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सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति लोढ़ा

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सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा देश की सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने रविवार को सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। वह देश के 41वें प्रधान न्यायाधीश हैं। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम का स्थान लिया है, जिनका कार्यकाल शनिवार को समाप्त हो गया। लोढ़ा अगले पांच महीने तक देश के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बने रहेंगे। उनका कार्यकाल 27 सितंबर, 2014 को समाप्त हो रहा है।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है, जिनमें कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितता से संबंधित मुकदमे भी शामिल हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को 'मालिक की भाषा बोलने वाला पिंजड़े में बंद तोता'कहा था।

हाल ही में उन्होंने पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता भी की, जिसने संविधन की व्याख्या की आवश्यकता जताने वाले कई मुद्दों की सुनवाई की। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोढ़ा का मानना है कि 'सर्वोच्च न्यायालय किसी वर्ग, जाति, बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि यह देश के संविधान एवं कानून का अनुसरण एवं उसकी व्याख्या करता है तथा दृढ़ता से न्याय का संतुलन बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्याय का तराजू किसी भी तरफ झुके नहीं।'

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने जोधपुर विश्वविद्यालय से विधि में डिग्री ली है। उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में वकालत की। इस दौरान उन्होंने संवैधानिक, नागरिक, कंपनी, आपराधिक, कराधान, श्रम तथा अन्य मामलों से जुड़े मुकदमों की वकालत की। उन्होंने केंद्र व राजस्थान सरकार के वकील के रूप में भी अपनी सेवा दी।

न्यायमूर्ति लोढ़ा को 31 जनवरी, 1994 को राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थाई न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्हें 16 फरवरी, 1994 को बम्बई उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया, जिसके बाद 13 साल तक वह वहां रहे। दो फरवरी, 2007 को वह राजस्थान उच्च न्यायालय लौटे। इसके बाद 13 मई, 2008 को वह पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। 17 दिसंबर, 2008 को वह वह पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे। वह जोधपुर स्थित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से भी इसके कार्यकारी सदस्य के रूप में जुड़े रहे।

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