’’बांध तो बणवा दो पछे देखांगा पाणी कुण ले जाएगा।’’ ठीकरिया गांव के ग्रामीणों के ये षब्द इन दिनों मुझे बार-बार याद आ रहे हैं। मुझे याद है कि मैं कृति के सदस्यों के साथ ठीकरिया उस जगह को देखने गया था जहां ठीकरिया बांध बनने वाला था। पूरी योजना पढने जानने और वहां के किसानों के साथ बात करने के बाद ही यह अहसास हो गया था कि ठीकरिया सिंचाई परियोजना जिसका पचास प्रतिषत पानी सिंचाई, तीस प्रतिषत नीमच को पेयजल एवं दस प्रतिषत उद्योगों के लिये आरक्षित किया गया है, नीमच वालों को मिलना आसान नहीं है।
इसे काफी पहले से कृति संस्था के साथ नीमच के सिंधी सोषल ग्रुप, सिंधी समाज, अग्रवाल समाज, जैन समाज, पेंषनर संघ, महिलाओं के कई संगठन नीमच जिले की पेयजल सम्बंधी स्थायी हल के लिए चम्बल का पानी नीमच लाने के लिये आवाज उठाते रहे थे परन्तु इन सभी की अनदेखी कर ठीकरिया की योजना बनी। तब नगरपालिका का और पीएचई में बैठे लोगों को चम्बल से ज्यादा उपयुक्त षार्ट टर्म ठीकरिया की योजना लगी। बांध छोटा था, जल्दी बन गया। इसमें राजनैतिक एवं आर्थिक लाभ का भी आकलन किया गया था, जिसको जो मिलना था वो मिला कि नहीं वो जाने, पर बांध बन गया। स्थायी निदान से इनका कोई लेना देना नहीं था।
इसी दौरान हमारे क्षेत्र के विधायक आदरणीय श्री खुमानसिंह षिवाजी का स्वर्गारोहण हो गया। प्रदेष के मुख्यमंत्री भी उनकी अन्त्येष्ठी में षामिल होने आए थे। उन्होंने षिवाजी की स्मृति को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये उनके सम्मान स्वरूप ठीकरिया बांध का नाम षिवाजी सागर रख दिया।
बांध बनने के बाद पहली खेप में हुई जोरदार बारिष में भर भी गया। सभी के लिये खुषी मनाने के लिये पर्याप्त अवसर था क्योंकि यहां तक सब ठीक चल रहा था। चम्बल के पानी लाने की बात नेताओं ने डस्टबीन में डाल दी। परन्तु कुदरत का कानून नेताओं के अनुसार नहीं चलता। उसकी अदालत में इनके प्रभाव का इस्तेमाल नहीं हो सकता। बारिष की लम्बी खेंच के बाद भी पानी नहीं बरसने के कारण किसानों ने जो फसल बो रखी थी उसे सिंचाई की आवष्यकता थी। अधिकारियों की अदूरदर्षिता के कारण पानी छोडने के लिये किसानों के बीच तलवारें खिंच गईं। नीमच और मनासा के विधायक अपने अपने क्षेत्र के किसानों को पानी दिलाने पर अड गये। नीमच के विधायक को तो प्रदेष के मुख्यमंत्री के दरबार में जाकर गुहार लगानी पडी। यहां तक तो जो हुआ सो हुआ, आगे क्या होगा, इसका अंदेषा अगर अभी भी नहीं कर सके तो फिर तो भगवान ही मालिक है।
बस मैं तो आपकी स्मरण डायरी में छोटी सी यह बात लिखने को कह रहा हूं कि जब किसानों के पहले हक के पचास प्रतिषत पानी को लेकर इतना बवाल मचा हुआ है, तो नीमच के तीस प्रतिषत का क्या होगा ? यह बात इसलिये भी बताना जरूरी है कि अभी जाजूसागर डेम जो पूर्णरूप से पेयजल परियोजना है, वहां से सिंचाई के लिये वर्षों से पानी चोरी हो रहा है। जिसे लाख प्रयासों के बाद भी नहीं रोका जा सका है। यह अलग बात है कि उसमें कुछ प्रभावषाली पार्षदों व अधिकारियों की मिलीभगत रहती थी, रहती है और रहेगी। जाजू सागर से हमें अभी चार पांच दिन छोडकर मार्च अप्रैल तक तो पानी ठीक ठीक मिल जाता है। इसकी कमी इस दौरान इस लिये नहीं अखरती कि अन्य स्त्रोतों से भी अन्य कार्यों की पूर्ति हो जाती है।
पानी का संकट आता है मई जून में जब सभी जल स्त्रोत सूखने लगते हैं, स्वाभाविक है तब ही हमें ठीकरिया के पानी की आवष्यकता महसूस होगी। पचास प्रतिषत पानी सिंचाई के लिये प्रयुक्त होने के बाद जो पानी बचेगा जाहिर है कि उस पर भी गर्मी का प्रभाव पडेगा। पानी की चोरी होगी, उसे रोक पाना अत्यन्त दुष्कर कार्य है। क्योंकि जब पेयजल योजना से पानी चुराकर सिंचाई में प्रयुक्त हो रहा है तो सिंचाई परियोजना से चुराना कोई मुष्किल नहीं।
बचे हुए पानी को जब लिफ्ट कर नीमच को देने का वक्त आएगा तब क्या गांव के किसान आसानी से पानी लेने देंगे। क्योंकि तब वहां भी पेयजल संकट गहरा रहा होगा। ग्रीष्मकालीन फसलों को भी पानी की आवष्यकता रहेगी। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ माह पहले ठीकरिया से समूह पेयजल योजना के तहत अट्ठाईस गांवों को पानी देने की डी.पी.आर. बन चुकी है। इन गांवों को भी ठीकरिया से ही पानी मिलना है। यह सब बातें क्या संकेत दे रही है आसानी से समझा जा सकता है। इसके बाद भी नहीं समझो तो आपकी मर्जी।