नयी दिल्ली 11 दिसंबर, वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन सियाम ने आज कहा कि दिल्ली में कारों के चलाने पर आंशिक प्रतिबंध से राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। सियाम के महानिदेशक विष्णु माथुर ने आज यहाँ पत्रकारों से बात करते हुये कहा कि दिल्ली सरकार के एक दिन सम और एक दिन विषम नंबर वाले वाहनों को प्रतिबंधित करने के फैसले से शहर में हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होगा। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए हमेशा कारों को दोषी ठहराया जाता है क्योंकि ऐसा करना आसान है। लेकिन, सच्चाई यह है कि हम भारत स्टेज (बीएस)-4 तक आ गये और हर चरण में वाहनों के उत्सर्जन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, इसके बावजूद शहर का प्रदूषण स्तर लगभग वहीं है।
श्री माथुर ने कहा “पहले भी कारों पर नियामकों से प्रदूषण कम नहीं हुआ है और भविष्य में भी इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा।” आईआईटी कानपुर के अध्ययन का हवाला देते हुये उन्होंने कहा कि दिल्ली के कुल प्रदूषण में कारों का योगदान महज 2.5 प्रतिशत है और यदि आधी कारों को रोजाना सड़कों से हटा भी दिया जाता है तो इससे प्रदूषण में महज 1.25 प्रतिशत की कमी आयेगी जो नगण्य है। इसकी बजाय उन्होंने बीएस मानक लागू होने से पहले बने वाहनों को हटाने तथा ट्रकों एवं अन्य व्यावसायिक वाहनों के लिए बीएस-4 मानक लागू करने की वकालत की।
उन्होंने कहा कि शहर के प्रदूषण का ग्राफ सितंबर से दिसंबर के बीच हर साल बढ़ता है और इसके तीन प्रमुख कारण हैं। पहला मौसमी बदलाव जिसके कारण प्रदूषण फैलाने वाले गैसें और धूलकण हवा के निचले स्तर में ही बने रहते हैं। दूसरा, इस मौसम में पड़ोसी राज्यों में किसान धान की कटाई के बाद अवशेष जलाये जाते हैं जिससे दिल्ली की हवा भी प्रदूषित हो जाती है। इसके अलावा दिवाली और शादी-विवाह में बड़ी मात्रा में पटाखों के इस्तेमाल से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
सरकार के बीएस-5 मानक 2019 से लागू करने के फैसले का सियाम ने स्वागत किया है जबकि बीएस6 के लिए श्री माथुर ने कहा कि इसे 2021 से लागू करने के लिए तकनीकी रूप से उद्योग जगत तैयार नहीं है। इसके लिए तकनीक तैयार करने में समय लगेगा और इसलिए 2023 से पहले इसे लागू करने से जो कंपनियाँ तकनीक में बदलाव नहीं कर पायेंगी उन्हें उत्पादन बंद करना होगा। उन्होंने कहा कि तकनीक को हर मॉडल पर परखने और उसके लिए डिजाइन आदि तैयार करने में समय लगता है। दुनिया में जहाँ भी इन मानकों में बदलाव किये गये हैं उसके लिए हर चरण में कम से कम पाँच साल का समय दिया गया है।