नई दिल्ली, 23 नवम्बर, कांग्रेस का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने के संबंध में जो बात रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कही है उसके बाद इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति का कोई औचित्य नहीं रह गया है। कांग्रेस चाहती है कि प्रधानमंत्री ने 31 अगस्त के अपने रेडियो कार्यक्रम में इस संबंध में जो बात कही थी उस पर खुद श्री मोदी अथवा उनके मंत्रिमंडल का ग्रामीण विकास मंत्री या कोई अन्य वरिष्ठ सदस्य संसद में अपना स्पष्टीकरण दे। सूत्रों के अनुसार 30 सदस्यीय संसदीय समिति की आज यहां हुई हंगामेदार बैठक में सदस्यों ने कांग्रेस तथा अन्य दलों की यह मांग जोर शोर से उठायी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ ही तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने समिति की बैठक में यह मामला उठाया और कहा कि जब श्री मोदी कह चुके हैं कि विधेयक वापस लिया जा रहा है तो इस पर संयुक्त समिति के बने रहने का अब कोई मतलब नहीं रह जाता। सूत्रों ने बताया कि समिति के अध्यक्ष एस एस अहलूवालिया के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के चार सदस्यों ने बैठक में कहा कि इस मामले में प्रधानमंत्री की बात का कोई मतलब नहीं है। उनका कहना था कि समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष ने किया है और समिति के सदस्य के नाते वे उनके प्रति जवाबदेह हैं।
सूत्रों ने कहा कि करीब एक घंटे तक चली चर्चा के बाद समिति का कार्यकाल 23 दिसम्बर तक बढाने का अनुरोध करने का फैसला किया गया। संसद का शीतकालीन सत्र 23 दिसम्बर तक है। कांग्रेस के साथ ही तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने कहा है कि वे इस मुद्दे पर सरकार से संसद में बयान देने की मांग करेंगे। कांग्रेस सदस्यों ने बैठक में कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि यदि श्री मोदी की रेडिया पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में की गयी घोषणा पर सरकार सहमत नहीं है तो उसे संसद में बयान देना चाहिए और कहना चाहिए कि प्रधानमंत्री की बात इस बारे में सही नहीं है।
सदस्यों ने कहा कि यदि सरकार कहती है कि विधेयक को वापस नहीं लिया जाता है तो इससे साफ है कि यह बयान बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर दिया गया था। सूत्रों ने कहा कि अब जो स्थिति बनी है उसे देखते हुए श्री मोदी को संसद में कहना चाहिए कि वह संशोधन के पक्ष में हैं अथवा इसके विरोध में हैं।