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बिहार : महादलितों ने कहा कि विस्थापित होने के पहले पुनर्वासित कर दिया जाए

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पटना। कुर्जी होली फैमिली हाॅस्पिटल के सामने गंगा सुरक्षा तटबंध के नीचे और श्मशान घाट के नीचे चन्द्रर राम और उनकी पत्नी जितनी देवी रहती थीं। दोनों की मौत हो गयी है। अपने विरासन में श्मशान घाट और मुंह चिढ़ाने वाली झोपड़ी छौड़ गए। इसी झोपडि़यों में डोम महाराज के लोग रहते हैं। यह एरिया उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत के अंदर पड़ता है। इस पंचायत के मुखिया सुधीर कुमार हैं। क्षेत्र के उमा शंकर आर्या, सदस्य,पंचायत समिति,पटना सदर हैं। अब तो मामला गंभीर बन गया है। गंगा किनारे से दीघा लेकर आगे तक सड़क निर्माण होना है। इस रोड का मिलान श्मशान घाट से होकर पटना-दानापुर में करना है। इसके कारण डोम राजाओं के आशियाना पर संकट का बादल मंडराने लगा है। हालांकि नापी करने वाले अधिकारी कह गए है कि आपलोगों को विस्थापित होने के पहले पुनर्वासित कर दिया जाएगा। यह मात्रः सपना ही न रह जाएगा। हकीकत में अंजाम देने की जरूरत है। 

यहां के बाबूराम हैं जो मजदूरी करते हैं। उनका कहना है कि काफी दिक्कत से हमलोग रहते हैं। सरकार के द्वारा विकास और कल्याण की योजना नहीं चलायी जाती है। शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है। हमलोग हाॅस्पिटल के सामने पेयजल लाने जाते हैं तो वहां के दुकानदार और टेम्पों चालक विरोध करते हैं। इन लोगों का कहना है कि हमलोग नल लगाए हैं। सो आपलोगों को पानी नहीं भरने देंगे। काफी मुश्किल स्थिति है। कुर्जी होली फैमिली हाॅस्पिटल वाले भी पड़ोसी प्रेम नहीं दिखाते हैं। एक बाल्टी पानी भी भरने नहीं देते हैं। यहां के मुस्तैत दरबान भगा देते हैं।

बोलते - बोलते बाबूराम बोल गए कि हमलोग सैकड़ों बार चतुर्थवर्गीय श्रेणी का काम मांगने गए। किसी एक लोगों को भी काम पर नहीं रखा गया। यह समझ लीजिए कि बिजली बल्ब के तले अंधेरा की तरह ही है। किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं दिया जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि हम आवासहीनों को सरकार कम से कम 10 डिसमिल जमीन दें। आजीविका के लिए 1 एकड़ जमीन दें। कारण कि पुश्तैनी धंधा मंदा पड़ गया है। यहां पर शव जलाने का काम बंद हो गया है। गंगा किनारे मृत पशुओं का पोस्टमार्टम करके चमड़ा और हड्डी निकालने का भी विरोध होने से काम पर प्रभाव पड़ रहा है। अभी पटना-दीघा रेलखंड के किनारे झांड़ी में पशुओं का पोस्टमार्टम किया जाता है। 

इस बात से साफ इंकार किया कि हमलोग मृत पशुओं की चर्बी का कारोबार करते हैं। पूर्वज बीस-तीस साल पहले किया करते थे। अब हमलोग नहीं करते हैं। घर और काॅलोनी के शौचालय को सफाई करके मिलने वाली राशि से जीर्विकोपार्जन करते हैं। बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। 



आलोक कुमार
बिहार 

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