पटना। मानव हित साधने में माहिर है। जबतक दीघा की मिट्टी में उर्वराशक्ति रही तबतक हरेक साल आम फलते रहा। इसके कारण किसान और व्यापारी चांदी काटते रहे। जिस रफ्तार से माल कमाए उस वेग में आम वृक्ष की सेवा नहीं किए। नतीजन एक साल बीच करके आम फल मिलने लगा।
विश्व विख्यात दूधिया मालदह आम के वृक्ष लगाने वाले किसानों का मोहभंग हो गया है। एक साल आम के वृक्ष में मंजर और दूसरे साल मंजर गायब। इस तरह का सिलसिला प्रत्येक साल देखने को मिलता है। इस साल भी यही आलम है। केवल एक ही वृक्ष में मंजर लगा हुआ है। बाकी सभी वृक्ष मंजरविहीन है। इसके कारण दूधिया मापदह आम के रसिया परेशान हो उठते हैं। न केवल रसिक बल्कि पक्षी भी रूख बदल दिए हैं। अब कोयलिया की कू-कू की आवाज सुनने को नहीं मिलती।
बहरहाल, जिस रफ्तार से जमीन की कीमत सातवे आसमान में जा पहुंची है। इसके कारण आम बगीचा का दायरा सिमटता चला जा रहा है। अब दीघा में दूधिया मालदह का मजा लेने वालों को आयातित आम का ही मजा उठाने को बाध्य हो रहे हैं।
आम के वृक्षों का दायरा दिन-प्रतिदिन सिमटता जा रहा है। वहीं गगनचुम्बी भवन बनने लगा। जहां हजारों वृक्ष हुआ करते थे वहीं अब मात्र गिने-चुने बच गए है। इस क्षेत्र में पर्यावरण प्रिय संस्था तरूमित्र है। जो प्रत्येक साल वृक्षों को रक्षा करने के लिए ‘राखी’ बांधने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उनके सामने ही धड़ल्ले से वृक्ष की कटाई करके दीघा को विरान बनाकर पत्थर का अट्टालिकाएं बना दिए गए।
आलोक कुमार
बिहार