- केदारनाथ आपदा मानव जनित नहीं, बल्कि प्रकृति का कहर: जीएसआई निदेशक
देहरादून, 9 जनवरी। केदारनाथ आपदा मानव जनित नहीं, बल्कि यह प्रकृति का कहर था। यह बात आज यहां सचिवालय स्थित मुख्य सचिव कार्यालय में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की राज्य ईकाइ के निदेशक डा. वी.के. शर्मा ने छहः महीने तक राज्य के चार आपदा प्रभावित जनपदों के अध्ययन के बाद मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपने के बाद कही। उन्होंने कहा कि प्रदेश के चार जनपदों के 274 स्थानों को लैंडस्लाईड (भू-क्षरण) स्थान के रूप में चयनित किया गया है, जबकि राज्य के 67 गावों को दूसरे स्थानों पर पुर्नवासित किए जाने की बात इस रिपोर्ट में कही गई है।
जीएसआई के निदेशक ने कहा कि प्रदेश सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में केदारनाथ कस्बे (केदारपुरी) को दक्षिण की ओर पुर्नवासित करने संबंधी सुझाव भी सरकार को दिए गए हैं, क्योंकि वर्तमान केदारपुरी चौराबारी ग्लेशियर से आए अथाह जल के कारण असुरक्षित हो गई है। उन्होंने कहा कि केदारपुरी क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के दोनों ओर तटबंध बनाने के साथ-साथ मंदाकिनी नदी के रूख को मोड़े जाने का भी प्रस्ताव सरकार को दिया गया है। उन्होंने कहा कि मंदिर के पिछली ओर अथाह पानी से बहकर आई शिला के साथ मंदिर को बचाने जाने के लिए रिटेनिंग वॉल बनाए जाने का सुझाव भी सरकार को दिया गया है।
निदेशक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 15 से 17 जून 2013 तक हुई अप्रत्याशित अतिवृष्टि से उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर भूस्खलन, भूकटाव व भूधंसाव हुए हैं। जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि अध्ययन के बाद यह साफ हो गया है कि केदारनाथ आपदा मानव जनित नहीं, बल्कि प्रकृति का प्रकोप था। उन्होंने यह भी बताया कि आपदा के तुरंत बाद भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने प्रारंभिक भूगर्भीय आंकलन के लिए एक दल केदारनाथ भेजा, जिसने मंदिर प्रांगण में आए मलबे से कम से कम छेड़छाड़ करते हुए वैज्ञानिक रूप से चरणबद्ध तरीके से हटाने और अन्य सुरक्षात्मक प्रावधानों को इस रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि उत्तराखण्ड के अतिआपदा प्रभावित पांच जनपदों चमोली, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ एवं बागेश्वर में भूगर्भीय एवं भूस्थायित्व अध्ययनों पर यह विस्तृत रिपोर्ट 21 विशेषज्ञों अधिकारियों द्वारा तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि 274 भूस्खलनों का अध्ययन इस शोध रिपोर्ट में किया गया है और लगभग एक हजार लाईन किलोमीटर का सर्वेक्षण कार्य व 67 प्रभावित गांवों के अवस्थापना एवं पुर्नवास संबंधी आंकड़े भी इस रिपोर्ट में दिए गए हैं। इस रिपोर्ट में मंदाकिनी घाटी सहित केदारनाथ मंदिर और उसके आस-पास के क्षेत्रों के सुरक्षात्मक उपाय व सुझाव दोनों दिए गए हैं, जिसमें घाटी और मंदिर के आस-पास के क्षेत्रों में भूवैज्ञानिकी, भूभौतिकी, हिमनद अध्ययन कर सरकार को संस्तुति की गई है। उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट में आपदा के पश्चात मंदाकिनी नदी का मार्ग परिवर्तित हुआ बताया गया है, इस रिपोर्ट के अनुसार मंदाकिनी नदी की मुख्य धारा पूर्व की ओर सरस्वती नदी में जाकर मिल गई जो कि एक अनोखी प्राकृतिक घटना है, जिस पर भूवैज्ञानिक अध्ययन कर नदी की धारा को एक बार फिर चैनलाईज कर और नदी के मुहानों को सुदृढ़ किए जाने का सुझाव भी दिया गया है।
उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में ग्राउण्ड पेनिटेªटिंग रडार (जीपीआर) के माध्यम से मंदिर की नीव की सतहों का अध्ययन किया गया और यह पाया गया कि मंदिर परिसर के चबूतरे में कुछ छोटी दरारें आई हैं, जिनके सुधारीकरण की आवश्यकता है, वहीं मंदिर की रेट्रो फिटिंग भी आवश्यक है।
वहीं प्रदेश के मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने बताया कि छहः माह के अध्ययन से पहले जीएसआई ने एक अंतरिम रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी थी, जिसके बाद यह अंतिम रिपोर्ट जीएसआई महानिदेशक द्वारा आज सौंपी गई है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ क्षेत्र में पुर्नवास और पुर्नगठन का कार्य अभी लगभग तीन साल तक चलना है और राज्य सरकार को जीएसआई इस निर्माण योजना में तीन साल तक सहयोग करता रहेगा, क्योंकि केदारनाथ क्षेत्र में किए जाने वाले नवनिर्माण अब वैज्ञानिक आधार पर किए जाएंगे, ताकि भविष्य में जनहानि से बचा जा सके।
--राजेन्द्र जोशी--