्कृति और इतिहास का स्वयंभू धारक वाहक संस्थागत संघ परिवार है और देश में सत्ता की कमान उसी के हाथ में है। राजकाज और नीति निर्धारण में संसदीय प्रणाली और लोकतांत्रिक संस्थानों को हाशिये पर रखकर कारपोरेट हितों के मुताबिक ग्लोबल हिंदुत्व का एजंडा संघ परिवार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और मुफ्त में नस्ली रंगभेद के नये मसीहा डान डोनाल्ड अब उनका विष्णु अवतार है। ट्रंप कार्ड से लैस हिंदुत्व की सरकार अर्थव्वस्था को उत्पादन प्रणाली से उखाड़कर कारपोरेट शेयर बाजार में तब्दील करके एकाधिकार आवारा पूंजी के वर्चस्व को स्थापित करने के मकसद से मुक्त बाजार के विस्तार को वित्तीय प्रबंधन में तब्दील कर चुका है और इसी सिलसिले में उसने नोटबंदी का रामवाण का इस्तेमाल करके यूपी दखल के जरिये राज्यसभा में बहुमत के लिए फिर राममंदिर का जाप करने लगा है।

नोटबंदी के बाद रेलवे को समाहित करके जो पहला बजट निकला है संघ परिवार के राम तुनीर से उसका कुल मकसद टैक्स सुधार है ताकि आम जनता पर सारे टैक्स और कर्ज को बोझ लाद दिया जाये। डिजिटल कैसलैस सोसाइटी का मकसद भी खेती और व्यापार में लगे बहसंख्य बहुजन सर्वहारा का नरसंहार है। रेलवे का निजीकरण खास एजंडा है प्राकृतिक संसाधनों और बुनियादी सेवाओं की निलामी के साथ साथ ,रक्षा,आंतरिक सुरक्षा,परमाणू ऊर्जा, बैंकिंग, बंदरगाह, संचार, ऊर्जा, बिजली पानी सिंचाई,निर्माण विनिर्माण,खनन कोयला इस्पात, परिवहन, उड्डयन,तेल गैस,शिक्षा,चिकित्सा,औषधि,उर्वरक,रसायन,खुदरा कारोबार  समेत तमाम सेक्टरों में अंधाधुंध विनिवेश और निजीकरण संघी रामराज्य का वसंत है,पर्यावरण ,जलवायु और मौसम है। वायदा था बुलेट ट्रेनों का तो पटरियों पर निजी ट्रेनें दौड़ाने की तैयारी है और यात्री सुरक्षा के बजाय तमाम यात्री सेवाएं कारपोरेट हवाले है।

रेलकर्मचारियों पर छंटनी की तलवार है।
रेलवे पर संसद में किसी किस्म की विशेष चर्चा रोकने के लिए अबाध निजीकरण के मकसद से भारतीय रेल कारपोरेट हवाले पर पर्दा डालने के लिए रेल बजट बजट में समाहित है और नई पुरानी परियोजनाओं का कोई ब्यौरा नहीं है। आर्थिक सुधारों को राजनीतिक सुधारों की चाशनी में डालकर लोक लुभावन बनाने का फंडा डिजिटल कैशलैस है तो नोटबंदी की वजह से सुरसामुखी हो रहे बजट घाटा,वित्तीय घाटा मुद्रास्फीति और मंहगाई,गिरती विकास दर, तबाह खेत खलिहान जनपद,तहस नहस उत्पादन प्राणाली,तबाह खेती,कारोबार और काम धंधे, बेरोजगारी, भुखमरी और मंदी के सर्वव्यापी संकट से निबटकर सुधारों के नरसंहारी कार्यक्रम को तेज करने का हिंदुत्व नस्ली एजंडा यह बजट है। गांधी ने पूंजीवादी विकास को पागल दौड़ कहा था तो अंबेडकर ने बहुजनों को सामाजिक बदलाव और जाति उन्मूलन के एजंडे के साथ दो शत्रुओं कसे लड़ने का आह्वाण किया था-पूंजीवाद के खिलाफ और ब्राह्मणवाद के खिलाफ। आजादी के सत्तर साल बाद सारा का सारा तंत्र ब्राह्मणवादी है और रामराज्य के जरिये तथागत गौतम बुद्ध की क्रांति में खत्म ब्राह्मणवाद का पुनरूत्थान सर्वव्यापी है और पूरा देश अब आर्यावर्त है तो अमेरिका को भी आर्यावर्त बनाने की तमन्ना है। 1991 से भारतवर्ष लगातार अमेरिका बन रहा है।डिजिटल कैशलैस आधार अनिवार्य भारत अमेरिका बनते बनते पूरी तरह अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील है। हिंदुत्व एजंडा की पूंजी मुसलमानों के खिलाफ घृणा और वैमनस्य का अंध राष्ट्रवाद है तो सोना पर सुहागा यह है कि डान डोनाल्ड ने मुसलमानों और काली दुनिया के खिलाफ तीसरे विश्वयुद्ध का ऐलान कर दिया है। इस तीसरे विश्वयुद्ध में भारत अब अमेरिका और इजराइल का पार्टनर है तो संघ परिवार की समरसता का नया पंडा है कि अगला राष्ट्रपति ब्राह्मण होगा और उपराष्ट्रपति दलित।वर्ग समझौते का यह नायाब उपक्रम है तो अर्थव्यवस्था के साथ साथ रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का सत्यानाश करने के बाद शगूफा है कि नये नोट पर गांधी के बजाय अंबेडकर होंगे। बहुत ताज्जुब नहीं है कि हिंदू धर्मस्थलों पर बहुत जल्द तथागत गौतम बुद्ध और अंबेडकर के साथ डान डोनाल्ड की मूर्ति की भी प्राण प्रतिष्ठा हो जाये और तीनों एकमुश्त भगवान विष्णु के अवतार घोषित कर दिये जाये।नया इतिहास जैसे रचा जा रहा है,वैसे ही नये धर्म ग्रंथ रचने में कोई बाधा नहीं है। बहुसंख्य का अंधा राष्ट्रवाद लोकतंत्र और संविधान,कानून के राज,नागरिकत और मानवाधिकार,स्त्री बच्चों युवाजनों के साथ साथ वंचित वर्ग के लिए नरसंहार के वास्ते ब्रह्मास्त्र है।इस ब्रह्मास्त्र को कानूनी जामा संसद में पेश नया बजट है।  सन 1991 से बजटअगर पोटाशियम सायोनाइड का तेज जहर रहा है तो अब यह विशुध हिरोशिमा नागासाकी बहुराष्ट्रीय कारपोरेट उपक्रम है।

जनादेश आत्मघाती भी होता है।
विभाजित अमेरिका इसका ताजा नजीर है जो आधी से ज्यादा जनता को मंजूर नहीं है। अमेरिकी संसदीय परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों के वावजूद राजकाज के हर फैसले और समझौते को संसद में कानून बनाकर लागू करने की परंपरा है,उसे तिलांजलि देकर व्हाइट हाउस में चरण धरते ही डान डोनाल्ड एक के बाद एक एक्जीक्युटिवआर्डर के जरिये संसद को बाईपास करके अपने नस्ली कुक्लाक्स श्वेत तांडव से दुनिया में सुनामियां पैदा कर रहे हैं। गौरतलब है कि हिटलर और मुसोलिनी भी लोकप्रिय जनादेश से पैदा हुए थे। भारत में वहीं हो रहा है जो दोनों विश्वयुद्धों के दरम्यान जर्मनी और इटली में हुआ था या जो डान डोनाल्ड का राजकाज है।अब हिटलर,मुसोलिनी और डान डोनाल्ड हमारे अपने हुक्मरान हैं और हम उनके गुलाम प्रजाजन हैं।




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(पलाश विश्वास)

समाज : चुनावी अनुष्ठान में अनिवार्य मतदान जरूरी क्यों?

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उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर मतदाता को अपने भाग्य का फैसला करने का अधिकार मिला है। यदि मतदाता सशक्त  और स्वस्थ लोकतंत्र चाहता है तो उसे कम-से-कम मतदान में उत्साह का प्रदर्शन करना होगा और अधिकतम मतदान को संभव बनाना होगा। मतदान के प्रति मतदाता की उदासीनता ने ही लोकतंत्र को कमजोर बनाया है। अनेक मोर्चाें पर अधिकतम मतदान के लिये प्रयास किये जा रहे हैं, विशेषतः युवापीढ़ी इसके लिये जागरूक हुई है यह एक शुभ संकेत है। यही कारण है कि विधानसभा चुनावों के पहले चरण में पंजाब और गोवा में क्रमशः 78.6 और 83 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके लिए चुनाव आयोग और ‘आओ मतदान करे’-अभियान से जुडे़ विभिन्न पक्ष बधाई के पात्र है। चुनाव आयोग को तो इसके लिये व्यापक प्रयत्न करने ही होंगे, जैसाकि इस बार उसने गोवा में पहली बार मतदान करने वाली लड़कियों को टैडी बियर और लड़कों को पेन बांटी है। चुनाव आयोग की यह प्रभावी भूमिका प्रशंसनीय है। वैसे, पंजाब और गोवा दोनों पहले भी अधिकतम मतदान वाले राज्य रहे हैं। इन दोनों राज्यों में जो पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था, उसमें भी दोनों जगह मतदान का प्रतिशत 75 से ज्यादा था। अन्य राज्यों और वहां के मतदाताओं को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।


चुनाव आयोग के निर्देश, आदेश, प्रोत्साहन योजनाएं एवं व्यवस्थाएं स्वागतयोग्य है, पर पर्याप्त नहीं है। इसमें मतदाता की जागरूकता, संकल्प और विवके ही प्रभावी भूमिका अदा करेंगे। क्योंकि जागरूक मतदाता ही लोकतंत्र का रक्षक होता है। वह यदि जागरूक हो जाए तो अनेक राजनीतिक विसंगतियों एवं विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है। इससे राजनीति को भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से मुक्ति मिलेगी और लोकतंत्र मजबूत होगा। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के नजरिए से पार्टियों ने बाहुबलियों को भी अपना उम्मीदवार बनाने में संकोच नहीं किया है, लेकिन ऐसे उम्मीदवारों को वोट न देकर मतदाता नकार सकता है। इसी तरह सजा पाए लोगों या जिनकी छवि आपराधिक है, मुकदमे भी चल रहे हैं, ऐसे उम्मीदवारों को  रोकने का काम तो प्रभावी ढंग से मतदाता ही कर सकते हैं। राजनीति में भ्रष्ट लोगों के बढ़ते वर्चस्व के कारण नौकरशाही भी बेलगाम और भ्रष्ट हो गई है। इन सब का खमियाजा अंततः जनता को ही भुगतना पड़ता है। किसी भी लोकतांत्रिक अनुष्ठान या यज्ञ में संकल्प के बिना विजय नहीं मिल सकती है। इसलिए जनता यदि यह ठान ले कि वह पढ़े-लिखे और ईमानदार लोगों को ही वोट देगी तो कोई माफिया, बाहुबली और भ्रष्टाचारी चुनाव नहीं जीत सकता है और इसके लिये मतदान में अधिकतम हिस्सेदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। 

देखने में आ रहा है कि पिछले एक दशक में भारतीय जनता में अपने इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने की चेतना जागी है। पहले केवल गांवों में ही मतदान के प्रति उत्साह देखने को मिलता था, अब शहरों में भी उल्लेखनीय मतदान होने लगा है। शहरों में वे लोग भी वोट देने के लिए घर से निकलने लगे, जो पहले मतदान के दिन आसपास कहीं छुट्टी मनाने चले जाते थे। देश की राजनीति की दिशा एवं दशा तय करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाता की उदासीनता को भंग करना जरूरी है। यहां का मतदाता चुनाव को लेकर बाकी राज्यों जितना उत्साहित नहीं रहता। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इस प्रदेश में सामाजिक ध्रुवीकरण जरूरत से ज्यादा है। इस बार भी डर यही है कि मत प्रतिशत कहीं पिछली बार से कम न हो जाए। यदि आप अपने मताधिकार का उपयोग नहीं करेंगे और मतदान के समय सही फैसला नहीं करेंगे तो आप अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का भला नहीं कर सकते। ऐसी हालत में चर्चिल की वह भविष्यवाणी सही सिद्ध हो जाएगी कि ‘भारतीय शासन करना नहीं जानते और इनकी आजादी का मतलब इनकी बर्बादी होगा।’ इसलिए यह आप के विवेक की परीक्षा का समय है। आप अपने मत का अवश्य उपयोग करें और सही फैसला लेकर उन्हें चुनिए जो ईमानदारी के साथ सरकार चला सकें, नैतिक-स्वस्थ शासन दे सकें और जनता को भी न्याय दे सकें।

भारत में चुनाव सुधार एवं अनिवार्य मतदान के माध्यम से लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास संभव है। इसी ध्येय से मतदाता संगठन ने ‘चलो वोट देने’ अभियान का शुभारंभ किया गया है ताकि मतदान का औसत प्रतिशत 55 से 90-95 प्रतिशत तक ले जाया जा सके। मतदान करना मौलिक नागरिक अधिकार है और कर्तव्य भी है, इसके सही प्रयोग को बढ़ाकर ही लोकतांत्रिक प्रणाली में अपने निजी स्वार्थ साधने वाले स्वयंसेवी, अपराधी तथा भ्रष्ट लोगों की घुसपैठ को रोका जा सकता है। मतदाता की उदासीनता के कारण ही अपराधी और माफिया विधायक, सांसद और मंत्री तक बन जाते हैं। अब समय आ गया है कि मतदाता राज-काज को ऐसे लोगों से छुटकारा दिलाने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें। मतदाता अपनी पसंद जाहिर करके राजनीतिक दलों में घुसे अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। चुनाव आयोग ने भी राजनीतिक दलों को जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगने का निर्देश दिया है। ऐसा करना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगने को भ्रष्ट आचरण बताया है। लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठा एवं स्वस्थ शासन प्रणाली के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मताधिकार के उपयोग को अनिवार्य बनाया जाना जरूरी है। अपने मताधिकार का सही प्रयोग कीजिए और दूसरे लोगों को भी यह बताइए कि हम अपनी राजनीति को अपने मतदान से साफ-सुथरा बना सकते हैं। आप चाहें तो उन लोगों को नकार सकते हैं जिन्होंने जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है या गैर-जिम्मेदार रहे हैं। आप उन लोगों को चुन सकते हैं जिनकी छवि साफ-सुथरी अपराधमुक्त हो और जो सदन में आप की आवाज बन सकें।

मतदान को अनिवार्य किया जाना या उसके प्रतिशत बढ़ाने की अपेक्षा है, इसके लिये समूचे भारत में सभी मतदाताओं के स्वैच्छिक, गैरराजनैतिक, पंथ और सम्प्रदाय निरपेक्ष संगठन बनायेे जाने चाहिए। प्रत्येक नागरिक जागरूक हो, योग्य हो, अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के प्रति सजग हो। तभी प्रजातंत्र सर्वगुणकारी श्रेष्ठ राज्य व्यवस्था सफल होती है। नागरिक सजगता ही प्रजातंत्र की रक्षा सुनिश्चित करती है। नागरिक सजगता बढ़ेगी तो लोकतंत्र की गुणवत्ता बढ़ेगी, लोकतंत्र में जनता को फायदा बढ़ेगा। जन-जन की आशा पूरी होगी। हमारे नेता, हमारे अधिकारी, हमारी व्यवस्था सिर्फ नागरिक सजगता के द्वारा ही सही और सुदृढ़ रह सकती है। आप प्रजातंत्र की गुणवत्ता बढ़ायेंगे तभी प्रजातंत्र आपके लिए हितकारी होगा, अन्यथा नहीं।  जिस देश के शासक यह कहते हैं कि जनता को सोचने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए देखेगी। जनता को बोलने की अपेक्षा नहीं है, सरकार उसके लिए बोलेगी और जनता को कुछ करने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए करेगी। क्या शासक इन घोषणाओं के द्वारा जनता को पंगु, अशक्त और निष्क्रिय बनाकर लोकतंत्र की हत्या नहीं कर रहे हैं? राष्ट्र के रूप में हमें जागरूक होना पड़ेगा। जो राष्ट्र या व्यक्ति केवल अच्छा समय आने का इंतजार करता रहेगा, वह कुछ हासिल नहीं कर पाएगा, क्योंकि सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र या व्यक्ति वही बनता है जो वक्त का इंतजार नहीं करता और स्वयं पहल करता है। इसलिए मतदाता को मतदान करते समय दल के बजाय अपने प्रतिनिधि के चाल-चलन, चरित्र पर खास ध्यान देना होगा। जब तक लोकतंत्र के लुटेरों को आप अपना प्रतिनिधि चुनते रहेंगे तब तक आपका कोई भला नहीं कर सकता है। आंखें बंद रखने से काम नहीं चलेगा। जनता को आंखें खोलनी ही होंगी। उसे अपने प्रत्याशियों के चाल-चलन और चरित्र को देख कर ही फैसला करना होगा।

एक दिन के राजा के रूप में पांच राज्यों के चुनाव में मतदाता को जागरूक होना ही होगा, इन राज्यों के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला मतदाता के हाथों में हैं, किसके सिर पर जीत का सेहरा बांधना है, यह मतदाताओं के दिमाग में हैं। मतपेटियां क्या राज खोलेंगी, यह भविष्य के गर्भ में हैं। पर एक संदेश इन चुनावों सेे मिलेगा कि अब मतदाता जाग गया है और वही भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक अपराधियों पर नकेल डालेगा।





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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486 मोबाईल: 9811051133

मधुबनी : बेखौफ अपराधी ने जयनगर में ताबड़तोड़ कार्बैन से फायरिंग किया, एक की हुयी मौत

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आज सुबह  के सात बजे के करीब भेल्वा चौक के पास अपराधियों ने सतन झा उर्फ पुर्सोत्तम झा पर अपराधियों ने अंधा धुन फायरिंग की...अस्थानीय लोगो की माने तो बेखौफ अपराधियों ने कारवैन से सतन झा पर फायरिंग किया जान बचाकर सतन झा ने देवतबाबू तेल टंकी रोड गली मे भागा उस गली से मोहमद आलम नामक व्यक्ति आ रहा था तो अपराधी की ओर से चलायी गयी गोली मोहमद आलम नामक व्यक्ति को लगी तथा कूछ ही पलों मे मौत हो गयी...मोहमद आलम नामक व्यक्ति चाँदनी नाम से टेलर चलाता था और पेशे से दर्जी था....बेखौफ अपराधी ने पहले भेल्बा चौक के पास फायरिंग किया और भागते हुये महादेव मंदिर के पास फायरिंग किया वहाँ के लोगो ने बतलाया की एक मोटर साइकल पर तीन लोग सवार था और एक अपराधी कार्बैण से लेश था और तेजी से भाग निकला....देवतबाबू तेल टंकी रोड मे गोली की खौखा बिखरा पड़ा था जिसे जयनगर थाना के प्रभारी जयकान्त साव ने उठाया..घटना अस्ठल पर उग्र ग्रामीणों ने मृतक का शव सड़क पर रख कर सड़क को जाम करने के साथ टायर जला कर सड़क को अवरुद्ध किया लोगो की काफी भीड़ है..घटना अस्थल पर जयनगर थाना से पूलिश बल और अनुमंडल पूलिश पदाधिकारी के साथ थाना प्रभारी पहुँच कर मामलो की जानकारी लेने के साथ सड़क से जाम हटाने की प्रयास कर रहे है और जगह जगह जाँच प्रक्रिया शुरू कर दी है

जर्मनी के साथ बेहतर सहयोग को लेकर प्रतिबद्ध : सिडलो

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वारसा, 08 फरवरी, पोलैंड की प्रधानमंत्री बिआता सिडलो ने आज राजधानी वारसा में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से मुलाकात की। जर्मन चांसलर से मुलाकात करने के बाद संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में श्रीमती सिडलो ने कहा कि पोलैंड जर्मनी के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों और सहयोग को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। श्रीमती सिडलो ने कहा कि उनका मानना है कि यूरोपीय परियोजनाओं की सफलता के लिए पोलैंड और जर्मनी के बीच बेहतर संबंध और सहयोग की आवश्यकता है। श्रीमती सिडलो ने कहा कि यूरोपीय संघ में पोलैंड और जर्मनी के लिए एक साथ मिलकर काम करने की कई संभावनाएं हैं। इस मुलाकात के दौरान पोलिश प्रधानमंत्री ने बाल्टिक सागर में प्रस्तावित गैस पाइप लाइन पर अपनी असहमति भी जताई है।

चीन यात्रा के दौरान व्यापार पर चर्चा करेंगी ब्रिटिश प्रधानमंत्री मे

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लंदन, 08 फरवरी, ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे इस साल के अंत में प्रस्तावित चीन की आधिकारिक यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों एवं सहयोग पर चर्चा करेंगी। श्रीमती मे के आधिकारिक प्रवक्ता ने आज इस बात की जानकारी दी। प्रवक्ता ने बताया कि अपनी चीन यात्रा के दौरान श्रीमती मे संभवत: दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार को मजबूत करने पर भी चर्चा करेंगी। प्रवक्ता ने पत्रकारों को बताया कि श्रीमती मे की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान ब्रिटेन और चीन के बीच आपसी संबंधों और सहयोग में काफी प्रगति हुई है। प्रवक्ता ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री की इस यात्रा के दौरान मुख्य रूप से व्यापार पर चर्चा होने की उम्मीद जताई है।

ट्रम्प की यूक्रेन नीति ओबामा से बेहतर: रूस

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मास्को, 08 फरवरी, रूस के विदेश मंत्री सरगई लावरोव ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यूक्रेन नीति की प्रशंसा करते हुए उसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीति से बेहतर बताया है। रूस की समाचार एजेंसी तास ने इस बात की जानकारी दी। तास के अनुसार श्री लावरोव ने कहा कि यूक्रेन संकट से निपटने के लिए श्री ट्रम्प की ओर से किए गए कार्य प्रशंसा के योग्य हैं। श्री लावरोव ने कहा कि अमेरिका यह समझ गया है कि यूक्रेन का केवल अपने पूर्वी हिस्से पर संपूर्ण नियंत्रण से ही सभी समस्याओं का समाधान नहीं होगा।

ट्रम्प ने एर्डोगन को दिलाया अमेरिकी समर्थन का भरोसा

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वाशिंगटन, 08 फरवरी, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तुर्की को अपना रणनीतिक साझेदार और नाटो सहयोगी बताते हुए पूरा समर्थन देने की बात दोहराई है। व्हाइट हाउस ने इस बात की जानकारी दी। व्हाइट हाउस की ओर से जारी एक वक्तव्य के अनुसार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तुर्की के राष्ट्रपति तयैप एर्डोगन से फोन पर बातचीत कर उन्हें अमेरिकी समर्थन का भरोसा दिलाया है। व्हाइट हाउस के वक्तव्य के अनुसार दोनों नेताओं के बीच फोन पर हुई बातचीत में श्री ट्रम्प ने आतंकवाद के खिलाफ जारी लड़ाई के प्रति साझा प्रतिबद्धता को भी दोहराया। श्री ट्रम्प ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में तुर्की के योगदान की प्रशंसा भी की।


कोलंबिया ने ईएलएन विद्रोहियों के साथ शांति वार्ता शुरू की

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बोगोटा,08 फरवरी, कोलंबिया में मार्क्सवादी नेशनल लिबरेशन आर्मी(ईएलएन) विद्रोहियों ने गत पांच दशक से देश में जारी हिंसा को समाप्त करने के लिये सरकार के साथ आधिकारिक शांति वार्ता शुरू की है। कोलंबिया में गत 52 वर्षों से जारी हिंसा में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और इससे लाखों लोग विस्थापित हुये हैं । इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुयी है। देश का दूसरा सबसे बड़ा विद्रोही समूह ईएलएन गत वर्ष की तरह एक अन्य विद्रोही समूह रिवोल्यूशनरी आर्म्ड ग्रुप ऑफ कोलंबिया(फार्क) के नक्शे कदम पर सरकार से समझौता करना चाहता है जिसके अंतर्गत विद्रोही समूहों को हिंसा का रास्ता छोड़ने पर राजनीति में आने का मौका मिलता है। क्वीटो के बाहर शांति वार्ता शुरू होने पर ईएलएन मध्यस्थ पाबलो बेलट्रान ने कहा,“ सौभाग्य से हम कोलंबिया में हिंसा का एक राजनीतिक समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं।” यह शांति वार्ता फार्क विद्रोहियों से की गयी वार्ता की तरह ही हाेगी जिसके अंतर्गत राजनीतिक अलगाववाद ,निरस्त्रीकरण और पीड़ितों के लिए मुआवजे पर बात होगी हालांकि इस वार्ता से फार्क विद्रोही पूरी तरह अलग रहेंगे। उल्लेखनीय है कि ईएलएन विद्रोही समूह को अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने आतंकवादी संगठन की सूची में डाला हुआ है। इस समूह ने युद्ध के लिये धनराशि और सरकार पर दबाव बनाने के लिये फिरौती ,वसूली,तेल और बिजली क्षेत्र के प्रतिष्ठानों पर बमबारी की और 52 सालों में हजारों लोगों का अपहरण किया। ईएनएन समूह की स्थापना कट्टरवादी कैथाेलिक धर्मप्रचारकों ने क्यूबा की 1959 की क्रांति से प्रेरणा लेकर की थी और यह संगठन सरकार के साथ वर्ष 2014 से ही बातचीत करता रहा है। हालांकि इसके अबतक कोई ठोस नतीजे नहीं निकल सके हैं। कोलंबिया में पिछले पांच दशक से जारी हिंसक घटनाओं में दो लाख 20 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

दक्षिण चीन समुद्र के इतिहास पर अमेरिका अपनी जानकारी दोहराये : चीन

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बीजिंग,08 फरवरी, चीन ने अमेरिका को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि उसे दक्षिण चीन समुद्र के विवादित द्वीपों के बारे में इतिहास की अपनी जानकारी को दोहरा लेना चाहिये क्याेंकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुये समझौतों में चीन को यह अधिकार दिया गया था कि जापान ने जिन क्षेत्रों पर कब्जा किया था उन पर चीन का अधिपत्य होगा। गौरतलब है कि इन विवादित द्वीपों पर नये अमेरिकी प्रशासन की टिप्पणियों से चीन बहुत ही आहत है। अमेरिका के विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन ने संसद में हाल ही में कहा था कि चीन का उन द्वीपों पर कोेई अधिकार नहीं होना चाहिये। इसके अलावा व्हाइट हाऊस ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जलीय क्षेत्र में ‘अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों’ की रक्षा करने का संकल्प भी व्यक्त किया है। पिछले हफ्ते अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने सुझाव दिया था कि दक्षिण चीन समुद्र के मामले में कूटनीतिक विषयों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग यी ने ऑस्ट्रलिया की राजधानी कैनबरा में कल कहा,“मेरी अमेरिकी दोस्तों को सलाह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास के बारे में अपनी जानकारी को दोहरा लें।” उन्होंने कहा कि 1943 के काहिरा घोषणा पत्र और 1945 पोर्ट्सडेम समझौते में साफ कहा गया है कि जापान ने जिन चीनी क्षेत्रों पर कब्जा किया था वे उसे चीन को लौटाने होंगे। इसमें नांनसा द्वीप भी शमिल हैं।

ईरान के आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित करने का अमेरिकी प्रस्ताव

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वाशिंगटन,08 फरवरी, अमेरिकी प्रशासन एक ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर रहा है जिसके अंतर्गत ईरान के सबसे ताकतवर सुरक्षा निकाय इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड काेर(आईआरजीसी) को अातंकवादी संगठन की सूची में डाला जा सकता है। अमेरिकी अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। अधिकारियों के मुताबिक इस मामले में अमेरिकी सरकार ने कई एजेंसियों से विचार विमर्श किया है और यदि इस प्रस्ताव को लागू किया गया तो आईआरजीसी पर पाबंदी अथवा प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं यह संगठन सबसे मजबूत है और ईरान की अर्थव्यस्था तथा राजनीतिक क्षेत्र में इसका काफी दखल है। अगर इस प्रस्ताव को मूर्त रूप दिया जाता है तो इससे इराक में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अमेरिकी संघर्ष और अधिक जटिल हो जायेगा क्योंकि वहां के शिया मिलिशिया को ईरान तथा आईआरजीसी का समर्थन हासिल है और ये सुन्नी जिहादी समूहों के खिलाफ संघर्ष कर रहें हैं। गौरतलब है कि अार्इआरजीसी से संबद्ध दर्जनों संस्थान और लोगों को अमेरिका ने पहले ही प्रतिबंधित सूची में डाल रखा है। वर्ष 2007 में अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने इस संगठन से जुड़ी कुद्स फोर्स को आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने के लिये जिम्मेदार ठहराया था लेकिन यदि अब पूरे संगठन को ही आतंकवादी करार दिया जाता है तो इसके काफी व्यापक परिणाम हाेंगे जिसमें पिछले वर्ष ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता तथा अन्य मुद्दे प्रभावित हो सकते हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवायी वाला नया अमेरिकी प्रशासन ईरान को अमेरिकी हितों के लिये सबसे अधिक खतरा मानता है और अब वे इस दिशा में कुछ ठोस करने के लिये कोई न काेई बहाना तलाश रहे हैं। हालांकि कुछ अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि आईआरजीसी पर प्रतिबंध लगाने से स्थिति और भड़क सकती है और इससे कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं को अमेरिका के खिलाफ एकजुट होने में मदद मिल सकती है।

तुर्की ने चार हजार से ज्यादा कर्मचारियों को किया बर्खास्त

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अंकारा, 08 फरवरी, तुर्की सरकार ने एक आधिकारिक डिक्री प्रकाशित कर कुल 4,464 सरकारी कर्मचारियों को उनके पदों से बर्खास्त करने का आदेश दिया है। बर्खास्त किए गए कर्मचारियों में से आधे से अधिक कर्मचारी शिक्षा मंत्रालय के हैं। गौरतलब है कि तुर्की में गत वर्ष जुलाई माह में हुए तख्तापलट के असफल प्रयास के बाद सरकार विभिन्न विभागों का पुनर्गठन कर रही है। तख्तापलट के असफल प्रयास के बाद तुर्की अब तक कुल 125,000 से अधिक अधिकारियों को बर्खास्त या निलंबित कर चुका है। इसके अलावा तख्तापलट में शामिल सेना, पुलिस और अन्य क्षेत्रों के लगभग 40 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

भाजपा ने राज्यसभा में अपने सांसदों के लिये व्हिप जारी किया

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नयी दिल्ली,08 फरवरी, भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने राज्यसभा में अपने सभी सदस्यों को व्हिप जारी कर आज तथा गुरुवार को सदन में मौजूद रहने को कहा है। बजट सत्र के पहले चरण के दो ही दिन शेष है और राज्यसभा में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देना है तथा सदन में कुछ महत्वपूर्ण विधेयक भी आने हैं। सूत्रों के अनुसार इसी के मद्देनजर पार्टी ने राज्यसभा के अपने सभी सदस्यों को तीन पंक्ति वाला एक व्हिप जारी करते हुय उन्हें प्रधानमंत्री के जवाब के दौरान सदन में माैजूद रहने को कहा है। गौरतलब है कि राज्यसभा की मौजूदा संख्या 245 है जिसमें भाजपा के 56 और कांग्रेस के 60 सांसद हैं। इस बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री के जवाब का समय इस तरीके से निर्धारित किया गया है कि यह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सांसदों की अनुपस्थिति में हो क्योंकि दाेनों पार्टियों के सांसद उत्तरप्रदेश में चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। राज्यसभा में सपा 19,बसपा 06, अन्ना द्रमुक 13,तृणमूल कांग्रेस 11,बीजू जनता दल 08,जदयू 10 और माकपा के 08 सांसद हैं।

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