कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा औपचारिक रूप से गुरुवार को फिर से भाजपा में शामिल हो गए। येदियुरप्पा ने एक वर्ष से कुछ पहले भाजपा छोड़कर अपनी स्वयं की पार्टी बना ली थी। येदियुरप्पा जब अपने समर्थकों के साथ भाजपा प्रदेश मुख्यालय में पहुंचे तो भाजपा कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष प्रह्लाद जोशी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने उनका स्वागत किया। उन्हें एक कार्यक्रम में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दी गई जिसमें पार्टी का कोई भी राष्ट्रीय नेता उपस्थित नहीं था।
येदियुरप्पा ने कहा कि हमें अतीत को भुलाकर, आपसी संदेह मिटाकर एक मां की संतान की तरह मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने एक सप्ताह पहले अपनी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) का भाजपा के साथ विलय करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि हमारे कुछ गलत फैसलों के चलते एक कोने में दुबकी कांग्रेस कर्नाटक में फिर से सत्ता में लौट आयी है। येदियुरप्पा ने कहा कि हमने (उसे यह मौका देकर) अक्षम्य अपराध किया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व की ‘कंगाली’ का सामना कर रही है और देश की यह उत्कट इच्छा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें।
उन्होंने कहा कि पार्टी का कर्नाटक में (28 लोकसभा सीटों में से) 20 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य होना चाहिए। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने कहा कि पार्टी को लोकसभा चुनाव के लिए जनता के पास जाकर यह कहना चाहिए कि ‘हमारी गलतियों को माफ करें। हम फिर नहीं दोहराएंगे।’ जोशी ने पूर्व मुख्यमंत्रियों डीवी सदानंद गौड़ा और जगदीश शेट्टार तथा राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार की मौजूदगी में येदियुरप्पा का स्वागत करते हुए कहा कि हम खुले मन से साथ आए हैं। इससे पहले येदियुरप्पा के कट्टर विरोधी और पार्टी में उनकी वापसी में बड़ा रोड़ा माने जाने वाले अनंत कुमार ने कहा कि हम कभी भी अलग नहीं होंगे, हम साथ होंगे। हम साथ लड़ेंगे।
कुमार ने कहा कि हम केजेपी का खुले मन और खुले दिल से स्वागत करते हैं। इस एकीकरण के साथ ही केंद्र और कर्नाटक की कांग्रेस नीत सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। भाजपा को उम्मीद है कि येदियुरप्पा की ‘बिना शर्त’ वापसी से उसकी चुनावी किस्मत पुनर्जीवित होगी जिन्होंने दिसम्बर 2012 में पार्टी से चार दशक से अधिक समय पुराना संबंध तोड़कर स्वयं को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ कड़वी बातें कहीं थीं। अवैध खनन मुद्दे पर लोकायुक्त द्वारा अभ्यारोपित किये जाने के बाद येदियुरप्पा को 2011 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए कहा गया था। उसके बाद सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री बने लेकिन उसके बाद शेट्टार ने उनकी जिम्मेदारी संभाल ली। येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी केजेपी गठित करने से पहले दोनों की नींद उड़ा दी थी।
गत वर्ष मई में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे अपमानजनक हार का सामना किया और पार्टी तीसरे नम्बर पर आ गई। उस चुनाव में केजेपी ने पार्टी का खेल बिगाड़ने वाले की भूमिका निभायी। केजेपी ने छह सीटें हासिल की और उसे 10 प्रतिशत मत मिले। येदियुरप्पा को लिंगायत का नेता माना जाता है जो कि राज्य में संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा समुदाय है। लेकिन वह अलग पार्टी के रूप में बड़ा राजनीतिक प्रभाव नहीं जमा पाये। वह अनिश्चित राजनीतिक भविष्य का सामना कर रहे थे। दोनों ही पार्टियां एकीकरण को लेकर प्रयास कर रही थीं। इन प्रयासों का परिणाम गत सप्ताह तब सामने आया जब भाजपा और केजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व से हरी झंडी मिलने के बाद विलय की घोषणा कर दी।