बेंगलुरु, 06 दिसंबर, देश में असहिष्णुता के मुद्दे पर चल रही बहस के बीच तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने आज कहा कि भारत को धर्मनिरपेक्षता में अपने विश्वास को मजबूत करना चाहिए और देश का संविधान भी इसी पर आधारित है। दलाई लामा ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक संगठन तवाजुन इंडिया के लांच के मौके पर कहा कि भारत सबसे बेहतर जगह है, जहां दुनिया के किसी भी अन्य देश के मुकाबले धार्मिक सहिष्णुता का सबसे अच्छे तरीके से पालन किया जाता है। उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के समझदार लोगों ने धर्मनिरपेक्षता पर आधारित संविधान की रचना की। तीन हजार वर्ष पहले से अहिंसा और सहिष्णुता तथा लोगों को समाज में शांति एवं एकता के साथ रहने का उपदेश देने वाले भारत के लिए यह कुछ नया नहीं है।”
दलाई लामा ने कहा कि इतनी शताब्दियों तक भारत धार्मिक समरसता के साथ रहा लेकिन यह बहस कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब किसी दूसरे धर्म का अनादर करना है, तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने कहा, “भारत धार्मिक भाईचारे का अनूठा उदाहरण है, जो पश्चिम के विपरीत है। मैंने पश्चिम में धर्म के आधार पर धर्मनिरपेक्षता का अनादर हाेते हुए देखा है लेकिन यह सोच अच्छी नहीं है। मुस्लिम समुदाय में कुछ लोग ऐसे हैं, जो अलग तरीके से सोचते हैं। हालांकि बाकी लोग शांतिप्रिय हैं। भारत में इस समुदाय के लोग एक उदाहरण है।” 'दलाई लामा ने कहा कि बेहतर शिक्षा से चरमपंथ समेत कई समस्याओं काे हल किया जा सकता है। विश्व को मजबूत शिक्षा पद्धतियों की ओर बढ़ना चाहिए, जो युवाओं को धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की सीख दें। उन्होंने कहा कि पेरिस हमला फ्रांस के लोगों के लिए एक झटका है लेकिन यूरोप में विभिन्न धर्म के लोगों के बीच मजबूत इच्छाशक्ति पैदा की जानी चाहिए और बड़े-बुजुर्गों को युवाओं को शांति का पाठ पढ़ाना चाहिए।