इलाहाबाद 24 नवम्बर, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के गंगा यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम तथा गंगा यमुना के अन्य स्नान घाटों पर लाखों श्रद्धालु कल स्नान करेंगे वहीं सायंकाल गंगा यमुना के तट दीपों की रोशनी से जगमगा उठेंगे। (कार्तिक पूर्णिमा) देव दीपावली पर कल बुधवार की शाम को संगम तट और गंगा यमुना के किनारे अदभुत नजारा होगा। हजारों शहरी दीप प्रज्वलित करेंगे और पूरा तट रोशनी से नहाया होगा।जिला प्रशासन द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर देव दीपावली के प्रतीक के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाने की तैयारी कर ली गई है। जिलाधिकारी संजय कुमार ने आज बताया कि संगम क्षेत्र को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाये रखने और यमुना नदी के जल को स्वच्छ रखने के मकसद से संगम क्षेत्र में देव दीपावली धूमधाम से मनाने की तैयारी की है। कल 25 नवम्बर की शाम को 4ः30 बजे भजन के साथ इसकी शुरूआत होंगी ।शाम पांच बजे से 5ः30 बजे के बीच दीपमालाएं प्रज्जवलित की जाएंगी और साढ़े पांच बजे गंगा आरती होगी ।
नगर की एक अन्य संस्था कार्तिक महोत्सव समिति के अध्यक्ष महेन्द्र पाण्डेय एवं महासचिव शशांक शेखर पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल की तरह इस वर्ष भी कल शाम छह बजे से यमुना तट स्थित बलुआघाट बारादरी पर कार्तिक महोत्सव का रंगारंग समापन समारोह धूमधाम से मनाया जायेगा। इस दौरान नाव द्वारा 21000 दीपदान किया जायेगा । संगीत संध्या कार्यक्रम के तहत उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद के सहयोग से उड़ीसा के सत्यप्रिया पलाई की 12 सदस्यीय टीम रंगारंग ‘‘गोटीपुआ नृत्य “ प्रस्तुत करेगी। इस अवसर पर बलुआघाट बारादरी की सीढि़यों को दीपों से तथा गुम्बदों को रंगीन झालरों से सजाया जायेगा। विभिन्न आकृतियों में फूलों, रंगों एवं दीयों के माध्यम से रंगोली बनायी जायेगी। घाट पर भव्य आतिशबाजी के साथ माँ यमुना जी की भव्य महाआरती की जायेगी । कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली के पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच विविध पात्रों से यमुना जी की महाआरती की जायेगी।
हिंदू पौराणिक कथा है कि त्रिपुरासुर ने देवताओं को हराया और आकाश में तीन नगर भी बसाये। इन तीन नगरों को संयुक्त रूप से ’त्रिपुरा’ का नाम दिया। कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का संहार कर दिया। इस नाते, कार्तिक पूर्णिमा का एक नाम ’त्रिपुरि पूर्णिमा’ भी है। शिव आराधना के लिए महाशिवरात्रि के बाद सबसे अधिक महत्व की दूसरी तिथि, कार्तिक पूर्णिमा ही मानी गई है। त्रिपुरासुर की मृत्यु पर देवों ने शिव के निर्देश पर इस दिन दीपोत्सव मनाया। काशी-कानपुर के गंगा घाटों से लेकर, जैन समुदाय के बीच कार्तिक पूर्णिमा आज भी ’देव दीपावली’ के रूप में ही मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी और देवों में प्रमुख कार्तिकेय के सारांश के रूप में उत्पन्न ’वृंद’ की जन्म तिथि है। देवउठनी ग्यारस से तुलसी विवाह शुरु हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी विवाहोत्सव सम्पन्न होने की तिथि है। मृत पूर्वजों को समर्पण की दृष्टि से भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। राधा और कृष्ण के रासोत्सव की तिथि भी यही मानी गई है। सं विनोद प्रदीप
कार्तिक पूर्णिमा, वैवत्सय की रक्षा के लिए भगवान विष्णु द्वारा मत्स्यावतार यानी मछली की देह धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होने की तिथि भी है। वैवत्सय, सातवें मनु का नाम है। सातवें मनु से ही मानव प्रजाति का उद्गम माना गया है। गंगा स्नान के जरिए, मानव प्रजाति, सातवें मनु की रक्षा के लिए, मत्स्यावतार लेने वाले विष्णु का आभार भी प्रकट करती है। कार्तिक पूर्णिमा का स्नान, शीत ऋतु से पहले का अंतिम गंगा स्नान होता है। इसे साधारण स्नान नहीं माना जाता। कार्तिक पूर्णिमा पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित गढ़ मुक्तेश्वर में विशेष मेला लगता है और विशेष स्नान होता है। कार्तिक पूर्णिमा को राजस्थान के पुष्कर में भी विशेष मेला लगता है और वहां स्थित पवित्र सरोवर में भी विशेष स्नान होता है। नदी स्नान के बहाने नदी तट पर हुआ सूर्य स्नान, इस दिवस पर विटामिन डी का खजाना लेकर आता है। यह, इस स्नान के लाभ का आधुनिक पक्ष है। ज्योतिष शास्त्र मानता है कि कार्तिक पूर्णिमा को भरुणी अथवा रोहिणी नक्षत्र होने की स्थिति हो, तो इस तिथि के लाभ का परिणाम और बढ़ जाता है।
भारत के पारंपरिक ज्ञानतंत्र ने भी स्नान के पक्ष में कई तर्क पेश किए हैं। स्नान, सिर्फ एक क्रिया नहीं, बल्कि जल के तीन कर्मकाण्डों में एक कर्मकाण्ड है। शेष दो कर्मकाण्ड, तर्पण और श्राद्ध हैं। स्नान का स्थान, भोजन से भी ऊंचा है। पुलस्त्य ऋषि कहते हैं कि स्नान के बिना न तो शरीर निर्मल होता है और न ही बुद्धि। मन की शुद्धि के लिए सबसे पहले स्नान का ही विधान है। भविष्य पुराण में श्री कृष्ण ने भी यही कहा है। इसी कारण, स्वस्थ मनुष्य के लिए स्नान कभी निषेध नहीं। पवित्र नदी, समुद्र, सरोवर, कुआं और बावडी जैसे प्राकृतिक जल स्त्रोतों से सीधे किए जाने वाले वरुण स्नान की महिमा तो वेद-पुराणों में भी है। भविष्य पुराण में गंगा स्नान की विधि भी बताई गई है। इन विधियों में नदी के साथ हमारे आचरण की स्वच्छता और पवित्रता स्वतः निहित है।
हिंदू पौराणिक कथा है कि त्रिपुरासुर ने देवताओं को हराया और आकाश में तीन नगर भी बसाये। इन तीन नगरों को संयुक्त रूप से ’त्रिपुरा’ का नाम दिया। कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का संहार कर दिया। इस नाते, कार्तिक पूर्णिमा का एक नाम ’त्रिपुरि पूर्णिमा’ भी है। शिव आराधना के लिए महाशिवरात्रि के बाद सबसे अधिक महत्व की दूसरी तिथि, कार्तिक पूर्णिमा ही मानी गई है। त्रिपुरासुर की मृत्यु पर देवों ने शिव के निर्देश पर इस दिन दीपोत्सव मनाया। काशी-कानपुर के गंगा घाटों से लेकर, जैन समुदाय के बीच कार्तिक पूर्णिमा आज भी ’देव दीपावली’ के रूप में ही मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी और देवों में प्रमुख कार्तिकेय के सारांश के रूप में उत्पन्न ’वृंद’ की जन्म तिथि है। देवउठनी ग्यारस से तुलसी विवाह शुरु हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी विवाहोत्सव सम्पन्न होने की तिथि है। मृत पूर्वजों को समर्पण की दृष्टि से भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। राधा और कृष्ण के रासोत्सव की तिथि भी यही मानी गई है। सं विनोद प्रदीप
कार्तिक पूर्णिमा, वैवत्सय की रक्षा के लिए भगवान विष्णु द्वारा मत्स्यावतार यानी मछली की देह धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होने की तिथि भी है। वैवत्सय, सातवें मनु का नाम है। सातवें मनु से ही मानव प्रजाति का उद्गम माना गया है। गंगा स्नान के जरिए, मानव प्रजाति, सातवें मनु की रक्षा के लिए, मत्स्यावतार लेने वाले विष्णु का आभार भी प्रकट करती है। कार्तिक पूर्णिमा का स्नान, शीत ऋतु से पहले का अंतिम गंगा स्नान होता है। इसे साधारण स्नान नहीं माना जाता। कार्तिक पूर्णिमा पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित गढ़ मुक्तेश्वर में विशेष मेला लगता है और विशेष स्नान होता है। कार्तिक पूर्णिमा को राजस्थान के पुष्कर में भी विशेष मेला लगता है और वहां स्थित पवित्र सरोवर में भी विशेष स्नान होता है। नदी स्नान के बहाने नदी तट पर हुआ सूर्य स्नान, इस दिवस पर विटामिन डी का खजाना लेकर आता है। यह, इस स्नान के लाभ का आधुनिक पक्ष है। ज्योतिष शास्त्र मानता है कि कार्तिक पूर्णिमा को भरुणी अथवा रोहिणी नक्षत्र होने की स्थिति हो, तो इस तिथि के लाभ का परिणाम और बढ़ जाता है।
भारत के पारंपरिक ज्ञानतंत्र ने भी स्नान के पक्ष में कई तर्क पेश किए हैं। स्नान, सिर्फ एक क्रिया नहीं, बल्कि जल के तीन कर्मकाण्डों में एक कर्मकाण्ड है। शेष दो कर्मकाण्ड, तर्पण और श्राद्ध हैं। स्नान का स्थान, भोजन से भी ऊंचा है। पुलस्त्य ऋषि कहते हैं कि स्नान के बिना न तो शरीर निर्मल होता है और न ही बुद्धि। मन की शुद्धि के लिए सबसे पहले स्नान का ही विधान है। भविष्य पुराण में श्री कृष्ण ने भी यही कहा है। इसी कारण, स्वस्थ मनुष्य के लिए स्नान कभी निषेध नहीं। पवित्र नदी, समुद्र, सरोवर, कुआं और बावडी जैसे प्राकृतिक जल स्त्रोतों से सीधे किए जाने वाले वरुण स्नान की महिमा तो वेद-पुराणों में भी है। भविष्य पुराण में गंगा स्नान की विधि भी बताई गई है। इन विधियों में नदी के साथ हमारे आचरण की स्वच्छता और पवित्रता स्वतः निहित है।