22 मार्च को हर साल विश्व जल दिवस के रूप मनाया जाता है। आज विश्व में जल का संकट कोने-कोने में व्याप्त है। जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। हम जानते हैं कि जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन इसका इस्तेमाल करते वक्त हम यह भूल जाते हैं कि इसका इस्तेमाल कितनी मात्रा में करना है। हम जब तक जल के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक हम इतना दोहन इसी तरह करते रहेंगे। इंसान खाने के बगैर तो तीन चार दिन जिंदा रह सकता है लेकिन पानी पिए बिना तीन चार दिन से ज़्यादा जिंदा नहीं रह सकता। तमाम जानदार प्राणियों के लिए जल आक्सीजन की हैसियत रखता है। पानी का इस्तेमाल इंसान अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में भिन्न-भिन्न तरीकों से करता है जैसे पीने की ज़रूरत में, खाना पकाने की ज़रूरत में, या नहाने धोने की ज़रूरत में। जल के महत्व को वही लोग समझ सकते हैं जो लोग इसकी कमी से दो चार हैं।
पानी और जानदार प्राणियों का चोली दामन का साथ है। जम्मू एवं कष्मीर का जि़ला पुंछ सरहद पर होने की वजह से हमेषा सुर्खियों में रहता है। यह जि़ला सरहद पर होने की वजह से आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इस इलाके में षिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव तो है ही लेकिन जि़ले के कुछ इलाकों में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। पुंछ जि़ले की मेंढ़र तहसील से दस किलोमीटर की दूरी पर नाड़मनकोट गांव स्थित है। हरे भरे जंगल और आसमान से बातें करतीं खुबसूरत पहाडि़यां इस इलाके की खुबसूरती में चारचांध लगा रही हैं। इस गांव की कुल आबादी साढ़े तकरीबन हज़ार है। इस इलाके में परेषानियों की भरमार है लेकिन पानी की समस्या ने यहां के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
यह गांव दस वार्डांे में बंटा हुआ है लेकिन इसके तीन वार्डों में ही पानी के टैंक बने हुए हैं। लेकिन जिन वार्डों में पानी के टैंक हैं उन वार्डों के लोग भी पानी का रोना रोते रहते हैं। यहां के स्थानीय लोगों के मुताबिक पानी पहले टैंक तक ही पहुंच पाता है क्योंकि पाईपों के ब्लाक होने की वजह से पानी दूसरे और तीसरे टैंक तक पहुंचना संभव नहीं है। इलाके में पानी की समस्या के बारे में गांव की स्थानीय निवासी रजि़या बी ( 30 ) कहती हैं कि हम लोग हर रोज़ तकरीबन आधा किलोमीटर पैदल चलकर चष्मों से पानी लेने जाते हैं और फिर सरों पर पानी के मटके उठाकर घर वापस आते हैं। सरों पर पानी के मटके रखने की वजह से अपने सरों में दर्द होने लगा है। इस बारे में वह आगे कहती हैं कि मैं हुकूमत से यह सवाल करती हंू कि यह नाइंसाफी हमारे साथ क्यों की जा रही है? क्या हमारे वोट की कीमत कम है? अफसोस की बात है कि 21 वीं सदी के आधुनिक दौर में भी हमारे देष की औरतों को सरों पर पानी ढ़ोकर लाना पड़ता है।
पानी की समस्या पर अपने ख्यालात का इज़्हार करते हुए वार्ड नंबर पांच के पंच मोहम्मद सफीर कहते हैं कि इस इलाके की मस्जिद में भी पानी नहीं है। मस्जिद तक पानी पहुंचाने के लिए तकरीबन 40 पाइपों की ज़रूरत है लेकिन पाइपें कहां से लाएं। इस बारे में जब जूनियर एस्सिटेंट इंजीनियर को फोन करते हैं तो वह आज कल कहकर टाल देते हैं। इस बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि हमने कई बार इस समस्या के हल के लिए संबंधित अधिकारियों का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन अधिकारियों ने हमारी आवाज़ को वादों और भरोसों की बिना पर दबा दिया। अपनी मायूसी का इज़्हार करते हुए वह आगे कहते हैं कि सरकार की बेतवज्जोही की वजह से हमारा यह जन्नतनुमा इलाका करबला का मैदान बना हुआ है। पानी की समस्या के बारे में फरज़ाना बी (14) कहतीं हैं कि सर्दियों के दिनों में हमें एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। लेकिन गर्मी का मौसम आते ही चष्मों का पानी सूख जाने की वजह से हमारी मुष्किल और ज़्यादा बढ़ जाती है। गर्मियों के दिनों में तो हमें दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। सरकार को ग्रामीण इलाकों के साथ साथ सरहदी इलाकों की ओर जल्द से जल्द ध्यान देने की ज़रूरत है।
ग्रामीण इलाकों में विकास के पहिए की गति को बढ़ाए बिना हम षाइनिंग इंडिया का सपना नहीं देख सकते क्योंकि देख की तकरीबन 70 प्रतिषत आबादी इन्हीं इलाकों में रहती है। सिंचाई विभाग ने पानी की समस्या से निपटने के लिए जो सुझाव दिए थे उनका इस्तेमाल पुंछ जि़ला में बिल्कुल नहीं हो रहा है। फरवरी, माचर्, जून और जुलाई में इस इलाके में इतना पानी होता है कि यह पानी दूसरे इलाकों में सैलाब लाता है। अगर सिंचाई विभाग वाटर षेड कायम करे और इस पानी को जमा कर लिया जाए तो इस पानी का इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब इलाके में पानी की दिक्कत होती है।
हामिद शाह हाशमी
(चरखा फीचर्स)