वर्ष 1950 के दशक में सिनेपर्दे पर एकछत्र राज करने वाली अभिनेत्री वहीदा रहमान का कहना है कि उन्होंने अपने फिल्मी करियर में कभी स्लीवलेस ब्लाउस तक नहीं पहना तो बिकिनी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। वहीदा के करियर की शुरुआत में प्रतिष्ठित फिल्मकार गरुदत्त ने उनके साथ तीन सालों के लिए अनुबंध किया था। वहीदा के अनुसार, अनुबंध में उन्होंने एक शर्त रखी थी कि फिल्मों में अपनी पोशाकों के चयन का अंतिम फैसला उनका होगा।
वहीदा ने लेखिका नरीन मुन्नी कबीर द्वारा लिखी गई अपनी जीवनी 'कनवर्सेशन विद वहीदा'के लोकार्पण के दौरान संवाददाताओं से कहा, "मैं कोई 18 साल की नवयुवती नहीं थी, जब मैंने पहला अनुबंध किया था। मैंने कहा मेरी एक शर्त है कि यदि मुझे कोई पोशाक पसंद नहीं आई, तो मैं वह नहीं पहनूंगी।"
उन्होंने कहा, "मैं बिकिनी नहीं पहनना चाहती थी, क्योंकि मेरी काया इसके अनुरूप नहीं थी। मैंने फिल्मों में या अपने निजी जीवन में कभी स्लीवलेस ब्लाउज तक नहीं पहना, तो बिकनी पहनने की बात तो बहुत दूर रही।"वहीदा ने गुरुदत्त के सामने एक और शर्त रखी कि वह फिल्मों में आने के लिए अपना नाम नहीं बदलेंगी। उन्होंने कहा, "नाम बदलना उन दिनों चलन में था। दिलीप कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी और भी लोगों ने नाम बदला था। मेरी जिद थी कि मेरे माता-पिता ने मेरा जो नाम रखा है, मैं उसे नहीं बदलूंगी।"