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हिमाचल प्रदेश की विस्तृत खबर (09 जनवरी )

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15 वर्षों बाद मिला अपने पैरों पर खड़े होने का सुख
  • बीएलके सुपर स्पैसिएल्टी हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कमाल

himachal newsकरनाल के निवासियों के नए साल में एक बेहतर खबर. नई दिल्ली स्थित बीएलके सुपर स्पैसिएल्टी हॉस्पिटल से जुड़े डॉक्टर (जो कि करनाल के स्थानीय अमृत धारा हॉस्पिटल में भी ओपीडी के लिए जाते हैं) क्षेत्र के असाध्य ऑर्थोपेडिक रोगों (विकलांगता) से जूझ रहे मरीजों के लिए उम्मीद की एक किरण लेकर आए हैं. आधुनिक उपकरणों और उच्च स्तरीय चिकित्सकीय  सुविधाओं के लिए देशभर में अपनी ख्याति हासिल कर चुके बीएलके हॉस्पटिल के डॉक्टरों ने हाल के दिनों में अपने चिकित्सकीय कौशल के कई ऐसे उदाहरण पेश किए हैं जो इस दिशा में बेंचमार्क बन कर उभरे हैं. इसी कड़ी में हाल ही में ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट(ज्वाइंट रिप्लेसमेंट व आर्थो स्पाइन) ने 28 वर्षीय युवा भरत सेन जोकि एंकोलाइजिंग स्पेंडलाइटिस जैसे असाध्य रोग से ग्रसित थे उनकी सफल सर्जरी की और उन्हें इससे निजात दिलाई. सेन पिछले पंद्रह वर्षों से सीधे खड़े नहीं हो पा रहे थे जिसके चलते अपने कूल्हों के बल घिसट कर चलते थे, बीलके हॉस्पिटल के डॉक्टरों द्वारा किए गए इस अभूतपूर्व ऑपरेशन के बाद वे अपने पैरों के बल सीधे खड़े होकर चलने के योग्य हुए हैं. इस उपलब्धि पर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ यश गुलाटी ने कहा कि अपने पूरे कार्यकाल में यह सबसे असमान्य विकलांगता मैंने देखी थी. हालांकि एंकोलाइजिंग स्पेंडलाइटिस बड़ी आसमान्य बीमारी नहीं है, लेकिन उसका प्रभाव पीड़ित पर बहुत ज्यादा था और चकित करने वाला था. डॉ गुलाटी ने बताया कि भरत सेन की सर्जरी दो चरणों में की गई और यह बहुत ही मुश्किल भी थी. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में अधिकांशत: रीढ़ लगभग गल सी जाती है और शरीर के बाकी अंग भी धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. और इस मामले में तो उसकी रीढ़ पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी. वह पिछले पंद्रह वर्षों से सीधा खड़ा नहीं हुआ था. और अब सर्जरी के बाद वह पूरी तरह से खड़ा हो रहा है. डॉ गुलाटी ने बताया कि इस ऑपरेशन के माध्यम से हमने दोबारा से पीड़ित के कूल्हों को स्थापित किया, लेकिन यह काफी मुश्किल भरा था. मुड़े होने के कारण उसकी तंत्रिकाए और रक्त कणिकाएं छोटी हो रही थीं जिसके चलते ऑपरेशन के दौरान तंत्रिकाओं की क्षति होने और अधिक रक्त के बहने का खतरा था. इसलि हमने इस ऑपरेशन को दो भागों में बांटने का फैसला किया. पहले भाग में हमने पहले भाग में हमने एक कूल्हे के लिए कैविटी बनाई और दूसरे भाग में दूसरे के लिए. और इस तरह के तीन दिन के भीतर दो सर्जरी की गई और सब कुछ ठीक होता गया. अब वह बैसाखी के सहारे पूरी तरह से अपने पैरों पर चल सकता है. आपरेशन की पूरी प्रक्रिया को साझा करते हुए डॉ गुलाटी ने कहा कि सर्जरी आसान नहीं थी और बहुत ही श्रमसाध्य भी थी. एक बड़ा चैलेंज तो यह था दो नए कूल्हों और बोन सॉकेट बनाना और उन्हें स्थापित करना. लेकिन जो वास्तविक चैलेंज था वह था कि रक्त कणिकाओं और तंत्रिकाओं के सिकुड़े होने के कारण ऑपरेशन के दौरान यह क्षतिग्रस्त हो सकती थीं. तंत्रिकाए पिछले पंद्रह साल से इसी स्थिति के लिए तैयार हो गई थीं. डॉ गुलाटी ने बताया कि इस अवस्था से पार पाने के लिए हमने शरीर के अंगों को निर्बाध रखा. इसी क्रम में बीएलके सुपर स्पैसिएल्टी हॉस्पिटल के सीईओ डॉ परनीत कुमार ने कहा कि महसूस करते हैं कि हम करनाल और उसके आसपास के इलाकों के लोगों को इस संदर्भ में सूचित और शिक्षित करना बेहद जरूरी है कि हमारे संस्थान में आर्थोपेडिक के मरीजों के लिए नई तकनीकि के माध्यम से बेहतर इलाज संभव है.

सरकार का निर्णय आवासहीन तथा भूमिहीन गरीबों के लिये मील का पत्थर सिद्ध होने वाला 

शिमला, 09 जनवरी (विजयेन्दर शर्मा)।  हिमाचल प्रदेश सरकार का वह निर्णय आवासहीन तथा भूमिहीन गरीबों के लिये मील का पत्थर सिद्ध होने वाला है ।   जिसके तहत उन्हें आवास निर्माण के लिए भूमि प्रदान की जाएगी ।  इस निर्णय के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के भूमिहीनों को तीन बिस्वा तथा शहरी क्षेत्रों के आवासहीन परिवारों को दो बिस्वा जमीन उपलब्ध करवाई जाएगी ।  इन परिवारों को यह भूमि तब भी उपलब्ध करवाई जायेगी जब यह परिवार बीपीएल सूचि में शामिल न भी हो. प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस ऐतिहासिक निर्णय से भूमिहीन व्यक्तियों तथा परिवारों को बड़ी राहत मिलेगी ।  उन्होंने कहा कि इस निर्णय से प्रदेश के असंख्य भूमिहीन व्यक्तियों की जरूरतें पूरी होगी, जिन्होंने सरकार से आवेदन किया था ।  उन्होंने कहा कि प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा निर्णय लिया गया है. वे सभी परिवार जिनकी वार्षिक आय 50 हजार या इससे कम है और जिनकी सारी भूमि बाढ़ में बह गई है और जिनके पास आवास बनाने के लिए उचित भूमि नहीं है, वे इसके लिए पात्र होंगे ।  उन्होंने कहा कि इस निर्णय से प्रदेश सरकार द्वारा चुनावी घोषणा पत्र जिसे राज्य सरकार ने नीति दस्तावेज के रूप में अपनाया है में राज्य के सभी लोगों को छत उपलब्ध करवाने का वायदा पूरा हुआ है ।  प्रवक्ता ने कहा कि सरकार के इस निर्णय के अनुसार भूमि पति-पत्नी दोनों के नाम आवंटित की जाएगी और इस भूमि पर निर्मित आवास को आवंटित व्यक्ति द्वारा हस्तांतरित नहीं किया जा सकेगा ।  उन्होंने कहा कि यदि अलॉटी या उसके कानूनी हकदार आवंटित भूमि अथवा निर्मित आवास को किसी अन्य को हस्तांतरित करते हैं तो आवंटन रद्द किया जाएगा और भूमि पुन: सरकार के नियत्रंण में आ जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत जिले में उपलब्ध अतिरिक्त भूमि में से ही भूमि आवंटित की जाएगी ।  उन्होंने कहा कि सभी उपायुक्तों को इस बारे कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं ताकि योजना को सरकार की घोषणा के अनुरूप कार्यान्वित किया जा सके और उन्हें इस बारे में मासिक रिपोर्ट भेजने के भी निर्देश दिए गए हैं ।  इसके अतिरिक्त मण्डलायुक्त मासिक आधार पर सारी आवंटन प्रक्रिया का अनुश्रवण करेंगे और सरकार को सूचित करेंगे. इसके अतिरिक्त राज्य आवास योजना के तहत आवासहीन गरीबों को आवास निर्माण के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता को भी प्रदेश सरकार ने 48,500 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये किया है. यह निर्णय गरीब आवासहीन परिवारों को राहत उपलब्ध करवाने में तथा उनके आवास के सपने को पूरा करने में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होगा ।

वार्षिक योजना की बैठक में आंशिक बदलाव

शिमला, 09 जनवरी (विजयेन्दर शर्मा)।  प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने आज यहां कहा कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 14 व 15 जनवरी, 2014 को विधायकों की प्राथमिकताओं के निर्धारण और बजट में उनके समावेश के लिए राज्य सचिवालय में होने वाली बैठक में कुल्लू जिला की बैठक के क्रम में आंशिक संशोधन किया गया है। संशोधन के अनुसार जिला कुल्लू के विधायकों की बैठक अब 14 जनवरी, 2014 के स्थान पर 15 जनवरी, 2014 को पूर्वाह्न निश्चित हुई है। शेष जिलों के विधायकों की बैठकें पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही होंगी।

‘दी लॉस्ट रूटस’ का प्रदर्शन भोपाल में 21 जनवरी को 

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शिमला, 09 जनवरी (विजयेन्दर शर्मा)।  हिमाचल प्रदेश के पौंग बांध में कुठेड़ा टापू पर रहने वाले 175 लोगों के जीवन पर निर्मित डाक्यूमेंटरी फिल्म का दूसरा प्रदर्शन भोपाल में 21 जनवरी को फिल्म समारोह में होगा। ‘दी लॉस्ट रूटस’ का निर्माण साहित्यकार व इरावती पत्रिका के संपादक राजेन्द्र राजन ने किया है। मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग की ओर से भारत भवन में डाक्यूमेंटरी फिल्मों का एक समारोह हो रहा है, जिसमें ‘दी लॉस्ट रूटस’ के प्रदर्शन का चयन किया गया है। राजेन्द्र राजन ने बताया कि इसको पूर्व गत वर्ष 6 अक्तूबर को ‘दी लॉस्ट रूटस’ का प्रदर्शन मुम्बई में हुआ था। कुठेड़ा गांव में गत चार दशकों से बसे लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। दर्शकों ने गत 40 सालों में हिमाचल प्रदेश की सभी सरकारों द्वारा कुठेड़ावासियों के प्रति मूकदर्शक बने रहने व असंवेदनशील रवईये की तीखी आलोचना की थी। फिल्म समारोह में ‘वृत्तचित्र फिल्म निर्माण’ विषय पर सेमिनार व कार्यशाला में राजेन्द्र राजन प्रेजेन्टेशन भी देंगे।

राजनीति को सही दिशा पर लाने के लिए संकल्प लें युवा

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आज भाजपा कार्यालय में नेशनल बीजेवाईएम कैंपस एम्बेसडर प्रोग्राम का आयोजन किया गया। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह जी ने कहा – मैं सबसे पहले आप सबको शुभकामनाएं देता हूं। इश्वर से प्रार्थना करता हूं कि देश के सभी युवाओं को योग्यता दें, क्षमता दें जिससे इस भारत को महान भारत बनाने में कामयाबी हासिल हो सके। मित्रों हम उस देश के नागरिक हैं जिस देश में लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या युवाओं की है। यानी हम कह सकते हैं कि इतनी बड़ी यूथ पावर अगर किसी के पास है तो वह भारत के पास है, बाकी किसी देश के पास नहीं है। जिसके पास इतनी बड़ी यूथ फोर्स हो, नेचुरल रिसोर्सेस की कमी न हो, वह देश आज भी पिछड़ा हुआ हो और उसकी गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में हो, गरीब देशों में हो, बेरोजगार देशों में हो तो मैं समझता हूं कि इससे बड़ी चुनौती नौजवानों के लिए और दूसरी कोई नहीं हो सकती है। भाजपा ने बहुत सोच-समझकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के माध्यम से हिन्दुस्तान के नौजवानों को पार्टी के साथ जोड़ने का फैसला किया है। क्योंकि बिना इनकी क्षमता का उपयोग किए हम भारत को वह भारत नहीं बना सकते हैं, जिसकी हमलोगों ने कल्पना की है। भारत में इतिहास के पन्नों को अगर देखें तो पहली बार भारत के संस्कृति का ध्वज पताका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फहराने वाला अगर कोई है तो वह स्वामी विवेकानंद हुए। भारत का पहला ग्लोबल यूथ अगर मुझे किसी को कहना पड़े तो मैं स्वामी विवेकानंद जी को ही कहूंगा। संत महात्माओं के बारे में बात करें तो बड़ा काम जिसने कम आयु में किया है वो शंकराचार्य हैं जिन्होंने 16 वर्ष की ही आयु में मिसाल कायम की। दोस्तों नौजवानों में अद्भुत क्षमता है। वह केवल अपना भाग्य ही नहीं, बल्कि भारत के भाग्य को भी बना सकते हैं। जैसा अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत को हम विश्व गुरु बनाना चाहते हैं, तो यहीं से मैं अपनी बात की शुरुआत करना चाहता हूं। भारत को अगर आप ‘विश्व-गुरु’ बनाना चाहते हो तो आपकी सोच एक-अंगीय नहीं होनी चाहिए। भारत आर्थिक रूप से केवल विकसित हो जाए तो इसी से केवल विश्व-गुरु नहीं बन सकते हैं। वैसे तो विपक्षी हम पर यह आरोप लगाते हैं कि- भारतीय जनता पार्टी इज अ हिन्दू फंडामेंटलिस्ट पार्टी। लेकिन मैं आप नौजवानों को बताना चाहता हूं कि- भारतीय जनता पार्टी इज द ओनली पार्टी इन द कंट्री, व्हिच इज नॉट अ हिन्दू फंडामेंटलिस्ट पार्टी, बट डिवेलपमेंट ओरिएंटेड नेशनल पोलिटिकल पार्टी। हम चाहते हैं कि भारत का इकोनॉमिक डिवेलपमेंट के साथ स्पिरिचुअल डिवेलपमेंट भी हो। मैं जानता हूं कि आज के इजुकेशनल सिस्टम के माध्यम से स्पिरिचुअरिज्म के बारे में जितनी जानकारी दी जानी चाहिए, वो नहीं दी जा रही है। दोस्तों, मंदिर में जाकर पूजा करना, मस्जिद में जाकर इबादत करना, गिरिजाघर में जाकर सजदा करना, यह अध्यात्म नहीं है। कोई सचमुच पूरी सृष्टि में मन प्रधान प्राणि है तो वह मनुष्य है। इसलिए मनुष्य को भावना प्रधान प्राणि कहा गया है। मैं बता दूं कि पति-पत्नी का रिश्ता भावनाओं का होता है, खून का नहीं होता है। अपने राष्ट्र के साथ जो रिश्ता होता है, वह भावनाओं का होता है, वह खून का नहीं होता है। मैं याद दिलाना चाहता हूं कि चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने 26 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते, गोलियां चलाते-लचाते जब अंतिम गोली बची तो सोचा कि कहीं अंग्रेजों की विदेशी गोली मेरे शरीर में नहीं लग जाए, इसलिए नेशनल प्राइड की सोच पर अपनी बंदूक की एक बची गोली को अपने सीने में उतार ली। वह क्या था, इस धरती के साथ कोई रिश्ता था ? नहीं, इस राष्ट्र के साथ उनका भावनाओं का रिश्ता था। अशफाक उल्लाह खां, 21 साल की जवानी, हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। मां कहती थी, बेटा शादी कर ले। लेकिन जिस दिन फांसी पर झूलने वाले थे, उस दिन कहा कि मैं निकाह करने जा रहा हूं। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि कौन है लड़की जिससे तुम्हारी शादी हो रही है, तो उन्होंने कहा कि फांसी का फंदा मेरी महबूबा है जिसे आज गले से लगाने जा रहा हूं। यही भावनाओं का रिश्ता है, मेरे दोस्त। मन का बड़ा करना इसे ही हमारे यहां ‘अध्यात्म’ कहा गया है। आप जीवन में आनंद भी चाहते हो, केवल ज्ञान तो चाहते नहीं। याद रखिए। छोटे मन से कोई बड़ा नहीं हो सकता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं हो सकता। मन बड़ा होने से सुख कैसे प्राप्त होता है, इसे एक मैथमैटिकल फॉर्म से जानते हैं। मान लीजिए, मन हमारा सर्किल है। सर्किल का जो सरकमफेरेंस (परिधि) है, इसको जैसे-जैसे बढ़ाते जाओगे, ये बड़ा होगा। इसको अगर मैथिमेटिकल इक्वेशन में कहना हो तो मैं कह सकता हूं कि सरकमफेरेंस ऑफ मन इज डायरेक्टली प्रपोर्शनल टू मैग्निच्यूड ऑफ सुख। दुनिया में वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष भारत की धरती से हुआ है। और हमने केवल भारत को ही नहीं, बल्कि विश्व को अपने परिवार का सदस्य माना है। हम भारत को ही नहीं विश्व को भी श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं और यह सोच केवल भारत में है। इसलिए मैं कहता हूं कि मन बड़ा करो तभी भारत को विश्व-गुरु बना सकते हैं। मैं आपको बता दूं कि हिन्दुस्तान की अकेली राजनीतिक पार्टी है- भारतीय जनता पार्टी, जो सांस्कृतिक धारा के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए हमने अपनी आइडियोलॉजी को जो स्वीकार किया है वो कल्चरल नेश्नलिज्म से किया है। आज किसी राजनीतिक पार्टी के पास कोई आइडियोलॉजी नहीं है, कोई दर्शन नहीं है। दर्शन वह है जो मनुष्य को दिशा के साथ दृष्टि भी देती है। दिशा और दृष्टि अगर कोई राजनीतिक पार्टी दे सकती है तो वह भारतीय जनता पार्टी है। मित्रों, हम केवल सत्ता हासिल करने के साथ नौजवानों को अपने साथ नहीं जोड़ना चाहते। आज राजनीति में बहुत नए-नए एक्सपेरिमेंट्स हो रहे हैं। लेकिन मेरा मानना है कि आज व्यापक सोच, आइडियोलॉजी होनी चाहिए। एक संस्था में कोई कहे कुछ, कोई कहे कुछ तो ऐसे में वह संस्था नहीं चलती है। मेरा मानना है कि मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी पूंजी होती है- विश्वसनीयता। अगर एक बार विश्वसनीयता चली गई तो फिर उस पर यकीन नहीं किया जा सकता। बहुत सोच-समझकर हमने भाजपा की यूथ विंग बनाई है और जिसे (अनुराग ठाकुर) हमने प्रेसिडेंट बनाया है, वो बहुत ही डायनेमिक है और उनका संसद में भी बढ़िया परफॉरमेंस रहा है। उनके पास बेहतर सोच है। कैंपस एम्बेसडर प्रोग्राम जो इन्होंने तय किया है। जिसके पास काल्पनिक क्षमता होगी, वही इस काम को कर सकता है। कैंपस में हम इसलिए जाना चाहते हैं ताकि हमारा नौजवान गुमराह न होने पाए। मैं भी फिजिक्स से एमएससी हूं। मैं भी टीचर रहा हूं। हमने भी रिसर्च किया है। लेकिन डॉक्टरिएट की डिग्री नहीं ली है। भारत में अगर कोई रीच भाषा है तो वह संस्कृत है। लेकिन आजकल इसका लोप होता जा रहा है। इसलिए मैंने उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री रहते हुए वैदिक मैथिमेटिक्स लागू की थी और एक साथ 36 पुस्तकों को हमारे विद्वानों ने लिखी थी। दोस्तों, ‘राजनीति’ संस्कृति के दो शब्दों से मिलकर बना है- राज और नीति। ‘नीति’ संस्कृति के ‘नेय’ धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है, ‘ले जाना’। यानी सन्मार्ग की ओर ले जाना। ऐसा ‘राज’ जो समाज को सही दिशा की ओर ले जाए, उसे ‘राजनीति’ कहते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति इस शब्द को खो चुकी है। 

जीम फसलों से खुलेगा खाद्य सुरक्षा का रास्ता

पर्यावरण और वन मंत्रालय में जेनिटेकली मॉडीफाइड क्रॉप ( जैव संवर्धित फसल) पर नीतियों को लेकर जारी गतिरोध के जल्द ही समाप्त होने के संकेत मिले हैं. जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीइएसी) ऐसी फसलों के फील्ड ट्रायल लिए अगले कुछ सप्ताहों में 50 आवेदन पत्रों पर विचार कर सकती है. वास्तव में सरकार की इस फसल का स्वागत करना चाहिए. जो लोग जीएम फसलों का विरोध कर रहे हैं उन्हें इसके फायदे और इसके पीछे के विज्ञान को समझने के लिए और उसके मौजूद विज्ञान को आत्मसात करने के के लिए ग्रीन ऐक्टिविस्ट मार्क लाइनास की पुस्तक 'सिक्स डिग्रीज'पढ़नी चाहिए. मार्क लाइनास ने पहले जीएम फसलों का विरोध करते थे, लेकिन जब उन्होंने इसके फायदे समझ में आए और उन्होंने एक पुस्तक के माध्यम इसे दुनिया के सामने रखा तो इस किताब को रॉयल सोसायटी का साइंस बुक प्राइज भी मिला. इस सम्मान को हासिल कर लेने के बाद पुस्तक के लेखक को यकीन हो गया कि जीएम खाद्य पदार्थों के खिलाफ इतने लंबे समय से बने हुए उनके विश्वास महज एक मिथक हैं. यह कोई कहानी से निकली फंतासी नहीं है. इसके पीछे की हकीकत को हमें समझना होगा. आज गौर करें  तो 2050 तक जब दुनिया की जनसंख्या साढ़े नौ अरब हो जाएगी तब उसका पेट भरने के लिए अभी के दोगुने खाद्य उत्पादन की जरूरत पड़ेगी. यह काम कम उपज वाली ऑर्गैनिक फसलों (हरित क्रांति से पहले वाली) के जरिये करना हो तो बड़ी मात्रा में जंगल और जमीनों को साफ करके उन्हें खेती के काम में लाना पड़ेगा. अगर ऐसा हुआ तो पर्यावरण, जैव विविधता पर बढ़ा संकट खड़ा हो जाएगा.  ऐस में दुनिया के सामने बेहतर उपज के लिए एक ही विकल्प बचेगा जीएम फसल. ऑर्गैनिक फार्मिंग वास्तव में बदलती आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में कारगर नहीं है और यह संकट हम सबको माल्थस के सिद्धांत वाली भुखमरी के कगार पर खड़ा कर देगा. ऑर्गैनिक फार्निंग महंगे खाने की मांग पूरी कर सकती है, लेकिन व्यापक जनता की जरूरतें पूरी करने के लिए हमें जीएम फसलों की तरफ जाना ही होगा. इसीलिए मैं जीएम क्रॉप को प्रोत्साहान देना बेहद जरूरी है लेकिन असस्पष्टता के कारण यह  अस्पष्टता के कारण जीइएसी की बैठक बीते एक वर्ष से नहीं हो सकी है. हालांकि यह शुभ संकेत हैं कि सरकार इस दिशा में अब सोच रही है. एक अनुमान के मुताबिक 11 कृषि फसलों के ट्रायल के लिए करीब 35 आवेदन पेडिंग प़डे हुए हैं और करीब 20 जीइएसी के साथ रिवैलिडेशन के लिए आए हुए हैं. बीते जून माह से चालू रिवैलिडेशन प्रोसेस के लिए सेंटर ने फैसला किया है कि अप्रूव किए फील्ड ट्रायल आगामी वर्षों में भी वैध रहेंगे यहां तक कि चाहे वे उस साल में न किया जा सकें जिस साल उन्हें अप्रूवल मिला है. और ये ट्रायल तभी किए जा सकेंगे जब राज्य इसके लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे दे. नए आवेदनों में 15 चावल से संबंधित हैं और 7 मक्का से. दो आवेदन कॉटन, बैंगन, आलू और सरसों के लिए सम्मिलित रूप से और एक दूसरा आवेदन रेड़ी, गन्ना, गेंहू, चारा और चना के लिए है. इसमें से सिर्फ जीएम कॉटन ही भारत में व्यवसायिक स्तर पर पैदा किया जाता है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने ऐसे 26 आवेदनों को एनओसी दिया है. इन्हें भी जीइएसी की अगली बैठक में संज्ञान में लिया जाएगा. कुल मिलाकर 81 आवेदनों पर जीइएसी द्वारा विचार किया जाएगा. पर्यावरण मंत्रालय भी जीएम क्रॉप को लेकर रिसर्च किए जाने का पक्षधर है वह बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग और कृषि मंत्रालय के साथ मिल कर एक शपथ-पत्र तैयार कर रहा है जिसे उच्चतम न्यायालय में दायर किया जाएगा. जीएम क्रॉप के फील्ड ट्रायल को प्रतिबंधित करने को लेकर अरुणा रोड्रिगेज के द्वारा न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. इस मामले की सुनवाई अप्रैल में शुरू होगी. बिहार, राजस्थान और केरल जैसे राज्यों ने जीएम क्रॉप के फील्ड ट्रायल को लेकर विरोध प्रकट किया है वहीं मध्य प्रदेश ने इसे लेकर केंद्र को एक पत्र भी लिखा है. एसोसिएसन ऑफ बायोटेक लेड इंटरप्राइजेज-एग्रीकल्चर ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर एन सीतारामा का मानना है कि जीएम क्रॉप फसलों से जुड़े सभी फील्ड ट्रायल किए जाने चाहिए जिससे यह निश्चित किया जा सके कि विज्ञान और शोध के रास्ते में कोई रुकावट नहीं पैदा हो रही है. तीन वर्ष पीछे चलें तो वर्ष 2010 में तक्तालीन विभागीय मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन पर रोक लगा दी थी. जीएम क्रॉप पर उनके निर्णय को उनकी उत्तराधिकारी जयंती नटराजन ने भी यथावत रखा. लगभग एक पखवा़डे पहले उनके मंत्रालय से हटाए जाने में भी इसे एक कारण माना जा रहा है. यही वजह है कि अब जीइएसी की बैठक की तत्काल करने की जरूरत है क्योंकि इसकी वजह से वे बीज कंपनियां जो फील्ड ट्रायल करना चाहती हैं, नहीं कर पा रही हैं. देश की युवा पीढ़ी को शायद ही 1965-66 के भयंकर सूखे का अंदाजा हो. वह दौर था जब हमें भुखमरी से बचने के लिए हमें पूरी तरह अमेरिकी खाद्य सहायता पर निर्भर हो जाना पड़ा था. हरित क्रांति की वजह से हम उस दौर से तो निकल आए लेकिन जिस तरह हमारी कृषि योग्य जमीनें कम हो रही हैं और खाद्यान्न की जरूरतें बढ़ रही हैं वह हमें एक बार उसी देश और काल की ओर ले जा रही है. इसलिए इस संकट के बचने के लिए आखिरकार हमें जीएम फसलों की ओर देखना ही होगा. अगर सरकार इस दिशा में जागरूक हो रही है तो इस कदम का स्वागत करना चाहिए.

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