पटना, 7 जनवरी, 2014, राज्यों को केन्द्र सरकार से आर्थिक न्याय दिलाने में वित्त आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिहार देष एक पिछड़ा राज्य है। हम इस आषा और विष्वास के साथ 14वें वित्त आयोग के सामने कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को रखना चाहते हैं कि इस राज्य के पिछड़ेपन को दूर करने में आयोग से हमें भूरपूर सहयोग और सहायता मिलेगी।
केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण देष में असंतुलित विकास हुआ है। असंतुलित आर्थिक विकास की नीति का बिहार भी षिकार हुआ है। असंतुलित आर्थिक विकास के कारण अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। कहीं पृथक राज्य की मांग हो रही है। कहीं विषेष राज्य का दर्जा देने की मांग हो रही है। कहीं क्षेत्रियतावाद उग्र रूप धारण कर रहा है। इन सब घटनाओं से समाज में अषान्ति, हिंसा, राजनीतिक अस्थिरता, केन्द्र राज्य संबंधों में टकराव की समस्याएँ राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है, जो राष्ट्रीय एकता और मजबूती के लिए खतरनाक है। एक कल्याणकारी राज्य (ॅमसंितम ैजंजम) के लिए यह आवष्यक है कि उसके नीति निर्माण में आम आदमी केन्द्रीय बिन्दु बने। राष्ट्रीय उत्पादन का न्याय संगत वितरण हो ताकि देष संतुलित विकास की ओर बढ़े। आज ऐसा नहीं हो रहा है। केन्द्र सरकार की वर्तमान आर्थिक नीतियों में बदलाव की आवष्यकता है।
केन्द्र सरकार की ऐसी आर्थिक नीति है, जिससे देष के आर्थिक विकास की निर्भरता निजी पूंजी पर बढ़ती जा रही है और आर्थिक विकास में राज्य की भूमिका सिकुड़ती जा रही है। असंतुलित आर्थिक विकास का यह बहुत बड़ा कारण है। निजी पूंजी निवेष उन्हीें क्षेत्रों में होता है जहां से अधिकत्तम लाभ की आषा होती है। निजी पूंजी निवेष में आम जरूरतों की अनदेखी होती है। आवष्यकता पर आधारित पूंजी निवेष सार्वजनिक वित्त (च्नइसपब थ्पदंदबम) से ही संभव है। इसलिए पिछड़े राज्यों मेें केन्द्र सरकार की ओर से सार्वजनिक वित्त की भूमिका बढ़ाने की जरूरत है।
बिहार एक ऐसा राज्य है जहां न निजी पूंजी निवेष हो रहा है और न सार्वजनिक पूंजी निवेष ही हो रहा है। भारत के विकासित राज्यों, जैसे महराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू आदि में निजी पूंजी निवेष के साथ-साथ सार्वजनिक पूंजी निवेष भी हुआ है। बिहार इस सुविधा से सर्वथा वंचित है। इसीलिए बिहार एक उद्योग विहीन राज्य बन गया है। इसका औद्योगिकरण बहुत जरूरी है।
बिहार वित्तीय संसाधनों के स्रोतों के मामले में अत्यन्त गरीब है। यहां न जंगल है, न माइन्स है, न उद्योग है। अपने आन्तरिक स्रोतों से बिहार अपने पिछड़ेपन को दूर करने में अक्षम है। क्योंकि इसके आन्तरिक वित्तीय सो्रत सीमित है। बिहार की आधी से भी ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीेचे है। यहां ऐसे भी जिले हैं जहां की प्रति व्यक्ति सालाना आय पांच हजार रुपये है। 5 लाख भूमिहीन परिवार ऐसे हैं जिसके पास अपना घर नहीं है।
बिहार के पास दो चीजें हैं - भूमि और मानव श्रम शक्ति। इनका सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। कृषि असुरक्षित है। 60 प्रतिषत के लगभग जमीन असिंचित है। गंडक प्रोजेक्ट 1962 में शुरू हुआ। अभी तक पूरा नहीं हुआ। अनुमान था कि प्रोजेक्ट पूरा हो जाने पर 29 लाख एकड़ अतिरिक्त भूमि में सिंचाई की सुविधा होगी। काम अधूरा रहने से सिंचाई का लक्ष्य तो पूरा नहीं ही हुआ, उलटे 7 लाख एकड़ भूमि में जल जमाव होने लगा। उत्तर बिहार के 20-25 जिले हर साल बाढ़ से तबाह हो जाते हैं। बाढ़-सुखाड़ बिहार की स्थायी समस्या है। इसका स्थायी निदान बिना केन्द्रिय आर्थिक सहायता के संभव नहीं है। लेकिन केन्द्र सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है।
मानव श्रम शक्ति का भरपूर उपयोग नहीं हो रहा है। ब्रिटिष शासन काल में बिहार में 29 चीनी मिलें थी। 7-8 उनमें चालू है। शेष सभी बंद पड़ी है। कोई नये उद्योग नहीं लग रहे हैं। बिहार में लघु एवं कुटीर उद्योग रोजगार सृजन का बड़ा क्षेत्र था। यह क्षेत्र मरणासन्न है। इस सबके चलते बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। केन्द्रीय आर्थिक सहायता और सार्वजनिक पूंजीनिवेष बिहार के लिए अत्यन्त आवष्यक है। कृषि पर आधारित उद्योग की बड़ी संभावना है। चीनी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, मत्स्य पालन आदि की बड़ी संभावनाएँ हैं। लेकिन राज्य के आन्तरिक वित्तीय स्रोतों से इसका समुचित विकास संभव नहीं है।
विकास के आँकड़ों को देखकर नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत और राज्यों की जरूरतों के आधार पर केन्द्रीय वित्तीय साधनों का वितरण होना चाहिए। बिहार का वाजिब हक तो मिलना ही चाहिए, साथ ही साथ राज्य के विछड़ेपन को देखते हुए विषेष वित्तीय सहायता भी मिलनी चाहिए। आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण अति आवष्यक है। केन्द्र सरकार की नीतियाँ ऐसी है कि षिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क यातायात सबकुछ निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। निजी पूंजी के साथ-साथ स्टेट फन्डिंग को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। ैजंजम निदकपदह से सरकार हाथ सींच रही है। यह आर्थिक विकास के लिए घातक है।
ब्.क् अनुपात बिहार में बहुत कम है। राज्य में वित्तीय संस्थाएंँ वित्तीय सहायता करने में संतोषप्रद काम नहीं कर रही है। इस ओर आयोग को ध्यान देना चाहिए। बिहार गांवों का राज्य है। राज्य की बहुमत आबादी गांवों में रहती है। लेकिन गांवों में गरीबी ज्यादा है। अषिक्षा, कुपोषण, चिकित्सीय सुविधा का अभाव, ग्रामीण बेरोजगारी यहां की मुख्य समस्या है। गांवों के विकास से ही राज्य का विकास होगा। इसलिए ग्राम पंचायतों, सहयोग समितियों और अन्य माध्यमों से गांव का विकास किया जा सकता है। इसके लिए केन्द्रीय वित्तीय सहायता जरूरी है।