भर दे झोली मेरी या मोहम्मद, दमादम मस्त कलंदर, सरकार की चादर सरकार के दर पर, ख्वाजा का दामन नहीं छोड़ेंगे, मेरा ख्वाजा हिन्द का राजा, जैसी सदाएं अजमेर शरीफ में गूंज रही है। मौका है महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाहअलैह का 802वां सालाना उर्स का। बड़ी तादाद में जायरीनों के आवक से दरगाह व आसपास इलाके की रौनक बढ़ गई है। आशिकान-ए-ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में चादर व अकीदत के फूल चढ़ा रहे है।
इस्लामिक कलेंडर में रजब का महीना बहुत ही अहम् है। यह माह पवित्र माह रमजान के आने की आहट देता है। इस माह अजमेर शरीफ में महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाहअलैह का सालाना उर्स शाही शान-ओ-शौकत के साथ होता है। उर्स पहली से छठीं तारीख तक होता है। इस उर्स में देश-विदेश के विभिन्न खनकाहों के सज्जादानशीन, सूफी, मशायख सहित खासी तादाद में हर जाति व धर्म के आशिकान-ए-ख्वाजा दरगाह पर आते है और दुआ लेकर जाते है। जो भी उनके दरबार में हाजिरी लगाता है, उसकी झोली खाली नहीं रहती है। तकरीबन दस लाख से भी अधिक जायरीन इस उर्स में शिरकत करते है। और मुल्क के अमन और खुशहाली की दुआ करते है। यहां की हर इमारत उनकी आस्था से जुड़ी है। हर कोई उनकी चैखट पर जुमे की नमाज अदा करने की तमन्ना रखता है। कई जायरीन यहां काफी दिनों तक हाजिरी में रहते है। दरगाह और उसके आसपास का इलाका रोशनी से जगमगाने लगता है और सुगंध से महक उठता है। यहां आकर हर खास और आम सारे दुखों को भूल जाता है और मन मांगी मुरादे झोली भरकर ले जाता है।
ख्वाजा साहब का जन्म 1141ई में ईरान में हुआ था। बचपन से ही वह मानव सेवा से जुड़े रहकर तमाम सोहरत बटोरी। पारीवारिक मोहमाया से हटकर वह रुहानी दुनिया में लीन रहते थे। 12वीं सदी में 50 वर्ष की उम्र में इस्लाम फैलाने के लिए भारत आएं। उन्होंने अपने व्यवहार, सेवाभाव व तालिम से भारत में इस्लाम मजहब फैलाया। सही मायने में सुल्तानुलहिन्द ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक है। उन्हीं की देन है कि भारत में खानकाहों की स्थापना हुई। इन खनकाहों में सभी धर्म के लोग रोजाना आते है और दुआ लेकर जाते है। भारत के लोग जितना ख्वाजा को चाहते है उतना ही पाकिस्तान, बांग्लादेश व अन्य देशों में उनके अकीदतमंद है। ख्वाजा ने लोगों को आपस में मिलकर रहने की तालिम दी। ख्वाजा अल्लाह के ऐसे वली जो सूरज की तरह है, जो सबों को एक साथ रोशनी व गर्मी देते है। वे नदी की ऐसी धारा है जिसमें सभी लोग लाभान्वित होते है। उन्हें भारत में सूफीवाद का संस्थापक कहा जाता है। ख्वाजा कल भी प्रासंगिक थे, आज भी है औ कल भी रहेंगे। उनके द्वारा दी गयी नसीहत से कामयाबी यकीनी है। अन्य दरगाह की अपेक्षा भारत में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती या ख्वाजा शरीफ अजमेर का काफी महत्व है। मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में ख्वाजा साहब का दुसरा स्थान है। इसका निर्माण 13वीं सदी में होना माना जाता है।
(सुरेश गांधी)