नयी दिल्ली 01 नवम्बर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समाज के सभी वर्गों से एक सूत्र में बंधने का आह्वान करते हुए आज कहा कि हमें संविधान के मार्गदर्शन में पक्ष और विपक्ष से उपर उठकर निष्पक्षता के साथ ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की कल्पना को साकार करने की दिशा में आगे बढने की जरूरत है। श्री मोदी ने डा भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में संविधान के प्रति वचनबद्धता पर राज्यसभा में तीन दिन से जारी चर्चा का समापन करते हुए कहा कि देश का संविधान केेवल कानूनी व्यवस्था नहीं है बल्कि सामाजिक दस्तावेज भी है इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम इसके सिद्धांतों और मूल्यों को अपने जीवन में ढालें।
उन्होंने कहा कि समाज में समभाव और ममभाव की भावना से यह संदेश जाना चाहिए कि दलित भी हमारा भाई है और उसे अवसर मिले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सदन से यह बात उठनी चाहिए कि ऊंच नीच का कलंक हमारे माथे से मिटे और सब एकता के मूल मंत्र को आगे बढायें ।
श्री मोदी ने एक भारत श्रेष्ठ भारत की चर्चा करते हुए कहा कि हमें सभी राज्यों की संस्कृतियों और भाषाओं को परस्पर जोड़ना होगा और इसके लिए हर राज्य को अपने यहां दूसरे राज्य की भाषा तथा संस्कृति का उत्सव मनाने की जरूरत है। उत्तर भारत में दक्षिण तथा दक्षिण में उत्तर भारत के राज्यों की भाषाओं में लिखी कविताओं और गीतों को नयी पीढी में लोकप्रिय बनाने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए। इससे हम पूरे देश को एक सूत्र में जोड पायेंगे और देश को श्रेष्ठ बना पायेंगे। उन्होंने कहा कि हम सवा सौ करोड देशवासी सभी देशभक्त हैं और हमें अपनी देश भक्ति को प्रमाणित करने के लिए सबूत देने की जरूरत नहीं है। हम सब संविधान से बंधे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह चर्चा नयी पीढी को संविधान और उसे बनाने वाले महापुरूषों के बारे में जानकारी देने के लिए करायी गयी है । इसका उद्देश्य नयी पीढी की संविधान की मूल भावना से परिचित कराते हुए इसके प्रति उनकी आस्था को बढाना है। उन्होंने कहा कि डा अंबेडकर की 125 वीं जयंती पर हमें इन बातों से उपर उठना चाहिए कि संविधान का निर्माण करने वाले हमारी पार्टी के थे या दूसरी पार्टी के । संविधान सभा में कांग्रेस के काफी लोग थे लेकिन संविधान के निर्माण में सभी महापुरूषों का योगदान था और किसी के भी योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने देश को एकता के सूत्र में बांधा था और हमें बिखरने के बहानों के बीच ऐसे काम करने होंगे जिनसे लोगों को परस्पर रूप से जुड़ने की प्रेरणा मिले। उन्होंने कहा कि संविधान का जश्न और उत्सव मनाया जाना चाहिए क्योंकि यह हमें ‘तू और मैं ’ से बाहर निकालकर आपस में जुड़ने की शक्ति देता है और ‘हमें’ इससे बाहर निकलकर तथा एक होकर देश को प्रगति के पथ पर आगे बढाना होगा।
श्री मोदी ने 14 अगस्त 1947 को दिये गये डा राधा कृष्णन के भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हाेंने भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद से बचने की सलाह दी थी और कहा था कि आजादी के बाद देश में गलतियों के लिए अंग्रेज नहीं बल्कि हम भारतवासी जिम्मेदार होंगे। उस समय संविधान निर्माताओं को संसद में आचार संहिता समिति बनाने की जरूरत महसूस नहीं हुई लेकिन बाद में यह समिति बनानी पड़ी । प्रधानमंत्री ने कहा कि बाबा साहेब ने दलितों को भी समान अवसर और रोजगार के लिए औद्योगीकरण को बढावा देने की वकालत की थी। उनका कहना था कि औद्योगिकरण ही कृषि संकट को दूर करने का उपाय है । बाबा साहेब का उस समय भी यह मानना था कि बढती आबादी और भूमि के सीमित होने के कारण देश में असंतुलन पैदा हो रहा है और इसे दूर करने की जरूरत है। जर्मनी के महान भारतविद् मैक्स मूलर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हम महान विरासत के धनी है और यही हमारी ताकत है जिसके बल पर हम नित्य नूतन कार्य करते हुए शक्तिशाली राष्ट्र का निमार्ण कर सकते हैं।