पत्रकारों पर हमले और उत्पीड़न की बढ़ती प्रवृत्ति के मद्देनजर पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने, मीडिया काउंसिल के गठन तथा मीडियाकर्मियों की अन्य मांगों को लेकर एनयूजे (आई) के बैनर तले बड़ी संख्या में पत्रकारों ने आज यहां धरना-प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया। प्रदर्शन में नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की देशभर में फैली इकाइयों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। धरने को एनयूजे के राष्ट्रीय पदाधिकारियों के अलावा कन्फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसीज इप्लाईज आर्गनाइजेशन्स के महासचिव एमएस यादव, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नंदकिशार त्रिखा, राजेंद्र प्रभु, विजय क्रांति और अन्य कई वरिष्ठ पत्रकारों ने संबोधित किया।
एनयूजे के अध्यक्ष रास बिहारी और महासचिव रतन दीक्षित के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी पत्रकारों ने ऐतिहासिक जंतर मंतर रोड से संसद भवन की ओर मार्च किया जिसे पुलिस प्रशासन ने आगे नहीं बढ़ने दिया। बाद में एनयूजे के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। धरने को संबोधित करते हुए कन्फेडरेशन के महासचिव यादव ने पत्रकारों की एनयूजे की मांगों का समर्थन किया और मांग की कि केंद्र और राज्य सरकारें अखबारों में मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को सख्ती से लागू कराएं। एनयूजे के अध्यक्ष रास बिहारी ने कहा कि ‘यह पत्रकारों को पुलिस सुरक्षा की मांग नहीं बल्कि कानूनी सुरक्षा की मांग है। इसे केंद्रीय स्तर पर पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करके ही पूरा किया जा सकता है।’’ एनयूजे महासचिव दीक्षित ने कहा, ‘एनयूजे के इस अभियान का यही मकसद है कि केंद्र और राज्य सरकारें मीडियाकर्मियों की उनकी सुरक्षा, संरक्षा और उनके अधिकारों के हनन की समस्याओं को समझें और इसके लिए मिलजुल कर पर्याप्त विधायी प्रावधान करें।’
डॉ. त्रिखा ने कहा कि मीडिया में आये बदलाव, टीवी और नये इंटरनेट मीडिया के उभार को देखते हुए इस क्षेत्र के स्वस्थ विकास के लिए प्रेस काउंसिल की जगह मीडिया काउंसिल और एक नये मीडिया कमीशन का गठन जरूरी हो गया है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र प्रभु ने मीडिया घरानों में श्रमजीवी पत्रकारों के अधिकारों के संरक्षण पर बल दिया। प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन में कहा गया है कि पिछले कुछ समय में देशभर में पत्रकारों पर हमले की 200 से अधिक घटनाएं हुई हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में पत्रकारों की हत्याओं का जिक्र करते हुए कहा गया है कि असम में पिछले 14 साल में हर साल औसतन एक पत्रकार की हत्या हुई है।