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उत्तराखंड : चाय बगान की जमीन की खरीद को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म

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  • एमडीडीए के एक चर्चित अधिकारी एक बार फिर चर्चाओं में !
  • देश की सुरक्षा से तो नहीं होगा खिलवाड़ !
  • 220 करोड़ में जो जमीन नहीं बिकी, आखिर सरकार दो हज़ार करोड़ में क्यों खरीदना चाहती है !

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देहरादून  (राजेन्द्र जोशी ):कितनी बिडम्बना है एक तरफ तो सरकार केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस की मांग करती है और दूसरी तरफ हजारों पेड़ों को काट कर हरियाली को तहस-नहस करने पर आमादा है. एक तरफ देश की सीमा की तरफ विदेशी दुश्मनों को घुसपैठ तो क्या देखने तक की पाबन्दी है वहीँ दूसरी तरफ सरकार दुश्मन देश को ही देश के सर्वाधिक सुरक्षित इलाके में ठौर -ठिकाना दे रही है.और सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो यह है जब कोई जमीन मात्र 220 करोड़ में आम बाज़ार में बिकने को थी तो सरकार उसमे से मात्र 1200 एकड़ के 1750 करोड़ दे रही है.
    
मामला देहरादून की शान समझे जाने वाले चाय बगान का है, सबसे पहले यह जमीन  पंडित नारायण दत्त तिवारी के शासन काल में सुर्ख़ियों में आई थी लेकिन तब से लेकर आज तक इसका सौदा  नहीं हो पाया , कभी सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के नाम की भी चर्चाएँ आम हुई तो कभी किसी और के लेकिन तब से लेकर आज तक यह जमीन सुर्ख़ियों में रही है. चर्चा है कि बीते माह पहले तक चाय बगान की समूची जमीन देहरादून साहित दिल्ली व कोलकाता तक के जमीनों की दलाली करने वालों के पास एक सौदे के रूप में था और इसकी कीमत तब मात्र 220 करोड़ आंकी गयी थी लेकिन इतनी कीमत में भी ग्राहक नहीं मिल रहा था, क्योंकि इतनी बड़ी रकम लगाने वाले इस बात से संतुष्ट नहीं थे कि कैसे यहाँ खड़े हजारों पेड़ों को कटा जायेगा और कैसे इस जमीन पर खड़े चाय के पेड़ों को रौंदा जायेगा, और कैसे इस भूमि का भू-उपयोग बदला जायेगा. इन सब बातों को लेकर यह जमीन नहीं बिक पा रही थी, लेकिन केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना के आते ही मसूरी देहरादून प्राधिकरण सहित जमीनों पर नज़र रखने वाले सफेदपोशों की गिद्ध नज़र से यह बच नहीं पायी और उन्होंने इस जमीन को खरीदने के राह में आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए एमडीडीए के एक चर्चित अधिकारी को वो सारी प्रशासनिक व न्यायिक शक्तियों से लैस कर दिया ताकि वह इस जमीन के रास्ते में आ रही क़ानूनी अडचनों को दूर कर उनकी कमाई का मार्ग प्रशस्त कर सके, इसके बाद शुरू हुआ जमीन की बोलो का खेल शुरू, चर्चाओं के अनुसार पहले यह जमीन 2220 करोड़ में तय हुआ लेकिन हो हल्ला मचने के बाद यह भुगतान की राशि 1720 करोड़ पर जा पहुंची, और अब कुल जमीन हो गयी 12 00 एकड़. जबकि स्मार्ट सिटी के लिए मात्र 250 एकड़ भूमि की ही आवश्यकता बताई गयी है लेकिन एमडीडीए यह नहीं बता पा रहा है की वह शेष जमीन किसके किये और क्यों खरीद रहा है. गौरतलब हो कि चाय बगान की यह जमीन आर्केडिया,हरबंशवाला, अम्बीवाला, उम्मेदपुर,सेंवला, बनियावाला इलाकों में आती है. राजधानी में आजकल चर्चा का विषय बना चाय बगान को लेकर कहा जा रहा है कि इस डील में कई सफ़ेद कालर सहित सफ़ेदपोश लोगों का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है अन्यथा इससे सस्ती जमीन तो राजधानी देहरादून के आस पास ऋषिकेश में खंडहर हो चुकी आईडीपीएल की जमीन मिल सकती थी.   
   
वहीँ सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि चाय बगान की इस जमीन भारतीय मिलिट्री अकेडमी के पास ही स्थित है और यह संस्थान देश के सर्वाधिक सुरक्षित रक्षा संस्थानों में शुमार है यहाँ से पार्टी वर्ष सैकड़ों सैन्य अधिकारी पास आउट होकर देश की सेवा के लिए सीमाओं सहित अन्यत्र सेवा के लिए तैनात किये जाते हैं यही कारण है कि यह संस्थान देश के चुनिन्दा रक्षा संस्थानों में एक है. राज्य सरकार के अनुसार उसने चीन के विश्वविध्यालय के साथ चाय बगान इलाके में बनने वाले स्मार्ट सिटी के लिए समझौता करने का मन बनाया है. ऐसे में सैन्य अधिकारियों को चिंता है की इस बात की क्या गारंटी है कि चीन के लोग जो यहाँ विश्वविध्यालय बनाने आयेंगे उनके साथ उनकी गुप्तचर एजेंसीज के लोग नहीं आयेंगे जो चिंता जनक है. पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है जब आईएमए इस भूमि को पिछले कई सालों से मांग रहा है तो यह जमीन देशहित में उनको सौंप देनी चाहिए अन्यथा सरकार की जो योजना है उसके अनुसार यह देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो सकता है. क्योंकि सिक्कम व नागालैंड में तो हम चीन के एक कदम भी भारत की सीमा में प्रवेश पर फ्लैग मीटिंग व हो हल्ला मचा देते है और यहाँ तो हम स्वयं ही चीनियों को वह भी भारतीय सैन्य अकादमी के पास ही आमंत्रित कर रहे हैं जो देश की सुरक्षा के लिए कतई भी ठीक नहीं.
  
वहीँ तीसरी और सबसे विवादास्पद मामला यह है कि एक तरफ तो राज्य सरकार केंद्र से जंगलों को बचाने के एवज में ग्रीन बोनस की मांग करती अहि और दूसरी तरफ राज्य सरकार अपने ही यहाँ सैकड़ों सालों से देहरादून की शान रहे चाय बगान पर खुद ही कंक्रीट का जंगल उगाने के लिए इस चाय बगान क तहस नहस करना चाहती है. मामले में आप पार्टी के नेता अनूप नौटियाल का कहना है चाय बागानों में स्मार्ट सिटी नहीं बननी चाहिए इसके भयानक दुष्परिणाम भविष्य में सामने आयेंगे, उन्होंने कहा केंद की निति के अनुसार मात्र 200 एकड़ में स्मार्ट सिटी बन सकती है तो 1700 एकड़ जमीन हथियाने का औचित्य समझ से परे है.वहीँ भाजपा के नेता सतपाल महाराज ने कहा कि यह हैरिटेज श्रेणी में आता है और इसको उजड़ने के बाद चाय बागानों में काम कर रहे मजदूरों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा हो जायेगा वहीँ यहाँ निवास करने वाले जीव जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा और यहाँ की जैव विविधता खतरे में पड़ जाएगी. उन्होंने कहा चाय बगान को बचाया जाना चाहिए.

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