उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान ने कारगिल युद्ध को लेकर दिए गए अपने विवादास्पद बयान पर सफाई दी है। आजम ने कहा है कि फासिस्ट ताकतें आजादी के बाद से ही यह साबित करने की कोशिश में जुटी हुई हैं कि मुसलमानों का देश की आजादी और तरक्की में कोई योगदान नहीं है। आजम ने एक बयान जारी कर यह बातें कही हैं। आजम ने बयान में कहा है, "आरएसएस और फासिस्ट ताकतें आजादी के बाद से ही यह साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि देश की आजादी, देश की हिफाजत और देश की तरक्की में उनका कोई योगदान नहीं है।"
उन्होंने अपने बयान में कहा है कि देश की 1/5 फीसदी आबादी को आरएसएस ने नफरत की निगाह से देखने के लिए मजबूर किया। सांप्रदायिक दंगे भड़काए और मीडिया को अपने पक्ष में कर उसका गलत इस्तेमाल किया। आजम ने कहा, "मैं आज भी यह कहता हूं कि कारगिल की पहाड़ियों पर हिंदू और सिख भाइयों के साथ-साथ मुस्लिम फौजियों ने भी उतनी ही बहादुरी से जंग लड़ी थी और पाकिस्तानी फौजियों को कारगिल छोड़कर जाने को मजबूर कर दिया था।"
उन्होंने कहा, "हम इस जंग में अपने योगदान का जिक्र करते हैं तो फासिस्ट ताकतों को बुरा लगता है। अगर हम कहते हैं कि हम मुल्क की सरहदों की हिफाजत करेंगे, तो हमें शहादत के दर्जे से भी महरूम रखा जाता है।"आजम ने जोर देकर कहा कि एक स्वस्थ और समृद्ध भारत का सपना उस वक्त तक साकार नहीं होगा जब तक हिंदू, मुसलमान और सिखों में आपसी भाईचारा पैदा नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि मुसलमानों के दिलों में खौफ पैदा करना और यह साबित करने पर मजबूर करना कि वह भी दूसरों की तरह देशभक्त हैं यह एक स्वस्थ बात नहीं है। देश के मुसलमानों का यह दुर्भाग्य है कि उन्हें अपनी देशभक्ति को लेकर सफाई देनी पड़ती है, जिसके जिम्मेदार फासिस्ट हैं।