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बिहार : इधर से हट जाए और वहां पर जाकर रह जाए..........

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पटना। गांधी के देश में अहिंसात्मक आंदोलन करने वालों के कद्र नहीं। आप सही मायने में कुछ मुद्दों को उठाकर सत्याग्रह करते हैं। आप लाखों बार गांधीगीरी करके देख लें। बिहार सरकार के समक्ष किसी तरह की सुनवाई नहीं होती। अब तो सरकार ही संस्था बनाकर फंड का उपयोग कर रही है। इसी लिए सरकार किसी फंडी एजेंसी से प्रायोजित सत्याग्रह समझ कर सत्याग्रह को तवज्जों ही नहीं देती है। इसी के तहत रूपसपुर थाना क्षेत्रान्तर्गत टेसलाल वर्मा नगर के आवासीय भूमिहीनों के संग व्यवहार किया है। एक दशक से अधिक ही विस्थापितों को पुनर्वास करने की मांग को सरकार अनदेखी करके रख दी। केवल इधर से हट जाए और वहां पर जाकर रह जाए करके ठग दी। 

 जन संगठन एकता परिषद केे नेतृत्व में टेसलाल वर्मा नगर के करीब 274 आवासहीन भूमिहीन परिवार के लोग गांधी, विनोबा, जयप्रकाश के मार्ग पर चलकर अहिंसक आंदोलन किए। लोकनायक जयप्रकाश के शिष्य कहलाने वाले पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आवासहीन भूमिहीन विस्थापितों के पक्षधर नहीं बने। इसका खामियाजा टेसलाल वर्मा नगर के वंचित समुदाय को भुगतना पड़ा। इन गरीबों को पूर्व मध्य रेल के अधिकारियों ने आखिरकार सभी को दीवार के उस पार कर देने में कामयाब हो गए। रेलवे की दीवार और दीघा नहर के बगल में बची जमीन पर रहने को बाध्य हो गए हैं। लोगों ने आवाजाही करने के लिए मुर्गी के घर के दरवाजा की तरह दीवार तोड़कर राह तलाश लिए हैं। 

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तब रेल और दीघा नहर से खतराःपूर्व मध्य रेल ने पाटलिपुत्र स्टेशन के रेलखंड से झोपड़ी नसीब वालों को दीवार के उस पार करने में सफल हो गया। दीवार के उस पार पर फिल्म बनायी जा सकती है। जो अहिंसात्मक आंदोलन करने वालों पर आधारित हो सकता है। कैसे लोगों को संगठित करके सत्याग्रह किया जाता है। सत्याग्रह करने के दरम्यान तेतरी देवी नामक महिला शहीद हो जाती हैं। इस आंदोलन को दबाने के लिए आंदोलनकारियों पर दफा 107 लगाकर दानापुर एसडीओ के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। दानापुर प्रखंड परिसर में 9 माह सत्याग्रह किया गया। 

महामहिम राज्यपाल से लेकर सीओ तक गुहार लगाया गया। उसी तरह पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारियों के समक्ष फरियाद किया गया। विभिन्न विभागों में मैराथन दौड़ लगाया गया। आज कुआं खोदो और आज ही पानी पीने वाले विस्थापित किस तरह से वसूल करके माननीय उच्च न्यायालय पटना में जनहित याचिका दर्ज किए। न्यायालय के आदेश को किस तरह से प्रशासन ठेंगा दिखाया। स्थानीय मीडिया के दबाव कायम करने के बाद भी विस्थापितों को पुनर्वास नहीं किया गया। विस्थापित करने के पहले पुनर्वास करने की सरकारी व्यवस्था होने के बाद भी पुनर्वास योजना से लोगों को लाभान्वित नहीं किया गया। इतना होने के बाद भी कल्याणकारी सरकार और रेलवे अधिकारियों के द्वारा लोगों को पुनर्वास नहीं किया गया। 

इतना करने के बाद भी अहिंसात्मक आंदोलन हिंसक आंदोलन में तब्दील नहीं हुआ। अधिकारियों के द्वारा आश्वासन और वादा करके आंदोलनकारियों को ठगा गया। आखिर किस तरह के नेतृत्व से प्रभावित थे। जो हिंसात्मक आंदोलन करके सरकार को बेदम नहीं कर सके। एक बार भी आंदोलन के तहत किसी की गिरफ्तारी नहीं की गयी। केवल कहा गया कि आप लोगों को नहीं हटाया जाएगा। नहीं हटाया जाएगा कहकर अपने कार्य अधिकारी करते चले गए। इधर से हट जाए और वहां पर जाकर रह जाए। ऐसा कहकर खेल ही समाप्त कर दिए। 



आलोक कुमार
बिहार 

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