गुजराती भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेष के काषी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा सहित भाजपा के साथ अन्य दलों के बड़े नेताओं द्वारा भी क्षेत्र बदलकर चुनाव लड़ने की खबरें सुर्खियों में रहीं हैं। वैसे तो, तमाम नेता दल बदलने में माहिर होते है, परन्तु विदिषा जिले के नेता तो बहुत पहले से क्षेत्र बदलने से भी नहीं चूकते रहे। क्षेत्र बदल का यह सिलसिला आजादी के ठीक बाद हुए विधानसभा के पहले आम चुनाव से ही शुरू हो गया था।
क्षेत्र बदलकर चुनाव लड़ने वालों मे विदिषा जिले के जो दिग्गज नेता शामिल हैं, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन, पूर्व सांसद निरंजन वर्मा, पूर्व वित्तमंत्री राघवजी, पूर्व विधायक डाॅ. जमनाप्रसाद मुखरैया, हीरालाल पिप्पल, राम सिंह, डाॅ. मेहताब सिंह यादव, रूद्रप्रताप सिंह राजपूत, सुन्नूलाल आदि शामिल हैं।
सबसे पहले विदिषावासी बाबू तख्तमल जैन की चर्चा करें, जो कि आजादी के बाद हुए विधानसभा के पहले आम चुनाव में बासौदा से चुनाव लड़े और हारे। इसके बावजूद जब प्रदेष विधायक दल के नेता अर्थात मुख्यमंत्री चुन लिए गए तो कांग्रेस आलाकमान ने उनके लिए मंदसौर सीट खाली कराकर वहां हुए मध्यावधि चुनाव मंे लड़ाया, पर वे वहां भी हार गए, लेकिन हाईकमान तो उन्हें विधायक बनवाने आमादा था, नतीजे में विदिषा विधानसभा सीट का 1955 में मध्यावधि चुनाव कराया गया और उसमें लड़कर वे विधायक बन सके। विधायक बनने तक बाबूजी मुख्यमंत्री तथा मिश्रीलाल गंगवाल कार्यकारी मुख्यमंत्री रहे। विदिषा से जीतने के बावजूद उन्होंने क्षेत्र बदला और 1957 तथा 1962 के चुनाव कुरवाई से लड़कर जीते।
पूर्व संासद निरंजन वर्मा ने 1952 का पहला चुनाव अपने गृह क्षेत्र विदिषा के बजाय बासौदा से लड़ा और जीत दर्ज कराई। उन्होंने बाबू तख्तमल जैन को परास्त किया था। इसके बाद वे 1957 में कुरवाई से हारने के साथ 1962 तथा 1967 में उस बासौदा सीट से पराजित रहे, जिससे सर्वप्रथम हुए निर्वाचन में विजयी रहे थे।
पूर्व वित्तमंत्री राघवजी ने केवल एक मर्तबा अपना क्षेत्र बदला है। विधानसभा का पिछला चुनाव उन्होनंे विदिषा के स्थान पर शमषाबाद से लड़ा तथा जीता और उसी के आधार पर वे वित्तमंत्री बने थे। इसी प्रकार पूर्व सांसद प्रतापभानु शर्मा ने विधानसभा का पिछला चुनाव विदिषा जिले के किसी क्षेत्र के स्थान पर रायसेन जिले के उदयपुरा क्षेत्र से लड़ा, पर वे पराजित रहे। क्षेत्र परिवर्तन उनके लिए राघवजी जैसा अनुकूल नहीं रहा।
डाॅ. जमना प्रसाद मुखरैया 1952 के पहले आम चुनाव में विदिषा क्षेत्र से अनारक्षित विधायक चुने गए थे। 1957 का चुनाव भी उन्होंने विदिषा से लड़ा पर हारे थे। इसके बाद 1962 का चुनाव उन्होंने क्षेत्र बदलकर कुरवाई से लड़ा, पर वहां से भी पराजित ही रहे।
इसी प्रकार हीरालाल पिप्पल 1955 के मध्यावधि चुनाव में विदिषा से पहली मर्तबा विधायक बने, विदिषा से ही 1957 में फिर जीते तथा 1962 में हार गए। इसके बाद उन्होंने क्षेत्र के साथ दल भी बदला। 1967 के चुनाव में उन्होंने जनसंघ के प्रत्याषी के रूप में बासौदा सीट से चुनाव लड़ा और जीता।
उधर बासौदा-कुरवाई क्षेत्र के निवासी ठाकुर रामसिंह ने 1952 का पहला चुनाव कुरवाई से जीता। 1962 में क्षेत्र बदला और बासौदा से लड़े तथा जीते, परन्तु 1972 के चुनाव में कुरवाई से और 1980 के चुनाव में बासौदा से उन्हें षिकस्त मिली। पूर्व राज्यमंत्री तथा स्व. बाबू राम सहाय सक्सेना के सुपुत्र स्व. गिरीषचंद्र वर्मा ने क्षेत्र तथा दल बदलकर जब जनता पार्टी के टिकट पर शमषाबाद से 1977 का चुनाव लड़ा तो वे जीते तथा संसदीय सचिव भी बने। उसके बाद उन्हें 1990 के चुनाव में वहीं से परास्त भी होना पड़ा। विदिषा के इंका नेता सुन्नूलाल ने 1952 में अपने गृह क्षेत्र विदिषा से विधानसभा का चुनाव लड़ा तथा परास्त हुए। इसके बाद उन्होंने क्षेत्र बदलकर 1967 तथा 1972 के चुनाव बासौदा से लड़े और वहां भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और वे पराजित रहे। रूदप्रताप सिंह ने 1990 के चुनाव में विदिषा से चाहे मात खाई पर जब उन्होंने क्षेत्र तथा दल बदलकर अजेय भारत पार्टी प्रत्याषी बनकर 1998 का चुनाव शमषाबाद से लड़ा तो जीते। इसी प्रकार डाॅ. मेहताब सिंह यादव ने 1985 का चुनाव शमषाबाद से जीतने तथा 1993 में हारने के बाद जब 1998 के चुनाव में सिरोंज से चुनाव लड़ा तो वहां भी हारे। वे तीसरे मुकाम पर पहुंच गए थे। उस चुनाव में भाजपा के लक्ष्मीकांत शर्मा विजयी रहे थे तथा समाजवादी पार्टी के चैधरी मुनव्वर सलीम दूसरे स्थान पर रहे थे।
(जगदीष प्रसाद शर्मा)
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