- किसान¨ं के साथ मिट्टी के ब¨झ क¨ कम करती जैविक खेती
एक समय था जब जम्मू कश्मीर के जम्मू जिले के आरएस पुरा तहसील में स्थित सुचेतगढ़ पंचायत के बड़े-बड़े खेत द¨ विर¨धी देश¨ं के लिए जंग का मैदान हुआ करते थे। लेकिन आज ये खेत जैविक कृषि की प्रय¨गशाला बने हुए हैं। भारत पाकिस्तान सीमा से नाममात्र की दूरी पर स्थित 500 परिवार¨ं वाली सुचेतगढ़ पंचायत के निवासिय¨ं के सिर पर सीमापार से ह¨ने वाली ग¨लीबारी की तलवार हमेशा लटकती रहती है, लेकिन उन्ह¨ंने इन मुश्किल परिस्थितिय¨ं से घबराकर हार नहीं मानी बल्कि वे सभी कठिनाइय¨ं का सामना करते हुए कृषि के पारंपरिक तरीक¨ं क¨ अपना कर अ©र रासायनकि खाद¨ं तथा कीटाणुनाशक¨ं क¨ त्याग कर कृषि के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिख रहे हैं। अ©र इस सबकी शुुरुआत ह¨ती है कृषि उत्पाद विकास द्वारा आय¨जित उŸाराखण्ड के एक कृषि जागरुकता भ्रमण से। जम्मू से 35 किमी. दूर सुचेतगढ़ क्षेत्र सवर्¨Ÿाम स्तर का बासमती चावल पैदा करने वाला क्षेत्र है। लेकिन पिछले द¨ दशक¨ं से पैदावार क¨ बढ़ाने के लिए भारी मात्रा में रासायनिक खाद अ©र कीटनाशक¨ं का प्रय¨ग किया जा रहा था। इससे पैदावार त¨ बढ़ गई लेकिन साथ ही में इसकी लागत भी बढ़ गई जिसने पहले से ही ब¨झ से दबे किसान¨ं क¨ अ©र अधिक दबा दिया। सुचेतगढ़ के सरपंच स्वरन लाल ने बताया कि उन्हंे जैविक कृषि का विचार कृषि जागरुकता भ्रमण के तहत उŸाराखण्ड के द©रे में आया। उन्ह¨ंने कहा, ‘‘उŸाराखण्ड में प्रदर्शित कृषि के नवीनतम अ©र परिष्कृत क्रियान्वयन हमारी कमज¨र अर्थव्यवस्था वाले किसान¨ं के लिए उपयुक्त नहीं थे। किंतु चर्चा के द©रान जैविक कृषि की अवधारणा ने मुझे खासा आकर्षित किया। जैविक कृषि के क्षेत्र में उŸाराखण्ड के किसान¨ं ने काफी सफलताएं हासिल की हैं। मैंने इससे संबंधित सभी जानकारियां इक्ट्ठी की अ©र तय किया कि हम कृषि की इसी विधा क¨ अपनाएंगे।’’ उन्ह¨ंने आगे बताया कि कि शुरुआत में उन्ह¨ंने जैविक तरीक से होने वाली खेती की लाभ-हानि जानने के लिए जमीन के एक छ¨टे से टुकड़े पर प्रय¨ग किया। इसके काफी बेहतर परिणाम भी मिले।
पिछले डेढ़ साल¨ं में सर्वेश्वर राइस मिल के संरक्षण में (आरएस पुरा क्षेत्र में जम्मू कश्मीर कृषि विभाग की सहभागिता में जैविक कृषि के प्र¨त्साहन में स्टेकह¨ल्डर) 82 परिवार¨ं क¨ जैविक कृषि के लिए प्र¨त्साहित करने में सफल हुए हैं। परिवार¨ं का ज्यादातर हिस्सा अपने पास रेवड़ रखता है जिनका ग¨बर खाद की तरह इस्तेमाल ह¨ता है। इसके अलावा इस पंचायत के किसान¨ं द्वारा हरा खाद अ©र वर्मीकम्प¨स्ट भी प्रय¨ग किया जा रहा है। पिछले डेढ़ साल¨ं में सुचेतगढ़ पंचायत की कुल 1100 एकड़ कृषि य¨ग्य भूमि में से 350 एकड़ भूमि पर जैविक कृषि की गई। पंचायत के किसान¨ं क¨ उम्मीद है कि अगले साल करीब 300 परिवार और जैविक कृषि की तरफ उन्मुख ह¨ जाएंगें। म©जूदा समय में जम्मू प्रांत के विभिन्न क्षेत्र¨ं में विविध फसल¨ं के लिए जैविक कृषि क¨ प्र¨त्साहित करने के उद्देश्य से जम्मू कश्मीर सरकार के कृषि उत्पादन विभाग द्वारा छह निजि उद्यम¨ं क¨ शामिल किया गया है। आरएस पुरा में सर्वेश्वर राइस मिल ने जैविक कृषि के जरिए 200 एकड़ में गेंहू एवं धान की खेती का लक्ष्य लिया है। जयपुर आधारित सामाजिक संस्था मरारका आॅर्गैनिक, किश्तवाड़ में किसान¨ं क¨ करीब 200 हेक्टयेर भूमि पर केसर उगाने के लिए प्र¨त्साहित कर रही है। ड¨डा जिले के भदरवाह तहसील में उन्ह¨ंने किसान¨ं क¨ 700 हेक्टेयर में राजमा उत्पादन के लिए भी प्र¨त्साहित किया है। इसी तरह एक्टटेक एग्र¨ लिमिटेड रेसाई जिले में प¨नी बेल्ट के किसान¨ं क¨, कठुआ जिले के हीरानगर तहसील, सुधामहादेव अ©र छेननी छेत्र में जैविक कृषि के जरिए सब्जिय¨ं की खेती के लिए प्र¨त्साहित कर रही है। उन्ह¨ंने सब्जिय¨ं की पैदावार के लिए करीब 600 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा है।
एक बंगलूरु आधारित कंपनी आईसीसीअ¨ए ने संबा एवं उद्यमपुर जिले के मनसर एवं समर¨ली क्षेत्र के किसान¨ं का 350 हेक्टेयर भूमि पर दाल¨ं के उत्पादन के लिए चयन किया है। एक उŸारांचल आधारित कंपनी सुबीदा ने राज©री अ©र पुंछ द¨ जिल¨ं के 400 हेक्टेयर भूमि में दालें, राजमा अ©र मसाले उगाने का लक्ष्य रखा है। इसके अतिरिक्त, इण्डियन पनेसिया लिमिटेड (आईपीएल) ने सनासर अ©र सेरी क्षेत्र में आलू एवं मटर की पैदावार के लिए 350 हेक्टेयर भूमि का लक्ष्य रखा है। इससे पहले बर्फबारी के समय यूरिया, डीएपी, प¨टाश जैसे खाद¨ं की कमी ह¨ जाती एक थी। किसान¨ं की परेशानिय¨ं के बारे में बताते हुए एक किसान रमेश लाल (34) बताते हैं, ‘‘किसान¨ं क¨ खाद खरीदने के लिए इधर-उधर जाना पड़ता है। कभी-कभी त¨ पंजाब तक जाकर खाद लाना पड़ता है। अ©र यह सब तब ह¨ता है जब खेती का म©सम अपने शिखर पर ह¨ता है। इस सबमें बहुत सारा समय अ©र पैसा भी बर्बाद ह¨ता है।’’ वे बताते हैं कि जैविक कृषि की तरफ मुड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है। एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल करीब 350 एकड़ भूमि पर जैविक खेती की जा रही है। लेकिन अभी भी पंचायत में बहुत से ऐसे किसान हैं ज¨ रासायनकि खाद¨ं अ©र कीटनाशक¨ं का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। जैविक खेती कर रहे किसान¨ं ने बताया कि बरसात में तेज बारिश की वजह से अजैविक खेत¨ं में पड़े खाद¨ं अ©र कीटनाशक¨ं का रसायन युक्त पानी जैविक खेत¨ं में आ जाता है जिसकी वजह से फसल¨ं की शुद्धता पर प्रभाव पड़ता है। उन्ह¨ंने आगे कहा कि इस पहल का बड़ा लाभ तभी मिलेगा जब ज्यादा से ज्यादा गांव वाले जैविक खेती शुरु कर देंगे अ©र फसल क¨ सरकार द्वारा जैविक फसल ह¨ेने का प्रमाण-पत्र मिलेगा। कृषि उत्पादन विकास के निदेशक अजय खजूरिया ने कहा,‘‘विभिन्न फसल¨ं मेें जैविक खेती क¨ बढ़ावा देने के लिए हमने छह कंपनिय¨ं के साथ तीन साल के लिए समझ©ता पत्र¨ं पर हस्ताक्षर किए हैं। पहले चरण में हमने समूचे जम्मू प्रांत की कुल 3 लाख 90 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में से प्राय©गिक त©र पर 3,200 हेक्टयर भूमि क¨ लक्षित किया है।’’ ‘‘किसी भी चीज की शुरुआत बहुत मुश्किल ह¨ती है, लेकिन एक बार जब काम शुरु ह¨ जाता है तब फिर वह सबक¨ बहुत आसान लगने लगता है। हमारे पास मार्केटिंग की सुविधाअ¨ं की कमी है लेकिन यह छह कंपनियां राज्य के सभी जैविक किसान¨ं क¨ मार्केटिंग की सुविधा देंगीं । यह प्रय¨ग तीन साल¨ं के लिए हैं अ©र इसका दूूसरा साल शुरु ह¨ चुका है। तीन साल के बाद हमारे जैविक उत्पाद प्रमाणिक ह¨ जाएंगे अ©र एक बार जब इनकी प्रमाणिकता सिद्ध ह¨ जाएगी त¨ हमारे किसान¨ं क¨ खूब मुनाफा मिलेगा क्य¨ंकि दुनिया पर जैविक उत्पाद¨ं की बहुत मांग है।’’
कृषि प्रणाली अनुसंधान केंद्र अ©र शेर-ए-कश्मीर विज्ञान एवं तकनीक कृषि विद्यालय के कृषि विज्ञान प्रभाग के विभागाध्यक्ष, डाॅ दिलीप कचरू ने कहा,‘‘हालांकि जैविक खेती से फसल की पैदावार तुरंत नहीं बढ़ेगी लेकिन यह मिट्टी क¨ स्वस्थ्य रखते हुये अ©र बिना जल स्तर गिराए स्थाई कृषि क¨ प्र¨त्साहित करेगी। अतः हम भविष्य में इसकी सफलता की उम्मीद कर सकते हैं।’’ क्षेत्र के पर्यावरणीय असंतुलन पर चिंता व्यक्त करते हुए कचरू बताते हैं कि,‘‘आरएस पुरा क्षेत्र की मिट्टी में जैविक काॅर्बन तत्व (अ¨सीसी) 0.45, 0.50 ,0.52 के स्तर तक गिर चुका है, जबकि आदर्श रूप में यह 0.60, 0.80 अ©र 1 ह¨ना चाहिए। घटे हुए अ¨सीसी की वजह से किसान ज्यादा मात्रा में खाद का इस्तेमाल करते हैं ज¨कि पानी अ©र पर्यावरण क¨ प्रदूषित करता है। इसमें आगे बताते हुए वे कहते हैं कि जैविक खेती समान्यतः शुरु में उत्पादन कम देती है लेकिन जैविक खाद के इस्तेमाल से अ¨सीसी स्तर बढ़ने लगता है अ©र छह साल¨ं में अ¨सीसी स्तर बढ़ जाएगा अ©र इसके साथ ही उत्पादन भी। उन्ह¨ंने किसान¨ं क¨ ढांढस बधाते हुए कहा कि एक बार जब जैविक खेती पूरी तरह से अपना ली जाएगी अ©र तब कृषि जगत निश्चित ही किसान¨ं के लिए एक मुनाफाकारी व्यवसाय बन जाएगा।
अक्षय आज़ाद
(चरखा फीचर्स)