नयी दिल्ली 03 दिसम्बर, उच्चतम न्यायालय ने अाज एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पत्नी के इलाज में होने वाला खर्च देकर तलाक के लिए राजी नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की खंडपीठ ने तलाक से संबंधित एक मामले में कहा कि इलाज का खर्च देने के नाम पर बीमार पत्नी काे तलाक के लिए रजामंद करना गलत है। न्यायालय ने कहा कि पैसों की जरूरत के आधार पर समझौता करके शादी खत्म नहीं की जा सकती। खंडपीठ का कहना था कि हिन्दू विवाह अधिनियम के मुताबिक एक पति का यह कर्तव्य है कि वह बीमारी के वक्त अपनी पत्नी की सभी जरूरतें पूरी करे। खंडपीठ ने यह व्यवस्था उस फैसले के खिलाफ दी कि जिसमें एक महिला अपने पति से साढ़े 12 लाख रुपये लेकर तलाक देने को तैयार हो गई थी।
महिला स्तन कैंसर से पीड़ित थी और उसे इलाज के लिए पांच लाख रुपये की जरूरत थी। न्यायालय ने कहा कि यह पति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी बीमार पत्नी की चिंता करे, उसका इलाज कराए और उसकी सभी जरूरतों का ख्याल रखे। पत्नी के राजी होने पर भी पति उसे अकेला नही छोड़ सकता। हिंदू परंपरा के अनुसार किसी महिला का पति उसके लिए भगवान होता है। शीर्ष अदालत का कहना था कि पत्नी निःस्वार्थ भाव से अपने पति की सेवा करती है। ऐसे में जब पत्नी को अपने पति की सबसे ज्यादा जरूरत है तब वह उसे अकेला नही छोड़ सकता। न्यायालय ने पति को बीमार पत्नी के इलाज के लिए पांच लाख रुपये देने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई तब होगी जब महिला अपनी बीमारी से पूरी तरह ठीक हो जाएगी।