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चुनाव विशेष : चरण वंदना भी नहीं जिता पाई थी चुनाव

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समूचे देश के साथ विदिषा संसदीय क्षेत्र में भी प्रारंभ से लोकसभा के चुनाव-उपचुनाव होते रहे हैं। यहां यह जरूर अजीव रहा कि विभिन्न दलों को स्थानीय प्रत्याषी ढूंढ़े से भी नहीं मिले और इन दलों ने आयातित उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में थोक में उतारे। 

हिन्दू महासभा ने अपने मुम्बईवासी नेता व्ही.जी. देषपाण्डे को थोपा तो कांग्रेस ने मुम्बई से लाकर राम सहाय पाण्डे को खड़ा किया। जनसंघ ने मुम्बईवासी विष्वविख्यात आयुर्वेदाचार्य पं. षिव शर्मा तथा एक्सप्रेस समाचार पत्र समूह के स्वामी उद्योगपति रामनाथ गोयनका को कृतार्थ किया तो कांग्रेस भी कैसे पीछे रहती, उसने भी सागर के बीड़ी किंग उद्योगपति मणिभाई पटेल और भोपाल के नेता गुफराने आजम को पूरा मौका दिया। इसी प्रकार ग्वालियर की राजमाता श्रीमती विजयाराजे सिंधिया ने भी इस क्षेत्र से विजयश्री का वरण किया। हां, उस चुनाव में श्रीमती सिंधिया कांग्रेसी उम्मीदवार रहीं थीं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां से सुनिष्चित विजय के मद्देनजर चुनाव लड़ा और जीता भी। वर्तमान में इस क्षेत्र की लोकसभा सदस्य श्रीमती सुषमा स्वराज भी विदिषा क्षेत्र ही नहीं अपितु मध्यप्रदेष की भी निवासी नहीं है। 

बाहरी उम्मीदवारों, चाहे वे विभूतियां ही क्यों न रही हों, का यहां से चुनाव लड़ना गर्व का विषय रहा है अथवा शर्म का, यह जनता-जनार्दन ही तय करे। यहां तो चर्चा के खास विषय हैं मणिभाई पटेल, जिन्होंने 1971 में कांग्रेस के टिकट पर अन्य उद्योगपति जनसंघ के प्रत्याषी रामनाथ गोयनका के विरूद्ध चुनाव लड़ा था। मणिभाई पटेल की आदत थी प्रातःकाल उठने से लेकर रात सोने तक जो भी सामने आए उसके चरण छूना। उनका जो भी आध्यात्मिक संकल्प रहा हो अथवा जो भी आस्था-अवधारणा रही हो, पर सबकी चरण वंदना उनकी दिनचर्या थी। राजा के भी पांव छुओ और रंक के भी। यहां तक कि अपने घर के नौकरों-नौकरानियों के भी वे पांव पड़ा करते थे। जब उन्होंने विदिषा से चुनाव लड़ा तब भी उन्होंने अपनी चरण वंदन दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। ऐसा भी नहीं कि वे विरोधियों के पांव नहीं छूते थे। उनके खिलाफ प्रचार करने वालों से आमना-सामना होने पर वे उनके भी पांव पड़ते थे। 

मणिभाई पटेल की ऐसी आष्चर्यपूर्ण चरण वंदना ने उस दौरान यहां सबको हैरत में डाल रखा था। रिटर्निंग आॅफीसर कलेक्टर के कार्यालय में अपना नामांकन पत्र दाखिल करने पहंुचे तो दरवाजे पर मौजूद चपरासी के पांव पड़े और अंदर कलेक्टर सहित कक्ष में मौजूद तमाम लोगों की भी वैसी ही चरण वंदना की। सर्वाधिक खास नजारा वह रहा, जब उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार रामनाथ गोयनका के भी पांव सार्वजनिक रूप से पड़े। उस चुनाव की मतगणना कलेक्ट्रेट परिसर मंे शामियाना लगाकर की गई थी। रामनाथ गोयनका मतगणना स्थल में प्रवेष करने ही वाले थे कि तभी मणिभाई भी पहुंच गए। बस फिर क्या था मणिभाई ने श्री गोयनका की चरण वंदना कर डाली। श्री गोयनका तो भौंचक्के रह गए थे। वैसे उन्हें अपने प्रतिद्वंदी की ऐसी सार्वजनिक चरण वंदना की खबरें मिलती रही थीं, पर प्रत्यक्ष प्रमाण तो मतगणना स्थल पर ही मिल पाया था। मणिभाई ने उसके बाद अन्य सभी लोगों के पावं भी उसी श्रद्धाभाव से पड़े थे। क्या मणिभाई चुनाव जीते थे ? जी नहीं, वे 32 हजार 67 वोटों से चुनाव हारे थे। उनकी चरण वंदना भी चमत्कार नहीं कर पाई थी, उसका जादू नहीं चल पाया था। यह अलग बात है कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए कतई पांव नहीं पड़े थे, पर जनसंघ के इस सुदृढ़ गढ़ के मतदाता तो उन पर रीझे ही नहीं थे और उनके प्रतिद्वंदी रामनाथ गोयनका चुनाव जीत गए थे। यह क्षेत्र भाजपा का कितना सुदृढ़ गढ़ है, यह भी तब प्रमाणित हो गया था, आगे तो साबित होता ही रहा है। 





---जगदीश शर्मा---
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