हार का दंश झेलने मे अगर दर्द न हो तो दलीय प्रजातन्त्र में कोई बुराई ही न थी। कमबख्त ये हार क्या न करवा दे। तभी तो कितनी पार्टियां कुकुरमुत्ते की तरह उग आती है। ककहरे के किसी भी एक शब्द के साथ “प” या “पा” लगा दो और पार्टी तैयार, आप, बाप, आपा, भाजपा, सपा, बसपा, और पता नहीं क्या क्या ! ये चुनाव ही है जो मुख्यमंत्री बनने वाला होता है वही दूसरे दिन घर पर पता नहीं कहाँ किस दरबे में छिप कर रह जाता है ।
ये राजनीति क्या न करवा दे। एक नौकरशाह रातोंरात अपने को ईमानदार घोषित कर देता है। जिस नौकरी मे बेशक उसने दसियों साल गुजारें हों, वो ये कहने से जरा भी गुरेज नहीं करता की इस सरकारी नौकरी से करोड़ों कमाया जा सकता था पर वो उसको पैर के जूते के नोक पर रखता है। चुनाव के इस सुहाने मौसम मे हर पार्टियां अपना आधिपत्य जमाने के लिए अलग अलग तरह के सोर्स आजमा रही है, तो फिर, क्या दिक्कत है। कोई हाथ पर हाथ मार रहा तो कोई दलदल मे कमल खिला रहा, कोई इतिहास के साथ खिलवाड़ तो कोई नकली ही सही, पर लालकिले पर सवार हो कर अपने को दिखा रहा।
हाँ तो बात किसी खास व्यक्ति की नहीं है, बात केबड़ीवाल की जरा भी नहीं हैं, बात उनके “आप” की भी नहीं है, बात तो उनके भ्राता श्री जैसी पड़ोसी की है। अरे भैया, हम केवडीवाल के पड़ोसी बनवारीलाल की कर रहे हैं। जो रातोरात केबड़ीवाल से और उनके “आप” से जल भून कर रह गए । आखिर करे तो क्या करे कुछ दिन पहले तक ही तो दोनों न्यूज पेपर पढ़ते पढ़ते घर के चारदीवारी के पास व्युज देते थे और एक दिन आज है हर कोई आप – आप कर रहा और बनवारीलाल आज भी प्याज टमाटर के दामों से ही पस्त हैं ।
अंततः आज आखिर पेपर में शीर्षक था
“आप बनाम तुम”
और बनवारीलाल जी मीडिया के कुछ कैमरे के चकचौध के केंद्र बने चमक चमक कर बता रहे थे। कह रहे थे आदमी का रखवाला आप नहीं तुम हो। तुम में प्यार है, नजाकत है, नफासत है, भोलापन है। तुम से ही पार्टी है, तुम से ही सरकार है, तुम से ही हम भी हैं। तो आऊ बंधुओं तुम से तुम जूडो, तुम को ही आना है, तुम को ही लाना है । बनवारीलाल तुम्हारे साथ है। तुम बानवारी लाल के साथ हो ॥
और फिर जो हुआ, वो होना ही था ...
आप की लुटिया तुम ने डुबो दी
तुम ने सरकार बना दी
तुम बोले तो TUM “तिकड़मी उलफती मोर्चा” !!!
(मुकेश कुमार सिन्हा )
दिल्ली